अपने तो अपने होते हैं – ज्योति आहूजा : Moral Stories in Hindi

रात के साढ़े बारह बजे थे। पूरा घर नींद में डूबा था, लेकिन रिया के कमरे से रोशनी बाहर झाँक रही थी। कमरे की सारी लाइटें जली थीं और एक कोने को रंगीन लाइट्स, पर्दों और फूलों से सजा कर उसने अपना छोटा-सा स्टूडियो बना लिया था। मोबाइल कैमरा ट्राइपॉड पर टिकाया था और वो बार-बार रिकॉर्डिंग ऑन-ऑफ कर रही थी—कभी डांस, कभी पूजा की थाली लेकर संस्कारी रूप, कभी नए-नए पोज़।

कई दिनों से यही सिलसिला चल रहा था। दिन में घर का शोर उसे चैन से शूट करने नहीं देता था, इसलिए रात उसका मंच बन चुकी थी। पढ़ाई पीछे छूट रही थी। क्लास में नींद छाने लगी थी, टेस्ट बिगड़ने लगे थे। रिया के पिता किशोर जी ने भी महसूस किया और एक रात पत्नी अनुपमा से कहा ,,,,

“रिया भटक रही है, अनुपमा। तुम उससे बात करो ।”ये रील्स का जुनून उसे कब से सवार हो गया ।उससे कहो कॉलेज की पढ़ाई पर ध्यान दे ।

अनुपमा ने धीरे से जवाब दिया—

“हाँ, मैं ही उससे बात करूँगी। माँ-बेटी मिलकर सब सँभाल लेंगे।”

एक दिन शाम को कॉलेज से लौटते समय अचानक बारिश हो गई। छतरी न होने के कारण रिया भीग गई। दोस्तों के साथ पहले तो उसे मज़ा आया, पर घर लौटते-लौटते सरदी लग गई और रात को बुखार चढ़ गया।

रिया अपने कमरे में सिकुड़ी पड़ी थी। मोबाइल उसके हाथ में था, पर स्क्रीन धुंधली लग रही थी। और उसकी आँखों से आँसू  भी बह रहे थे। तभी दरवाज़ा धीरे से खुला।

“रिया… बेटा, रो क्यों रही है?”

माँ—अनुपमा उसके पास आईं। उन्होंने माथा छुआ तो चौंक गईं—

“अरे, तुझे तो तेज़ बुखार है। क्यों छुपा रही थी मुझसे?”

रिया ने तकिये में चेहरा छुपा लिया।

“कुछ नहीं माँ… आप जाओ।

अनुपमा उसके पास बैठ गईं।

“क्यों नहीं समझूँगी? बता मुझे बेटा, रो क्यों रही है?”

रिया अब फूट पड़ी।

“माँ… मेरे फॉलोअर्स नहीं बढ़ रहे। मैं दिन-रात अलग-अलग कंटेंट बनाती हूँ—कभी डांस, कभी पूजा, कभी पोज़… लेकिन कुछ फायदा नहीं हो रहा। और अब ये बुखार… सब बेकार लग रहा है।”

माँ तुरंत तुलसी अदरक का काढ़ा बना कर लाई और रिया को देते हुए नम स्वर में बोलीं—

“देख बिटिया, आज तुझे बुखार है। क्या तेरे फॉलोअर्स में से कोई दरवाज़े पर हाल पूछने आएगा? नहीं न? हाँ, स्क्रीन पर सब लिख देंगे—‘गेट वेल सून ।लेकिन सच में तेरे माथे पर हाथ रखने, तुझे दवा देने, तुझे सीने से लगाकर ढाढ़स बँधाने—ये सब तेरी माँ ही करेगी। पापा को ही तेरी परवाह होगी ।यही है अपनों की पहचान।”

और तू इन दिनों हम से कैसे पेश आती है ये भी हम जानते है ।

रिया चुप हो गई। उसकी आँखें झुक गईं।

अनुपमा की आवाज़ भर्रा गई—

“मुझे याद है… कुछ दिन पहले तूने ज़िद की थी कि मैं तेरी रील में आऊँ। उस वक्त तू मेरे गले लग-लग के कितनी प्यारी बातें कर रही थी। मैंने सोचा, देखो, मेरी बेटी मुझे गर्व से दुनिया को दिखाना चाहती है। लेकिन जैसे ही शूट ख़त्म हुआ… तूने कितनी बेरुख़ी से कहा—‘जाओ माँ, अब यहाँ क्या खड़ी हो, मेरा वीडियो बन गया।’ सोच बेटा, उस पल मेरे दिल पर क्या बीती होगी।”

रिया की आँखें छलक आईं। माँ के शब्द तीर की तरह लग रहे थे।

अनुपमा ने उसकी हथेलियाँ कसकर थाम लीं—

“बिटिया, मैं ये नहीं कहती कि तू कंटेंट मत बना। बना, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रख। ज़रूरी नहीं कि हर कोई अच्छा कंटेंट क्रिएटर बन पाए। मेहनत कर, पर कंटेंट की क्वॉलिटी अच्छी रख। और सबसे बड़ी बात अपनी पढ़ाई पर  अधिक ध्यान दे। क्योंकि अगर तेरी रील्स वाइरल नहीं हुईं, फॉलोअर्स नहीं बढ़े, तो तेरी कमाई भी नहीं होगी। उस हालत में तेरी पढ़ाई ही तेरे काम आएगी, वही तुझे नौकरी तक पहुँचाएगी।

और बेटा, जितना वक्त तू इस कल्पनिक दुनिया को देती है न, उससे ज़्यादा अपने अपनों के साथ बिता। क्योंकि असली अपनापन यहीं है—तेरे घर में, तेरे माँ-पापा के पास। हम ही तेरे अपने हैं। इस सच्चाई को मत भूल।”

रिया अब और नहीं सह पाई। काँपती आवाज़ में बोली—

“माँ… माफ़ कर दो। मैंने आपको चोट दी। मुझे लगा था कि वही मेरी दुनिया है। पर अब समझ आया कि असली अपनापन तो आप हो, पापा हैं, मेरा परिवार है। माँ… अब से मैं पढ़ाई पर भी ध्यान दूँगी और आपके साथ वक्त भी बिताऊँगी।”

अनुपमा ने उसे सीने से लगा लिया। उनकी आँखों से आँसू बहे, पर होंठों पर हल्की मुस्कान भी आ गई।

उस कमरे में अब कोई कैमरा ऑन नहीं था, न कोई रील रिकॉर्ड हो रही थी। लेकिन माँ-बेटी का यह  आलिंगन किसी भी वाइरल वीडियो से लाख गुना असली, लाख गुना कीमती था।

दोस्तों,,

“ताली बजाने वाली भीड़ वक़्त के साथ छँट जाती है,

पर माँ का हाथ और अपनों का साथ ज़िंदगीभर साथ रहता है।

रील्स की चमक मिट सकती है,

पर पढ़ाई और रिश्तों की पहचान कभी नहीं मिटती।”

 ये कहानी आजकल की वास्तविकता को कुछ हद तक दर्शाती है ।

उम्मीद है पसंद आयेगी ।

ज्योति आहूजा ।

#अपनों की पहचान

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