“मम्मी जी ये लो आपकी चाय…”
नीलू ने चाय की ट्रे हाथ मे पकड़े हुए जैसे ही सासु माँ के कमरे में अन्दर आने लगी तो देखा मम्मी जी अखबार हाथ मे पकड़े गुमसुम सी किसी और ही दुनिया मे खोई थी।उन्हें जैसे नीलू के आने का अहसास ही नही हुआ।जबकि रोज़ तो वो पहले से चाय का इंतजार कर रही होती थी।
“क्या हुआ मम्मी जी…सब ठीक तो है न?
नीलू ने पास आकर सासु मा को छुआ और बोला तो वो एक दम से ठिठक गयी…”क्या हुआ मम्मी जी आपकी तबियत तो ठीक है ?…”हां..नही कुछ नही…”
नीलू ने देखा तो मम्मी जी की आंखें भीगी हुई थी।
“चलो नही बताना तो कोई बात नही..आप चाय तो पीजिए”
और वो मम्मी जी के हाथ मे चाय का कप पकड़ा कर चली गयी किचन के बाकी काम निपटाने।
लेकिन उसका भी आज काम मे मन नही लग रहा था।
बच्चों को स्कूल की वैन में बिठा कर और राजीव को आफिस के लिए भेज कर उसने जल्दी से दोपहर के खाने की भी तैयारी कर ली। लेकिन उसके मन मस्तिष्क में बस मम्मी के ही ख्यालों ने उथल पुथल मचा रखी थी। ससुर जी गए एक साल हो गया था । लेकिन उसके बाद मम्मी जी बहुत ज्यादा गुमसुम और चुपचाप रहने लगी थी। नीलू ने बहुत बार कोशिश की के उनका मन कहीं न कहीं लगा रहे लेकिन उनको तो जैसे पापा जी के बिना कहीं भी जाना अच्छा नही लगता था।बहुत अकेली पड़ गयी थी वो।चालीस साल का साथ था दोनो का।
सारे काम निपटा कर वो फिर से सासु माँ के पास गई हाथ मे फल की प्लेट लिए हुए। सासू माँ अभी भी कुर्सी से पीठ लगाए आंखें बंद किये चुपचाप सी बैठी थी।
“मम्मी जी…सासु माँ ने आंखें खोली तो नीलू ने कहा..”आप मुझे बेटी कहती तो हैं पर मानती नही’
“नही बेटे ऐसे क्यों कह रही हो?”
“मम्मी जी सच बताएं… आज आपने अखबार में ऐसा क्या देखा कि आप सुबह से बहुत ज्यादा उदास हैं?
सासु माँ आगे से चुप रही…”चलो आपको नही बताना तो मत बताएं।”
“नही नीलू बेटा… ऐसी कोई बात नही…तुमसे नही छुपाउंगी
ये देखो अखबार में ये छपा है ना श्री सुरेश कुमार मिश्रा जी की पत्नी सुनीता का स्वर्गवास हो गया है। बस उसी को देखते देखते कुछ पुरानी यादें जीवंत हो उठी थी”
“आप इनको जानती हैं?
“हां नीलू..सुरेश जी और मैं बचपन से एक दूसरे के साथी थे। एक साथ एक ही स्कूल और फिर एक ही कॉलेज में पड़े। फिर एक साथ उठते बैठते..नोट्स लेते लेते कब एक दूसरे को पसंद करने लगे पता ही नही चला। लेकिन हमारे घर वालों ने इस रिश्ते को स्वीकार नही किया क्योंकि हमारी और उनकी जात-बिरादरी अलग थी और हमारे घर वाले इंटर कास्ट मैरिज के लिए कभी भी राजी नही होते।इसीलिए हम दोनों ने मिलकर ये फैसला लिया कि हम घर वालों की मर्जी के खिलाफ नही जाएंगे और जहां वो कहेंगे वहीं शादी करेंगे।
तो बस फिर हम अपने अपने हमसफ़र के साथ ज़िन्दगी में आगे बढ़ गए।
आज इसीलिए मन दुखी हो रहा है कि सुरेश जी के जीवन साथी ने भी उनको बीच मझदार में अकेला छोड़ दिया और तुम्हारे पापा जी भी मुझे छोड़ कर चले गए।”
नीलू सासु माँ की बातें चुपचाप सुनती रही लेकिन उसके दिलो दिमाग मे तो कुछ और ही चल रहा था।
शाम को वो जब सासु माँ को खाना देने आयी तो चुपके से वो अखबार उठा कर ले गयी।
रात को जब राजीव कमरे में सोने के लिए आये तो नीलू ने सारी बात उनको बताई और अपने दिमाग मे चल रही कश्मकश भी उसको बताई।
दोनो ने मिलकर एक फैसला लिया और चुपचाप सो गए।
आज उस बात को दो महीने बीत चुके हैं।
नीलू..”मम्मी जी आज खाने में क्या बनाऊं?
‘क्यों आज कुछ खास है क्या..जो बच्चों को या राजीव को पसंद हो बना लो।”
“नही मम्मी जी आज राजीव के कुछ मेहमान खाने पर आने वाले हैं।”
जब मेहमान आये तो मम्मी जी अपने कमरे में आराम कर रही थी।
नीलू उनको बुलाने गयी…”मम्मी जी आ जाओ आप भी मेहमानों के साथ ही खाना खा लो”
और मम्मी जी जब आयी तो सामने सुरेश जी को देखकर हक्की-बक्की रह गयी..साथ में उनके दोनो बेटे ,बहुएं और पोता पोती थे। हूबहू वही चेहरा गठीला बदन।
…बस कलमों से सफेदी झांक रही थी
दोनो बस एक दूसरे को नमस्ते करने के इलावा कोई बात नही कर पाए।
खाना खाने के बाद राजीव ने सबको बोला ..”नीलू चलो इनको अपना घर तो दिखाएं।बच्चों को भी उनके कमरे में भेज दिया और खुद भी धीरे धीरे करके खिसक गए।
दोनो जब कमरे में अकेले रह गए तो एक दूसरे का हाल चाल पूछने के बाद, जो बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो उनको समय का पता ही नही चला। कुछ बीती बातों को याद किया और बाकी बाद के सफर की बहुत सी बातें दोनो ने एक दूसरे को बताई।
बाद में नीलू ने मम्मी जी को बताया कि कैसे उसने और राजीव ने अखबार से सुरेश जी का फोन नम्बर लेकर उनसे सम्पर्क किया था और कैसे उनके बच्चों ने माँ के जाने के बाद उन्हें दोबारा विवाह करने के लिए राजी कर लिया था।
और नीलू ने उनकी बेटी और दामाद से भी फोन पर सारी बातें करके उनको इस शादी के लिए राजी कर लिया था।
एक महीने बाद बहुत सादे से समारोह में बच्चों ने मिलकर उन दोनो की शादी करवा दी।
शादी वाले दिन अपने माँ-बाप को ज़िन्दगी के नए सफर के लिए तैयार करके और उनके चेहरे की आभा देखकर बच्चों के मन में भी खुशी और संतोष की लहर दौड़ गयी थी। ये पहली बार हुआ होगा कि बच्चे अपने माँ पापा, और पोते पोतियां अपने दादा दादी की शादी में नाच रहे थे।
आसपास के सबलोग भी इस शादी की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे थे।
अगले दिन इस अनोखी शादी वाले जोड़े की फोटो और खबर हर अखबार के फ्रंट पेज पर छपी थी।
मौलिक रचना
रीटा मक्कड़