राजेश्वरी का घर रिश्तेदारों से भरा हुआ था क्योंकि दस दिन पहले ही , उसके पति आलोक जी की मृत्यु अचानक हृदयाघात से हो गई थी ।
उनके चार बेटे हैं , चारों भी आए हुए थे ….. जैसे ही बारहवीं हुई रिश्तेदारों ने बच्चों को माँ का ख़्याल रखने की सलाह देकर चले गए । आलोक जी के एक जिगरी दोस्त थे …… विनोद सिंह वे अभी तक रुके हुए थे ताकि बच्चों से बात करके राजेश्वरी का जुगाड़ कर सकें ।
उन्होंने चारों बेटों को दस मिनट पहले ही बैठक में बुलाया था , इसलिए वे उनका इंतज़ार कर रहे थे । राजेश्वरी बैठक से लगे हुए अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ी थी और सोच रही थी कि आलोक ज़िंदा रहते तो उसकी यह हालत कभी नहीं होती थी । उनकी किस्मत में ईश्वर ने चार बेटे लिख दिए थे , परंतु आगे की जिंदगी कैसे कटेगी एक प्रश्न चिह्न बन गया था ।
उसे याद आया कि आलोक और उसने भाग कर शादी की थी इसलिए दोनों के परिवार वालों ने उन्हें घर से निकाल दिया था । आलोक की नौकरी बहुत बड़ी नहीं थी ….. साथ ही उनके खर्चे बहुत थे फिर भी आलोक किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते थे । उनके पास जितना भी पैसा है , उसी से काम चला लेते थे ।
राजेश्वरी कभी भी आलोक को सताती नहीं थी । जो कुछ भी है उसी के साथ गुज़ारा करती रहती थी । विनोद आलोक का बॉस था फिर भी दोनों में पक्की दोस्ती थी ।
विनोद के दो ही बच्चे हैं , ऊँचा पद अच्छी तनख़्वाह और बाप दादाओं की थोड़ी बहुत जायदाद भी थी , फिर भी वह क़र्ज़ में डूबे रहते थे ।
वे हमेशा हँसते हुए आलोक से कहते थे…. अरे!! यार आलोक तुम्हें देखकर बड़े बुजुर्गों की बातें याद आ जाती है …… वे कहा करते थे कि जिसका कोई उधार नहीं ? वही पैसे वाला होता है। आलोक हँसकर कहता था कि पैसों का क्या है सर कम है तो भी चल जाएगा , जीवन में संतुष्टि होना चाहिए । विनोद को पता था कि इसका क्रेडिट तो राजेश्वरी को ही मिलना चाहिए ।
बड़े बेटे की पढ़ाई के लिए राजेश्वरी ने अपने ज़ेवर बेच दिए थे । दूसरे बेटे की पढ़ाई के लिए पिता द्वारा दी गई जमीन बेच दी थी , तीसरे और चौथे बेटे की पढ़ाई के लिए आलोक ने ऑफिस से लोन लिया था ।
इस तरह से उन्होंने अपने बच्चों को अपनी औक़ात से ज़्यादा पढ़ाया था ताकि वे अच्छे पदों पर नौकरी कर सकें ।
उनके पास जो कुछ भी था , उन्होंने बच्चों के लिए खर्च कर दिया था । वे चारों माता-पिता के सपनों को साकार करते हुए अच्छे पदों पर कार्य करने लगे थे ।
आलोक और राजेश्वरी सब कुछ बच्चों के लिए खर्च करके खुद किराए के मकान में रहने लगे थे । उन्हें कल की चिंता नहीं थी क्योंकि उन्हें अपने बच्चों पर बहुत भरोसा है कि वे उन्हें पलकों पर बिठाकर रखेंगे ।
कहते हैं समय का चक्र चलता ही रहता है । वह एक जैसा कभी नहीं होता है इसलिए ही तो अचानक आलोक राजेश्वरी को अकेले छोड़कर चले गए थे । आज परिस्थिति यह हो गई है कि राजेश्वरी को अपने चारों बच्चों में से किसी एक के साथ तो जाना ही पड़ेगा ।
विनोद ने देखा चारों बेटे एकदम टिपटाप तैयार होकर नीचे आए । विनोद ने बिना समय व्यर्थ गँवाए , उनसे पूछा हाँ तो बच्चों अब बताओ सबसे पहले बड़ा बेटा राम माँ को अपने साथ ले जाएगा ?
बड़ा बेटा राम ने मुँह नहीं खोला तो विनोद ने दूसरे बेटे की तरफ देखा , उसने भी कुछ नहीं कहा उन्होंने तीसरे और चौथे बेटे की तरफ देखा वे भी आँखें चुरा रहे थे ।
विनोद ने उनकी तरफ आश्चर्य भरी नज़रों से देखा और कहा तुम लोग तो अपनी माँ को अपने साथ ले जाना चाहते थे फिर पहले कौन ले जाएगा पूछने पर इस तरह से चुप क्यों हो ?
चारों ने एक दूसरे की तरफ देखा और पहले आप , पहले आप कहते हुए एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी डालने की कोशिश करने लगे ।
उन चारों की बातों को सुनकर राजेश्वरी का दिल बैठा जा रहा था । यही चारों बचपन में माँ मेरी है , कहकर लड़ते थे और आज माँ तेरी है , कहते हुए लड़ रहे हैं ।
बिना प्रयत्न के ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे । सोचने लगी आप तो खुश किस्मत हैं , जो इनके बदले हुए रूप को देखे बिना चले गए हैं , अगर देख लेते तो इतने दिन भी जीवित नहीं रह पाते थे ।
विनोद ने तूफान से पहले वाली शांति उन चारों के चेहरों पर देखते हुए कहा , कोई तो सामने आओ इस तरह की तुम्हारी चुप्पी का मैं क्या समझूँ ?
अब तक चारों आपस में बहस कर रहे थे ….. उसे रोकते हुए कहा देखिए अंकल इस तरह से आपस में बहस करते रहने पर हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते हैं । इसलिए हम लोगों ने मिलकर एक फ़ैसला किया है ।
विनोद ने उनकी तरफ देखते हुए कहा क्या फ़ैसला किया है आप लोगों ने ? उनका क्या फ़ैसला हो सकता है , यह राजेश्वरी को भी सुनना था , इसलिए वह भी उत्सुकता से उनकी बातें सुनने लगी ।
उन्होंने जब कहा कि वह फ़ैसला यह है कि हम चिट डालकर लॉटरी निकालेंगे । उनके इस व्यवहार से विनोद को फिर आश्चर्य हुआ लोग तो कहते हैं अंतिम समय में बेटे के पास क्यों नहीं चले जाते हो? बेटे इस तरह के हैं तो कोई उनके साथ जाने की हिम्मत कैसे कर सकता है।
राजेश्वरी जी उनकी हालत का हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते हैं । वह अंदर से बेटों की बातें सुनकर लग रहा था , यह धरती यहीं फट जाए और वह उसमें समा जाए …!!! ओह कैसी विडंबना है!!!
बड़े बेटे ने सलाह दिया अंकल हम एक चिट पर माँ लिखेंगे , बाकी के तीन चिट खाली रखेंगे । जिसने भी माँ वाली चिट्टी उठाई माँ उसी के पास पहले जाएगी……
तीन महीने बाद ऐसे ही चिट डालेंगे और जिसे माँ के नाम की चिट मिलेगी , वह माँ को ले जाएगा । इस तरह से तीन – तीन महीने चिट पर आए माँ के नाम को देखकर हम माँ को अपने साथ ले जाएँगे ।
विनोद ने कहा मुँह पर उँगली रखकर कहा शशशश ……. इस तरह से बार-बार चिट की बात मत बोलो सुनने के लिए अच्छा नहीं लग रहा है । विनोद जी ने दरवाज़े के बाहर से ही राजश्वरी को उसके बेटों की बातों को सुना दिया ।
पहले तो उसे बुरा लगा फिर उसने कहा जैसे बेटे चाहते हैं वैसे ही कीजिए । विनोद ने राजेश्वरी की बात मान ली और चिटों पर बेटों के कहे अनुसार लिख दिया ।
राजेश्वरी आँखों में आँसू भर कर खिड़की से बाहर देखती रही । उसके चारों बेटों ने एक-एक चिट हाथ में ले लिया था ।
बड़ा बेटा राम ने जब हाथ में चिट लिया तब उसके हाथ काँप रहे थे क्योंकि उसकी पत्नी ने उसे वार्निंग दी थी कि तुम्हारी चिट में माँ का नाम नहीं आना चाहिए वरना मैं तुम्हें छोड़कर चली जाऊँगी । उसी टेंशन के कारण उसके हाथ काँप रहे थे ।
उसकी चिट में माँ का नाम नहीं था ….. उसने सुकून की साँस ली , चलो ! बीबी के हाथों सेफ हो गया हूँ ।
दूसरे बेटे की बारी आई , उसने एक चिट उठाई उसकी चिट पर भी माँ का नाम नहीं आया , उसने बड़े के कान में कहा मैं भी बच गया हूँ । विनोद उनके चेहरे पढ़ रहे थे । अब तीसरे की बारी आई । उसने चिट उठाई दोनों ने पूछा माँ का नाम आया है क्या तेरी चिट में ? उसने खुशी से हँसते हुए कहा नहीं भाई मुझे माँ की चिट नहीं आई है । मैं भी बच गया हूँ ।
राजेश्वरी खिड़की पर खड़ी सोचने लगी छी:छी: मेरे बेटे इतने नीच हैं । मैंने सपने में भी नहीं सोचा था इधर माँ के लिए बेटों के रवैए को लेकर विनोद को भी ग़ुस्सा आ रहा था ।
राम के साथ बाकी तीनों ने मिलकर कहा , अंकल हमारा आखिरी भाई सबसे पहले माँ को अपने साथ ले जाएगा , अब यह फ़ैसला हो गया है क्योंकि उसकी चिट पर माँ का नाम पक्का लिखा होगा ।
विनोद ने कहा अभी कुछ मत बोलो राम पहले तुम्हारे भाई को भी चिट निकालकर देखने तो दो ।
मेरी चिट में भी माँ का नाम नहीं है …. कहकर वह वहीं खड़े – खड़े कूदने लगा । उसकी खुशी को देख तीनों आश्चर्य चकित हो गए , ऐसे कैसे हो सकता है ।
अंकल हम में से किसी को भी माँ के नाम की चिट नहीं आई ऐसे कैसे हो सकता है ?
विनोद ने वहाँ से उठते हुए कहा यह अपनी माँ से ही पूछ लो तो ज़्यादा अच्छा होगा ।
उन्होंने माँ के पास जाकर पूछा , यह आपने क्या किया है माँ ? उसने उनकी तरफ एक बार भी नहीं देखा और कहा मैं माँ हूँ बेटा कुछ भी कर सकती हूँ ।
आज तुमने माँ के लिए चिट निकाली है … तो कल मेरी नीलामी नहीं करोगे यह गेरंटी नहीं है ।
ऐसे बेटों की मैं माँ हूँ , यह सोचकर मुझे बुरा लगता है , तुम सब जानते हो हमने तुम चारों को हर परिस्थिति का सामना करके पाला है तो मैं अपने आपको नहीं पाल पाऊँगी क्या ? तुम्हारे भी बच्चे हैं …. उन्हें तुम भी प्यार से ही पाल रहे हो , कल तुम्हें यह दिन देखने ना पड़े इसके लिए अपने बारे में तुम लोग सोच लो !
उसने उनके आँखों के सामने कमरे का दरवाज़ा बंद करते हुए कहा , मैं दस मिनट में दरवाज़ा खोलूँगी तब आप लोग मुझे यहाँ दिखाई नहीं देना चाहिए । यह मेरा आदेश है ,,, कहते हुए उसने दरवाज़ा बंद कर दिया ।
राजेश्वरी ने दस मिनट बाद दरवाज़ा खोलकर देखा तो हॉल खाली था , कोई नहीं था । उसके आँखों में आँसू नहीं थे बल्कि एक सुकून और दृढ़ निश्चय दिखाई दे रहा था ।
के कामेश्वरी