आपे से बाहर होना – डोली पाठक

आप कितने पढ़े-लिखे हैं…

कितनी डिग्रियां ले रखी हैं और आप कितने ईमानदार और नेक इंसान हैं इन सारी हीं बातों का कोई अर्थ नहीं रह जाता जब आपको लोगों के साथ व्यवहार करना नहीं आता…

आपकी भाषा शैली और बात करने का सलीका आपकी डिग्री का मोहताज नहीं होता…

अक्सर हमने देखा है कि अनपढ़ लोगों की भाषा शैली और व्यवहार जहां सामाजिक जगहों पर बहुत हीं अच्छा होता है वहीं कुछ पढ़े-लिखे लोग भी सामाजिक जगहों पर अमर्यादित भाषा में बात कर के अपनी छवि लोगों की नजरों में बिगाड़ लेते हैं..

गाली-गलौज करते समय वो सामने वाले के ओहदे और उम्र का भी लिहाज नहीं करते….

ऐसी आदत थी भूषण की…

कहने को तो भूषण बहुत हीं पढ़ा लिखा और समझदार व्यक्ति था…

परंतु छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता और अपना आपा खो बैठता…

गंदी-गंदी गालियां बकना तो उसकी सबसे गंदी आदत थी जिससे घर के सभी सदस्य बड़े हीं परेशान रहते थे…

अपनी गालियां बकने की गंदी आदत के कारण अनेकों बार उसका घर और बाहर झगड़े हो जाते थे…

अपनी गर्भवती पत्नी को बाइक पर बिठा कर 

भूषण नियमित चेकअप के लिए डाक्टर के पास ले जा रहा था…

सुबह-सुबह का समय होने के कारण सड़क पर काफी जाम लगा हुआ था…

हर तरफ आने-जाने वालों का तांता लगा हुआ था…

एक-एक कदम फूंक-फूंक कर उठाना पड़ रहा था…

भूषण आने-जाने वालों को भद्दी-भद्दी गालियां बकते हुए धीरे-धीरे अपनी बाइक आगे बढ़ाते जा रहा था…

तभी पीछे से आते हुए एक बुजुर्ग ठेले वाले का ठेला उसकी पत्नी के पैर में ‌लग गया…

ठेला वाला माफी मांगने लगा फिर भी भूषण को भला ये कब सहन होने वाला था कि उसकी पत्नी को कोई चोट लगा दें…

भूषण गुस्से में अपना आपा खो बैठा और बाइक से उतरकर उस ठेले वाले को गंदी गालियां बकते हुए दो-चार थप्पड़ जड़ दिए…

जो जहां था वहीं रूक गया…

ठेले वाले को तो जैसे काठ मार गया…

वो शर्मिंदगी से कुछ भी कहने की हालत में नहीं था…

दो पुलिस वाले आ गये…

मामले को तुल पकड़ता देख भूषण की पत्नी उस बुजुर्ग से क्षमा मांगने लगी…

पुलिस वालों ने भी भूषण को खूब लताड़ लगाई…

बुजुर्ग ठेले वाले ने बस इतना कहा कि,बेटा गुस्से में आपा खो जाना हर किसी को आता है परंतु समझदार व्यक्ति वहीं है जो अपने गुस्से पर काबू रखें…

आज तुम्हारी पत्नी की ऐसी हालत देख कर भी तुम अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाए तो कल को परिवार बड़ा होगा तो इतने गुस्से के साथ उसे कैसे संभालोगे…

आपे से बाहर होना बहुत सरल कार्य है कठिन तो है उस गुस्से पर अंकुश रखना….

गुस्सा मुझे भी आता है मैं भी चाहता तो तुम्हें दो-चार गालियां दे सकता था…

दो चार थप्पड़ लगा सकता था…

परंतु हर इंसान ऐसे हीं गुस्से में आपा खोता रहेगा तो फिर तो जिंदगी एक जंग का मैदान बन कर रह जाएगी…

उस बुजुर्ग की बातें सुनकर सब लोग तालियां बजाने लगे और भूषण पश्चाताप की अग्नि में झुलसता हुआ पत्नी समेत वहां से चल दिया।

डोली पाठक 

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