अपने तो अपने ही  होते हैं – शिव कुमारी शुक्ला  : Moral Stories in Hindi

सारिका एक न्यूक्लियर परिवार की बेटी थी जिसमें वह उसका भाई एवं 

मम्मी-पापा थे। इनके अलावा उसने कभी और किसी रिश्ते को देखा नहीं था।न अपने ददीहाल के न ननीहाल के। कारण उसके पापा को किसी के साथ भी रिश्ता रखना पसंद नहीं था। वे बस हम दो हमारे दो में ही विश्वास रखते थे।न कभी अपने माता-पिता, भाई-बहन या कोई अन्य रिश्ते से संबंध

रखते और न ही अपने ससुराल में कोई रिश्ता निभाते। यहां तक कि वे अपनी पत्नी को भी मायके वालों से रिश्ता नहीं रखने देते न ही  कभी अपने घर वालों से। उनकी इस आदत से पत्नी काफी परेशान रहतीं। वे जिद करके कभी कभी कहीं जातीं तो वे उनके साथ नहीं जाते और उन्हें भी बस दो दिन में लौट आने की हिदायत देकर भेजते। सो बच्चे भी बचपन से ही पारिवारिक माहौल से दूर रहे।

कभी कभी वे अपने दोस्तों के यहां देखते कि घर में मेहमान आए हुए हैं जैसे बुआ,मौसी , चाचा-चाची, मामा-मामी साथ में उनके बच्चे। सबको मिलकर साथ  खेलते  , खाते देखकर वे भी अपनी मम्मी से पूछते कि अपने यहां कोई क्यों नहीं आता। क्या अपने कोई नहीं है। मम्मी के पास कोई जवाब नहीं होता। वे बच्चों के मन में पिता के लिए कोई ग़लत विचार नहीं पनपने देना चाहतीं थीं सो बात को टाल जातीं।

एक दिन सारिका अपनी सहेली के जन्म-दिन की पार्टी में गई। उसने देखा कि उसके दादा-दादी, नाना-नानी आए हुए थे। वे कितना उसे प्यार कर रहे थे। कैसी-कैसी सुंदर सुंदर ड्रेसेज उसके लिए लाये थे।उसका मन उदास हो गया। मेरे तो कोई है ही नहीं।न मैंने किसी को देखा।न कोई आता है हमारे यहां और न हम किसी के यहां जाते हैं।वह घर आकर बोली पापा इस बार मेरे जन्मदिन पर भी दादा-दादी और  नाना-नानी को बुलायेंगे।

अरे तू ये कहां से सीख आई।

पापा कल रजनी के यहां गई थी मेरी सहेली है न उसके जन्मदिन पर उसके दादा-दादी नाना-नानी आए हैं। कैसे सुंदर सुंदर ड्रेसेज एवं उपहार लेकर और उसे कैसे तो प्यार कर रहे थे।

अरे ये सब फालतू की बातें मत सोचा कर पढ़ाई पर ध्यान दें।

नहीं पापा मैं तो बुलाऊंगी।

हां बुला लेंगे।

किन्तु वह दिन कभी नहीं आया।

सारिका और उसका भाई सरीन बड़े हो रहे थे वे भी अब उसी अकेलेपन के माहौल के आदि हो गये। उन्हें भी परिवार में किसी की उपस्थिति अच्छी नहीं लगती। उनके इसी एकाकी स्वभाव के कारण

उनके अच्छे दोस्त भी नहीं बन पाए।बस वे घर में ही फोन पर या कम्प्यूटर पर गेम खेलते और अपने आप में मस्त रहते। सोशल मीडिया पर उनके लाईक्स, कमेंट, फ्रेंड रिक्वेस्ट से ही प्रसन्न रहते। उन्हें लगता कि यही सारी दुनियां है किसी से संबंध क्यों रखना।

स्कूलिंग के बाद वे कॉलेज में पहुंच गए किन्तु वे अधिक किसी से घुल-मिल नहीं पाते एकाकी स्वभाव के आदि जो हो चुके थे।

अब सारिका के लिए उन्होंने रिश्तों की तलाश शुरू की।उनका रिश्तेदारों से, पड़ोसियों से , जान-पहचान में ज्यादा संपर्क नहीं था सो किससे कहते।नये तरिकों  को वे अपनाना नहीं चाहते थे ।

सारिका की मम्मी हेमा जी जरुर कभी कभी किसी से फोन पर बात कर लेती थीं सो उन्होंने अपनी ननद और अपने बहन भाई को रिश्ता बताने के लिए बोला। उनकी ननद ने अपने जेठ की बहू के भाई को बताया। लड़का इंजीनियर था और किसी कम्पनी में अच्छे पैकेज पर काम कर रहा था। देखने में भी स्मार्ट और सुदर्शन था पर समस्या थी कि वह संयुक्त परिवार से था।

सारिका के पापा मनोज जी को यह रिश्ता पसंद नहीं आ रहा था।जब सारिका से पूछा तो वह भी घबरा कर बोली मम्मी इतने लोगों के साथ कैसे रहते हैं। मैंने तो आज तक अपने घर में किसी को नहीं देखा।

उसकी मम्मी जो स्वयं एक संयुक्त परिवार की बेटी थीं उन्होंने उसे प्रेम से समझाया। बेटा डरने की कोई बात नहीं है सब आराम से रहते हैं और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की मदद भी करते हैं।

तो मम्मी अपने यहां कोई क्यों नहीं आया कभी।

आज हेमा जी ने सच्चाई उसके समक्ष रख दी बेटा तुम्हारे पापा को किसी से रिश्ता रखना पसंद नहीं था सो न ये कभी कहीं गये और न किसी को आने दिया। मुझसे पूछ कैसे मैंने ये दिन काटे हैं कोई अपनों से दूर रह सकता है भला। पर क्या करती।

उसकी जो दो-चार सहेलियां थीं उन्होंने भी उसे भयभीत कर दिया यह कहकर कि संयुक्त परिवार में काम बहुत करना पड़ता है।हर समय टोका-टाकी आजादी से अपनी इच्छानुसार नहीं रह पाते।हर समय सास के आदेशानुसार नाचते रहो न मन का खा सकते हैं न पहन सकते हैं।

सारिका बड़ी दुविधा में थी कि क्या करे। फिर उसने मन-ही-मन एक ऐसा निर्णय लिया और शादी के लिए हां कर दी। उसने सोचा कि शादी के बाद कुछ दिनों में ही मैं अपने पति के साथ अलग रहने लगूंगी। फिर वही होगा न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। अब वह आश्वस्त थी।

शादी मे उसके घर तो बहुत ही खास रिश्ते के मेहमान आए किन्तु जब वह ससुराल पहुंचीं तो वहां घर में मेहमानों की भीड़ देख अचंभित हो गई। नये -नये रिश्तों के नाम सुनने को मिल रहे थे किसी की भाभी थी तो  किसी की चाची, किसी की मामी। उसे बडा अजीब सा लगता जब कोई उसे ताई जी कहता।

मेहमानों के जाने के बाद भी घर खाली नहीं लगता।वह किसी से ज्यादा बोलती चालती नहीं बस अपने कमरे में फोन पर लगी रहती ।सब उससे बात करना चाहते किन्तु वह किसी से ज्यादा नहीं मिलना चाहती।

आखिर छः माह बाद ही वह अपने पति संग परिवार से अलग रहने में सफल हो गई। पति ने लाख समझाया जो सुख शांति परिवार संग रहने में है वह अकेले में नहीं मिलेगी। किन्तु उसने एक नहीं सुनी।तब परिवार वालों के समझाने पर यदि दूर रहकर प्रेम बना रहे तो वह साथ रहकर भी दूरी बनी रहने से अच्छा है।

अब वह अपने को आजाद पंछी की तरह अनुभव कर रही थी।न कोई रोक -टोक न कोई क्या सोचेगा कि चिंता।जब इच्छा हो उठो घूमो फिरो, शापिंग, किटी पार्टीज,लेट रात में आना। सबकुछ बड़ा सुहाना लग रहा था।वह सोशल मीडिया की अपनी आभासी दुनियां में मग्न थी। घंटों फोन पर बातें करना। कोई पोस्ट या रील्स डाल कर फालोवर्स की संख्या देखना, कमेंटस, लाइक्स देखकर खुश होती। कितने तो हैं मेरे चाहने वाले दोस्त परिवार क्या करेगा।

वह मस्त थी किन्तु नियति कुछ और ही खेल खेलना चाहती थी। वह गर्भवती हो गई जिससे उसकी तबीयत खराब रहने लगी। मार्निंग सिकनेस की वजह से उल्टियां आतीं। कुछ खाने को इच्छा नहीं होती बहुत ही परेशान रहने लगी। तभी एक दिन शाम को नितिन घर आया तो उसे तेज बुखार था।

उसकी समझ में नहीं आया कि अब क्या करें। पडोस में भी किसी से जान पहचान नहीं थी किसकी मदद ले। उसने झट फेसबुक और इंस्टाग्राम पर मैसेज डाल दिया और सोचा इतने लोग जानते हैं कोई

तो मदद को आ जाएगा। किन्तु यह क्या स्थूल रूप से कोई उसकी मदद करने नहीं आया हां मैसेजेस की झड़ी लग गई।यथा*****गेट वेल सून। हिम्मत से काम लें सब ठीक हो जाएगा। ईश्वर से प्रार्थना है कि आपके पति को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हो। ईश्वर आपके साथ है कुछ नहीं होगा जी।

ऐसे मैसेज पढ़कर उसने अपना माथा पीट लिया। नितिन का बुखार बढ़ता ही जा रहा था।हारकर सामने वाले फ्लैट की डोरवेलबजा ही दी। दरवाजा एक प्रोढ महिला ने खोला।वह बोली आंटी जी मेरे पति की तबियत अचानक खराब हो गई है मेरी सहायता कीजिए। ठीक है कह वे अंदर गईं और अपने

पति को बताया।वह प्रोढ दम्पत्ति अपने बेटे बहू के साथ रहते थे। बेटा भी सुनकर बोला चलिए मम्मी मैं भी चलता हूं। वहां जाकर नितिन को बुखार में बेसुध देख तुरंत एम्बुलेंस बुलाई और  वे उसे  अस्पताल ले गए । वहां ऐडमिट करा बेटे ने आवश्यक टेस्ट बगैरह कराने में मदद की एवं दवा लाकर दी।बार

उल्टि आने से वह स्वयं परेशान हो रही थी।वे दोनों पति-पत्नी उसके पास बैठे रहे और उसे ढांढस बंधाते रहे। नितिन को डेंगू हुआ था। उसके प्लेटलेट्स तेजी से कम होते जा रहे थे पड़ोसी के बेटे ने ही उसका भी इंतजाम किया।तब तक वह अपने मम्मी-पापा को भी फोन कर चुकी थी। पापा बोले डाक्टर की देखरेख में है तो अब हो जाएगा ठीक चिंता मत कर।

किन्तु मम्मी ने उसे समझाया कि तुरंत अपने घर वालों को फोन कर बुला ले वे आकर सब सम्भाल लेंगे। अपने अपने ही होते हैं।

पर मम्मी मैंने तो उनसे कभी बात तक नहीं की अब कैसे फोन करूं।

फोन कर लेगी तो छोटी नहीं हो जाएगी वे माता-पिता हैं अपनी संतान के लिए दौड़े चले आएंगे। तभी आंटी जी भी बोलीं बेटा तुमने अपने ससुराल वालों को खबर कर दी, नहीं तो शीघ्र कर दो । उनके आने से तुम्हें संबल मिलेगा।यह मत सोचना कि हम रुकना नहीं चाहते किन्तु उन्हें बुलाना आवश्यक है।

सारिका ने बड़े ही डरते डरते फोन किया पता नहीं क्या कहें। किन्तु उसकी आशा के विपरित उसकी सास बोलीं चिंता मत कर हम अभी पहुंचते हैं। कुछ ही समय में सास-ससुर,जेठ-जिठानी,देवर सब वहां मौजूद थे।आते ही सब जिम्मेदारी ले ली।

उन पड़ोसियों का समय पर सहायता करने के लिए आभार प्रकट कर उन्हें घर के लिए विदा किया।

सबको साथ पाकर उसे अजीब सा सुकून महसूस हो रहा था।दो दिन में नितिन की तबियत में काफी सुधार हो गया था। उसकी हालत देख जिठानी सास-ससुर और सारिका को लेकर घर पहुंची। वहां घर में सब उसे देखकर खुश हुए और उसका ध्यान रख रहे थे। अस्पताल में भाई-भाभी,छोटा भाई, एवं

बहन सब बारी-बारी से नितिन के पास थे। नितिन के ठीक होने पर उसे घर ही ले आए नितिन को देख सारिका उससे लिपट फूट-फूट कर रो पड़ी। नितिन आज मुझे मेरी गल्ती का अहसास हो गया। अपने

लोग अपने ही होते हैं और यह आभासी दुनियां जिसमें मैं खोई थी केवल एक छलावा है। आज बुरे वक्त ने मुझे अपने लोगों की पहचान करवा दी। नितिन मुस्करा रहा था और बोला देर आए दुरुस्त आए अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है।

पूरा परिवार उनकी घर वापसी पर खुश था। और घर में जश्न का माहौल था।

आखिर अपने तो अपने ही होते हैं।

शिव कुमारी शुक्ला 

5-9-25

स्व रचित एवं अप्रकाशित 

जोधपुर राजस्थान 

लेखिका बोनस प्रोग्राम***प्रथम कहानी 

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