बहु , यह कैसा बेढ़ंगा खाना बनाया हैं तुमने ?? दाल- सब्जी में तो कुछ स्वाद ही नहीं हैं , दाल में नमक कम हैं और सब्जी में मिर्च ज्यादा हैं !!मेरे बेटे सन्नी को तो मेरे हाथो का खाना बहुत स्वाद लगता हैं , तुम्हारे हाथों में वह स्वाद नहीं !! अब क्या करूं मजबुरी में पेट भरने के लिए तुम्हारे दवारा बनाया खाना खाना पड़ा विमला जी अपनी बहु चेतना से बोली !!
जब से शादी हुई थी , चेतना ने अपने आप पर बिल्कुल ध्यान देना छोड़ दिया था , वह खुद के लिए बिल्कुल समय नहीं निकाल पाती थी और हर समय अपनी सास विमला जी को खुश करने में लगी रहती थी !!
आज भी उसने विमला जी की पसंद की उड़द दाल और भिंडी की सब्जी बनाई थी , विमला जी ने खाना तो बड़े चटकारे लेकर खाया
था मगर खाना खाने के बाद उन्होंने चेतना से खाने की बुराई की जिसे सुनकर चेतना को बहुत दुःख हुआ क्योंकि वह ना दिन देखती ना रात बस हर समय काम कर करके सास को खुश करने की कोशिश करती रहती पर विमला जी खुश तो नहीं होती थी उल्टा उसके हर काम में दो- चार कमियां जरूर निकाल देती !! काम में कमियां निकालना भी अलग बात थी पर जो खाना चेतना इतनी मेहनत से बनाती थी उसमें भी कुछ ना कुछ नुक्स निकाल देती जिसकी वजह से चेतना रो पड़ती थी !!
आज फिर विमला जी का नया ताना सुनकर चेतना ने ठान लिया अब वह बिल्कुल रोएगी नहीं और विमला जी को सबक सिखाकर रहेगी !!
दूसरे दिन सुबह विमला जी जब रसोई में पहुंची तो उन्हें चेतना रसोई में कहीं दिखाई नहीं दी , उन्होंने चेतना को आवाज लगाई पर उसके कमरे में से भी कोई आवाज नही आई !!
विमला जी को अब तक सुबह की चाय नहीं मिली थी जिसके कारण उनका सिर भारी हो गया था !!
यह चेतना कहाँ चली गई सुबह- सुबह ?? बेटे को पूछती हुं सोचकर उन्होंने बेटे सन्नी को आवाज लगाई तो देखा कि सन्नी भी घर पर नहीं था फिर उन्हें यकायक याद आया कि सन्नी तो रोज सुबह टहलने जाता हैं !! उन्होंने चेतना के मोबाईल पर फोन लगाया तो देखा कि मोबाईल भी घर पर ही छोड़ गई हैं चेतना !! उन्हें चेतना पर बहुत गुस्सा आ रहा था , वे बोली आने दो आज इसे घर , सन्नी से बोलके अच्छी खासी डाँट ना पिटवाई तो मेरा नाम भी विमला नहीं !! एक तो सुबह- सुबह पता नहीं कहां चली गई हैं और उपर से फोन भी साथ में लेकर नहीं गई , आज तो महारानी को सबक सिखाना ही पड़ेगा !!
विमला जी उठी और रसोई में जाकर बुझे मन से अपने लिए चाय बनाई !! रोज वह बहु की बनाई हुई चाय में कुछ ना कुछ नुक्स निकालती थी !! कभी कहती चायपत्ती ज्यादा हैं , कभी कहती तुमने चाय ज्यादा उबाल दी तो कभी कहती इतनी पतली चाय कौन बनाता है मगर आज उन्हें जैसी चाय बनी वैसी पीनी पड़ी !!
उतने में बेटा सन्नी घर आ गया , विमला जी बोली – बेटा , बहु ना जाने सुबह – सुबह कहां घूमने चली गई हैं ?? अपना फोन भी साथ लेकर नहीं गई हैं !! विमला जी बौखलाकर बोली – वक्त रहते उसे संभाल ले बेटा , वर्ना ऐसा ना हो कि कहीं तेरी पत्नी तेरे हाथ से निकल जाए , तु तो बहुत भोला हैं
बेटा , यह आजकल की लड़कियों के दाँव – पेंच तु नहीं जानता !!
सन्नी हंसकर बोला – मम्मी , यह क्या , आप तो कुछ भी बोले जा रही हो और चेतना ओर कहीं नहीं मेरे साथ टहलने आई हुई थी !!
विमला जी भौंहे चढ़ाकर बोली – अब उसे भला टहलने की क्या जरूरत आ पडी ??
सन्नी बोला – मुझे टहलने की जरूरत हैं , तुम्हें टहलने की जरूरत हैं तो उसे टहलने की जरूरत क्यों नहीं ?? अभी तुम भी तो टहलने जाओगी , बोलो जाओगी की नही मम्मी ?? विमला जी खामोश हो गई , तभी चेतना पीछे से पसीने से लतपथ होकर आई , पसीने से भीगी हुई चेतना के चेहरे पर एक अलग सी खुशी थी , उसे बहुत हल्का हल्का महसूस हो रहा था क्योंकि आज उसने अपने लिए कुछ किया था !!
उसे देखते ही विमला जी मुँह बनाकर बोली – आ गई महारानी टहलके ?? पता नहीं टहलने ही गई थी या कहीं ओर गई थी !!
सुबह- सुबह इतना संज- सवरकर टहलने कौन जाता हैं ??
चेतना बोली – मम्मी जी ऐसा क्यूं बोल रही हैं ?? मैंने तो सिर्फ बाल ही बनाए हैं और आपके बेटे के साथ ही तो गई थी फिर भी आप मुझ पर शक कर रही हैं !! जब पुरे दिन बाल उपर बाँधकर घर के कामों में लगी रहती हुं तब तो आपने कभी मेरी तारीफ नहीं की फिर आज इतनी शिकायत क्यों कर रही हैं ?? बोलकर चेतना अंदर हाथ- मुँह धोने चली गई !!
विमला जी सोचने लगी चलो कोई बात नहीं , आज चाय मुझे बनानी पड़ी मगर नाश्ता तो अब इससे ही बनावाऊंगी फिर विमला जी टहलने चली गई !! विमला जी जैसे ही टहलकर आई , रसोई में जाकर देखा तो चेतना ने नाश्ता नहीं बनाया था , वह धमक कर चेतना के कमरे में गई तो देखा चेतना फर्श पर योगा मेट बिछाकर योगा कर रही हैं !!
विमला जी गुस्से में बोली – पगला गई हो क्या , पहले सुबह चाय नहीं बनाई , अब नाश्ता नहीं बनाया !!
चेतना बोली- मम्मी जी मैंने अपने और सन्नी के लिए पोहा बना दिया था , आपको पोहा नहीं पसंद इसलिए आपके लिए नहीं बनाया !! आप अपना नाश्ता बना दीजिए और हां मैं भी वहां खड़ी होके दे खुंगी की आप नाश्ता कैसे बनाती हैं और फिर जब आपके जैसा नाश्ता बनाना सीख जाऊंगी तब मैं आपके लिए नाश्ता बनाया करूंगी !! विमला जी चेतना को हैरानी से देखते हुए बोली – तुम्हारे कहने का क्या मतलब हैं ?? मैं अपना नाश्ता खुद बनाऊं ??
मम्मी जी वैसे भी मेरे बनाए नाश्ते और खाने में आप कमियां ही निकालती रहती हैं , आपको मेरे हाथ का नाश्ता पसंद नहीं , आपको मेरे हाथ की दाल- सब्जी नही पसंद , मेरे बनाए पराठे नही पसंद तो अब मैं करूं क्या आप ही बताइए !! सन्नी को मेरे बनाए खाने में कभी कोई कमियां नहीं लगी इसलिए मैंने इनका और मेरा नाश्ता बना दिया , मैंने अपना फर्ज निभाया हैं हमेशा मगर आपको कभी नहीं दिखाई दिया इसलिए अब आपका नाश्ता और खाना आप खुद ही बनाईए !! वैसे भी मैं तो अनाड़ी हुं , मैंने तो कच्छा – पक्का खाना बनाना सीखा हैं , खाना तो आप ही अच्छा बनाती हैं , अब से दोपहर में हम दोनों रसोई में साथ खाना बनाएंगे तब बनेगी परफेक्ट डिश , सही बोल रही हुं ना मम्मी जी !!
यह सब सुनकर विमला जी का माथा ठनका , बहु की ऐसी बातें सुनकर उन्हें तो पसीना ही आने लग गया , वह सोचने लगी जैसे- तैसे अपने लिए समय निकालने लगी थी , बहु के आने के बाद उन्हें इतनी सहुलियत मिली थी कि रसोई में पसीने में भीगकर खाना नहीं बनाना पड़ता था और बहु के खाने में कमी निकाल निकालकर उन्होंने अपने ही हाथों अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मार दी हैं !!
विमला जी धीरे से बोली – अरे बहु , तुम अभी नया नया खाना बनाना सीखी हो इसलिए कभी कभी खाना अच्छे से नहीं बन पाता मगर धीरे धीरे सब सीख जाओगी !! मैं तुम्हारे खाने में इसलिए कमी थोड़ी निकालती हुं कि तुम गुस्सा होकर खाना बनाना ही छोड़ दो बल्कि इसलिए निकालती हुं कि तुम धीरे धीरे ओर अच्छा खाना बनाना सीखो !!
चेतना भी धीरे से बोली – मम्मी जी , मैं भी तो वही कह रही हुं कि आप मुझे टेस्टी टेस्टी खाना बनाना सिखाए ताकि मैं भी आपकी तरह स्वादिष्ट खाना बनाना सीख पाऊँ !! विमला जी तो अब बुरी तरह फंस चुकी थी , आखिरकार उन्हें भी चेतना के साथ रसोई में लगना पड़ा और सुबह – शाम दोनो समय का खाना बनाना पड़ा !! चेतना भी उनके साथ रसोई में ही थी मगर विमला जी को अब रसोई में खाना बनाने की आदत नहीं रही थी इसलिए वे खाना बनाने के बाद बहुत थक गई और सोचने लगी काश , मैंने बहु के खाने में कमियां नहीं निकाली होती !! रोज बहु चेतना खाना बनाती और विमला जी आराम से किताबे पढ़ती , मूवी देखती , आराम से पार्क में टहलने चली जाती मगर आज चेतना ने उन्हें काम पर लगाकर उन्हें थका दिया था और उन्हें भी पश्च्चाताप हो रहा था कि बहु के खाने में नुक्स निकालकर उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी हैं !!
अब तो उन्होंने कान ही पकड़ लिए थे कि कभी बहू के खाने में कमियां नहीं निकालेंगी क्योंकि बहू के हाथ का खाना वैसे उन्हें भी अच्छा ही लगता था बस बहू के बने खाने में कमियां निकालने में उन्हें मजा बहुत आता था !!
दूसरे दिन चेतना टहलकर आई तो विमला जी ने पहले ही कह दिया देखो बहू , तुम्हें जैसा नाश्ता बना ना हैं बनाओ , मैं उसमें कुछ कमियां नहीं निकालूंगी लेकिन मुझे गर्मी में रसोई में खड़े होने मत बोलना क्योंकि मुझसे गर्मी में खाना नहीं बनता और मुझे ज्यादा देर भूखे रहने की आदत नहीं ऐसे बोलकर विमला जी झट से टहलने निकल गई !! चेतना उनके जाने के बाद हंस पड़ी और सोचने लगी चलो सासू मां को एक मौका देकर ओर देखते हैं !! जब विमला जी टहलकर आई तो चेतना ने गर्मागर्म आलू के पराठे उन्हें परोसे !! विमला जी खाते ही बोली वाह बहू !! क्या परफेक्ट पराठे बनाए हैं तुमने , एक ओर डाल दो प्लेट में !! चेतना रसोई में आकर हंसने लगी और मन ही मन बोली जब घी सीधी उंगली से नहीं निकलता तो उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती हैं !! विमला जी अब कभी चेतना के बनाए खाने में कमी नहीं निकालती थी क्योंकि वे जान चुकी थी अगर वह चेतना के बनाए खाने में कमियां निकालेंगी तो चेतना उन्हें ही रसोई में आने कह देंगी !!
दोस्तों , कभी कभी घी सीधी उंगली से नहीं निकलता तब उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती हैं !!
इस कहानी को लेकर आपकी क्या राय हैं ?? कमेंट जरूर करिएगा !!
आपकी सखी
स्वाती जैंन
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