आंख में धूल झोंकना – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

अरे अंजना बड़े बेटे की शादी न करके छोटे की कर रही है । पहले बड़े बेटे की शादी करनी चाहिए फिर छोटे की। तभी पास खड़ी रेखा जी ने चुटकी ली,अरे क्या बड़े बेटे की शादी होगी वो कुछ करता धरता है नहीं ,और पता नहीं क्या पढ़ाई की है

बस इधर उधर फालतू घूमता रहता है।कौन करेगा शादी उससे।छोटा बेटा कम से कम नौकरी तो करता है। कोई भी मां बाप अपनी बेटी की शादी ऐसे लड़के से क्यों करेंगे जो नाकारा हो । हां हां सुषमा बहन तुम ठीक कह रही हो।बड़ा बेटा इतने

सालों से मां बाप की आंखों में धूल झोंक रहा था कि पढ़ाई कर रहा हूं और पता नहीं क्या करता रहा चार साल तक। मां बाप से इतना भी न हुआ कि बेटे की सच्चाई तो पता करते कि क्या कर रहा है पढ़ाई कि कुछ और ।

                अंजना और महेश दोनों पति-पत्नी के तीन बच्चे थे ।दो बेटे और एक बेटी।महेश जी बैंक में मैनेजर थे।बस वो अपनी नौकरी में व्यस्त रहते थे ।घर में बच्चे क्या कर रहे हैं क्या एक्टिविटी है ,पढ़ाई कैसी चल रही है इन सब बातों से कोई मतलब नहीं रहता था।

घर और बच्चे अंजना ही संभालती थी। लेकिन कभी कभी पिता की डांट उनकी पूछताछ बच्चों के साथ बहुत जरूरी होती है। पिता का थोड़ा सा डर बना रहना बहुत जरूरी होता है जीवन में सफलता पाने के लिए। बड़े होते बच्चे में पिता का डर होना बहुत जरूरी होता है। लेकिन महेश जी के घर ऐसा कुछ नहीं था।वो घर की सारी जिम्मेदारी से मुक्त थे। बच्चे क्या कर रहे हैं ,

क्या पढ़ रहे हैं इन सबसे बेखबर थे।और जब बैंक की छुट्टी होती या कोई लम्बी छुटटी पड़ती तो घूमने फिरने निकल जाते ‌बस इसी तरह समय निकलता रहा । घूमने फिरने में इतना खर्च कर देते थे कि सेविंग भी करनी चाहिए इसका भी ध्यान नहीं रहता था ।घूमो फिरो खाओ पियो और मस्त रहो। ऐसे ही बच्चे बड़े होते गए और समय बीतता गया। सबसे बड़ा बेटा आलोक ने इंटर कर लिया ।

           अब किसी कालेज में दाखिले की तैयारी थी।आलोक के सभी साथी दोस्त कुछ कांपटीशन की तैयारी में लगना चाह रहे थे तो किसी ने डोनेशन देकर कहीं एडमिशन ले लिया तो किसी ने  बी एस सी तो किसी ने बी बी ए या कोई सिम्पल सा बीए करने चला गया।

अब आलोक को कुछ भी करने को मन नहीं कर रहा था वो समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या करूं ।इंटर तक आते-आते हर बच्चे का कुछ न कुछ लक्ष्य निर्धारित हो जाता है कि हमें क्या करना है और कुछ मां बाप भी सलाह दे देते हैं ।

लेकिन यहां तो कुछ नहीं था न आलोक का अपना कुछ लक्ष्य न ही घर से कोई सलाह मशविरा। कॉम्पटीशन की तैयारी वो करना नहीं चाह रहा था और इतना पैसा घर में था नहीं कि कहीं डोनेशन देकर एडमिशन कराया जा सके।

             फिर दिल्ली में किसी कालेज में एडमिशन ले लिया कम फीस लग रही थी कोई डोनेशन नहीं था।दो साल बाद पता चला कि उस यूनिवर्सिटी की मान्यता नहीं है।न घर वालों ने और नहीं आलोक ने कोई छान बीन की।और ये सच्चाई आलोक को पता हो गई

होगी लेकिन उसने घर में बताया नहीं।घर से फीस के और अपने रहने खाने के पैसे लेता रहा। पढ़ाई लिखाई तो वहां हो नहीं रही थी ।इसी बीच आलोक किसी लड़की के चक्कर में पड़ गया।चार साल बीत गए जब डिग्री मिलने की बात आई तो पता चला कि यूनिवर्सिटी फर्जी है।

ये बात आलोक ने स्वयं घर वालों को नहीं बताई थी आलोक के साथ पहले स्कूल में पढ़ने वाले दोस्त की जब अच्छी नौकरी लग गई तो आलोक की मम्मी ने उस लड़के से कहा कि आलोक की भी नौकरी लगवा दें तो जब डाक्यूमेंट्र मांगे गए तो पता लगा कि उसके पास कोई डिग्री नहीं है वह तो महज 12 ही पास है।

                चार साल पूरे होने पर भी आलोक घर से बराबर पैसे मांगता रहा कि नौकरी में इतने पैसे नहीं मिलते कि मेरा खर्चा पूरा हो इसलिए घर से मंगाते हैं। आलोक घर में कहता रहा कि मैं नौकरी करता हूं । मम्मी पापा ने एक बार भी न सोचा कि आखिर पता तो करें कि कैसी नौकरी कर रहा है बेटा जो खर्चे ही पूरे नहीं होते।

          आलोक के साथ स्कूल में पढ़े लिखे दोस्तों ने अच्छी पढ़ाई की और अब सब अच्छी नौकरी कर रहे हैं ।और आलोक पढ़ाई-लिखाई को दरकिनार करके लड़की के चक्कर में घूमता रहा।और उस लड़की के पीछे पड़ गया कि मुझसे शादी करो। लड़की समझदार थी उसने कहा नौकरी तुम्हारी है नहीं कोई डिग्री तुम्हारे पास है नहीं ऐसे कैसे शादी कर लूं ।

             आलोक का छोटा भाई पढ़ाई कर प्रोफेसर बन गया था और छोटी बहन फैशन डिजाइनर का कोर्स करके किसी बुटिक में नौकरी करती है । महेश जी रिटायर है चुके थे । अभी तक किराए के मकान में रह रहे थे। पता नहीं क्या था पैसे की कोई शेविंग ही नहीं थी। फिर जो थोड़ा बहुत पैसा अपने पास से लगा कर और लोन उठा कर एक फ्लैट खरीदा ।अब तक आलोक की उम्र तीस साल हो गई थी। अभी तक अंजना और महेश जी अंधेरे में थे कि आलोक कहीं नौकरी कर रहा है। लेकिन वो घर से मंगाए हुए पैसे से किसी सस्ती सी पीजी लेकर रहता था।और बीच-बीच में अपने दोस्तों से भी मदद के नाम पर पैसे मांगता रहता था ।

              अभी रिटायर मेटं के पांच साल हुए थे कि एक दिन हार्ट अटैक से महेश जी की मृत्यु हो गई।अब अंजना बहुत परेशान , फ्लैट की ई,एम ,आई जानी है बच्चों की शादी करनी है घर का सारा खर्चा है आधी पेंशन में कैसे सब होगा। बच्चे सभी बड़े हो गए थे लेकिन अभी तक किसी की शादी नहीं हुई थी।

             महेश जी के तेरहवीं के कार्यक्रम में आलोक के कुछ पुराने दोस्त भी पहुंचे थे तो वहां आलोक का छोटा भाई दोस्तों से पूछ रहा था कि आलोक भाई क्या करते हैं घर में या हम लोगों को तो कुछ पता नहीं। भइया अभी तक घर से पैसा मंगाते हैं उन्हें तो अब घर में पैसा देना चाहिए।और अगर नौकरी करते हैं तो उल्टा घर से क्यों पैसा मंगाते हैं। दोस्तों से सच्चाई जान कर छोटे भाई के होश उड़ गए।अब घर में पापा के देहांत के बाद मम्मी अकेली है तो आलोक को घर पर रहना पड़ेगा क्योंकि छोटा भाई और बहन बाहर है।

           अब महेश जी के आधी पेंशन से घर चलेगा। शादी ब्याह करना है फ्लैट की ई,एम ,आई देना है सब परेशान हैं क्या होगा। छोटे भाई की भी उम्र अब पैंतीस की हो रही है तो बड़े की तो होनी नहीं है कम से कम छोटे की ही समय से हो जाए । यदि यही बात पहले जानकार महेश जी अंजना सचेत हो जाते तो ऐसी नौबत न आती ‌। लेकिन बेटा आंख में धूल झोंकना रहा। इसमें गलती मां बाप की भी है और आलोक की भी । कोई बड़े बेटे से शादी नहीं कर रहा है।छोटे ने अब अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली।उसे पता हे कि भाई की शादी नहीं होगी कौन अपनी बेटी देगा इस बेरोजगार को।

       बच्चों इस तरह से मां बाप की आंख में धूल झोंक कर अपनी और अपने माता-पिता की जिंदगी बर्बाद न करें ।उनके भरोसे का खून न करें।ऐसी ग़लती करके अपना अमूल्य जीवन नष्ट न करें ।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

15 सितम्बर

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