देखो साहिल,मैंने तुम्हें अलग से इसलिये बुलाया है, क्लास में तुम्हे मेरा कहा अपमान लगता।मैं समझता हूं कि तुम डिलीवर कर सकते हो,पर तुम बिल्कुल ही लापरवाह होते जा रहे हो।होम वर्क तक पूरा नही होता तुम्हारा।
नीची नजर किये साहिल इतना ही बोला, सर मैं कोशिश करूंगा।
साहिल तुम्हारा हाई स्कूल है, तुम प्रथम श्रेणी में सफल हो सकते हो,तुम में योग्यता है, पर अब न जाने तुम्हे क्या हो गया है?
हाई स्कूल के छात्र साहिल को पढ़ाई में पिछड़ते देख टीचर शिव प्रकाश जी ने उसे स्टाफ रूम में बुलाकर उक्त बातें कही थी।साहिल कैसे अपनी बीती अपने टीचर को कहता,इसी कारण बस इतना ही कह पाया,सर कोशिश करूंगा,जो वह चाहकर भी कर नही पा रहा था।डेढ़ वर्ष हुआ उसके पिता को एक दुर्घटना में जान गवाएं।अकेली माँ के साथ निराश्रित रह गया था,साहिल।बिल्कुल उस तरह जैसे नदी का एक किनारा तो आबाद रहता है और दूसरा झेलता है अकेलापन,उपेक्षा। अब यह साहिल किससे क्या कहे?मां समय से पहले ही बूढ़ी हो गयी,बीमार रहने लगी।पर कहती साहिल पढ़ाई मत छोड़ना मेरे बच्चे।यह पढ़ाई लिखाई ही तेरी पूँजी बनेगी।घर मे जो पिता छोड़ गये थे,धीरे धीरे कम होता जा रहा था।साहिल ने स्कूल से आने के बाद एक रेडी मेड कपड़ो की दुकान पर सेल्स बॉय की नौकरी कर ली।दुकान तो 8 बजे बंद हो जाती पर बाद में बिखरे सामान को दुरुस्त करने में एक घंटे से दो घंटे और लग जाते।घर आकर माँ द्वारा इस बीच बनाया खाना खा लेता पर देखता माँ इतना भर करने में ही थक जाती है।उसे सुबह कुछ ना करना पड़े तो साहिल रात में ही पूरे घर की सफाई कर डालता,सुबह के खाने की तैयारी कर देता,अपने कपड़े प्रेस करता।इस सब मे 11 बज जाते,उसके बाद वह भी निढाल हो बिस्तर पर गिर पड़ता।यह सब सर को क्या बताता,कि वह कब होम वर्क करे।पर मां की इच्छा को वो ढो रहा था।
उधर शिवप्रकाश जी के मन की व्यथा अलग थी,दो वर्ष पूर्व ही उनके बेटे तरुण का बीमारी के कारण निधन हो गया था।बेटे की मौत ने उन्हें पूर्ण रूप से तोड़ दिया था।वह तो ईश्वर की अनुकंपा से एक पुत्री थी जिससे घर खाने को नही दौड़ता था।अचानक एक दिन उस नये नये छात्र साहिल पर उनकी नजर पड़ी तो वे एकदम चौंक गये, अरे ये तरुण कहाँ से आ गया,वह तो हमे तड़फता छोड़ गया था,निर्दयी यहां छुपा बैठा है।भावनाओ के आवेग को रोक शिवप्रकाश जी यथार्थ के धरातल पर अपने को लाये।अरे तरुण अब कहाँ आयेगा, वो तो कभी का उड़ गया।उस दिन से क्लास में उनकी निगाहे हमेशा साहिल को ही ढूंढती, उसमें वे अपने तरुण की छवि को ही तलाशते।जब उन्होंने देखा कि साहिल शायद पढ़ाई में लापरवाह हो रहा है,तो उन्होंने उसे अलग बुलाकर ही चेताया।
अन्य अध्यपको के आ जाने पर शिव प्रकाश जी ने साहिल को वापस भेज दिया।अब साहिल शिव प्रकाश जी से निगाहे चुराने लगा था।उसकी समझ नही आ रहा था कि वह सर की आकांक्षा को कैसे पूरी करे।बापू तो स्वर्ग चले गये, यहां उसकी पूरी दुनिया बदल गयी।
साहिल दो दिन से स्कूल नही आ रहा था,शिव प्रकाश जी को चिंता हो रही थी,क्या बात है,जो साहिल नही आ रहा, फिर हाई स्कूल की परीक्षाएं हैं, वह कैसे करेगा।इसी चिंता में वे स्कूल के बाद साहिल के घर पहुंच गये, वहां जाकर पाया कि साहिल की मां बीमार हालत में बिस्तर पर पड़ी थी,साहिल वही बदहवास सा अपनी माँ के पास बैठा था।शिवप्रकाश जी को देख वह अवाक रह गया फिर उसकी आँखों से आँसू बह निकले।साहिल के कुछ न कहने पर भी शिव प्रकाश जी सब समझ गये।साहिल की दिन चर्या के बारे में भी उन्होंने पता कर लिया।उन्होंने निश्चय कर लिया कि साहिल के आत्मसम्मान को रखते हुए वे उसकी हर संभव सहायता करेंगे, उसका जीवन संवारेंगे।उन्हें लग रहा था,तरुण उनकी आंखों के सामने खड़ा है।उन्होंने परिचित डॉक्टर को बुलाकर उसकी माँ की जांच कराई और दवाइयां दिलाकर वापस आ गये।
शिवप्रकाश जी समझ गये थे,समय से पूर्व ही कच्ची उम्र में साहिल पर पहाड़ टूट पड़ा है, उसे नही संभाला गया तो वह भी टूट जायेगा।शिवप्रकाश जी की बेटी तब कक्षा छः में पढ़ रही थी।उन्हें एक उपाय सूझा और उन्होंने हिसाब भी लगाया कि कक्षा छः की चार बच्चियों के ट्यूशन की फीस उतनी हो सकती है जितना वेतन साहिल को दुकानदार से मिलता है।ट्यूशन पढ़ाने में एक से डेढ़ घंटा ही लगेगा इस प्रकार साहिल को अपनी पढ़ाई के लिये काफी समय मिल जायेगा।शिवप्रकाश जी ने अपनी बेटी के अतिरिक्त अपने चार अन्य परिचितों की बेटियो के ट्यूशन एक ही बैच में लगवा दिये, स्थान भी अपने घर पर दे दिया।स्कूल में अपने प्रभाव से साहिल की फीस भी माफ करवा दी।अब साहिल सामान्य अवस्था मे आ गया था,अपनी पढ़ाई में भी रुचि लेने लगा था।शिवप्रकाश जी को लगता वे सब कुछ अपने तरुण के लिये कर रहे हैं।साहिल की पढ़ाई में भी वे उसका सहयोग करते।इस सबसे उन्हें आत्मसंतुष्टि प्राप्त होती।
समय पंख लगा कर उड़ रहा था,साहिल और शिवप्रकाश जी के बीच एक मौन निस्वार्थ,सम्मान और आदर के संबंध बन गये थे।साहिल की माँ भी उसे छोड़कर चली गयी तो शिवप्रकाश जी ने साहिल को रहने के लिये अपने घर मे ऊपर छत वाला कमरा दे दिया और साहिल के घर को किराये पर उठवा दिया।
एक दिन साहिल हाथ मे मिठाई का डिब्बा लेकर आया और शिवप्रकाश जी के चरण स्पर्श करके बोला सर आपके आशीर्वाद सहयोग से आज मेरी माँ का सपना पूरा हो गया है, सर मेरा जॉब लग गया है,मुझे आशीष दीजिये सर।शिवप्रकाश जी की आंखों में आंसू भर आये, अरे साहिल तू तो मेरा तरुण है रे,क्यों सर सर कहता है, बाबूजी भी तो कह सकता है।
अवाक साहिल शिवप्रकाश जी का मुँह देखता रह गया।साहिल अब वीरान नही रह गया था।अपनत्व की छांव जो वह वर्षों से महसूस कर रहा था,वह आज हक से उसकी हो गयी थी।बाबूजी बाबूजी कहते कहते साहिल शिवप्रकाश जी से चिपट गया।शिवप्रकाश जी का मन मयूर नाच रहा था,आज उनका तरुण जो घर लौट आया था।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक व अप्रकाशित।
#अपनत्व की छांव में