आत्मसम्मान –

“मम्मी जी, मैं जा रही हूँ इनके साथ। अब मुझे मत बुलाइएगा। यहाँ मेरी इज्ज़त नहीं, वहाँ मैं नहीं रहूँगी। फिर चाहे वह मेरा ससुराल ही क्यों न हो। मुझे मेरा आत्मसम्मान प्यारा है। और बड़े पापा जी ने जब मुझे घर से निकलने को कहा, तब आपने और पापा जी ने कुछ भी नहीं कहा। तो मैं यहाँ रुककर क्या करूँगी।”

यह कहते हुए आरती ने गुस्से में बैग पैक किया और समीर से चलने को कहा।
आरती के साथ ससुराल वाले दोनों को जाते हुए देख रहे थे, लेकिन रोकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। क्योंकि सब जानते थे कि आरती सही है, वह कुछ गलत नहीं कर रही।

“ठीक है आरती बेटा, मैं तुम्हें नहीं रोकूँगी। पर यह घर तुम्हारा है और हमेशा रहेगा। जब ज़रूरत हो, चली आना।”
आरती की सास ने भारी मन से उसकी तरफ देखते हुए कहा।

“मम्मी जी, मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ। पर इस बार बात मेरे स्वाभिमान की है। और मेरा स्वाभिमान मुझे कभी इजाज़त नहीं देगा कि मैं अब यहाँ रहूँ। चलती हूँ मम्मी जी… आप आइएगा।”

यह कहते हुए आरती और समीर ने उनके पैर छुए और शहर चले गए।


आरती की शादी समीर से दो महीने पहले ही हुई थी। संयुक्त परिवार था समीर का, जिसमें उनके बड़े पापा सबसे बड़े थे, फिर समीर के पापा। घर पर राज समीर के बड़े पापा का ही था। उनके बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था। घर के बड़े होने के नाते सब उनको सम्मान देते, पर वे सबको दबाकर रखते। किसी की हिम्मत नहीं थी कि उनके सामने कुछ कह सके।

आरती का परिवार छोटा था, जिसमें वह और उसकी माँ ही थीं। उसके पापा काफी समय पहले गुजर चुके थे। नई-नई शादी करके जब आरती आई तो बड़े परिवार को संभालने में उसे दिक्कत आई। पर अपनी समझदारी और व्यवहार से वह सबका दिल जीतती गई। अगर किसी का दिल नहीं जीत पाई तो वह थे — समीर के बड़े पापा।

कारण सिर्फ इतना था कि आरती अपने मन की जिंदगी जीने में विश्वास रखती थी। सुनती सबकी थी, लेकिन प्रकृति से अपने मन की थी। वह सबके लिए सोचती और अक्सर बड़े पापा के गलत फैसले पर आवाज़ उठाती। यही उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था।

समीर शहर में जॉब करता था। वह चाहता था कि आरती भी वहीं उसके साथ रहे। पर समीर के बड़े पापा चाहते थे कि आरती पाँच-छह महीने ससुराल में रहे ताकि वह यहाँ के तौर-तरीके सीखे। आरती ने साफ़ मना कर दिया कि वह समीर के साथ शहर जाएगी।

बात बहुत बढ़ गई और बड़े पापा ने आरती को घर से निकलने को कह दिया। लेकिन न तो सास और न ही ससुर कुछ कह पाए।
यह बात आरती को अंदर से बहुत हिला गई। उसने सोचा — “मैं तो दूसरे घर से हूँ, लेकिन समीर तो उनका अपना खून है। मम्मी-पापा ने बड़े पापा के खिलाफ कुछ क्यों नहीं कहा? जब उन्होंने हमें घर से निकलने को कहा, कम से कम पापा तो हिम्मत करके बोल सकते थे। यह कैसा संस्कार है?”

आख़िरकार दोनों घर से चले गए।


समय बीता…
आरती अपनी गृहस्थी में रम गई। अपने बेटे में जिसकी जान बसती थी। सास-ससुर से फोन पर बात हो जाती थी, पर आरती ससुराल वापस नहीं गई। कई बार सास ने उसे बुलाना चाहा, लेकिन आरती ने साफ़ इनकार कर दिया।

कुछ दिनों बाद खबर मिली कि बड़े पापा का एक्सीडेंट हो गया है और वे आईसीयू में भर्ती हैं।
समीर ने यह बात आरती को बताई। पर आरती चुप रही।
समीर उसकी चुप्पी समझ चुका था।

उसने सामान पैक किया और बोला —
“आरती, मैं कुछ दिनों के लिए घर जा रहा हूँ। चार-पाँच दिन में लौट आऊँगा। तुम अपना और बिट्टू का ध्यान रखना।”

पर यह क्या!
आरती भी अपना बैग लेकर समीर के साथ चलने को तैयार हो गई।

समीर को आश्चर्य हुआ।
आरती बोली —
“जानती हूँ, आपको अजीब लग रहा होगा कि चार साल बाद अचानक मैं क्यों चल रही हूँ। लेकिन अगर हम घर के होकर उनकी मदद नहीं करेंगे, तो हमारा होने का मतलब ही क्या? सीमा और रोहित तो उन्हें बहुत पहले ही छोड़ चुके हैं। और बड़ी माँ के जाने के बाद वे बहुत अकेले हो गए हैं। वह भी इंसान हैं। दूसरा मौका उन्हें भी मिलना चाहिए।”

यह कहते हुए आरती ने समीर की तरफ देखा और दोनों ससुराल की तरफ चल पड़े।


डॉक्टर ने बताया कि उनका पैर फ्रैक्चर हो गया है। हाथों में भी काफी चोट आई है। पर अब खतरा टल गया है, बस ध्यान रखने की ज़रूरत है।

आरती ने बिना सोचे-समझे बड़े पापा की खूब सेवा की। जल्दी ही उनकी सेहत में सुधार होने लगा।
एक दिन उन्होंने आरती से घूमने की इच्छा जताई। आरती उन्हें व्हीलचेयर पर बिठाकर गार्डन में ले गई।

वहाँ बड़े पापा ने उसका हाथ पकड़ा और बोले —
“बेटा, मुझे माफ़ कर दो। जानता हूँ, बहुत देर कर दी मैंने। काश, बहुत पहले माफी माँग लेता तो रोहित इस तरह मुझे छोड़कर नहीं जाता। बेटा, तुम्हें पता है, जाते-जाते उसने क्या कहा था?
‘आप लक्ष्मी की इज्ज़त नहीं करते पापा। न भाभी की इज्ज़त की, न मेरी पत्नी की भी करोगे। कितना कहा आपसे कि भाभी-भैया को अपना लीजिए, पर एक न सुनी आपने। मुझे तो पत्नी का दर्जा आपने कभी नहीं दिया। आप स्वार्थी हैं पापा।’

मैं बस माँ के लिए यहाँ रुका था। अब वो नहीं रही, तो मेरा क्या काम? मैं जा रहा हूँ।’

और यह कहकर रोहित मुझे छोड़कर चला गया। बेटा, मुझे पछतावा है।
आरती बेटा, मुझे माफ़ कर दो। शायद रोहित भी मुझे माफ़ कर दे। क्या तुम मुझे अपने बड़े पापा से पापा बनने का एक मौका दोगी? इस बार तुम्हें निराश नहीं करूँगा।”

आँखों में खुशी के आँसू लिए आरती ने हामी भरी और दोनों घर की तरफ चल पड़े।

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