आज वह खत्म हो गई ।कृष्णा ही नाम था उसका ।साँवली सलोनी ।देखने में ठीक ठाक ।एक ही बहन दो भाई ।बड़े भाई की शादी हो चुकी थी ।छोटे की शादी होनी तय हुई ।कृष्णा के माता-पिता ने शर्त रख दिया कि आप भी अपना बेटा देंगे तभी बात बन सकती है ।बात बन गई ।दोनों तरफ से बेटा बेटी की शादी एक ही घर में हो गई ।कृष्णा देखने में साधारण ठीक थी।पर पति और उसकी भाभी बहुत सुन्दर थी।दोनों भाई बहन ही थे।एक तरह से गोलठ शादी थी।थोड़े दिन तक कृष्णा के ससुराल में सब ठीक ठाक रहा ।फिर पति सोमेश अचानक रात में देर से आने लगा ।कृष्णा सवाल करती तो ठीक से जवाब नहीं देता ।उसे शक हुआ ।सासूमा से अपनी समस्या बताई तो उन्होंने भी टाल दिया “अरे नहीं बहू, काम काज का बोझ रहता है ।बेचारा परेशान रहता होगा “तुम अधिक चिंता मत करो ।सब ठीक हो जाएगा ।लेकिन कृष्णा कैसे परेशान न हो।आखिर इतनी रात को क्या करते हैं ।कभी बारह बजे तक नहीं आते।कभी दो बज जाता है ।आखिर कौन सी नौकरी है? कुछ समझ में नहीं आ रहा था।हिम्मत करके एक दिन पूछ लिया तो सोमेश का उत्तर वही गोलमोल था।”बहुत बड़ा बिजनेस है तो समय लगता है ।तुम को किसी बात की कमी नहीं दिया मैंने ।अच्छा से खाओ पिओ ।गहने कपड़े खरीदो।सखी सहेली के साथ घूमने फिरने जाओ।और क्या चाहिए? लेकिन एक औरत को क्या इतना ही चाहिए? कृष्णा उदास रहने लगी ।शादी के पांच साल बीत गए ।वह माँ नहीं बन पायी थी ।उधर सास के ताने उलाहना सुनाई पड़ने लगा ।” न जाने कब इसकी गोद भरेगी ।लगता है कि अपने पोते का मुँह देखे बिना दुनिया से चली जाउंगी ।कैसे मेरा वंश चलेगा “कृष्णा कैसे बताती कि पति का सानिध्य ही प्राप्त नहीं था तो पोता कहाँ से आता।कभी-कभी तो सोमेश अब रात रात भर नहीं आते ।आते भी तो जैसे पेट भरा होने पर तृप्त होकर आये हैं ।आकर चुप चाप सो जाते ।फिर एक दिन सास छत पर कपड़े सुखाने गई तो सीढ़ियो पर पैर फिसल जाने से गिर गई और अस्पताल जाने के क्रम में ही खत्म हो गई ।अब कृष्णा अकेली हो गई थी ।भाई भाभी ने भी कोई सरोकार नहीं रखा ।दुखी और उदास कृष्णा दिन रात आँसू बहाती रहती ।फिर किसी से पता लगा कि सोमेश ने दूसरी शादी कर ली है ।और एक बच्चे का पिता बन गया है ।पत्नि बहुत सुन्दर है ।दो किलोमीटर दूर किराये के मकान में रखा है ।हतप्रभ रह गई थी वह।पति ने लगभग छोड़ ही दिया था उसे ।एक दिन हिम्मत करके सोमेश के यहां पहुंच गयी ।सौत ने कहा कि अब सोमेश मेरा है ।अगर यहाँ रहना है तो घर के सारे काम करने होंगे ।क्या करती कृष्णा ।और कोई सहारा भी नहीं था ।अधिक पढ़ीलिखी भी नहीं थी।कि कहीं नौकरी कर ले।मन मार कर हामी भर दी ।अब कृष्णा के दिन की शुरुआत कुछ इस तरह होती ।सुबह उठकर घर की साफ-सफाई ।बर्तन धोना ।फिर सबके लिए चाय नाश्ता बनाना ।बच्चे की देखभाल भी सिर पर आ गई ।थक कर चूर हो जाती ।पर सोमेश कभी हालचाल नहीं पूछता ।सौत विभा भी चार बात सुना देती ।अपनत्व की छांव के लिए तरस गयी कृष्णा ।कोई सहानुभूति के दो बोल नहीं बोलने वाला था।वह बीमार रहने लगी थी ।बहुत कमजोर हो गई तो बड़ी भाभी को खबर किया ।बड़ी भाभी और भाई को थोड़ा बहुत सहानुभूति था उससे ।अपने पास बुला लिया ।कृष्णा बड़ी भाभी के पास रहने लगी ।साल भर के बाद एक दिन बड़े भैया को हार्ट अटेक आया और वह भी चले गए ।छोटी भाभी कोई मतलब ही नहीं रखती थी।अब कृष्णा को वहां भी कड़वाहट मिलने लगी ।भाभी ने साफ कह दिया कि अपना ही गुजारा करना मुश्किल हो गया है तो तुम अपना कहीं इन्तजाम कर लो।मै अपने बच्चों को देखूं कि तुम्हे? उसी रात कृष्णा सबके सो जाने के बाद चुपके से घर से निकल गई ।कहाँ जायेंगे ? कोई ठौर ठिकाना नहीं था? यही सोचकर बस स्टैंड के अहाते में आकर बैठ गयी ।कुछ सामान नहीं लेकर चली थी।ऐसे ही लेट गई ।तबियत ठीक नहीं लग रही थी ।बहुत तेज बुखार हो आया ।पास ही एक सहयात्री लेटा हुआ था ।उसी से पानी माँगा ।गला सुख रहा था ।उस व्यक्ति ने दया करके पानी लाकर पिलाया ।और दो घूँट पीने के बाद ही कृष्णा के प्राण पखेरू उड़ गए ।कोई देखने वाला नहीं था ।वह सहयात्री भी चला गया वहां से ।देर हुई तो मक्खी भिनभिनाती रही ।कुछ लोगों ने थाने में खबर कर दिया ।”किसी अनजान महिला की लाश पड़ी है”।पुलिस आकर शायद खाना पूर्ति कर रही थी ।तभी मुझे पता चला ।दौड़ कर गयी मै।”अरे,यह तो कृष्णा है”ऐसा कैसे हो सकता है ।मर गई वह अपनत्व की तलाश करते करते ।भरा पूरा परिवार ।पर उसके लिए कोई नहीं था।
—-उमा वर्मा ।नोयेडा ।स्वरचित ।मौलिक ।