बनावटी रिश्ता – करुणा मलिक

नहीं भाई साहब, मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूँ । अंशी हमारे भाई की निशानी है………

तुम्हें तो बिल्कुल भी अक्ल नहीं है राकेश । पहली बात तो ये है कि दिनेश ने शादी मनमर्ज़ी से की थी , ना लड़की की जात का पता था ना उसके माता-पिता का ठौर ठिकाना। हमें क्या जरूरत है अपने सर पर एक आफत लेने की?

पर जिस दिन दिनेश की कंपनी से उसकी मौत का समाचार आया उस दिन तो आपने रो-रोकर पूरा मोहल्ला सर पर उठा लिया था और दिनेश की बेटी के लिए आपके मन में स्नेह उमड़ रहा था, बहुत जल्दी प्रेम खत्म हो गया । अंशी के माता-पिता के बाद परिवार के लोग ही तो बच्चे की देखभाल करेंगे ना …… पूरी संपत्ति को दो हिस्सों में बाँटकर दिनेश का हिस्सा हड़प जाना अपने मरे हुए भाई का निरादर करना है और वो भी एक मासूम  और अनाथ कन्या का हक मारना……… छि: छि: ………… कैसे दिनेश को मुँह दिखाएँगे  आखिर एक दिन हमें भी वहीं उसके पास जाना है।

अपने बड़े भाई महेश को इतना कहकर राकेश घर से बाहर चला गया। वह जानता था कि  जब तक भाई साहब अपनी बात नहीं मनवा लेते तब तक कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे इसलिए राकेश ने घर से बाहर निकलना ही ठीक समझा  ।

घर से निकल कर राकेश एक पार्क में चला गया। वहाँ बेंच पर बैठकर  राकेश को अपने छोटे भाई दिनेश और उमा का ख्याल आ गया। जब दिनेश की  आसाम के चाय बागान में प्रबंधक के तौर पर नियुक्ति हुई थी तो सब बहुत खुश हुए थे कि चलो इस बहाने भारत के पूर्वी हिस्से को देखने का मौक़ा मिलेगा। गर्मियों की छुट्टियाँ हुई और बच्चों ने चाचा के पास जाने की जिद पकड़ ली थी । बच्चों के साथ महेश जी की पत्नी विमला को भेज दिया गया है क्योंकि पाँच बच्चों यानि तीन बड़े भाई साहब के और दो राकेश के बच्चों के खाने पीने और ख्याल रखने की भी जिम्मेदारी थी। राकेश को याद आ रहा था कि उनकी पत्नी नीता भी घूमने जाना चाहती थी पर घर की दोनों स्त्रियों को भेजकर यहाँ मुश्किल हो जाती इसलिए तय किया गया था कि विमला भाभी इस साल जाएँगी और अगली बार नीता घूम आएगी । 

दिनेश को आसाम में रहते हुए दो साल बीत चुके थे। माता-पिता का देहांत हो चुका था। दोनों बड़े भाइयों के कंधों पर दिनेश के विवाह की जिम्मेदारी थी और अब उसके लिए काफी अच्छे रिश्ते आ रहे थे। महेश जी और राकेश सोच रहे थे कि इस बार दीपावली की छुट्टी में दिनेश के आने पर रिश्ता तय करके ही भेजेंगे। लेकिन दशहरे से एक दिन पहले ही दिनेश का मैसेज मिला —

भाई साहब! मैं आपकी बहू उमा के साथ कल घर पहुँच रहा हूँ, आपके मन की सारी दुविधा मिलने पर दूर करुँगा । 

भाई साहब ने उस दिन बड़ा शोर मचाया —

कह दिया कि बहू लेकर आ रहा है। जब विवाह के लिए हमारी इजाजत नहीं ली तो अब क्यों आ रहा है? अगर बाबूजी होते ना ,तो संबंध समाप्त कर देते……… बोल राकेश! क्या ऐसे लड़के को पुरखों की जमीन जायदाद से अलग नहीं कर देना चाहिए?

आप किस जमाने की बात कर रहे हैं भाईसाहब ? 

 आजकल लड़के और लड़की की सहमति के बिना कौन से माँ- बाप  उनकी शादी करते हैं। आप शायद भूल गए हैं कि जब आज से इतने साल पहले भाभी का रिश्ता आया था तो माँ ने आपकी मर्जी पूछी थी। 

अगले दिन दिनेश और उमा के आने पर भाई साहब ने मुँह बनाया हुआ था, भाभी नई बहू से द्वार- रस्म की अदायगी के समय बाहर नहीं निकली पर जब दिनेश और उमा उनके कमरे में साथ लाए मँहगे उपहार देने गए तो उपहार हाथ में पकड़ते केवल इतना बोले थे—-

शादी से पहले बता देता तो धूमधाम से विवाह करते तुम दोनों का, दिल में अरमान रह गए।

हाँलाकि राकेश और दिनेश दोनों भाई जानते थे कि भाई साहब के हाथों से एक पैसा तक नहीं छूटता , विवाह की धूमधाम तो कोसों दूर की बात थी। दिनेश देख चुका था कि राकेश की शादी में कैसे भाई साहब ने नीता भाभी के घरवालों से पैसा ऐंठा था और राकेश को भनक तक नहीं लगने दी थी। वो तो शादी के बाद सारी बातें खुली । नीता भाभी बेहद समझदार निकली , कोई और होती तो शायद राकेश को सारी उम्र सिर ना उठाने देती ।

पता ही नहीं चला कि कैसे दिनेश के विवाह को सात साल बीत गए। अंशी छह साल की हो चुकी थी।  उन दिनों आसाम में सांप्रदायिक तनाव बढ़ते जा रहे थे। राकेश कई बार दिनेश को वहाँ की नौकरी छोड़ने को कह चुका था पर दिनेश जानता था कि बड़ी भाभी तो नीता भाभी जैसी समझदार और पढ़ी लिखी लड़की को भी घुमा देती हैं तो उमा जैसी सरल और साधारण सी लड़की को कभी बहू का सम्मान नहीं देंगी इसलिए वह नई नौकरी हाथ में लेकर ही वहाँ जाना चाहता था। चाय बागान के कर्मचारियों को प्रबंधक के रूप में दिनेश का वहाँ रहना खटकने लगा था लेकिन उमा के कारण वे प्रत्यक्ष रूप से विरोध नहीं कर पा रहे थे। एक शाम अंशी उमा की सहेली की बेटी की जन्मदिन पार्टी में गई थी और दिनेश तथा उमा को विरोधियों ने अपना निशाना बना लिया। उनके धू-धू करते घर को बचाने के लिए जब तक आग बुझाने की गाड़ी आई तब तक तो सब कुछ राख हो चुका था। जब घर पर यह सूचना मिली तो कोहराम मच गया था।  राकेश ने लाख कहा कि वह और नीता वहाँ जाकर अंशी को ले आते हैं पर भाई साहब को लगा था कि कहीं राकेश ही ना सारे पैसे हड़प ले । 

तीसरे दिन वे खाली हाथ और उतरे चेहरे के साथ लौटे तो उन्होंने बताया —

एक धेला नहीं मिलेगा बागान वालों से…………कोई बीमा- वीमा कुछ नहीं। उसने तो सब खाकर उड़ा दिया…………

भाई साहब! दिनेश की बच्ची कहाँ है? आप तो उसे लेने गए थे ना …………

बस यहीं से कहासुनी शुरू हो गई थी। एक गहरी सांस लेकर राकेश पार्क की बैंच से  उठकर  अपने घर पहुँचा। तब तक भाई साहब भी वहाँ से जा चुके थे। राकेश बरामदे में बैठकर भाई का इंतजार करने लगा क्योंकि उसने सोच लिया था कि अब क्या करना है। वह अपनी पत्नी नीता को अच्छी तरह जानता था कि थोड़ी सी ना-नुकर के बाद वह हमेशा सही फैसला करेगी।

कुछ देर बाद भाई साहब की आवाज कानों में पड़ी —-

ये राकेश कहाँ है, इतना बड़ा हो गया पर दुनियादारी की समझ नहीं है………

 भाई साहब, छोड़ो सारी बातें……………… अंशी इस घर की बेटी है, हमारे दिनेश की निशानी है और मेरे जीते-जी उसका हक उससे कोई नहीं छीन सकता।

वाह बेटा! तू कब से रिश्तों की गहराई समझने लगा ?

मैंने तो हमेशा रिश्तों की गहराई समझी है भाई साहब, मैं #बनावटी रिश्तों में यकीन नहीं रखता। जब दिनेश की कंपनी वालों ने कागज़ी औपचारिकता पूरी करने के लिए बुलाया तो आपको लगा कि रुपए पैसे मिलेंगे और आप अनाथ अंशी के लिए ऐसे तड़पे कि आप उसके ताऊ नहीं, पिता बनकर पालेंगे पर अब , जब आपको यह पता चल गया कि दिनेश की कंपनी कोई खास मोटी रकम नहीं दे रही है तो आप उसकी बेटी को यहाँ लाने से मना कर रहे हैं।

इतना ही रिश्ते निभाने वाला है तो पाल ले ना , उस अनाथ लड़की को अपने बलबूते पर …………

ठीक है पाल लूँगा , मेरा और दिनेश का हिस्सा अलग कर दें, या दिनेश भी इस घर का लड़का नहीं था?

इतना सुनते ही विमला भाभी चौकन्नी होकर नीता की तरफ देखकर बोली —

तेरे जेठ के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है……… छोटे भाई का दुःख ही ऐसा होता है। तुम दोनों जाकर बच्ची को ले आओ , अंशी हमारी बेटी है मिलकर पाल-पोस लेंगे ।

राकेश समझ गया कि भाभी के ये शब्द नीता के वकील भाई की बदौलत निकले हैं। खैर……… जो भी हो। अगले दिन राकेश और नीता अंशी को लाने निकल पड़े। उमा की सहेली के सामने भाई साहब की मनोदशा की झूठी कहानी पेश करके स्थिति संभाली और दिनेश के मिले पचास हजार का चेक लेकर घर वापस लौट आए।

दो- तीन महीनों में अंशी घर में पूरी तरह से घुल-मिल गई और बड़े भाई – बहनों की चहेती बन गई। पता नहीं कैसे , वह नीता को माँ कहने लगी। बड़े भाई साहब और भाभी का व्यवहार उसके साथ हमेशा पक्षपात वाला रहा । जब भाई साहब की दोनों बड़ी बेटियों की शादी हो गई तो उन्होंने अलग हिस्से की माँग करनी शुरू कर दी । अंशी बारहवीं कक्षा में थी । राकेश और नीता नहीं चाहते थे कि उम्र के इस नाजुक पड़ाव पर अंशी को जरा सा भी अहसास हो कि उसके हिस्से को लेकर घर में किसी तरह की कलह है या राकेश की भी उसकी जायदाद पर नज़र है । राकेश ने नीता को समझाते हुए कहा —

सोच लो कि भगवान ने हमें दो बेटियाँ दी हैं, आज के बाद इस बात का भी जिक्र मत करना ।

दोनों भाई शांति के साथ अलग हो गए। अचानक बोर्ड की परीक्षा के बाद अंशी ने नीता को कहना शुरू कर दिया —

माँ , मैं एल०एल०बी० करना चाहती हूँ ।

पर बेटा , तुम तो इंटीरियर डेकोरेशन में करियर बनाना चाहती थी।

नहीं माँ , अब मैं वकालत पढ़ना चाहती हूँ, देखना मैं जज  बनूँगी और लोगों को न्याय दिलवाया करूँगी ।

उस समय राकेश और नीता को यही लगा कि शायद दोस्तों के प्रभाव के कारण अंशी ने यह  रास्ता चुना है और यह क्षणिक है पर जब उन्होंने देखा कि परीक्षा के बाद वह भाई- बहन के साथ इसी विषय पर बात करती रहती है, फोन पर इसी से संबंधित वीडियो देखती रहती है तो वे समझ गए कि अंशी इस निर्णय के लिए गंभीर है। 

और उसे अपने ही शहर के अच्छे लाॅ कालिज में एडमिशन भी मिल गया । वह दिन-रात पढ़ाई के अलावा कुछ सोचती ही नहीं थी । राकेश,नीता और उनके बच्चों को कई बार उसकी फ़िक्र हो जाती थी। लाॅ के दूसरे वर्ष में ही उसने ज्यूडिशियल परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी थी। उसकी लगन  को देखकर राकेश ने कई बार कोचिंग क्लास लेने के लिए कहा पर उसने इंकार कर दिया था, हाँ……… वह नीता के वकील भाई के मार्गदर्शन में तैयारी कर रही थी। धीरे – धीरे समय बीता और वह दिन आ पहुँचा जिसका इंतजार सबको था , आज एक जज के रूप में अंशी आसाम के सोनितपुर में ज्वाइन करने वाली थी । 

अंशी एक दिन पहले ही राकेश,नीता और अपने वकील मामा के साथ वहाँ पहुँच गई थी । कुर्सी पर बैठने से पहले उसने बड़ों का आशीर्वाद लिया। आज अंशी को नए स्थान पर छोड़ते समय नीता को याद आ रहा था वो समय , जब सालों पहले वह अंशी को आसाम से ही लेकर गई थी। 

राकेश और नीता वापस लौट आए । खाली घर काटने को दौड रहा था , तीनों बच्चे अपनी राह निकल चुके थे। उसी दिन शाम को महेश भाई साहब बौखलाए हुए भाभी के साथ आए और बोले—-

इतने सालों बाद ये क्या नौटंकी लगवाई है उस लड़की से?

लड़की से ……… किस लड़की से और क्या नौटंकी?

 जानबूझकर, अनजान मत बनो । जिला कलेक्टर की तरफ से एक आदमी आया था और तहकीकात कर रहा था , दिनेश की , उसकी छोकरी की ………… क्या साजिश रच रहे हो? 

राकेश की समझ में कुछ नहीं आया और उसने नीता को अंशी के पास फोन मिलाने को कहा । सारी बात सुनकर अंशी ने वीडियो काॅल पर कहा —

मि० महेश, मैं सोनितपुर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट अंशी बात कर रही हूँ , मेरे संज्ञान में कई  सालों से यह बात है कि आपने अपने छोटे भाई दिनेश का हिस्सा उसकी बेटी को नहीं दिया। मेरे ही कहने पर मेरे सीनियर मित्र ने तहकीकात करवाई है, आपको जो कहना है, अदालत में कहना , मेरे माता-पिता पर किसी प्रकार का दबाव बनाने का प्रयास करेंगे तो दूसरी धाराएँ भी लगा दी जाएँगी । मेरे माता-पिता के दिए संस्कार है वरना धोखाधड़ी के इल्ज़ाम में जेल में बैठे होते ।

इतना सुनना था कि दोनों पति-पत्नी के चेहरे पीले पड़ गए । राकेश ने फोन रखते हुए भाई साहब की तरफ देखा।

अंशी बिटिया, कलक्टर बन गई और हमें कानों कान खबर तक नहीं होने दी , आखिरकार बड़े ताऊ- ताई तो हम हैं। रही हिस्से की बात…………

आज के बाद हिस्से की बात मत करना भाई साहब , वरना मैं अंशी को नहीं रोकूँगा । हाँ, इतना वादा करता हूँ कि आगे से इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं होगी। 

आज राकेश और नीता की समझ में आया कि अंशी ने क्यों अचानक अपना रास्ता बदल दिया था।

लेखिका : करुणा मलिक

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