बहू बनी सहारा – सुनीता माथुर

मां जल्दी से तैयार हो जाओ आपको कार से मंदिर ले चलती हूं आज तो शरद पूर्णिमा है आपको मंदिर जाना अच्छा लगता है ना—– अंजू बोली हां—— साक्षी बहू  लेकिन तुम्हें समर्थ को होमवर्क भी करवाना है,—– वो यू.के.जी में आ गया है दिन भर काम करके भी तुम थक गई होगी और शाम को समीर बेटा——

तुम्हारा पति भी थका-थका आएगा उसके लिए भी खाना बनाना है उसका ध्यान रखना है अरे——मां आप टेंशन क्यों करती हो मैंने दिन में खीर बनाकर रख ली और समर्थ का होमवर्क भी करवा दिया है———

मुझे पता है सारे काम समय पर करना है लेकिन——- आपका भी तो ध्यान रखना है यह सुनकर मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं और वह तैयार होकर साक्षी बहू की कार में बैठ जाती हैं।

मंदिर जाकर मां बहुत खुश होती हैं और अपने पोते समर्थ की उंगली पड़कर बहू के संग—- मंदिर के अंदर जाती हैं! मंदिर की सुंदरता—– देखते ही बनती थी! इतना सुंदर मंदिर सजा था!——–

शरद पूर्णिमा पर विशेष सजावट होती है! कान्हा जी राधा कृष्ण का मंदिर बहुत ही सुंदर खूब-सूरत सा लग रहा था और खीर का भोग लगाया जा रहा था चारों तरफ लाइटिंग और फूलों से सजे मंदिर की भब्यता देखते ही बनती थी।

बहु साक्षी ने मां से बोला मां—- आप अपने पसंद का भोग कान्हा जी को लगा दो आप कान्हा जी की बहुत पूजा करती हो!—- मंदिर की दुकान में सब तरह का भोग मिल रहा था! मां ने अपनी पसंद का भोग, प्रसाद, फूल माला और नारियल लेकर अपनी बहू और पोते के साथ पंडित जी से “कान्हा जी का भोग लगवाया” और सब लोग घर आ गए!

घर आकर साक्षी ने जल्दी-जल्दी खाने की तैयारी की और मां ने सब्जियां काट कर रखीं देखते-देखते खाना भी तैयार हो गया जैसे ही समीर घर पर आया—- खाने की बड़ी अच्छी खुशबू दौड़ रही थी अरे वाह— आज क्या बनाया है? साक्षी ने खुश होकर बोला पता है—-

आज तो शरद पूर्णिमा है ना मां अपन सबको शरद पूर्णिमा के दिन अच्छा-अच्छा खाना बनाकर खिलाती थीं—- मां और पापा दोनों ही कितना प्यार करते थे अपन सबको लेकिन—– पापा के नहीं रहने पर मां का मन उदास रहने लगा इसलिए आज मैंने मां की पसंद का अच्छा-अच्छा खाना बनाया है, और खीर भी बनाई है,  मां को मंदिर के दर्शन भी करवा लाई—– यह सुनकर समीर खुश हो गया चलो हम ध्यान नहीं दे पाते तो तुम तो मां का ध्यान रखती हो!

अंजू अपने ख्यालों में खो जाती है उसके मन से बहू के लिए बहुत दुआएं निकलती हैं कि आज——- तो मेरी “बहु बनी सहारा” बहु साक्षी साक्षात् लक्ष्मी है! मैंने कुछ अच्छे ही कर्म किए होंगे जो मुझे इतनी अच्छी बहू मिली। मेरा बेटा समीर इंजीनियर है लेकिन— प्राइवेट कंपनी में बहुत काम रहता है—- इस कारण वह तो घर पर ज्यादा टाइम भी नहीं दे पाता और बेटी—- सुरभि दामाद के संग विदेश में है!—

दोनों ही जॉब करते हैं इसलिए वह साल में एक दो बार ही आ पाती है लेकिन अंजू को याद आता है जब समीर की शादी हुई थी——- उस समय समीर के पापा अनुराग गवर्नमेंट ऑफिसर की पोस्ट से ही रिटायर्ड हुए थे और बहुत खुश थे उन्होंने समीर की शादी खूब धूमधाम से की और बेटी सुरभि की शादी——

अपनी नौकरी में रहते हुए ही करदी थी। सुरभि समीर से 2 साल छोटी थी पर उसकी 2 साल पहले ही शादी कर दी गई थी। 

देखते देखते समय निकलता गया और अंजू और अनुराग दोनों ही बहुत खुश रहते थे दोनों ही साथ-साथ घूमने जाते थे घर का माहौल बड़ा खुशनुमा था लेकिन—— एक दिन अचानक— अंजू के पति अनुराग को हार्ट अटैक आ गया और समीर की शादी के 3 साल बाद ही उनका हार्ट फेल होने से मृत्यु हो गई

अब तो अंजू को बहुत अकेलापन लगने लगा, सारी दुनिया बेकार लगने लगी, और मैं उदास होकर एक कमरे में बैठी रहने लगी, ना कुछ खाने का मन होता, ना कहीं जाने का मन होता, ना किसी से बात करने का मन होता——— यह देखकर मेरे बहू और बेटा बहुत परेशान रहने लगे लेकिन—-

मेरी बहू साक्षी बहुत ही नेक और सरल स्वभाव की है उसने तुरंत स्थिति को संभाला! और अनुराग से बोली तुम अपनी नौकरी पर ध्यान दो मैं मां को संभालूंगी में भी तो बेटी की तरह हूं! समर्थ को भी ज्यादा से ज्यादा मां के पास खेलने दूंगी ताकि मां का मन लगे———-जब कभी अनुराग की छुट्टी होती तो साक्षी अंजू से बोलती मां चलो—– अपन सब पिक्चर देख कर आएंगे! मैं उससे बोलती भी थी तुम लोग जाओ मैं क्या करूंगी! नहीं—-नहीं— मां—–

आपका भी तो मन होता होगा! कभी-कभी समय मिलते ही साक्षी अंजू को बाजार भी ले जाती मां—- आप अपनी—– जरूरत का सामान खरीद लो! ऐसे ही समय निकल रहा था अंजू को साक्षी बहू के रूप मे एक दोस्त मिल गई थी ।अंजू——— इन खयालों में खोई हुई थी इतने में साक्षी की आवाज आती है मां—-

क्या सोच में पड़ गईं आ जाओ—- खाना खाने!—– सब डाइनिंग टेबल पर आपका इंतजार कर रहे हैं, यह सुनते ही अंजू हड़-बड़ा कर अपने ख्यालों से बाहर आ जाती है और हंसते हुए अपनी बहू से कहती है बेटी तुम तो साक्षात लक्ष्मी हो यह सच ही है “बुढ़ापे का असली सहारा ना बेटा है ना बेटी बल्कि बहू होती है”!

 सुनीता माथुर 

 मौलिक, अप्रकाशित रचना

 पुणे महाराष्ट्र

# बुढ़ापे का असली सहारा न बेटा न बेटी 

बल्की बहू होती है।

error: Content is protected !!