आज ही सुशील की बारात घर लौटी थी।
सुशील की माँ अमली दौड़-दौड़कर सबका ध्यान रख रही थी। चाय नाश्ता चल रहा था ।पड़ोस की बिट्टो चाय बना रही थी । वह सुशील की मुंँह लगी छोटी बहन थी। पिछले साल ही उसकी शादी हुई थी। सुशील उसे अपनी शादी के लिये लेने गया था। वह शादी की सब रस्मों में छोटी बहन का रोल निभा रही थी। काम करते-करते बीच-बीच में भाई भाभी से चुहल भी कर लेती थी।अमली का वह सहारा थी।
दुल्हन घूंघट से घर को निहार रही थी।
खाने-पीने के बाद सब इधर- उधर हो गये। अमली का एक कमरा व छोटी सी रसोई थी। दुल्हा-दुल्हन भी रात भर के सफर से थक गये थे।
अमली ने बिट्टो से कहा,” बेटा तुम्हारे घर का कमरा ठीक कर दे, सुशील व बहूरानी शीला थोड़ा आराम कर लेंगे।
बहूरानी शीला बड़ी सुशील लड़की थी। ससुराल उसने आते ही सम्हाल लिया था। तीन साल में दो बच्चों की माँ बन गई थी पूरी तरह से व्यस्त हो गयी थी।
सुशील की अच्छी कमाई थी। हाईवे पर ट्रक-कार सुधारने की दुकान थी। दुकान बढ़ने से तीन चार मेकेनिक रख लिये थे। सुशील दिनभर ग्राहकों से बात करता और मोबाइल चलाता रहता। अब उसके दोस्त भी आकर दुकान में बैठ जाते । धीरे-धीरे कमाई का आधा हिस्सा जुआ-शराब में बर्बाद होने लगा।
रोज रात को नशे की हालत में सुशील लड़ाई-झगड़ा करता। कभी-कभी शीला पर हाथ भी उठा देता। रोज-रोज की कलह से शीला व परेशान हो गई थी। बच्चे भी पढ़ नहीं पा रहे थे। देर रात तक रोना-धोना चलता रहता था।
शीला को अपनी माँ की बात हमेशा याद आती,चारों भाई बहन जब वे लड़ते थे, तो माँ कहती “घर में कलह मत किया करो। ज्यादा कलह से घर बर्बाद हो जाते हैं।”
शीला मुश्किल से घर चला रही थी।
पैसे की कमी के कारण शीला ने फैसला किया। मेरा जीवन तो बर्बाद हो गया मैं अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाऊँगी। सुशील दुकान गया था, अमली रिश्ते दारी में शादी में गयी थी। तभी वह बिना कुछ कहे बच्चों के साथ अपनी सहेली रीना के घर दूसरे गाँव पहुँच गयी। शीला मायके नहीं गई , क्योंकि वहाँ सुशील आ सकता था। रीना शीला को अचानक देख घबराई। शीला ने अपनी आप बीती सुनाई। सारी बातें सुनकर सहेली रीना बोली,” घबरा मत तू मेरे सर्वेंट रुम में जो मेरे घर के पीछे हैं वहांँ रह लेना । हमारी बिजली का सामान बनाने की फेक्ट्री है ,वहांँ काम कर लेना ,उससे तेरा खर्चा भी चल जायेगा।”
शीला फेक्ट्री में काम करने लगी थी। जीवन जैसे-तैसे चलने लगा था। उसके अच्छे काम के कारण उसका वेतन भी बढ़ गया था। एक दिन फेक्ट्री से लौटते समय उसे बिट्टो रास्ते में मिली। वह भाभी शीला को देख खुश हो गई। उसके गले लग गई। बिट्टो ने बताया वह साल भर पहले ही इस शहर में आयी है।उसके पति का ट्रांसफर हो गया है।फिर बिट्टो बोली,” वह मायके गई थी तो सुशील भैया से मिली थी। उन्हें लकवा लग गया है। आधा हिस्सा शून्य हो गया है। शीला सुनते ही रोने लगी अतीत के सुखद पल उसकी आँखों के सामने घूम गये।थं
शीला का दो साल से सुशील से संपर्क पूरी तरह टूट गया था। सुशील ने बहुत ढूँढा ।
*
सुशील बिस्तर पर पड़े-पड़े रोता रहता। अमली उसकी सेवा करती रहती। जो कुछ उसके पास था वह बेच कर खर्चा चला रही थी। सुशील को हमेशा कोसती रहती । शीला व बच्चों को याद करती रहती। सुशील अपना अतीत याद करता, तो उसे याद आता हमेशा शीला कहती थी,” घर में हमेशा किच-किच घर बर्बाद कर देती है।”
अमली सुबह-सुबह चाय पी रही थी शीला व बच्चों को देखा तो दौड़कर उन्हें गले लगाकर घूमते हुए रोने लगी।
सुशील दरवाजे की तरफ पीठ कर सोया था। अमली अंदर आकर बोली,” देखो सुशील कौन आया है”! सुशील शीला व बच्चों को देख एकदम फफक कर रोने लगा। शीला दौड़कर उसका हाथ थाम बैठ कर रोने लगी।गयी।बच्चे पापा-मम्मी से लिपट कर रो रहे थे। छोटी बेटी पूछ रही थी,” पापा आपको क्या हो गया? हम आपको व दादी को लेने आये हैं।”
पति पत्नी का अटूट संस्कारी गठबंधन अंगड़ाई ले रहा था। अमली उनके मिलन को देख अपने पल्लू से आँसू पोंछ रहीं थी।
सुनीता परसाई’चारु’
जबलपुर मप्र