आज सुबह से ही स्कूल में खुशी के कारण डौली के तो पांव ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। मन ही मन सोचती है, पंख होते तो दौड़कर घर पहुँच जाती। जल्दी जल्दी डौली ने स्कूल से घर आकर अपनी मम्मा को आवाज लगाई मम्मा, मम्माऽऽ मम्मा आप कहां है ? अरे मम्मा सुनो तो
उसे पता था आज मम्मा ऑफिस से छुट्टी लेकर घर पर ही हैं। सुबह सुन लिया था उसने जब वो अपने ऑफिस फ़ोन पर बात कर रहीं थीं । वो मम्मा के कमरे की तरफ दौड़कर गई मम्मा, मम्मा सुनिए मुझे आपको कुछ बताना है। आज वो अपनी मम्मा के गले लिपट जाना चाहती थी।
लेकिन उसकी मम्मी ने उसे झिड़क दिया डौली मैं पहले ही बहुत थकी हुई हूँ । मुझे परेशान मत करो आराम करने दो एक दिन छुट्टी ली उसमें भी चैन नहीं लेने देते। जाओ यहां से अपनी आया राधा को दिखा दो जो दिखाना है या शाम को अपने पापा को दिखा देना । ऐसा कहकर डौली की मम्मी शालिनी दूसरी तरफ करवट लेकर लेट गई।
डौली मुंह लटकाये कमरे से बाहर आ गई उसका सारा उत्साह ही ठन्डा पड़ चुका था। उदास मन से अपने कमरे में बैठ शाम को पापा के आने का इन्तजार करने लगी। शाम को पापा के आने पर वही प्रश्न, पापा मुझे आपको कुछ दिखाना है। मगर पापा सुरेश भी इतने व्यस्त की बैठे बैठे फ़ोन पर बात में व्यस्तता के साथ ही कह दिया बेटा अभी समय नहीं है। मैं अभी जरूरी मीटिंग में हूँ । जाओ यहां से, डिस्टर्ब मत करो । और हाँ पैसे चाहिए तो सामने अलमारी से जितने चाहिए ले सकती हो ।
दस बर्ष की डौली को समझ नहीं आता क्या पैसा ही बच्चे की हर आवश्यकता पूरी कर देगा ? किससे बात करे वो, न माँ के पास समय न पिता के पास समय ? मम्मा को कुछ कहो पापा के पास भेज देती। पापा को कहो मम्मा के पास भेज टाल देते उसको । आज उसका रिजल्ट निकला सर्व प्रथम स्थान प्राप्त किया था उसने पूरे स्कूल में आज प्रधानाचार्य ने सबके सामने कितनी बड़ाई की उसकी,
और कहा एक दिन ये बच्ची हमारे स्कूल और अपने माता पिता का नाम जरूर रौशन करेगी । कितना खुशी का माहौल सभी उसको बधाईयां दे रहे। वो तो कितने उत्साह से स्कूल से दौड़ी दौड़ी चली आई थी। यह सोचकर आज मम्मा पापा को खुश खबरी सुनाएगी, लेकिन यहां तो किसी को उसकी परवाह ही नहीं है। उसका बाल मन कुछ समझ ही नहीं पाता ।
बेबस सी सोचती है..कैसे माता-पिता है उसके ? सब साथ के बच्चों के माता-पिता कितना प्यार करते अपने बच्चों को स्कूल भी छोड़ने आते, शाम को लेने भी आते । एक उसके माता-पिता याद नहीं कभी आयें भी हो । जब भी जरूरत होती या पेरेंट्स को बुलाया जाता तो उसकी आया राधा आन्टी को भेज देते। बस वो राधा आन्टी ही बचपन से उसकी देखभाल कर रही। डौली का मन रोने को कर रहा तभी आया राधा डौली को पुकारती कमरे में आती है-
डौली बाबा चलो खाना खा लो। साहब मेमसाब ने तो खाना अपने कमरे में ही मंगवा लिया। ये मैं तुम्हारे लिए यही लेकर आ गई। आया राधा ने खाना डौली के कमरे में टेबल पर रख दिया।
डौली राधा को देखकर फूट फूटकर रोने लगी आन्टी आज मेरा रिजल्ट निकला और कोई सेलीब्रेट करने वाला ही नहीं है। मम्मा पापा दोनों ने भगा दिया उनके पास तो पलभर का भी समय ही नहीं मेरे लिए…
राधा ने रोती डौली को शान्त कराया और प्यार से समझाया अरे कोई क्यों नहीं है बिटिया ?
चिंता क्यों करती हो ? “मैं हूं न, चलो सैलिब्रेट करते हैं” ।
जरा रूको तुम, मैं अभी आई कहकर राधा फ्रीज में से कुछ खाद्य सामग्री- केक, चाकलेट मिठाई ले आई और डौली का मन बहला उसको खुश करने की कोशिश करने लगी।
डौली की आया राधा उसके दर्द को अच्छी तरह समझ रही थी। सालभर की थी जब वो उसकी देखभाल के लिए रख ली गई थी। अपने खुद के बच्चे तो उसके हुए नहीं तो ससुराल वालों ने पति की दूसरी शादी कर दी और एक दिन उसे धक्के मारकर घर से निकाल दिया। राधा ने कुछ बरस लोगों के घरों में काम कर गुजारा किया फिर शालिनी मेमसाब डौली की मम्मा से उनकी एक सहेली के परिवार के माध्यम से पहचान हुई। तो राधा शालिनी को बहुत अच्छी लगी। फिर उन्होंने उसे अपने यहां डौली की आया बना रख लिया। तभी से राधा ही उसकी देखभाल कर रही उसके आने के बाद से साहब मेमसाब उसके प्रति लापरवाही बरतने लगे। डौली पूरी तरह राधा पर ही आश्रित हो गई । सुबह स्कूल भेजने से रात सोने तक सारे काम राधा ही देखती ।
साहब मेमसाब बात बात पर कितना झगड़ा करते झगड़े में ही डौली को भी निशाना बना देते । एक कहता डौली उसकी जिम्मेदारी है दूसरा कहता उसकी बेचारी डौली सहम कर रह जाती राधा मन ही मन बुदबुदाती हैं…. बड़ी मासूम बच्ची है न जाने कैसी किस्मत लेकर पैदा हुई ? बड़ी मासूम है बेचारी माता-पिता का सुख क्या होता नसीब में ही नहीं इसके। राधा को बड़बड़ाती देख डौली बोली आंटी क्या हुआ ? आप क्या सोच रहीं हैं ?
राधा सकपका कर उठी.. अरे,,ऽऽ कुछ नहीं बेटा, चलों केक काटते हैं। तुम्हारी खुशी मनाते हैं। मेरे रहते तुम कभी अपने को अकेला मत समझना बिटिया । कहकर राधा डौली को गले से चिपका लेती है। उसका तरह तरह से मनोरंजन कर बहलाती है।
और डौली भी राधा के साथ हंसी-मजाक करते करते थक कर सो जाती है।
सुबह नित्य की तरह ही राधा उसको सहायता कर तैयार कर नाश्ता दे स्कूल भेज देती है।
उसी दिन शाम जैसे ही डौली के पिता सुरेश जी ऑफिस से आते हैं आते ही राधा से पूछते हैं मेमसाब आ गई क्या ?
“नहीं साहब अभी नहीं आई राधा बोली “ ।
तभी शालिनी दनदनाने हुए कालवेल बजाती है। राधा दरवाजा खोलती है। वैसे ही पति सुरेश कड़कती आवाज में कहते हैं।
तुम जरा ऑफिस से जल्दी आकर अपनी बेटी को नहीं देख सकती हो क्या ?
उसके स्कूल से प्रिंसिपल ने बात की आज कह रहे बहुत खोई खोई रहती है । ‘डौली आजकल … “तुम मां हो, तुमको उसका ख्याल रखना चाहिए सुरेश जोर से चिल्लाए “ ।
पति के तीखे शब्दों को सुनकर शालिनी भला कब चूप रहने वाली थी। बोली क्यौ ? मैं ही क्यों ? आप पिता है उसके, आप नहीं देख सकते जल्दी आकर, उसे आप की जिम्मेदारी नहीं है क्या वो ?
पर्दे के पीछे से डौली मम्मा पापा को लड़ते देख रही और सोचती है ।आखिर मुझको लेकर ही इन दोनों में झगड़ा है । हकीकत में कोई भी मुझे अपनी बेटी दिल से स्वीकारने को तैयार ही नहीं है।
आखिर मेरे मम्मी पापा ऐसा क्यों करते हैं ? क्या..? मैं, इन दोनों के लिए मुसीबत बन कर रह गई हूँ ।
वो अपने कमरे में आकर एक पत्र लिख सामने टेबल पर रख देती है। और सो जाती है ।कल सुबह उसे जल्दी निकलना था स्कूल के लिए। राधा को उसने पहले ही बता दिया था वो जल्दी सो जायेगी सुबह जल्दी जाना है। इसलिए राधा पहले ही दूध रख गई थी उसके कमरे में –
सुबह डौली जल्दी तैयार होकर निकल पड़ी एक बार मम्मा के कमरे में देखा वो सोई हुई थी फिर पापा को देखा वो बालकनी में फोन करने में व्यस्त थे । राधा को देखा वो नाश्ता बनाने में व्यस्त थी । डौली दौड़कर दरवाजा खोल गेट से बाहर चली जाती है। राधा को गेट खुलने की आवाज आती है। वो भागकर बहार आती है। मगर तब तक डौली जा चुकी होती है। उसे दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आती उसका दिल अनहोनी आशंका से कांप उठता है।
क्योंकि अभी तो स्कूल बस भी नहीं आई थी ये डौली क्या रिक्शा से चली गई मगर ऐसा क्यों ?
आज तक तो कभी नहीं गई वो ।
इसी उधेड़बुन में साहब मेमसाब के नाश्ते का समय हो जाता है।
वो उनको कुछ कहना चाह ही रही होती हैं । तभी सुरेश जी का फोन खनखनाती आवाज में बजने लगता है । वो फोन में बात करते ही चिल्ला पडते है.. केसै हुआ.. कहा है वो ? आया मै आया अभी पहुंचता हूँ ।
राधा का दिल कांपने लगता है। आखिर क्या हो गया ? शालिनी भी आ जाती है।
सुरेश जी कहते हैं… डौली का एक्सीडेंट हो गया ! वो स्कूल के निकट सीटी अस्पताल के इमरजेंसी आपरेशन थियेटर में है।
सभी दौड़कर अस्पताल पहुंचते हैं। तब तक डौली का काफी खून बह जाता है। उसके सर पर गम्भीर चोट के चलते उसको बचाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए उसकी मौत हो जाती है।
स्कूल के प्रिंसिपल और सभी अध्यापक अस्पताल में इकट्ठे हो जाते हैं ।और डौली के मम्मी-पापा को बताते हैं । आज डौली अपने समय से पहले ही स्कूल पहुंच गई । और तीन मंजिला छत की बाउंड्री में खेल रही थी। चपरासी ने देखा वो उसको रोकने ही आ रहा था तब तक वो फिसलकर गिर गई। और फिर उसने हम सबको सूचित किया। उसे उठाकर समय से अस्पताल पहुँचा दिया अब ऊपर वाले की यही मर्जी सभी की आँखों में आँसू बह रहे थे। डौली की दर्दनाक मौत ने सबको व्यथित करके रख दिया था।
सुरेश जी और शालिनी फूट-फूट कर रोते,हाथ मलते रह जाते हैं। दोनों के अहम् ने झगड़ों ने इकलौती बेटी को उनसे छीन लिया था ।
समय की अपनी रफ़्तार वो भला किसके लिए रूकता है। आज डौली को गये तीन दिन हो गये। राधा डौली के कमरे में टेबल पर रखा पत्र उठा लाती है । ये देखिए साहब ये डौली का पत्र जिसमें लिखा होता है मम्मा पापा मैं आप दोनों के झगडे का कारण नहीं बनना चाहती । मुझे इप दोनों का प्यार चाहिए था और आप दोनों उसे पैसे से पूरा करना चाहते थे। लेकिन मेरे लिए आप दोनों का साथ जरूरी था। मुझे वो ही चाहिए था । जो शायद आप कभी नहीं दे सकते थे।
काश मैं आप दोनों की बिटिया न बनकर राधा आन्टी की ही बिटिया बनकर जन्म ले लेती।
आगे पत्र पढ़ने, सुनने की किसी की हिम्मत नहीं हुई सभी रो रहे थे । सभी की आँखों में पश्चाताप के आँसू बह रहे थे।
राधा सुबकते हुए बोली- साहब छोटा मुंह और बड़ी बात होगी..मैंने कितनी बार आपको आगाह किया मगर आप दोनों को बहसबाजी से फुर्सत नहीं आप अपनी बच्ची के हथियारे हैं। आप दोनों की नजर में डौली बोझ से कम नहीं थी। जिसको उसने महसूस कर लिया था और “ आज देखिए आप दोनों को अपने बोझ से आजाद कर गई वो मासूम बच्ची, आप दोनों की जिद ने एक मासूम बच्ची की जान ले ली “ ।
साहब मेमसाब मेरा दिल आपको कभी माफ नहीं करेगा डौली को मैं अपनी बच्ची समझने लगी थी। उसे पाकर तो मैं भूल ही गई थी मैं निस्संतान हूँ।
आप दोनों की नजर में तो बच्चे की अच्छी परवरिश का मतलब उसे ढ़ेरों सुख सुविधाएं अथाह धन दौलत देना, जुटाना ही है ।
साहब,बस केवल ये सब ही जो बच्चों के लिए मायने नहीं रखते। उनको माता-पिता का लाड़ प्यार दुलार ममता और साथ भी चाहिए होता है। साहब… बच्चे के चेहरे पर हँसी ही माता पिता की सबसे बड़ी दौलत है। अब वो तो रही नहीं जिसके लिए मैं यहां आई थी साहब,अब मैं यहां रहकर क्या करूंगी ? जिसकी परवरिश के लिए आई थी जब वो ही चली गई.. तो मैं तो यहां जीते जी मर जाऊंगी । अब मुझे इजाज़त दीजिए…अब मैं यहां एक पल भी नहीं रह पाऊंगी। डौली बेबी की याद मुझे जीते जी मार देगी कहकर राधा हाथ जोड़कर अपना सामान ले घर से बाहर निकल गई । सुरेश और शालिनी आँखों में आँसू लिए बेबसी पर रोते-बिलखते, पश्चाताप करते, बेबस से, लुटे लुटे से खड़े राधा को दूर तक जाता देखते रहे ।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया
7.10.25