देखो मां.. आपके मना करने के बाद भी यह नीरज आज फिर ठाकुर साहब की हवेली में गया था।
तुम भी हमेशा भाई के पीछे पड़ी रहती हो।क्यों नीरज ..अब तुम्हीं बताओ क्या राधा सच कह रही है?
हां मां.. उनके बाग में बहुत सारे अमरूद के पेड़ हैं। इस समय तो जैसे उन पर बहार आई हुई है। पूरे ही पेड़ पीले – पीले अमरूदों से लदे पड़े हैं ।अब उनके यहां तो कोई खाता नहीं है तो बहुत सारे पके फल पेड़ से टपक जाते हैं और उसके नीचे सड़ते रहते हैं। अगर कोई उन्हें उठा कर खा ले तो उन्हें उसमें भला क्या एतराज हो सकता है।
तुम पर किसी की नजर नहीं पड़ी और सही सलामत घर लौट आए हो इसलिए तुम्हें बातें आ रही हैं। हे प्रभु! आपका लाख – लाख शुक्र है आज आपने मेरे बच्चे को बचा लिया अगर कोई इसे देख लेता तो पता नहीं क्या होता??
आप सब उनसे इतना डरते क्यों हैं? क्या वो राक्षस हैं जो किसी को खा जाएंगे?
राक्षस तो नहीं हैं पर उससे कम भी नहीं हैं तुमने अपने दादाजी को बैसाखियों के सहारे चलते देखा है न.. यह उन्हीं की मेहरबानियों का परिणाम है। वह भी तुम्हारी तरह बचपन में उनके बाग में आम तोड़ने घुस गए थे पर उसके बाद वह कभी अपने पैरों पर नहीं चल पाए इसलिए मैं तुमसे उस रास्ते से भी गुजरने के लिए मना करती हूं।
आज तू गंगा मैया की सौगंध खा कि तू वहां कभी नहीं जायेगा।
अगर कोई बुलाए तो?? तब तो जा ही सकता हूं न..
उन्हें तुमसे ऐसा कौन सा काम पड़ेगा जो वो तुम्हें बुलाएंगे?? अब ज्यादा दिमाग मत लगाओ और अपना स्कूल का काम निपटा लो एग्जाम आने वाले हैं।
ठाकुर साहब की हवेली काफी ऊंचाई पर बनी हुई थी.. बहुत सुंदर चारों ओर से पेड़ पौधों से घिरी हुई..जो दूर से ही दिखाई देती थी पर अपने आप में बहुत सारे रहस्य और मिथक समेटे हुई थी। आम आदमी वहां जाने से बचता था उनके मन में इस बात ने घर कर लिया था कि वे बहुत जालिम हैं। हवेली के लोगों का संपर्क गांव वालों से कम ही था।
पर पता नहीं क्यों उस हवेली के लिए नीरज के मन में एक अजीब सा आकर्षण था। वह हमेशा उसके मन को अपनी ओर खींचती सी महसूस होती.. पता नहीं अम्मा ऐसा क्यों सोचती है कि सब एक जैसे होते हैं..
अरे भई यह जरूरी तो नहीं है कि जैसे उनके पुरखे होंगे वह भी वैसे ही होंगे। समय के साथ उनकी सोच बदल भी तो सकती है न पर अब अम्मा को कौन समझाए.. उन्होंने जो कह दिया सो कह दिया। जब बापू ही उनका विरोध नहीं कर पाते तो हम किस खेत की मूली हैं..हमें तो मानना ही पड़ेगा।
तीन दिन से लगातार बारिश हो रही थी ऐसा लगता था कि बादल प्रलय लाकर ही मानेंगे। गंगा मैया अपना विकराल रूप धारण किए हुए थीं सबके मन में डर था कि अगर आज रात बारिश नहीं रुकी तो कल तक गांव का नामो निशान ही मिट जाएगा लेकिन जाएं भी तो कहां जाएं.. बाढ़ ने चारों तरफ से गांव को घेर लिया था। बाहर जाने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे। धीरे – धीरे गांव में पानी भरने लगा अब केवल लोगों का आर्तनाद ही सुनाई दे रहा था और साथ में सुनाई दे रही थी गंगा की लहरों की भयानक गर्जना..
तभी ठाकुर साहब ने हवेली से ऐलान किया कि सभी गांव वाले घर छोड़कर तुरंत हवेली में आ जाएं.. मैं अपने आदमियों को भेज रहा हूं वो आपकी मदद करेंगे। यहां ऊंचाई के कारण बाढ़ का पानी जल्दी नहीं आ पाएगा और हो सकता एक – दो दिन में पानी कम हो जाए.. अब जो भी होगा वह हम सब साथ में ही झेलेंगे।
ठाकुर साहब का यह रूप लोगों की कल्पना से परे था पर संकट की इस घड़ी में वो उन्हें ईश्वर के भेजे हुए दूत से कम नहीं लग रहे थे। जैसे – जैसे लोग पहुंचते जा रहे थे ठाकुर साहब की पत्नी और बच्चे उन्हें उनके रुकने की जगह बताते जा रहे थे। आज लोगों को ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा था कि वे उनसे अलग हैं।
सबके लिए भोजन बनाने को भट्टी चालू करवा दी गई थी। एक तरफ आटा चक्की से आटा पीसा जा रहा था। गांव की सभी महिलाएं भी काम में सहयोग कर रहीं थीं। ठाकुर साहब और उनकी पत्नी सबको आग्रहपूर्वक भोजन करा रहे थे।
तीसरे दिन जब पानी उतरने लगा तो लोगों ने अपने घर जाने की इच्छा जताई पर अब घर था ही कहां?? सब कुछ लहरों की भेंट चढ़ चुका था।
तभी ठाकुर साहब ने कहा.. समय पर मैं आप लोगों की मदद कर सका मुझे ईश्वर ने इस काबिल बनाया इसके लिए मैं उनका तहेदिल से शुक्रगुजार हूं। अब आपके घर बनाने में जो भी सहयोग मुझसे हो सकेगा वो मैं करूंगा.. आप निस्संकोच अपने मन की बात मुझसे कह सकते हैं। मुझे और मेरे परिवार को भी आप सबके प्यार और अपनेपन की आवश्यकता है अतः उम्मीद करता हूं कि पिछली बातों को भुला कर आज से आप सब मुझे अपना भाई समझेंगे।
सभी ने समवेत स्वर में कहा.. मुसीबत के समय में ही #अपनों की पहचान होती है ठाकुर साहब.. आपने आज यह सिद्ध कर दिया कि आपके दिल में हमारे लिए कितना अपनापन है।
नीरज कनखियों से मां को देखते हुए बोला.. अब तो अपनी कसम वापस ले लोगी न मां.. अब तो समझ आ गया न कि सब एक जैसे नहीं होते।
हां ले ली कसम वापस .. आज हम सब उन्हीं की वजह से जिंदा हैं अगर वह समय पर मदद न करते तो न जाने क्या होता.. सोच कर ही दिल सिहर उठता है।
कई बार हम किसी को बिना जाने उसके लिए अपने मन में धारणा बना लेते हैं जबकि वह व्यक्ति उसके एकदम विपरीत होता है। पहले उसे परखने के बाद ही कोई राय कायम करनी चाहिए।
#अपनों की पहचान
कमलेश राणा
ग्वालियर