ये कहानी नहीं एक सच्ची घटना है जो मैं आप लोगों के साथ साझा कर रही हूं।कहानी के माध्यम से अनिल जी का अपना व्यापार था वो तेल
,गुलाब जल और पेट्रोलियम जेली बनाते थे।उनका कारोबार बहुत अच्छा चल रहा था।दिल्ली के ख।री बावली वो जाते थे अपना सामान खरीदने वही पास की मार्केट में से ही वो केमिकल्स खरीदते।अनिल जी का यह पुनर्जन्म कहिए कि वो मौत के मुंह से वापिस आए थे 2 हार्ट अटैक झेल कर।
फिर अपने मित्र की सलाह पर उन्होंने यह कार्य शुरू किया और ईश्वर की कृपा और उनकी मेहनत और ईमानदारी रंग लाई और उनका काम चल निकला।एक दिन वो सामान खरीदने बाजार गए थे वहां किसी ने उनकी जेब काट ली वो दुकान पर पैसे देने लगे तो पर्स गायब तभी
एक 17 साल का लड़का वहां आया और बोला अंकल जी यह लीजिए आपका पर्स वो लड़का इसे चुरा कर ले जा रहा था। अनिल जीना उसे लड़के को कुछ पैसे देने की कोशिश की उसने कहा मुझे कुछ काम दे दीजिए मैं ईमानदारी से काम करूंगा।
अनिल जी को उसकी इमानदारी दिक्कत यकीन हुआ और उन्होंने उसे क।म पर रख लिया। लड़के का नाम था टिंकू टिंकू बहुत मेहनत और ईमानदारी से काम करता घर पर भी आंटी और अनिल जी की दो बेटियां थी
उनको अपनी अपनी बहनों की तरह ही समझता। अनिल जी का परिवार भी उसे घर के सदस्य की तरह ही मानता। उनकी पत्नी पूजा घर में जो बनता वह टिंकू को देती अगर सब देसी ही का खाना खा रहे है तो टिंकू को भी वही खाना मिलता ऐसा नहीं था की उसके साथ फर्क किया जाता। 2 महीने बाद टिकू अपने गांव गया ।
उसकी सैलरी के अलावा उसे खर्च करने के लिए कुछ रुपए कपड़े उसके माता-पिता और भाई बहन के लिए मिठाई और कपड़े भेजें। टिंकू भी अनिल जी के परिवार को अपना परिवार समझता था।अनिल जी ने उसे सारा काम सिखाया उसे वो दुकानें बताई जहां से वो सामान लेते थे।
सारे प्रोडक्ट बनाने सिखाए अब अनिल जी के सब क्लाइंट भी टिंकू को जानते थे और कई बार उसे बहकाने की कोशिश भी करते पर टिंकू। सबको कहता वो मेरे पिता समान है मैं उन्हें धोखा नहीं दे सकता।साल बीत गए अब टिंकू इस काम में माहिर हो गया था।
उसने अपने भाइयों को भी गांव से बुला लिया।उसके भाई उसे कहते जब तुझे सब पता है तो तू नौकरी छोड़ खुद का काम कर पहले टिंकू मना करता
फिर उसने धीरे धीरे हेरा फेरी करनी शुरू कर दी।मॉल लेने जाता तो घटिया क्वालिटी ले आता जिससे कंप्लेंट्स आने लगी ।जो पैसा वहां से बचता उससे वो सामान खरीद कर खुद बना कर बेचने लगा।
मार्केट में अनिल जी की इमेज खराब हो रही थी।उनके ऑर्डर या तो वापिस आ रहे थे या फिर नए ऑर्डर मिल ही नहीं रहे थे।उनका कारोबार डूब रहा था वो एक दिन खुद मार्केट पोहचे और सप्लायर से बोले तुम 40 हजार ले कर इतना गंदा मॉल दे रहे
हो वो बोला भाईजी आप का लड़का 8000 का मॉल ले कर जाता हैं और फिर दूसरी जगह से खरीद कर कुछ और ही जुगाड कर रहा है मैने उसे कहा भी था कि भाईजी इतना गंदा मॉल नहीं लेते तो उसके साथ जो लड़का था वो बोला तेरे भाईजी को कुछ नहीं पता तू वही कर जो हम कह रहे है।
उस दिन मार्केट में अनिल जी को पता चला कि टिंकू ने उनकी आंखों में धूल झोंककर अपना काम शुरू कर लिया है जो क्लाइंट उनके थे वो आज टिंकू के थे अब टिंकू कम आता था हमेशा कुछ बहाना बनाता ।
अनिल जी पर सप्लायर्स का भी पैसा बकाया हो रहा था। उन्होंने टिंकू से दो टूक बात करने की सोची उन्होंने पहले ये बात अपनी पत्नी पूजा को बताई ।पूजा जी भी शॉक में थी वो ये सोच रहे थे क्या हमने विश्वास करके गलती की।अनिल जी जहां टिंकू रहता था
वहां गए ।वहां वो रहता ही नहीं था उसने दूसरी जगह घर ले लिया था। वहां 2 मंजिल घर था ऊपर वो रहता था और नीचे कारखाना शायद किसी का ऑर्डर लोड हो रहा था।टिंकू आगे आया बोला बाउजी आप अनिल जी बोले मुझे बाउजी मत बोल बेटा मैने तुझे इतना सिखाया
बेटे की तरह लाड दिया और तूने हमारी ही पीठ में खंजर घोंपा।तू कहता काम करना है मैं खुद तुझे करवा के देता तुमने तो बाजार से मेरी इमेज ही साफ करदी मेरा चलता काम छीन लिया मेरे बच्चों का निवाला छिन लिया।टिंकू चुप खड़ा था उसका भाई आया ऐ बूढ़े चल यहां से बड़ा आया ।
टिंकू चुप चाप खड़ा था।अनिल जी बोले मै तो जा रहा हूं पर याद रखना विश्वास बहुत बड़ी चीज है तो तूने आज खोया है वो शायद कभी नहीं पा सके।अनिल जी ने अपने जानकारों से बात कर थोड़ा गुजर बसर लायक काम जमा लिया
उधर लालच में अंधा हो कर टिंकू मिलावट करने लगा और एक दिन मॉल ले जाते हुए ऑटो पलट गया मॉल बर्बाद हो गया और टिंकू को चोट आई 3 महीने बिस्तर पर था अब वो फिर से हम।ली करने लगा।बाजार में एक दिन अनिलजी को दिखा तो उनके पैर पकड़ लिए
बोला मुझे माफ करदो मैने गलत किया।अनिल जी बोले तूने गलत नहीं धोखा दिया जिसकी कोई माफी नहीं क्योंकि अब मैं कभी किसी पर यकीन नहीं कर पाऊंगा।
अनिल जी चले गए और टिंकू सोच रहा था मेरे लालच ने बाप तुल्य आदमी को खो दिया जिसने मुझे सहारा दिया मैने उसका ही सहारा छीन लिया पर अब पछताने का क्या फायदा सब खत्म हो चुका था।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी