दादीऽऽ दादीऽऽ आप कहां हैं ? छोटी बच्ची मृदुला ने स्कूल से आकर जैसे ही घर में प्रवेश किया गेट से ही पुकारना शुरू कर दिया। अरे ये दादी तो रोज घर के आँगन में ही बैठी मिलती थी।आज कहां चली गईं अरे ओ दादी छुपों मत बाहर निकल आओ प्लीज़ दादी देर मत करो। मै आपको कुछ दिखाना चाहती हूँ । अभी मृदुला परेशान अपनी दादी को खोज ही रही तभी उसके मम्मी पापा जो कहीं बाहर जाने के लिए तैयार घर से निकल रहे बोले- बेटा दादी घर में नहीं है। वो गांव चली गई हैं । कह रहीं थी अब वो कभी वापस नहीं आयेंगी। बच्ची मृदुला दादी को याद कर रोती रही बिलखती रही। काफी दिनों तक वो बच्ची माता-पिता से दादी के पास ले जाने की ज़िद करती रही। मगर माता-पिता उसको टाल मटोल कर बहलाते कभी अधिक ज़िद करने पर सख्ती भी बरतते।
धीरे धीरे समय बीतता जाता है लगभग पाँच बर्ष का अन्तराल और वो बच्ची मृदुला करीब बारह बरस की हो जाती है। घर सहायिका के संरक्षण में पलती बढ़ती मृदुला इतने बरस बीतने पर भी अपनी दादी को भूल नहीं पाती। मगर कहें तो किससे कहे अपना दुख,दर्द मम्मा- पापा तो कुछ सुनते ही नहीं दादी के विषय में । रह रह कर उनका चेहरा उसकी आँखों के सामने घूमता रहता है। कितने प्यार से दादी स्कूल से आने पर उसको पुचकारती, कहानियां सुनाती, उसके स्कूल में दिन भर क्या हुआ सभी वो सुनती ? छुट्टी के दिन उसके मालिश करना,सर पर तेल डालना मृदुला को बहुत भाता था। क्योंकि बीच- बीच में दादी का पोपले मुंह से अपने समय के किस्से कहानियां सुनाते जाना मृदुला को जमकर बैठे रहने पर मजबूर कर देता था। उसको बड़ा ही आनन्द मिलता था।
“ वास्तव में घर के बुजुर्गो से बच्चों का गहरा और भावनात्मक रिश्ता होता है। जो पारिवारिक सामाजिक और सामुदायिक स्तर पर देखा जा सकता है “।
मृदुला की दादी घर के कामकाज में कोई मदद नहीं कर सकती थी। उनको सीधे खड़े होने में तकलीफ़ थी। उनकी रीढ़ की हड्डी में कुछ समस्या थी। अक्सर मृदुला दादी का हाथ पकड़ उनको घूमाती फिराती और दादी भी उसको किस्से कहानियों का ज्ञान देतीं । एक आत्मीय रिश्ता बन गया था दादी पोती के बीच ।
मृदुला समय के साथ चल रही मगर दादी की स्मृतियां उसके मन में चलचित्र सी घूमती रहती। एक दिन स्कूल के सभी बच्चों को पिकनिक के लिए ले जाया जाता है। और सभी को वहीं पिकनिक स्थल के पास एक ‘ओल्ड एज होम’ में सभी बच्चों के साथ एक फोटो सूट करने का कार्यक्रम बनाया जाता है। जहां सभी वृद्ध जनों को आसपास खड़ा किया जाता है। और बच्चों को बीच में रखा जाता है।
तभी वहां मृदुला एक वृद्ध महिला को देखकर उससे लिपट जाती है। वृद्धा भी दौड़कर उस बच्ची को सीने से लगा लेती है। सभी फोटो ग्राफर अध्यापिकाएं बच्चे ये देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। मृदुला से हकीकत पूछी जाती है।वो बताती है ये उसकी दादी है। मृदुला दादी से पूछती है दादी आप उसको छोड़कर गाँव क्यों चली गई थी ?
दादी बताती है बेटा मैं क्यों गाँव जाऊंगी मै कोई गाँव नहीं गई तेरे मम्मी-पापा मुझे इस वृद्धा आश्रम में छोड़ गये। पाँच बरस में कभी मिलने नहीं आये । हाँ वो पैसा बराबर भेज देते हैं। जिससे मुझे सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध हैं। मृदुला दादी को साथ चलने के लिए कहती हैं। लेकिन दादी कहती हैं मेरी बच्ची, अगर तेरे मम्मी-पापा को मुझे घर में रखना ही होता तो यहां क्यों भेजते ? मृदुला दादी के साथ ढेरों बातें करती है। बताती है कैसे मम्मा पापा ने झूठ बोला। दादी गांव चली गई है। फिर जल्दी ही उनको अपने घर वापस ले जाने का वादा कर लौट आती है। बूढ़ी दादी अपनी निस्तेज आँखों से पोती को दूर तक जाते देखती रहती है।
( सम्मानित पाठकों… यह कहानी अहमदाबाद में घटित एक सच्ची घटना पर आधारित उसको आधार बनाकर लिखी गई है । जो केवल दादी पोती के वृद्ध आश्रम में मिलन तक ही सीमित है। लेकिन उसके बाद जो लिख रहीं हूँ वो सब मेरी कल्पनाओं की उड़ान है । )
मृदुला घर आकर चाहकर भी मम्मी पापा को कुछ नहीं बताती। क्योंकि वो अच्छी तरह से जानती है… अगर उसने सच्चाई प्रकट कर दी मम्मी पापा उसकी एक नहीं सुनने वाले वो यह मालूम ही नहीं होने देती कि उसको सब कुछ पता चल गया दादी गाँव नहीं गई । बल्कि उन्होंने दादी को वृद्ध आश्रम में छोड़ दिया है। लेकिन वो दादी की याद में तड़पते तड़पते अवसाद का शिकार हो जाती है। जिस दादी को वो भूलने लगी थी, उनसे मिलकर यादें दुबारा ताजा हो जाती है। वो बीमार रहने लगती है। एक हँसमुख बच्चे का एकदम से गुमसुम हो जाना। माता-पिता के लिए चिन्ता का विषय बन जाता है। एक दिन उसको तेज बुखार जिसमें वो बड़बड़ाती है… “ दादी दादी मैं तुमको लेने आऊंगी । दादी मैं जरूर आऊंगीं, मेरा इन्तजार करना ”!
मृदुला के मम्मी-पापा उसके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहने लगते हैं। उसको दवाईयों का असर नहीं हो रहा था। जो चिकित्सक उसका इलाज कर रहा होता है। वो कहता है आप इसको बड़े मनोचिकित्सक को दिखाये तभी शायद ये स्वस्थ हो सकेगी। मृदुला के पिता उसको शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सक से सलाह मशवरा करते हैं। चिकित्सक मृदुला की हालत देखकर बताता है। आपको इसकी दादी से मिलवाना होगा। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं,तो आपकी बेटी के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। ऐसा भी हो सकता है वो अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठे। क्योंकि बच्चे जिस बात को लेकर बैठ जाते हैं उसको उनके मस्तिष्क से मिटाना इतना आसान नहीं होता है। बरसों लग जाते हैं उनको समझाने में और आपकी बेटी के पास इतना समय नहीं है। आप को जो भी करना है कृपया जल्दी कीजिए, ऐसा न हो देर हो जाये । जिसका खामियाजा आपको बेटी खोकर चुकाना पड़े।
चिकित्सक की बातें सुनकर मृदुला के मम्मी-पापा घबरा जाते हैं।
दोनों जल्दी से आपस में सलाह मशवरा कर वृद्धा आश्रम की तरफ दौड़ पड़ते हैं। वृद्धा आश्रम जाकर अपनी ‘माँ, मृदुला की बूढ़ी दादी को वापस घर ले आते हैं। जैसे ही मृदुला अपनी दादी को देखती है। खुशी से चिल्ला पड़ती है। वो उनके गले लिपट जाती है। वो कहती हैं दादी, अब आप मुझे छोड़कर कहीं नहीं जायेगीं। आप मुझसे वादा करो । दादी पोती का स्नेह देखकर माता-पिता का दिल भी द्रवित हो जाता है। दादी पोती को गले से चिपका लेती है ।
पोती को जवाब देने से पहले दादी अपने बहु बेटे की तरफ प्रश्न भरी निगाहों से देखती है। दोनों की आँखों में अविरल आँसूओं की धारा बह रही होती हैं। दादी को अपने मूक प्रश्न का जवाब मिल जाता है। वो पोती मृदुला से कहती हैं नहीं बेटा अब मैं तुमको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।अब तुम इन बूढ़ी दरख्तों की हवाओं में पलोगी,और दुआओं में फलो फूलोगी ।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया