यह तो हमारे गांव का नौकर हैं !!-स्वाती जैंन

अरे वाह !! पापा जी फाईनली कल गाँव जा रहे हैं यह सोचकर आरती को आज सुकुन की नींद आ गई और दूसरे दिन आरती सुबह जल्दी उठ गई , सबसे पहले उसने फटाफट टिंडे की सब्जी और पराठे बना दिए ताकि ससुर जी को गांव जाते समय पैक करके दे पाए !! आज उसके सिर की आफत दिनदयाल जी गांव जा रहे थे !! जल्दी से वह अपने कमरे में गई और पति मुकेश को उठाकर बोली – अभी तक सो रहे हो ?? आज पापाजी गांव जानेवाले हैं , उन्हें छोड़ने भी तो जाना हैं तुम्हें !

मुकेश ने नींद से उठकर घड़ी की ओर देखा और बोला आरती अभी तो सिर्फ सात बजे हैं , पापा की बस तो ग्यारह बजे की हैं !

आरती बोली – तुम और पापजी उठोगे , नहाओगे – धोओगे , नाश्ता करोगे फिर निकलोगे , तब तक ग्यारह बजने आ ही जाएंगे ना और सुनो पापाजी को अपनी कार में बस – स्टॉप छोड़ने जाना और जब तक बस स्टार्ट ना हो जाए वहीं रुकना !!

मुकेश सोचने लगा कितनी फिक्र करती हैं आरती पापा की जबकि सच्चाई तो यह थी कि आरती को पापाजी के जाने का इंतजार कब से था , वह नहीं चाहती थी कि अब एक दिन भी दिनदयाल जी ओर रुके !!

दिनदयाल जी लगभग तीन दिनों से गांव जाने के लिए बोल रहे थे पर कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता कि वे अटक जाते इसलिए आरती अब तो चाहती ही नहीं थी कि वह एक दिन भी ओर रुके !! दिनदयाल जी मुकेश के पिताजी थे इसलिए आरती उन्हें थोड़े दिनों के लिए झेल लेती थी !! थोड़ी देर में दिनदयाल जी भी उठ गए , थोड़ी देर में आरती ने चाय नाश्ता उनके सामने लाकर रख दिया !!

दिनदयाल जी भी सोचते थे कि आरती उनका बहुत ध्यान रखती हैं !!

दिनदयाल जी थोड़ी देर बाद गांव जाने के लिए तैयार हो गए , मुकेश ने भी अपनी कार निकाल ली !! आरती ने दिनदयाल जी के पाँव छुए तो दिनदयाल जी ने आरती को शगुन के कुछ रुपए दिए , आरती ने तुरंत रुपए अपनी मुट्ठी में दबा दिए और बालकनी से झांककर कार को तब तक देखने लगी जब तक कि कार उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गई !!

 आरती ड़र भी रही थी कि कहीं मुकेश उन्हें गांव जाने से रोक ना ले पर अच्छा हुआ कि ऐसा कुछ नहीं हुआ और शाम तक उसके ससुर जी गांव पहुंच भी गए थे !! अब जाकर उसने राहत की सांस ली थी , उसे लग रहा था चलो अच्छा हुआ अब एक महिने के लिए शांती , वैसे भी उसके ससुर हर एक महीने में गांव से शहर आते थे जो कि आरती को बिल्कुल पसंद नहीं था मगर पति के पिता को मना कैसे करे यही सोचकर मन में गुस्सा दबाकर रह जाती !!

आरती अपने पति मुकेश के साथ एक बड़े से टॉवर में बड़े से फ्लैट में आधुनिक सुख सुविधाओं के साथ रहती थी !! उसके सास – ससुर गांव में रहते थे !! गांव में उनका बहुत बड़ा खेती- बाड़ी का काम था !! जब भी गांव में अच्छी फसल होती , आरती के ससुर दिनदयाल जी गांव से अपने बेटे बहू के लिए ताजे फल और सब्जियां लेकर शहर आते !!

वे जब भी शहर आते मुकेश की मां भी अपने हाथों से बने स्वादिष्ट पकवान साथ में भेज देती थी और कभी कभी तो तीज त्योहारो पर मुकेश की मां भी उसके बाबुजी के साथ चली आती थी लेकिन आरती को मुकेश के माँ बाबुजी का गांव से आना बिल्कुल पसंद नहीं था क्योंकि उनका रहन- सहन थोड़ा देहाती था !! उनकी सोच भी थोड़ी पिछड़ी हुई थी , मार्डन जमाने की आरती अपने सामने उनको कुछ समझती ही नहीं थी क्योंकि उनका पहनावा भी बहुत सीदा – सादा था और वे लोग बातें भी पुराने जमाने वाली करते थे !!

वह लोग यहां शहर आते थे तब तक आरती उन लोगो को झेल लेती थी बस मगर उसने सोसायटी में अपनी सहेलियों में या मुकेश के ऑफिस के कुलिग्स में कभी जाहिर नहीं होने दिया था कि वे उसके सास – ससुर हैं !!

एक रोज आरती अपने घर अपनी सहेलियों के साथ किट्टी पार्टी में व्यस्त थी , उसकी सभी सहेलियां खाना- पीना और डांस इंजाय कर रही थी तभी डोरबेल की घंटी बजी मगर घर में म्यूजिक इतना तेज होने के कारण आरती को डोरबेल की आवाज सुनाई नहीं दी !! तभी आरती की सहेली दिव्या बोली – आरती शायद दरवाजे पर कोई हैं !! आरती ने जैसे ही दरवाजा खोला – सामने

दिनदयाल जी पसीने से लथपथ हाथ में बहुत सारे थैले लिए खड़े थे !!

दिनदयाल जी को देखते ही 

आरती के चेहरे का रंग उड़ गया , उसकी हाई क्लास सोसायटी की सहेलियों के सामने आज उसके इज्जत का कचरा होने वाला था , वह सोचने लगी जब सभी को पता चलेगा कि यह गंदा बदबूदार इंसान मेरा ससुर हैं तो सभी लोग मेरा कितना मजाक उड़ाएंगी  मगर अब वह कर क्या सकती थी मुसीबत उसके दरवाजे पर आकर खड़ी थी !! वह सोच रही थी अब सभी के सामने इन्हें अंदर तो बुलाना ही पड़ेगा !! आरती सोच में डुबी ही थी कि उसके ससुर जी बोले – अरे बहू , रास्ता छोड़ो , कब से हाथ में इतने सारे थैले लिए खड़ा हुं !!

दिनदयाल जी अंदर आ गए उतने में आरती की सहेली दिव्या उसके पास आकर बोली – आरती , यह तुम्हारे ससुर जी हैं क्या ?? तुम्हें बहू कहकर बुला रहे हैं !!

 आरती सकपका गई और बोली – अरे नहीं-नहीं यह तो हमारे गांव का नौकर हैं !! दिनदयाल जी बड़े प्यार से गांव से रसीले आम , ताजे फल सब्जियां लाए थे !! बहू ने उसकी सहेलियों के सामने उन्हें नौकर कहकर बुलाया था जिससे उनके आत्म सम्मान को गहरी ठेस पहुंची थी और उनकी आंखों में आंसू आ गए !! तभी अचानक से मुकेश वहां पहुँच गया और उसने अपनी पत्नी के यह शब्द सुन लिए , मुकेश आरती को एक जोरदार तमाचा लगाते हुए बोला – मेरे बाबुजी तुम्हें नौकर दिखाई देते हैं क्या ?? अरे नालायक औरत मेरे बाबुजी तो हम लोगों से इतना ज्यादा प्यार करते हैं तभी तो नई फसल आते ही ताजे फल- सब्जियां देने यहां शहर चले आते हैं !!

तुम जिन्हें गंवार कह रही हो उनकी वजह से ही तुम हर महिने ताजे फल- सब्जियां खा पाती हो !!

यह जो तुम्हारी सहेलियां चटकारे लेकर सब्जी खा रही हैं वह बाबुजी के द्वारा ही लाई गई हैं समझी तो यह क्या तुम्हारे नौकर हैं ?? आज तुम मेरी नजरो से गिर गई हो , तुम्हें मेरी पत्नी कहने में मुझे शर्म आ रही हैं !!

आरती तो मुकेश की मार खाकर मारे डर के थर- थर 

काँप रही थी , उससे तो कुछ बोलते भी नहीं बन रहा था !!

उसकी सहेलियां भी उसे अजीब सी नजरों से देख रही थी !!

 तभी उनमें से एक सहेली बोली आरती छीः!! हमें तुमसे यह उम्मीद नहीं थी , तुमने अपने ससुर जी को नौकर कहा , मुझे तो तुम्हें अपनी सहेली कहने में भी शर्म आ रही हैं !! मुझे तो यहां रुकने का भी मन नहीं कर रहा बोलकर वह उठ कर वहां से चली गई !! उसके पीछे- पीछे बाकि की सहेलियां भी उठकर वहां से चली गई !! आरती इतने बड़े अपमान से शर्मिंदा हो उठी !! उसकी पक्की सहेली दिव्या अभी भी वहां बैठी हुई थी वह बोली आरती अगर तुमने सच्चाई बता दी होती कि यह तुम्हारे ससुर जी है तो भला किसको क्या दिक्कत थी ?? अरे भाई , सबका अपना अलग अलग रहन – सहन होता हैं उसमें शर्म कैसी ?? तुम्हारे पति के माता – पिता गांव में रहते हैं तो उनका रहन – सहन ऐसा ही होगा ना , बच्चे शहर आते है तो मॉर्डन बन जाते हैं , उनकी अपनी एक अलग सी जिंदगी बन जाती हैं इसका मतलब यह तो नहीं ना कि माता – पिता को नौकर कह दिया जाए या उन्हें अपनी जिंदगी से बाहर निकाल कर फेंक दिया जाए !! बच्चे कितने भी मॉर्डन बन जाए मगर उनके माता – पिता उनके लिए हमेशा पुजनीय रहते हैं !! तुम्हारी आज की इस हरकत की वजह से अब तो शायद मैं भी तुम्हें अपनी दोस्त ना बुला पाऊं और आखिरकार वह भी अपना पर्स उठाकर वहां से चली गई !! दिनदयाल जी एक कोने में किसी अपराधी की तरह खड़े थे , उन्हें बहुत तेज रोना आ रहा था मगर वह बेटे- बहू के सामने जोर से रो भी नहीं पा रहे थे !! मुकेश फिर आरती से झल्लाकर बोला – तुमने मेरे पिताजी को नौकर बोलने की हिम्मत कैसे की ?? मेरे पिताजी अगर नौकर हैं तो तुमने नौकर के बेटे से शादी क्यों की ?? जो लड़की मेरे पिताजी का सम्मान नहीं कर सकती , मुझे ऐसी पत्नी नहीं चाहिए , जाओ निकल जाओ मेरी जिंदगी से …..

आरती तो बिना मुकेश के कभी जीने का सोच भी नहीं सकती थी !! वह जाकर अपने ससुर जी के पैरो में गिर पड़ी और बोली – बाबुजी , अब आप ही इन्हें समझा सकते हैं !!

मुझे माफ कर दीजिए बाबुजी , मैं भी शहर की चकाचौंध भरी जिंदगी में बुजुर्गो का सम्मान करना भूल गई थी बल्कि मुझे तो यह सोचना चाहिए था कि अगर हम घर के लोग ही बुर्जुगो का सम्मान करेंगे तो भला बाहर वालों की क्या मजाल कि वे हमारे बुजुर्गो का मजाक उड़ाए लेकिन मेरा मन ही अस्थिर था बाबुजी , मुझे माफ कर दीजिए !!

बहू को रोता देख दिनदयाल जी बेटे से बोले – बहू ने बहुत बड़ी गलती की हैं बेटा मगर इसे एक मौका ओर देकर देख और मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारी गृहस्थी खराब हो !! दिनदयाल जी के बहुत समझाने पर मुकेश कहीं जाकर माना !! मुकेश का गुस्सा देखकर आरती ने तो कान ही पकड़ लिए थे कि अब वह कभी बाबुजी का अपमान नहीं करेगी और उन्हें हमेशा मान – सम्मान देगी , वह दिनदयाल जी से बोली बाबुजी , मुझे माफ कर दीजिएगा , हमें तो बस आपका आर्शीवाद चाहिए जो कि आपका हमेशा हम पर हैं मगर मेरी नादानियों की वजह से मैं समझ नहीं पाई और आज की घटना के बाद वह सोचने लगी कि अगर कोई मेरे माता पिता

का भी अपमान करे तो मैं भी कहां सहन कर पाऊंगी , तो मुकेश अपने पिताजी का अपमान कैसे सहन कर सकता था !!

दोस्तों , बहुत से लोगो के माता – पिता गांव से जुड़े होते हैं , कभी भी उनके रहन – सहन या सोच का अपमान नहीं करना चाहिए ?? आपकी क्या राय हैं ??

आपकी सहेली

स्वाती जैंन

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