अधूरी पूर्णता – अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’ : Moral Stories in Hindi

सुरभि ने रोहन के कॉलर को सँवारते हुए अचानक कहा—

“चलो रोहन! क्यों न हम दोनों शादी कर लें?”

रोहन ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा और बोला—

“अरे, ऐसी भी क्या जल्दी है? पिछले पाँच साल से तो हम बिना शादी के ही साथ रह रहे हैं।”

सुरभि की आँखों में एक अजीब-सी ख़ामोशी तैर गई। उसने धीमे स्वर में कहा—

“हाँ, और सच कहूँ तो इस रिश्ते में मुझे कभी कोई कमी महसूस नहीं हुई। तुम मेरे लिए हमेशा एक बेहतरीन साथी रहे हो। लेकिन अब, जब हम तीस की दहलीज़ के करीब पहुँच रहे हैं… शादीशुदा जोड़ियों को देखकर, परिवारों को देखकर, मन में कहीं न कहीं एक अधूरापन खलने लगता है। मैं अब अपना घर, अपना परिवार, और अपने बच्चे चाहती हूँ।”

रोहन कुछ देर चुपचाप उसे देखता रहा, फिर जैसे उसकी बात का सिरा पकड़ते हुए बोला— “परिवार की ज़िम्मेदारियों से बचने के लिए ही तो तुमने लिव-इन का रास्ता चुना था, सुरभि। और जहाँ तक आर्थिक सुरक्षा की बात है—हम दोनों ने बीमा पॉलिसियों और बैंक खातों में एक-दूसरे को नॉमिनी बना ही रखा है। तो बताओ, असली वजह क्या है?”

सुरभि की नज़रें कहीं दूर टिक गईं। चेहरे पर थकान और चिंता की हल्की लकीरें उभर आईं।

“तुम्हें याद है, मैंने अपनी सुहानी दीदी का ज़िक्र किया था? कॉलेज के दिनों से वे मेरी आदर्श रही हैं। मेहनत से मुकाम बनाया, शादी नहीं की, फिर भी ठाठ-बाट से ज़िंदगी जी रही थीं। कल अचानक बैंक में मिलीं। उनका पार्टनर कुछ दिन पहले गुज़र गया है… और अब उनके पार्टनर के रिश्तेदार उनकी प्रॉपर्टी पर केस ठोक रहे हैं।

“शादी नहीं की थी— कोई संतान भी नहीं है, समाज से तो वो पहले ही कट चुकी थीं.… आज अकेलेपन से दीदी टूट चुकी हैं। उनकी आँखों में जो खालीपन मैंने देखा, वह मुझे भीतर तक हिला गया।”

“रोहन, सोचो… अगर कल को तुम्हें या मुझे कुछ हो जाए, तो कौन होगा जो सच में हमारा अपना कहलाएगा?”

उसकी आवाज़ काँप उठी।

“अब समझ आया कि शादी केवल एक रस्म नहीं, बल्कि कानूनी और सामाजिक सुरक्षा का सहारा भी है।”

रोहन ने आगे बढ़कर उसका चेहरा अपने हाथों में थाम लिया। इस बार उसकी नज़रें गम्भीर थीं —“तुम्हें याद है, जब मैं तुम्हारी ज़िंदगी में आया था, तो तुमसे शादी करना चाहता था? लेकिन तुमने ही मना कर दिया था। तब तुमने कहा था—‘प्यार है, भरोसा है, तो मैरिज सर्टिफिकेट जैसे काग़ज़ की क्या ज़रूरत?’ ”

फिर हल्की मुस्कान के साथ उसकी आँखों में देखते हुए बोला — “लेकिन अच्छी बात है कि आज तुम विवाह संस्था का महत्व समझ रही हो। हमारे बड़े-बुजुर्गों ने विवाह संस्था को यूँ ही नहीं गढ़ा था। विवाह का सर्टिफिकेट सिर्फ़ एक काग़ज़ का टुकड़ा नहीं है, बल्कि यह हमारे रिश्ते को कानूनी, सामाजिक और भावनात्मक ढाँचा देने वाला प्रमाण है।”

सुरभि की आँखों में हल्की नमी तैर आई, होंठों पर धीमी मुस्कान उभर आई।

“तो हम कब अपने इस अधूरे रिश्ते को पूर्णता दे रहे हैं?”

रोहन ठहाका लगाते हुए हँस पड़ा, मगर उसकी आवाज़ में गम्भीरता भी थी— “नेकी और पूछ-पूछ? चलो, अब यह कदम भी उठा ही लेते हैं। प्यार से शुरू हुआ सफ़र, अब शादी के मुकाम तक पहुँचना ही चाहिए।”

सुरभि ने उसका हाथ थाम लिया। उसके चेहरे पर एक सुकून था, जैसे पिछले कुछ समय से भीतर जो ‘अधूरी पूर्णता’ उसे कचोट रही थी, वो भरने वाली हो।

– अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

Leave a Comment

error: Content is protected !!