आप अपने बेटे के साथ क्यों नहीं रहते – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

मयंक ने जेब्रा क्रासिंग पर कार धीमी की तो देखा एक बुजुर्ग छड़ी के सहारे धीरे धीरे चलते हुए सड़क पार कर रहे थे! सूरत कुछ जानी पहचानी सी लगी तो मयंक कार एक तरफ खड़ी कर उन्हें सड़क पार कराने की नीयत से उनके पास गया!

मयंक को देखकर उन्होंने सर ऊपर कर चश्मा नाक की तरफ सरकाया ध्यान से देखने पर कांपते हाथों से ऊंगली का इशारा कर बोले “अरे तुम मयंक ही हो ना?कैसे हो बेटा,बड़े दिनो बाद दिखाई दिये?”एक सांस में वे उत्साहित हो बोलते चले गए !

मयंक सुरेश जी के बेटे महेश के बचपन का दोस्त था अक्सर घर आया करता था!मुम्बई में रहता था,मां-बाप से मिलने आया हुआ था!

“जी अंकल आपने ठीक पहचाना!”झुककर उनके पैर छूते हुए मयंक ने जवाब दिया!

“कैसे हैं आप?”कब आऐ आप गाँव से?मयंक ने पूछा!

गाँव से?आश्चर्य से सुरेश जी बोले!मैं!मैं तो गांव कई साल से नहीं गया!तुम्हारी आंटी का इलाज चल रहा है ना,दो साल पहले गिर गई थी रीढ़ की हड्डी में चोट लगी थी ठीक ही नहीं हो रही!गाँव में तो तुम जानते हो मेडिकल की सुविधा कुछ अच्छी नहीं है!इस लिए हम दोनों यहीं रहते हैं!”

मयंक ने कहा सुधीर ने तो बताया था आप दोनों गाँव चले गए?आप इतनी धूप में कहां जा रहे हैं,चलिए मैं ले चलता हूं”!

“नहीं नहीं मैं चला जाऊंगा!तुम्हारी आंटी की बी.पी.की दवाई खत्म हो गई थी,कल अंधेरे में मेरा मोबाइल भी गिर कर टूट गया,आंटी का मोबाइल भी काम नहीं कर रहा था वर्ना ऑनलाइन मंगा लेता!”

मोबाइल ना होने से टैक्सी भी बुक नहीं कर सका,गर्मी की वजह से कोई रिक्शा,ऑटो भी नहीं मिला!ये तो रोज के काम हैं!चलते रहते हैं!”सुरेश जी ने गहरी सांस लेकर जवाब दिया!

“पर इतनी गर्मी में मैं आपको पैदल नहीं जाने दूंगा,चलिए गाड़ी में बैठिए,आपके सारे काम करवा कर आपको घर छोडूंगा,आंटी के हाथ की दूधवाली चाय पियूंगा तब जाऊंगा “कहकर मयंक ने सुरेश जी को सहारा देकर गाड़ी में बैठाया!

मयंक ने देखा सुरेश जी थके हुए बीमार से लग रहे थे ,वे बहुत कमजोर हो गए थे!

उनको देखकर मयंक को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि सुरेश जी तो अच्छे खासे तंदुरुस्त हुआ करते थे बल्कि उन्हें देख कर लोग उनकी उम्र का अंदाज लगाया करते वे अपनी उम्र से कई साल कम लगते थे! 

उसने पूछ ही लिया”अंकल आपकी तबियत तो ठीक है ना ?”सुरेश जी बोले”अरे बेटा अब उम्र हो गई! थोड़ा-बहुत फर्क तो पड़ेगा ना?

सुरेश जी का सारा काम कराकर मयंक उन्हें घर छोड़ने आया!

सुरेश जी का घर छोटा भले ही था पर लोकेशन अच्छी होने की वजह से वहां जमीन महंगी थी!

घर आने पर मयंक ने देखा 

घर की हालत कुछ अच्छी नहीं दिख रही थी जैसे बरसों से पुताई ही न हुई हो!

प्लास्टर जगह जगह से उखड़ा हुआ था!गेट भी चरमरा रहा था!

 हमेशा चुस्त-दुरूस्त रहने वाली सुधा आंटी कितनी कमज़ोर और ढीली ढाली लग रही थीं!

उनके हाथ पैर कांप रहे थे !

उनकी आवाज की खनक जाने कहां चली गई थी!

वे मयंक के लिए उसकी मनपसंद चाय बनाने उठीं तो सुरेश जी उनकी सहायता के लिए किचन में चले गए! 

मयंक ने शुरू से ही देखा था

सुधीर के मां-बाप दोनों ही बहुत स्मार्ट हुआ करते थे!उनकी ऐसी दयनीय हालत देख कर मयंक बहुत दुखी हुआ! 

उन दोनों को देखकर मयंक को लगा जैसे अंदर ही अंदर कोई घुन उन्हें खाऐ जा रहा है!

         बहुत पूछने पर उन्होंने बताया सुधीर का यहीं ट्रांसफर हो गया है!

“क्या सुधीर यहीं आ जाऐगा?ये तो बहुत अच्छा हो गया!अब आप लोगों को बहुत सहारा हो जाएगा,आप दोनों की बहू बेटे के साथ रहने की हमेशा की मुराद पूरी हो जाएगी “!मयंक खुश होकर बोला!

“आ जाऐगा नहीं आ गया!छः महीने पहले”!ठंडी सांस लेकर सुरेश जी ने जवाब दिया!

मयंक को कुछ आश्चर्य सा हुआ! 

“फिर आप लोग यहाँ अकेले क्यों रह रहे है?सुधीर के साथ क्यों नहीं रहते?”

सुरेश जी की चुप्पी से मयंक

 समझ गया जरूर कोई बात है जो सुरेश जी और सुधा जी उससे छुपा रहे हैं!

उसने सुरेश जी और सुधा से सच्चाई जानने की कोशिश की कि सुधीर के इसी शहर में रहते हुए वे इस कदर परेशानी में रह रहे हैं!क्या सुधीर नहीं जानता?

सुधीर तो बहुत बड़ी कंपनी का सी.ई.ओ.है उसके नीचे तो कितने लोग काम करते हैं!इन छोटे मोटे काम के लिए वह किसी को भेज सकता है या छुट्टी के दिन टाइम निकाल कर खुद कर सकता है!

आखिर माजरा क्या है?

मयंक ने सुरेश जी से कहा “अंकल मैं आज ही सुधीर से मिलकर उसे समझाता हूं!”

मयंक को याद था जब वह और सुधीर पढ़ते थे कैसे सुरेश जी और सुधा जी जान से उसकी छोटी से छोटी फरमाइश का ध्यान रखते थे जिसे देख कर क्लास के और बच्चे सुधीर के भाग्य पर रश्क करते थे!जब सुधीर काॅलेज की छुट्टी में घर आता तो कड़कड़ाती ठंड और 

घोर जाड़े में सुरेश जी स्कूटर पर रात के बारह बजे भी सुधीर को लेने आया करते थे!

और सुधा दरवाजे पर बैठी मिलती थी!

बीमार होने के बावजूद भी जब भी सुधीर होस्टल जाता सुधा जी उसके साथ अपने हाथों से बने लड्डू-मठरी और नमकीन बांध कर देती जिसे उसके दोस्तों में उसकी खूब वाह-वाही होती उन दोनों की सारी ज़िन्दगी सुधीर के इर्द-गिर्द ही घूमती!

वे दोनो हमेशा सबसे यही कहते कि महेश की नौकरी लगते ही वे ऊपर दो कमरे और बनवा लेंगे और वे दोनों और बेटे बहू सब साथ ही रहेंगे!

उन दोनों के चेहरे से साफ झलक रहा था कि वे कुछ कहना चाहते हैं पर झिझक रहे हैं!

बहुत पूछने पर सुरेश जी ने बताया कि पेंशन से उनका गुजारा ठीक ठाक चल रहा था पर उम्र के साथ साथ उनकी और सुधा जी की तबियत थोड़ी ढीली रहने लगी थी!

जब तक सुधा जी घर और चौका चूल्हा संभाल लेती थी तब तक सुधीर अपनी पत्नी टीना और बच्चे मोनू के साथ साल में चार छः दिन के लिए एकाध चक्कर लगा लेता था!

उन छुट्टियों में सुधा जी उन सबके लिए जी भर के सबके पसंद के पकवान बनाकर बना खिलाती!सुधीर और टीना खूब घूमते और शापिंग करते!टीना खुश रहती ना कोई बंधन ना ही काम ना सास-ससुर की सेवा!उल्टे उसे सुरेश जी के घर आकर आराम ही मिलता!

कुछ दिनों बाद सुधा जी की

गिरती तबियत को देखते हुए सुरेश जी ने एक दो बार सुधीर को कहा भी कि अपना ट्रांसफर यहीं करा ले क्योंकि अब उसकी मां का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता !सुरेश जी को घर संभालने की आदत नहीं थी क्योंकि अब तक सुधा ही सब करती आई थी!

टीना ने जैसे सुना कि सुधा जी अब किचन नहीं संभाल सकेंगी एक साथ रहेंगे तो सारा काम उसके सर पर आन पड़ेगा उसने साफ मना कर दिया कि उसे अब सुधीर के साथ अकेले रहने की आदत पड़ गई है वह सास-ससुर के साथ नहीं रह सकेगी!गृहक्लेश से बचने या खुदगर्जी की वजह से धीरे धीरे सुधीर भी टीना के रंग में रंगता चला गया!वह और शहरों में ट्रांसफर लेता रहा!और मां-बाप से अलग हो दूर होता गया!

अब मां-बाप के पास न आकर कभी विदेश कभी पहाड़ पर अपनी बीवी बच्चे के साथ छुट्टियां बिताने जाने लगा!

मां-बाप उसके एक फोन काॅल को भी तरस जाते!

कभी फोन करता भी तो बस आप ठीक हैं-हम ठीक हैं कहकर खत्म कर देता!

वह कभी यह जानने की कोशिश नहीं करता कि उन्हें किसी मदद की जरूरत है या नहीं! वह अपने परिवार और अपने सोशल सर्कल में मस्त रहता!

सुरेश और सुधा जी जैसे तैसे अपनी ज़िन्दगी एक दूसरे के सहारे काट रहे थे!

अब तक सुरेश जी के हज़ार बार कहने पर भी सुधीर ने अपना ट्रांसफर नहीं कराया था पर मोनू आठवीं क्लास में आया तो अच्छी पढ़ाई के लिए सुधीर ने ट्रांसफर अपने शहर में करा लिया!

 ट्रांसफर होने पर सुधीर को रहने को घर चाहिए था!सुरेश जी ने कहा वह उनके साथ अपने घर में रहे !जो पैसा कंपनी देगी वह अपनी बचत समझ ले!पर टीना तो क्या सुधीर को भी मां-बाप के साथ रहने में अपनी प्राइवेसी में खलल लग रहा था!

उसने देखा घर बेच कर अच्छी खासी रकम मिल जाएगी!फिर देर सबेर इकलौती औलाद होने के कारण ये घर मुझे ही मिलना है!

वह सोचने लगा किराए में पैसा बर्बाद करने से बेहतर है अपना घर ले लूं!मोनू बड़ा हो रहा है अपना घर होगा तो एक जगह रहकर एक ही स्कूल में पढ़ेगा ठीक रहेगा!

सुधीर ने सुरेश जी पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि इसे बेचकर बड़ा फ्लैट ले लेते हैं सब साथ रहेंगे!

पर सुरेश जी और सुधा ने टीना और एक हद तक सुधीर का भी रवैया देखकर अपने ही घर में रहने का निर्णय ले लिया!

उन्होंने सुधीर को बता दिया कि जब तक सुरेश जी और सुधा में से एक जन भी जिन्दा हैं!वे उसी मकान में रहेंगे!वे स्वाभिमान से अपनी बची हुई ज़िन्दगी काटना चाहते हैं!

उनके मरने के बाद 

 क्योंकि वह ही अकेली औलाद है,उनकी हर चीज पर सुधीर का ही हक होगा!वे बुढ़ापे में किसी के ऊपर निर्भर या मोहताज नहीं होना चाहते ना ही किसी से कोई उम्मीद लगा रहें हैं!

सुरेश जी ठंडी सांस लेकर बोले तब से सुधीर उनसे नाराज है सीधे मुँह बात नहीं करता!टीना तो पहले से ही कोई मतलब नहीं रखती थी!खैर वह तो पराऐ घर से आई है उसे हमारी दुख तकलीफ से क्या मतलब पर सुधीर तो अपना खून है जब वह ही नहीं समझता तो औरों से उम्मीद कैसी?

सुरेश जी ने मयंक को साफ साफ बता दिया कि क्यों वे बेटे बहू के साथ नहीं रह रहना चाहते!

सुरेश जी ने मयंक को सुधीर को समझाने या कुछ भी कहने को मना कर दिया यह कहकर कि जब उसे खुद ही ख्याल नहीं तो दूसरा क्या समझायेंगा! 

हमने अपने मन को समझा लिया है जैसे भगवान रखेगा उसी में खुश हैं!

मयंक को सुधीर की खुदगर्जी पर बहुत दुख हुआ उसने कहा “आपको कभी भी किसी तरह की मदद चाहिए निसंकोच मुझे कहें!मुझे अच्छा लगेगा कि आपने मुझे अपना समझा!”कहकर वह सुरेश जी और सुधा जी के पैर छूकर निकल गया!उसकी आँखें भर आई! 

कुमुद मोहन

 स्वरचित-मौलिक 

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