आंसू बने मोती – ऋतु यादव : Moral Stories in Hindi

आज मेधा पहली बार हवाई जहाज से सफर कर रही है। बैठते ही एकदम थोड़ा डर लगा पर फिर सब सामान्य सा ही था।

साथ कोई नहीं था और फोन भी बंद था तो मेधा खो गई अपनी यादों के सफर में।

कितना मुश्किल था वह दौर जब उसने अकेले अपने बेटे संस्कार की परवरिश की जबकि उसके पति भी साथ थे पर शायद साथ नहीं बस नाम मात्र के लिए जीवित थे।

असल में तो इतने स्वार्थी और भीरू थे कि सिर्फ अपने लिए ही जीते थे। जितना कमाते सब शराब में उड़ा देते, आखिर कोई ना रास्ता जानकर मेधा ने आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ना शुरू किया

ताकि वह अपना और संस्कार का जीवन यापन कर सके। 

समय आगे बढ़ता गया पढ़ने लिखने में तो संस्कार तेज था ही ऊपर से अपनी मां का संघर्ष देखा तो और अधिक मेहनत करता।

आस पड़ोस या रिश्तेदारी में यदि कभी संस्कार गलती से कोई शरारत कर भी देता तो सबका यही कहना था कि आखिर बेटा बाप पर ही जाता है।

अपनी स्थिति देखकर मेधा बाहर से तो कुछ ना रहती परंतु अंदर से खून के आंसू रोती उसे लगता अगर कहीं गलती से भी ऐसा हो गया तो उसकी जवानी तो चली ही गई

बुढ़ापा और संस्कार का पूरा जीवन खराब हो जाएगा।

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एक दौर ऐसा भी आया जब संस्कार अपनी किशोरावस्था में कभी कभार मेधा को उल्टे-सीधे जवाब देता या अपनी अंदरूनी

लड़ाई में कभी बहुत भावुक या उग्र हो जाता। परंतु मेधा उस समय भी सब्र से कम लेती। 

खासतौर से उसके 11वीं- 12वीं का समय, जब बमुश्किल मेधा प्राइवेट स्कूल की फीस जुटा पाती ऊपर से शराब पीकर पति जब हंगामा कर देता तो

मेधा सिर्फ यह सोचकर चुप रहती कि किसी प्रकार बच्चे का यह 2 साल निकल जाए।संस्कार ने भी अपनी मां को निराश नहीं किया बल्कि पहले ही प्रयास में एनडीए में चयनित होकर

उसे गौरवशाली अनुभव कराया। परंतु शायद भाग्य को कुछ और ही मंजूर था और संस्कार का एसएसबी के समय अचानक एक्सीडेंट हो गया और वह उसमें जा ही न सका।

कितना टूट गया गया था उस समय संस्कार परंतु मेधा ने उसे हिम्मत नहीं हारने दी इसका खूब ख्याल रखा, मनोबल बढ़ाया,चाहे अकेले में वह कितना ही रोती।

अंततः इसका परिणाम यह हुआ कि अगले साल फिर से संस्कार ने एनडीए की परीक्षा दी एवं उसमें बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो एसएसबी भी क्लियर किया।

मेधा की मेहनत सफल हो गई और आज वह संस्कार की पासिंग आउट सेरेमनी से लौट रही थी अपनी आंखों में खुशी के आंसू लिए।

आज मेधा को महसूस हो रहा था कि उसके बाईस साल के आंसू आखिर मोती बनकर संस्कार की सफलता के रूप में गिरे हैं।

ऋतु यादव

रेवाड़ी (हरियाणा)

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