आरती! बेटा मैं बाज़ार जा रहा हूँ , तुम सुबह पूछ रही थी ……… कुछ मँगवाना है क्या?
हाँ पापा जी ! मम्मी जी की पीने वाली दवाई खत्म हो गई है। अभी डॉ० का पर्चा लाती हूँ । पापा जी! रात में खिचड़ी बना लूँ क्या? कल मिनी का पेपर है थोड़ा पढ़ा दूँगी उसे ।
हाँ बेटा ! सबके लिए खिचड़ी बना लेना………… तो सब्जी लाने की तो ज़रूरत नहीं है अब , सुबह ताज़ी ले लेंगे। वैसे फोन लेकर जा रहा हूँ अगर कुछ याद आ जाए तो बता देना ।
खेमचंद जी ने अपनी बहू से पर्चा लिया और मेज पर रखा थैला उठाकर चले गए। अभी कुछ दस मिनट हुए होंगे कि बड़ी बेटी रावी का फोन आ गया ।
पापा ! ये आरती कहाँ है, कब से फोन कर रही हूँ ……… मम्मी की तबीयत कैसी है अब ? कल नीरज की छुट्टी है और परसों इतवार है तो मैं और रीमा आ हैं बस कल सुबह पहुँच जाएँगे , डेढ़ दो घंटे की तो बात है । हमने सोचा कि बेटियों – दामादों और बच्चों को देखकर मम्मी खुश हो जाएँगी । आप कहाँ हैं, आरती को कह देना कि ब्रेकफास्ट की तैयारी करके रखें । चलिए…… बाकी बातें मिलने पर करेंगे।
इतना कहकर रावी ने फोन काट दिया। खेमचंद जी सोचने लगे कि ये कैसी बेटियाँ हैं एक बार भी नहीं सोचती कि अचानक एक साथ जाने से भाई- भाभी को कितनी परेशानी होगी।
चलो, एक बार को घर की बेटियों के साथ तो कोई औपचारिकता नहीं पर दामादों के साथ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। ऊपर से माँ बिस्तर पर पड़ी है, मैं ऐसा जवान नहीं कि उनकी माँ के काम कर दूँ । आकाश ऑफिस जाने से पहले थोड़ी मदद करता है आरती की वरना पूरे दिन बेचारी लड़की अकेली लगी रहती है।
चाहे बहू- बेटा लाख अच्छे हैं पर न जाने क्यों पिछले कुछ दिनों से खेमचंद जी बहुत ज्यादा महसूस करने लगे थे ………जब पत्नी आशा की तबीयत पूछने के नाम पर बेटियाँ अपने -अपने परिवार के साथ आ जाती थी और एक पिकनिक सी मनाकर चली जाती थी। बेटे आकाश की साधारण सी नौकरी थी , उन्होंने भी एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की थी इसलिए पेंशन भी नहीं थी । तकरीबन एक साल पहले आशा के कुल्हे की हड्डी टूट गई थी, काफी दिन तो वह अस्पताल में ही रही फिर वहाँ से तो छुट्टी मिल गई पर आज तक कुल्हा सही नहीं हो पाया और वे बिस्तर पर ही बैठ गई।
चार महीने पहले आरती के भाई की शादी थी और हर बहन की तरह भाई की शादी में जाने के उसके भी अरमान थे। बस यही सोचकर भाभी ने बड़ी ननद रावी को फोन करके कहा—
दीदी , नवीन की शादी में जाना है तो आप कुछ दिनों के लिए मम्मी जी- पापाजी के पास आ जाएँगी ना ?
आरती ! तुम्हें तो पता ही है कि तुम्हारे जीजाजी को तो एक कप चाय बनानी भी नहीं आती, बाहर का खाने से इनका पेट ख़राब हो जाता है ………फिर शादी भी तो वीक एंड पर नहीं है………तुम भी कहाँ हफ्ता दस दिन से पहले आओगी , तुम रीमा को बुला लो ना , गौरव के साथ ऐसी कोई परेशानी नहीं है………वह तो खाना बना भी लेता है बाहर का भी खा लेता है और सुनो……… रीमा की सास आजकल उन्हीं के पास आई है।
उसके बाद छोटी ननद रीमा को फोन करने की आरती की हिम्मत नहीं हुई इसलिए उसने आकाश को फोन करने के लिए कहा था पर रीमा ने भी अफसोस प्रकट करते हुए कहा था —
हाँ………मम्मी जी तो है यहाँ पर ………आप गौरव की नेचर तो जानते हैं ना भैया, हमेशा ताना मारते रहेंगे कि मैं उनकी माँ को छोड़कर मायके चली गई थी और फिर अंश का टेंथ है, प्री बोर्ड शुरू होने वाला है………सच में भैया, इस समय तो माफ़ कर दीजिए।
आखिरकार खेमचंद जी और आशा जी के जोर देने पर आकाश और आरती इस शर्त पर जाने के लिए राज़ी हुए थे क्योंकि बर्तन साफ करने वाली मान गई थी कि वह अतिरिक्त पैसे लेकर आरती की अनुपस्थिति में रसोई और आशा जी को संभाल लेगी ।
अंकल जी ! कोई दवाई चाहिए क्या?
अचानक वे अपने ख्यालों से बाहर आए । खेमचंद जी को पता ही नहीं चला था कि वे कब से केमिस्ट की दुकान पर बैठकर अपने बच्चों के व्यवहार का मूल्यांकन कर रहे थे । ख़ासतौर पर जब से आशा बिस्तर पर बैठ गई थी। यहाँ तक कि कई बार अगर आरती रसोई में काम करती होती और आशा को बाथरुम जाना पड़ता तो आकाश उसको आवाज़ लगाते हुए कहता था —
आरती! पहले माँ को देख लो ना ………गैस को थोड़ी देर के लिए बंद कर दो ।
और आरती सारे काम छोड़ कर सास के पास पहुँच जाती । कहने को तो वह भी कह सकती थी कि उसने तो सबका ठेका नहीं उठा रखा पर जिस दिन से आरती यहाँ आई उसने हमें सिर्फ माँ-बाप कहा ही नहीं, दिल से माना है। सचमुच बुढ़ापे का असली सहारा न बेटा न बेटी बल्कि बहू होती है। आज उन्हें आशा जी की कही वे बातें याद आ रही थी जब रावी के कहने में आकर उन्होंने आरती के मायके से आए सामान में नुक़्स निकाला था और आशा ने बेटी की बात काटते हुए उन्हें अकेले में समझाया था —
देखो…… रावी के पापा ! अगर बुढ़ापे में आदर -सम्मान और आराम चाहते हो ना तो आज बहू को बेटी से भी बढ़कर सम्मान देना सीख लो । सब अपने घर चले जाएँगे पर हमें बहू- बेटे के साथ ही रहना है ।
तो क्या बाकी जीवन घुट-घुटकर डर में बिताऊँ ?
डरने की कौन कह रहा है ? बस दूसरे की कही और दिखाई बात पर विश्वास मत करना और जब गलत बात को अपना बच्चा समझकर सुधारोगे ना , कोई बुरा नहीं मानता।
केमिस्ट ने फिर से कहा—
अंकल जी! तबीयत तो ठीक है ना? बहुत देर से बैठे हैं आप ……… लीजिए पानी पी लें।
पानी पीकर खेमचंद जी ने दवाई का पर्चा उसे दिया और रावी को फोन मिलाया।
हाँ पापा ……… ये आरती महारानी है कहाँ , अब तक पलटकर फोन नहीं किया।
सुनो , बेटा रावी ! तुम्हारी माँ की तबीयत ठीक है……… आने को तो कभी भी आ जाओ तुम्हारा घर है पर बेटा, मिनी के एग्जाम चल रहे हैं तो आरती को घर , तुम्हारे माँ- बाप के साथ -साथ अपने बच्चों पर भी ध्यान देना पड़ता है। और तुम दोनों बहनें तो जानती ही हो कि टेंथ है मिनी की , और आजकल के बच्चे अपने आप तो बैठते ही नहीं पढने। बेटा ! दो दिन की जगह कुछ ज्यादा दिन ठहर जाना। आरती तुम्हारी माँ की तरफ से बेफिक्री होकर अपनी बेटी पर ध्यान दें सकेगी।
इतना सुनना था कि रावी ने कहा–
अच्छा………… मिनी के पेपर चल रहे हैं तो कोई बात नहीं पापा ! वैसे मैं तो रुकने के लिए नहीं आ सकती………आप जानते हैं मेरी मज़बूरी। हाँ…… रीमा से कहती हूँ कि आपसे बात कर लें। ठीक है पापा ! मिनी को बुआ की तरफ से आल द बेस्ट कहना । उसके पेपर खत्म होने पर आपसे मिलने आऊँगी ।
फोन रखने के बाद उन्होंने दवाई उठाई और लंबी सांस लेकर घर की तरफ चल पड़े।
करुणा मलिक