मॉं को बच्चों का साथ चाहिए -अर्चना खण्डेलवाल

मां, मैंने आपके लिए वो सुन्दर सा शॉल भिजवाया था, आप जब नीचे घूमने जाओं तो यही पहनकर जाना, वसु अपनी मां हेमलता जी से कहने लगी, और हां मां मैंने जो आपके लिए स्वेटर भिजवाया है उसे भी पहन लेना, छोटी बेटी कनु भी बोली। इतने में सबसे बड़ा बेटा यश बोला कि मैंने एक सब्जी वाले से बात कर ली है वो आपको घर बैठे सब्जी दे जायेगा, मैं तो कह रहा हूं कि आप कुक भी रख लो, ताकि आपको खाना बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगा। आप और पापा बस आराम से रहिएं हम आप दोनों की सारी सुविधाओं का ध्यान रखेंगे।

मैंने अंदर वाले बाथरूम के लिए नया गीजर भी ऑर्डर कर दिया है, आपको बाहर नहीं जाना पड़ेगा, यश ने फिर बोला, हेमलता जी फीकी सी हंसी हंसने लगी और उठकर चली गई।

तीनों बच्चों को आश्चर्य हुआ कि मां को अचानक से क्या हो गया है?

पापा, मां को क्या हो गया? तीनों ने उत्सुकता पूर्वक पूछा, मां खुश नहीं लग रही है।

हां, मेरे बच्चों तुम सबकी मां खुश नहीं रहती है क्योंकि उसके बच्चे उसके पास नहीं रहते हैं, वो अपने बच्चों से मिलने को तरसती है। तुम तीनो मिलकर हम दोनों का बहुत ध्यान रखते हो पर जीवन में सुख सुविधाओं से अधिक अपनों का साथ मायने रखता है।

हम सब साथ में रहें,आस-पास में रहें, एक दूसरे से मिलते रहें,यही तो असली सुख है।

घर में नौकर तो है वो काम कर देता है, बाजार के काम भी घर बैठे हो जाते हैं पर फिर हम दोनों दिन भर खाली ही बैठे रहते हैं, यश की जिद से हम शहर इस फ्लैट में आ तो गये है।

लेकिन इस फ्लैट में हमारा मन नहीं लगता है, यहां अपनों का साथ नहीं है, पड़ौसी आपस में बात नहीं करते हैं, सबको अपनी प्राइवेसी चाहिए होती है, किसी के पास किसी के लिए समय ही नहीं है, सब व्यस्त हैं।

एक दूसरे के घर आना -जाना नहीं होता है, महीनों एक पडौसी दूसरे का चेहरा नहीं देख पाते हैं, इस घर में सुविधाएं बहुत है पर अपनापन नहीं है।

अपने पापा रमेश जी की बातें सुनकर तीनों बच्चे भी चुप हो गएं। वीडियो कॉल करते-करते उनकी भी आंखें शर्म से झुक गई । वसु, कनु और यश हर तरह से अपने मां और पापा को खुश रखने की कोशिश करने में लगे थे, पर वो उन्हें खुश नहीं रख पा रहे थे।

बचपन में मां हेमलता जी और पापा रमेश जी साथ तीनों बच्चे बहुत खुश रहते थे। परिवार में एक सुखद वातावरण था, गांव के उस घर में सुविधाएं नहीं थी फिर भी जीवन वहां अच्छे से बीत रहा था, घर में पानी के नल नहीं थे, दूर से पानी लाकर घर में भरना होता था, पानी के साथ ही बिजली भी कम ही आती थी, बिजली आती एक घंटे को और सात घंटे नहीं आती थी, फिर भी सब भाई बहन आराम से लालटेन जलाकर या रोड़ पर जलने वाली बिजली के खंभे के नीचे बैठकर ही पढ़ लेते थे ।

रमेश जी मामूली सरकारी कर्मचारी थे, घरवालों का पेट भर लेते थे और दैनिक जरूरतें पूरी कर लेते थे, हेमलता जी कुशलतापूर्वक घर चलाकर बचत कर ही लेती थी, परिवार में कोई लड़ाई- झगड़ा नहीं होता था। हेमलता जी को पुराने फिल्मी गानों से बहुत लगाव था वो जब कहीं गाने गुनगुनाने और अंताक्षरी खेलने लग जाती थी, जब वो शुरुआत करती थी, तब पूरा परिवार जैसे साथ में गाने लगता था।

बच्चों का बचपन ऐसे ही हंसी खुशी से चल रहा था, अब बच्चे बड़े होने लगे, तो उनका खर्च भी बढ़ने लगा, पढ़ाई के साथ ही कोचिंग क्लासेस भी थी।

जिसके लिए शहर जाना होता था। शहर आने-जाने का खर्च और फीस के लिए रमेश जी ने कर्ज ले लिया था। उनका मानना था कि घर में चाहें सुविधाएं नहीं हो पर बच्चे पढ-लिखकर अपने पैरों पर खड़े हो जाने चाहिए।

यश की रूचि इंजीनियर बनने में थी, वो उसी के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा था, प्रवेश परीक्षा में चयन के बाद वो पढ़ने के लिए शहर चला गया, रमेश जी ने कर्ज ले लिया और उसे पढ़ाने लगे। वसु और कनु भी पढ़ने में होशियार थी, वसु जज बनना चाहती थी और कनु स्कूल में टीचर। ईश्वर की कृपा से तीनों बच्चे विशेष सुविधाएं ना मिलने के बावजूद भी अपने-अपने कर्म क्षेत्र में सफल रहें और तीनों की नौकरी लग गई।

जीवन का एक पड़ाव तो बच्चों के साथ में पार हो गया पर अब हेमलता जी चिंतामग्न रहने लगी जब से यश ने उन्हें बताया कि उसे बाहर नौकरी के लिए जाना है।

तू गांव में नहीं रह सकता है क्या? हेमलता जी ने उसका हाथ थामकर कहा। नहीं मां, गांव में जब पढ़ने की ही सुविधा नहीं है तो नौकरी भी कहां से मिलेगी । मुझे शहर जाना होगा फिर पापा ने पढ़ाई के लिए इतना बड़ा कर्ज ले रखा है, उसे भी तो चुकाना होगा।

बेटा, शहर में सब सुविधाएं होंगी पर गांव जैसा प्यार तो कहीं नहीं मिलेगा, उन्होंने समझाया पर यश भी क्या करता, नौकरी तो उसे करनी ही थी।

वसु भी शहर के कोर्ट में जज बन गई थी, अब उसकी भी जाने की बारी आई, तो हेमलता जी का कलेजा और भी टूट गया। उसका हरा-भरा परिवार एक-एक करके बिखर रहा था।

यश और वसु चले गए, दोनों अलग शहरों में रहने लगे। दोनों का अपना जीवन शुरू हो गया।

यश अपने काम में अच्छा प्रदर्शन करने लगा और हर महीने पैसे भेजकर वो कर्ज चुकाने लगा। सालों बाद हेमलता जी और रमेश जी को राहत मिली।

दोनों ने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए थे और बच्चों ने भी अपने मां और पापा को संघर्ष करते हुए देखा था तो यश ने प्रण लें रखा था कि जब तक मैं सारा कर्ज नहीं चुका लेता और दोनों बहनों की शादी नहीं कर लेता तब तक मैं शादी नहीं करूंगा, हालांकि यश की नौकरी को देखते हुए उसके लिए काफी रिश्ते आ रहे थे।

तीनों भाई बहनों में ज्यादा अंतर भी नहीं था।

वसु के लिए लड़का देखा जा रहा था, हेमंत को पसंद किया गया जो उसी कोर्ट में वकील था। दोनों की रजामंदी से ये शादी हो गई। वसु पहले तो फिर भी आती -जाती रहती थी पर अब वो हमेशा के लिए घर से विदा हो गई। मां तो अपने बच्चों से कभी दूर नहीं रहना चाहती है पर बच्चों का भी अपना जीवन होता है, उन्हें दूर जाकर ही अपना भविष्य बनाना होता है।

कनु की स्कूल की नौकरी भी सही चल रही थी, वसु की शादी के बाद अब उसकी शादी भी करनी थी, वो गांव में ही रहकर नौकरी करना चाहती थी पर लड़के वाले चाहते थे कि कनु अपनी नौकरी छोड़ दें, कनु का होने वाला पति खुद सरकारी दफ्तर में ऑफिसर था। हेमलता जी ने समझाया कि तू शहर जाकर और नौकरी ढूंढ लेना, लेकिन कनु गांव में नौकरी करके ही मां और पापा के साथ में रहना चाहती थी।

वसु और यश ने भी समझाया कि हम सब मिलकर मां और पापा को संभाल लेंगे। तब जाकर कनु ने शादी के लिए हां भरी। कनु की शादी भी धूमधाम से हो गई, यश ने अच्छा पैसा लगा दिया। अपने मां और पापा की जिम्मेदारी भी उसने ही निभा दी और रमेश जी का कर्ज भी जो उन्होंने बच्चों की पढ़ाई के लिए लिया था वो भी हर महीने उतारने लगा।

तीनों बच्चों के जाने के बाद हेमलता जी मुरझा गई थी अब वो गुनगगुनाती भी नहीं थी और अंताक्षरी खेलना भी बंद कर दिया था। जब देखो आंसू ही बहाती रहती थी। आस-पास की पड़ोसने हिम्मत बंधाती रहती थी, दोपहर में चाय पर बुलाती रहती थी, इस तरह से उनका समय अच्छे से गुजर रहा था। कभी किसी के यहां भजन में चली जाती थी, कभी कोई अपने घर खाने के लिए बुला लेती थी, तो कभी किसी के यहां ब्याह है, महिला संगीत है, जलवा पूजन है, सत्य नारायण की कथा है तो कभी किसी का जन्मदिवस का न्यौता भी मिल जाता था। सबके यहां जाकर आती तो उन्हें भी लगता था कि अब मेरे घर में भी बहू आ जायें।

उन्होंने यश से शादी की बात की , अब यश भी तैयार था, उसने बताया कि उसी की ऑफिस में काम करने वाली कल्पना को वो पसंद करता है और उसकी बहनों की शादी हो जाएं, इसके लिए वो अभी तक रूकी हुई थी। कल्पना एक अच्छे परिवार से थी, और यश की नौकरी भी अच्छी थी, यश उसके घरवालों को बहुत पसंद था।

आखिरकार हेमलता जी के घर भी बहू आ गई, वो बहुत खुश थी, उन्होंने सोचा था कि चार दिन बाद वो भी अपनी सभी सखियों को बुलाएंगी और कल्पना का उसी दिन चौका पूजन करवायेगी पर कल्पना ने दूसरे दिन शाम को ही सामान पैक कर लिया, वो शहर में लिये घर में जाना चाहती थी।

अभी तो पूरे रस्म रिवाज भी नहीं हुये? इतनी जल्दी बहू क्यों जा रही है हेमलता जी ने यश से पूछा।

मां, यहां पर शहर के जितनी सुविधाएं नहीं हैं, कमरे में एसी नहीं है, अटैच बाथरूम नहीं है, और इंटरनेट भी बड़ा धीमा चलता है, बिजली भी घंटों गुल रहती है, कल्पना यहां पर नहीं रह पायेगी, और यश कल्पना को लेकर चला गया। वो अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस कर रही थी।

गांव में इतनी अच्छी हवा चलती है, एसी की जरूरत ही क्या है? बाथरूम तो घर में ही था, उसे बाहर तो नहीं जाना होता था, दो दिन क्या इंटरनेट के बिना नहीं रह सकती थी? मैंने अपनी सभी सहेलियों को न्यौता भी दे दिया था, और वो ये कहकर रमेश जी के कंधे पर सिर रखकर फूट-फूट कर रोने लगी। उन्हें फिर से उनकी सखियों ने ही संभाला।

हेमलता,  तू चिन्ता मत कर, बच्चे नहीं हैं तो क्या हुआ?

ये गांव का सारा परिवार हमारा ही तो है, जो हमारे सुख दुःख में हमेशा साथी बनकर साथ खड़ा रहता है। हेमलता जी इसे ही प्रभु का फैसला मानकर चुप हो गई।

एक दिन यश का फोन आता है कि आप दादी बनने वाले हो, हेमलता जी खुशी के मारे झूमने लगती है, पर अगले ही पल उनकी खुशी गायब हो जाती है। बहू कल्पना उनके साथ में रहना नहीं चाहती है, वो अपने पति यश के अलावा अपनी दोनों ननदों और सास-ससुर से बिल्कुल नहीं रखती थी पर अब उसे अपनी सास की जरूरत थी क्योंकि कल्पना की मां नहीं थी।

यश ने अपनी मां और पापा को बुला लिया क्योंकि वो तो बहुत व्यस्त रहता था, कम से कम मां तो कल्पना की अच्छे से देखभाल कर लें। हेमलता जी कल्पना की देखभाल बहुत अच्छे से करती थी, वो उसे बहू नहीं बेटी मानती थी, पर कल्पना उनसे घुल मिल नहीं पाई थी।

नौ महीने बाद कल्पना ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया और तभी हेमलता जी को पता चला कि यश अब विदेश रहने जा रहा है वो अपने परिवार को भी साथ ले जायेगा। वो अपने पोते के साथ ज्यादा दिन तक रह नहीं पायेगी।

एक दिन यश बोला, हम गांव का घर बेच देंगे, वहां कुछ खास भी नहीं है, अब आप दोनों को यही इसी फ्लैट में रहना है,आप मुझसे और अपने पोते से अच्छे से बात कर पाओंगे, गांव में तो इंटरनेट चलता ही नहीं है, हम लोग वीडियो कॉल नहीं कर पायेंगे, वहां तो फोन पर भी अच्छे से बात नहीं हो पाती है, आपको ही इस फ्लैट की देखभाल करनी है, मैं अपना लाखों का फ्लैट किरायेदार को नहीं दे सकता हूं। बड़े शहरों में फ्लैट किरायेदार के भरोसे भी छोड़ना ठीक नहीं है। हेमलता जी और रमेश जी बेटे के थोपे गए फैसले से अचंभित थे। कुछ महीनों बाद यश को वीजा मिल गया, यश अपने परिवार सहित फ्लैट को छोड़कर विदेश चला गया।

हेमलता जी ने कोशिश की थी कि वो इस फ्लैट को अपना घर बना लें, पर उनका वहां मन नहीं लगता था।

वो अपने पोते के साथ में रहेगी वो तो इसी उम्मीद से बेटे के घर आई थी, पर उन्हें पता नहीं था कि बेटे ने अपने घर की देखभाल के लिए उन्हें यहां छोड़ा हुआ है।

घर में तमाम तरह की सारी सुविधाएं हैं पर यहां अपना कहने के लिए कोई नहीं है। दोनों बेटियां भी अपनी नौकरी, घर गृहस्थी और बच्चों में व्यस्त हो गई थी, कभी कभार मिल लेती या कोई उपहार भेज देती थी पर उन्हें तो ये उपहार नहीं अपने बच्चों का साथ चाहिए जो नहीं मिल रहा था।

बेटे के फ्लैट में आकर वो और भी उदास रहने लगी, यहां उनकी उदासी दूर करने के लिए, उनको समझाने के लिए , उनके चेहरे पर हंसी खिलाने के लिए उनकी सखियां, उनकी पड़ोसन नहीं थी।

तीनों बच्चे वीडियो कॉल करते वो बात कर लेती पर वो खुश नहीं रहती थी।

एक रात उन्होंने फैसला किया और अगली सुबह अपने पति से बोली कि, मुझे गांव वापस ले चलो, मुझे यहां पर नहीं रहना है, केवल सुविधाएं होने से क्या होता है, मेरा यहां पर मन नहीं लगता है, मैं यहां अकेले नहीं रह सकती हूं। मुझे अपने गांव के घर में ही जाना है, यहां के लोगों में तो जरा भी लगाव, अपनत्व नहीं है।

ये घर मुझे खुली जेल के समान लगता है, कोई इन्सान भी नहीं है जो आकर बात करें, हाल चाल तो पूछ लें।

आप यश को फोन लगाओ, रमेश जी ने फोन लगाया।

यश बेटा, ये तेरा घर तू ही संभाल, ज्यादा चिंता है तो कोई चौकीदार रख लें, मैं तेरे घर की चौकीदारी नहीं कर सकती हूं, मेरा यहां पर दम घुटता है।

जीवन में सुविधाएं ही सब कुछ नहीं है, मन की शांति और सुख इन भौतिक सुविधाओं से नहीं मिलता है।

जिस घर में अपनापन नहीं हो अपनों का साथ नहीं हो, मैं वहां नहीं रह पाऊंगी। अगर तू साथ में रहता, मेरा पोता रहता तो फिर भी मैं यहां रहने की सोच सकती थी, पर अब मैं एक क्षण भी यहां नहीं रहूंगी।

मेरे गांव में पानी ना सही पर एक दूसरे का दुःख देखकर एक दूसरे के लिए आंख में पानी आज भी आ जाता है, बिजली कम आती है पर फिर भी पडौसियों और रिश्तेदारों  के साथ से घर आंगन चमकता है। इंटरनेट धीमा चलता है तो क्या हुआ वहां कोई मुसीबत में साथ छोड़कर भाग नहीं जाता है।

जीवन में सुख सुविधाओं से अधिक अपनों का साथ मायने रखता है, तू मुझे सब सुविधाएं तो दे गया पर बुढ़ापे में अपने माता-पिता का ही साथ छोड़ गया, हमारा इस शहर में कोई नहीं है।

हम दोनों कल सुबह ही वापस जा रहे हैं, तू अपने माता और पिता को तो संभाल नहीं पाया, अब जैसे भी हो तेरा फ्लैट तू ही संभाल लें।

लेकिन मां…….. मेरी बात तो सुनो……यश की आवाज पूरी सुने बिना ही हेमलता जी ने फोन रख दिया।

रात को ही अपना सारा सामान जमा लिया, फ्लैट की चाबी यश के दोस्त को देकर वो पहली ट्रेन से अपने गांव के लिए रवाना हो गए।

पाठकों, जीवन में भौतिक सुविधाएं चाहें मिले ना मिले पर अपनों का साथ जरूर होना चाहिए, भौतिक सुविधाओं से  मन को सूकून नहीं मिलता है उसके लिए तो अपनों का प्यार और अपनत्व चाहिए।

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खण्डेलवाल

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