सुमित बेटा… तू किसी भी तरह से जल्दी आजा… बहु को दर्द शुरू हो गए हैं तुझे तो पता है तेरे पापा को गाड़ी चलाना भी नहीं आता घर में गाड़ी होते हुई भी अपाहिज सी हो गई हूं, कैसे अस्पताल लेकर जाऊं दिमाग सुन्न हो गया है, उधर बहू दर्द के मारे चिल्ला रही है इधर कोई भी मेरे पास नहीं है रात
का 1:00 बज गया है कोई भी कैब या किराए पर गाड़ी तैयार नहीं हो रही, बारिश की वजह से जगह-जगह रास्ते जाम है सो अलग! रजनी की बात सुनकर सुमित बोला… मम्मी दिल्ली में भी यही हाल हो रहा है यहां भी भारी बारिश के कारण गाड़ियां नहीं मिल रही, मैं 2 घंटे से कोशिश कर रहा हूं कि कोई
टैक्सी मिल जाए ताकि मैं जयपुर तक आ सकूं मुझे क्या पता था मेरी मीटिंग वाले दिन ही यह सब हो जाएगा नहीं तो मैं आता ही नहीं, मम्मी अब आपको सब कुछ संभालना होगा आप वेदिका को लेकर किसी भी तरह से अस्पताल पहुंचे मैं सीधे अस्पताल आ जाऊंगा! लेकिन बेटा अस्पताल लेकर जाऊं
कैसे..? हे भगवान मेरी बहू बच्चों की रक्षा करना ऐसा कहकर रजनी कभी बहू के पास उसको दिलासा देती कभी बाहर लोन में आकर चक्कर काटती, तभी अचानक उनके फोन पर बगल वाली सुशीला आंटी का फोन बजा, रजनी ने जैसे ही फोन उठाया उधर से सुशीला बोली …क्या बात है रजनी
बहन आज आपके घर की सारी लाइट जल रही है सब ठीक तो है ना, अभी बहू पानी पीने उठी थी तब उसने कहा कि मैं पूछूं आपके यहां कोई परेशानी तो नहीं है, यह वही सुशीला आंटी थी जिनसे 1 साल पहले किसी छोटी सी बात को लेकर कहा सुनी हो गई और दोनों भाइयों जैसे परिवार में बोलचाल तक
बंद हो गई! सुशीला की आवाज सुनते ही रजनी टूट गई और रोते हुए सारी बात बताई, तब सुशीला बोली… रजनी बहन आप बिल्कुल चिंता मत करो मेरा बेटा निखिल घर पर ही है मैं अभी उसको कहती हूं और हम उसकी गाड़ी से अस्पताल चलेंगे आप बहू को बाहर लेकर आओ मैं भी आ रही हूं!
सुशीला की बात सुनकर रजनी को थोड़ी हिम्मत आई और रजनी और उनके पति जैसे तैसे सहारा देकर वेदिका को बाहर लेकर आए, सामने सुशीला और निखिल गाड़ी लेकर तैयार खड़े थे, घर का ताला लगाकर सभी लोग अस्पताल पहुंच गए, वहां सुशीला के पति ने पहले ही फोन करके सारी
व्यवस्था करवा दी थी, उन्होंने कहा था कि हम अपनी बहू को लेकर आ रहे हैं! सुशीला के पति बहुत ऊंचे पद पर थे और उनकी शहर में बहुत अच्छी जान पहचान थी जैसे ही सभी जने अस्पताल पहुंचे बहु को और भी तेज दर्द शुरू हो गए, तुरंत बहू को डिलीवरी कक्ष में ले लिया गया और आधे घंटे बाद ही बिटिया रानी की किलकारी गूंज उठी! बच्चे की किलकारी सुनते ही पूरा परिवार खुश हो गया!
रजनी सुशीला को बार-बार गले लगा कर उनका धन्यवाद कर रही थी और कह रही थी सुशीला बहन अगर आज आप नहीं होती तो पता नहीं मेरी बहू का क्या होता..? क्या पता मैं अपनी पोती का चेहरा देख भी पाती या नहीं? मैं सुमित को क्या जवाब देती.? वाकई में सुशीला बहन अपनों की पहचान तो
ऐसे समय में ही होती है और मैंने आपसे ही रिश्ता तोड़ लिया था मुझे माफ कर दो! तब सुशीला बोली …रजनी बहन 1 साल पहले हुई छोटी सी कहा सुनी को आपने तो इतना बड़ा रूप दे दिया, क्या 1 साल की नाराजगी इतने वर्षों के रिश्ते पर भारी पड़ गई, क्या वेदिका हमारी बहू नहीं है.? आपने तो
हमें बिल्कुल पराया ही कर दिया,20 सालों से हम पड़ोसी कम दो बहनों की तरह रहते आए थे पर एक गलतफहमी ने हमारे रिश्ते बिगाड़ कर रख दिए! हां सुशीला बहन.. मैंने कितनी बार आपसे बात करने की कोशिश की किंतु दरारें इतनी बढ़ती चली गई कि फिर वह भर ही नहीं पाई, आज आपने सचमुच जता दिया कि हम कभी दूर हुए ही नहीं थे, अपनों की पहचान तो विपत्ति के समय में ही होती है यह
आपने आज जता दिया, हमारे रिश्ते मे छोटी-मोटी गलतफहमियों की कोई गुंजाइश ही नहीं है! आज के बाद हम जैसे इतने वर्षों से रहते आए थे आगे भी वैसे ही रहेंगे! हमने अपने बच्चों को साथ साथ बढ़ते हुए खेलते हुए यहां तक कि उनकी शादी ब्याह में भी शामिल होते हुए एक दूसरे को देखा है
फिर हम दर्द के समय में साथ में क्यों नहीं है? नहीं नहीं… अब हमसे कभी ऐसा नहीं होगा! चलो बहू के दर्द की वजह से ही सही आखिरकार हम दोनों परिवार फिर एक हो ही गए! सुशीला और रजनी आपस में खिलखिलाती हुई ऐसी बातें कर रही थी जैसे इनके बीच में पहले कभी कुछ हुआ ही नहीं था!
कुछ देर बाद ही सूरज अपनी लालिमा बिखेर कर नए सवेरे का आगाज कर रहा था जो यह बता रहा था की नई सुबह के साथ पुरानी काली रात खत्म हो जाती है! थोड़ी देर में सुमित भी वहां पहुंच गया और और फिर पूरा परिवार एक साथ अपनी बिटिया के जन्म की खुशियां मना रहा था!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता (अपनों की पहचान)
#अपनों की पहचान विपत्ति में ही होती है!