आंखें नीची होना – गीता अस्थाना : Moral Stories in Hindi

नमिता जी को रिटायर हुए करीब एक साल हो रहा था। वे एक इण्टरमीडिएट स्कूल में सीनियर अध्यापिका के पद से रिटायर हुईं थीं। बड़ी कुशलता से उन्होंने अपना अध्यापन कार्य समाप्त किया

था। उनके पढ़ाने का तरीका इतना रोचक होता था कि बच्चे उन्हीं से हिंदी विषय पढ़ना चाहते थे। कुछ अध्यापक भी अपने क्लास के बच्चों की बेहतरी के लिए अपने सेक्शन में उन्हीं को पढ़ाने के लिए

नियुक्त करवाते थे। रिटायरमेंट के दिन बच्चों के साथ साथ अध्यापक गण और प्रिंसिपल भी दुःख से अपनी अपनी भावना प्रकट कर रहे थे। प्रिंसिपल ने कहा, ” ऐसी कर्मठ और कार्य के प्रति जागरूक रहने वाली अध्यापिका आज यहां से रिटायर हो रहीं हैं। यह खाली स्थान तो भर जाएगा, लेकिन जो विशेषता इनमें है वह शायद ही मिल पाए।”

बड़े आदर और सम्मान से उनकी विदाई हुई। इतने वर्षों तक पढ़ाते रहने से उन्हें भी वहां के लोगों से अपनत्व का भाव उत्पन्न हो गया था। उस समय उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े थे।

कुछ दिनों तक तो उन्हें अजीब सा महसूस हो रहा था। जैसे अपना कुछ छूट गया है। घर का काम होने पर भी ख़ाली ख़ाली सा लग रहा था। कहां तो रोज़ सुबह तैयार होकर स्कूल जाना, बच्चों को पढ़ाना, कभी डांटना, कभी हंसना हंसाना, टीचरों से बातें करना, दिन गुज़र जाता था, और अब कुछ भी नहीं। तदुपरांत धीरे धीरे स्थिति सामान्य होने लगी ।

रिटायरमेंट के बाद एक फायदा यह हुआ कि कार्यरत होते हुए वे अक्सर आउट आफ स्टेशन नहीं जा पातीं थीं।अब निश्चिंत हैं। कहीं किसी विशेष आयोजन में जाने के लिए तत्पर रहतीं हैं।

रिटायरमेंट होने के एक साल के करीब भाभी के मायके से नमिता जी को तिलकोत्सव का निमंत्रण मिला।वे सहर्ष अपने भाई भाभी के साथ उत्सव में शामिल होने के लिए चली गईं । उनके बहुत से रिश्तेदार भी आए हुए थे। बड़ी भव्यता से तिलकोत्सव संपन्न हुआ।

दूसरे दिन सुबह नाश्ते के समय मेहमान लोग अपना-अपना ग्रुप बनाए नाश्ता करने में मशगूल थे।उसी परिवार के रिश्ते की मौसी नमिता जी के पास आ गईं । नमिता जी से उनका पूर्व का कोई परिचय नहीं था। फिर भी बात शुरू हो गई।

मौसी:  हाय! आप क्या करती हैं?

नमिता:  “मैं रिटायर्ड टीचर हूँ ।”

मौसी:  “अरे!  मैं भी रिटायर्ड टीचर हूँ। किस कालेज में आप

          पढ़ाती थीं?”

नमिता:  “मैं एक प्राइवेट इण्टरमीडिएट कॉलेज में पढ़ाती थी

             और आप?”

मौसी:      मैं तो डिग्री कॉलेज में लेक्चरर थी । सैलरी                        अच्छी मिलती थी और अब पेंशन भी बहुत।                      अच्छा मिलता है। प्राइवेट में तो न सैलरी अच्छी 

              मिलती है तो पेंशन क्या मिलेगा। आपको पेंशन 

               मिलती है?

नमिता:     हां, मिलती है।

मौसी:       सुना है कि बस एक डेढ़ हजार रुपए ही मिलते 

                हैं। (बुरा सा मुंह बनाते हुए ) कुछ लोगों को।                      शायद पांच सात सौ ही मिलता है। आपको भी 

                इसी के आसपास मिलता होगा।

नमिता:      आपको भले ही बहुत ज्यादा पेंशन मिलती होगी

                 पर बात करने का सलीका आपके पास नहीं है।

                 मुझे कितनी पेंशन मिलती है, आपको यह                         पूछना उचित नहीं है। आप अपनी बड़ाई और 

                अमीरी दिखाना चाहतीं हैं?

                नमिता जी का क्रोधपूर्ण चेहरा देखकर मौसी।                   जी की*आंखें नीची हो गई। इधर उधर देखते।                    हुए बोलीं, ” आपको बुरा लग गया। मैं तो बस                    ऐसे ही पूछ रही थी। माफ़ी चाहती हूँ ” कहकर 

                वहां से खिसक गईं।

स्वलिखित मौलिक 

गीता अस्थाना,

बंगलुरू।

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