अपना और पराया – विनीता महक : Moral Stories in Hindi

चारों तरफ त्राहि त्राहि मची थी। पूरे संसार पर प्रलय जैसा माहौल था। कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था। सब यही बातें कर रहे थे कि कोई ऐसा बैक्टीरिया फैला है जो धीरे-धीरे सबको मार देगा ।कहां से आया, कैसे फैला यह कोई नहीं जानता था। उसी समय ग्राम पंचायत मुखिया यानी प्रधानी के चुनाव

की घोषणा हो चुकी थी। संदीप ने भी अपने बेटे को प्रधानी में खड़ा किया था। संदीप की भाभी रंजीता ने  संदीप को मना किया कि सभी जगह  माहौल  ठीक नहीं है। प्रधानी का चुनाव मत लड़ो पर संदीप ने  एक नहीं मानी। प्रचार के दौरान सबसे गले मिलना ,हाथ मिलाना चल रहा था ।अचानक एक दिन

संदीप की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई। संदीप से रंजीता और पूरा परिवार कहता रहा चलो टेस्ट करने परन्तु संदीप ने किसी की नहीं मानी। वो पूरी तन्मयता से प्रचार में जुटा हुआ था। उसे सिर्फ प्रधानी का चुनाव दिख रहा था। जिस दिन मतदान हुआ। उसी रात संदीप की बहुत अधिक हालत

खराब हो गई। रंजीत एक सामाजिक कार्यकर्ता थी उसने अपने सारे परिचित डॉक्टर से बात की उन्होंने भर्ती लेने से मना कर दिया क्योंकि यह माहमारी का केस है इसलिए किसी ने भर्ती नहीं लिया। रंजीता ने कहा भर्ती न लो पर जो ऑक्सीजन सिलेंडर है वहीं दे दो पर किसी ने उसकी मदद नहीं

करी। यह वही लोग थे जिन्हें रंजीता गर्व से अपना कहती थी। तब रंजीता ने बहुत छोटा सा मेडिकल सेंटर चलाने वाली एक एम आर से फोन किया। हेलो ….मालती मुझे एक काम है। उधर से मालती ने कहा बताइए साहब। रंजीता ने कहा…. मालती मुझे ऑक्सीजन सिलेंडर चाहिए। अरे साहब ले जाइए। सिलेंडर का सुनकर रंजीता के चेहरे पर एक संतोषजनक चिन्ह दिख रहा था।

    रंजीता जल्दी से देवर को ऑक्सीजन सिलेंडर लगाने के लिए दौड़ पड़ी और भगवान से प्रार्थना करती जा रही थी मालती से सिलेंडर लेकर रंजीता ने तत्काल अपने देवर को सिलेंडर लगा दिया पर हालत भी बिगड़ती जा रही थी। उसे रंजीता को कोई भी रास्ता समझ नहीं रहा था ।रंजीता सिलेंडर

लगा कर जिला अस्पताल की ओर भागी। डाक्टर साहब मेरे देवर को बचा दिजिए। डाक्टर ने जांच करके टेस्ट लिख दिया।डॉक्टर ने टेस्ट लिखकर जांच के लिए भेज दिया जांच करके आने के 1 घंटे के बाद ही देवर ने दम तोड़ दिया ।समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें जिन लोगों पर भरोसा था उनके

इंकार से रंजीता का विश्वास टूट गया था ।सच में आपत्ति के समय ही अपने और परायो की पहचान होती है काश सब ने  सहयोग किया होता तो शायद देवर बच  जाते। यही सोच उसका रंजीता रोए जा रही थी।

स्वरचित विनीता महक गोण्डवी

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