क्या पिताजी आज फिर से बिस्तर गीला कर दिया आपने???
जूही ने अपने ससुर सुखदेव जी से जब ये सवाल किया तो वो शर्मिंदगी से नजरें चुराते हुए बोले- नहीं तो!!!
मैंने तो नहीं किया… मैं तो अभी-अभी बाथरूम से आ रहा हूं…
जूही पिताजी से बिना बहस किए
गीली बिस्तर हटाया साफ बिस्तर बिछा दिया…
कमरे में रूम फ्रेशनर छिड़क कर सुखदेव जी के कपड़े बदलते हुए बोली – पिताजी आज आप फैमिली डाक्टर के पास चलेंगे…
पता नहीं आपको क्या होता जा रहा है??
दिनों-दिन आप अपनी याददाश्त खोते जा रहे हैं…
कोई कार्य कर के भूल जाते हैं..
बाथरूम लगने पर बिस्तर गीला कर देते हैं…
दिन और रात का फर्क भूलते जा रहे हैं…
आप हीं बताइए इस तरह से औरों पर आश्रित रहना क्या अच्छा लगता है आपको??
जूही किसी अभिभावक की भांति सुखदेव जी को समझा रही थी और वो किसी अबोध बालक की तरह मासुमियत से उसकी बाते सुनने के बाद बोल पड़े – ठीक है अबसे तुम जो कहोगी मैं वहीं करूंगा माई…
मैं अब बिस्तर गीला नहीं करूंगा…
सुखदेव जी को जबसे भूलने की बिमारी हुई थी वो कभी-कभी अपनी बहू जूही को माई बोलने लगते थे…
जूही सुखदेव जी की। एकलौती बहू थी…
जब वो विवाह के बाद ससुराल आई थी तब सबकुछ कितना अच्छा था…
हां उसकी सास गिरजा देवी बीमार अवश्य रहती थी परंतु बिस्तर पर पड़े पड़े भी वो जूही का कितना ख्याल रखा करती थी….
सुखदेव जी ऊर्जा विभाग में एक उच्च पद पर कार्यरत थे…
सास-ससुर और पति और वो…
चार लोगों का सीमित और खुशहाल परिवार…
जूही के विवाह से पूर्व हीं उसके पिता ने बता दिया था कि ससुराल जाकर उसे बीमार सास की सेवा करनी है क्यों कि लड़के वालों की विवाह के लिए बस यहीं एक शर्त थी कि उन्हें लड़की ऐसी चाहिए जो बीमार सास को संभाल सकें…
जूही ने हामी भर दिया और अपने पिता को वचन दिया कि वो कभी शिकायत का मौका नहीं देगी….
ससुराल आने पर सास ने व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे हीं बहू का स्वागत किया…
ऐसा नहीं था कि बहू होने के नाते गिरिजा देवी का ध्यान केवल जूही हीं रखा करती थी…
सुखदेव जी समय-समय पर गिरिजा देवी को दवा देना, बाथरूम ले जाना,, खाना खिलाना और भी ढेर सारे कार्य कर के हीं आफिस जाया करते थे…
सुखदेव जी के लिए बिस्तर पर पड़ी हुई पत्नि कोई बोझ नहीं बल्कि उनके जीवन का सहारा थी परंतु गिरिजा देवी के दोनों गुर्दे खराब होने के कारण वो ज्यादा दिनों तक उनका साथ नहीं दे पाई….
और इस दुनिया से चल बसी…
सुखदेव जी के लिए ये सदमा किसी आघात की तरह उनके हृदय में लग गया…
लगभग दो-तीन महीनों तक उन्होंने किसी से बात तक नहीं किया…
रात-रात भर जागने लगे…
खाना-पीना सब छोड़ दिया…
डाइबिटीज के मरीज सुखदेव जी ने अपने-आप को और भी बीमार बना लिया…
ना तो उन्हें पोते-पोतियों की सुध-बुध रही और ना ही बेटे बहू की फिक्र….
और सेवानिवृत्त होने के कारण नौकरी भी नहीं रही कि कुछ समय हीं सही वो उसमे भी व्यस्त रहें…
जीवनसंगिनी के चले जाने का दुःख उन्हें अन्दर हीं अंदर खाने लगा…
लगभग एक साल तक तो ऐसे हीं चलता रहा परंतु जब बेटे ने उन्हें बताया कि उसका स्थानांतरण दूसरे शहर में हो गया है तो सुखदेव जी तो जैसे अनाथ हीं हो गये…
सुखदेव जी को इस दुनिया में अगर किसी से सबसे अधिक प्रेम था तो वो उनका बेटा हीं था…
बेटे के दूसरे शहर चले जाने के बाद सुखदेव जी एकदम से टूट गये…
पूरे दिन बस यहीं रट लगाए रहते कि जूही बेटा बाबू कब आएगा???
जूही ने तो अनेकों बार अपने पति से कहा कि, नौकरी छोड़ कर चले आईए परंतु ऐसा संभव नहीं हो पाया…
बेटे के दूर जाने के ग़म ने सुखदेव जी की हालत और भी खराब कर दी और उनकी भूलने की बीमारी बढ़ती हीं गई…
दिन को रात और रात को दिन कहा करते थे..
अपने हीं घर के पास आकर अक्सर वो अपना पता भूल जाया करते थे…
धीरे-धीरे जूही ने उनका बाहर जाना हीं बंद कर दिया…
हर सुबह और शाम वो स्वयं उन्हें बाहर ले कर जाने लगी…
सुखदेव जी को बाथरूम और बेडरूम का फर्क भी पता नहीं चलता था और जहां मन करे वहीं बाथरूम कर दिया करते थे….
वो तो जूही जैसी बहू थी जो सुखदेव जी का इतना ध्यान रखती कि कभी भी ना तो उनके कपड़े गीले और बदबूदार रहते और ना हीं घर….
जूही किसी प्रशिक्षित नर्स की तरह उनकी दवाओं के साथ-साथ उनके खान-पान तक ख्याल रखा करती थी….
हर पंद्रह दिनों के अंतराल पर वो फैमिली डाक्टर के पास उन्हें ले कर जाया करती थी…
बच्चों को स्कूल छोड़ने के बाद वो अस्पताल जाती सुखदेव जी के सारे जरुरी टेस्ट करवाती दवा लाती…
और सुखदेव जी की फेवरेट डिश खिला कर घर लाती…
अस्पताल के सारे नर्स और डाक्टर सुखदेव जी और जूही के इस अनूठे रिश्ते को देख कर अत्यंत प्रसन्न होते…
डाक्टर तो सुखदेव जी को देखते हीं सबसे पहला प्रश्न यहीं करते कि , बताइए सुखदेव जी ये लड़की आपकी कौन है???
क्या नाम है इसका??
सुखदेव जी चाहे कुछ भी भूल जाएं परन्तु जूही का नाम कभी नहीं भूलते थे….
सुखदेव जी की हालत दिनों-दिन बिगड़ती हीं जा रही थी…
भूलने वाली बीमारी इस कदर बढ़ने लगी कि,वो
अब तो खाकर भी कहते कि मैंने खाना नहीं खाया है…
पूरे दिन बहू जूही से ऐसे-ऐसे सवाल पूछते जिसका उत्तर देना उसके लिए असंभव हो जाता…
हर सुबह जूही सर्वप्रथम उन्हें जगा कर याद दिलाती कि देखिए पिताजी सुबह हुई है अभी… आप फिर से मत पूछिएगा कि सुबह है कि रात…
सुखदेव जी के बेटे जब भी छुट्टी पर आते अपने पिता की हालत देखकर परेशान हो जाते और जूही का पूरे दिन बाबूजी की सेवा और उनका ध्यान रखते हुए देखकर आश्चर्यचकित रह जाते…
जूही कैसे संभालती है तुम पापा को???
मैं तो बस सोच कर हीं घबराहट हो जाती है…
जूही बस मुस्कुरा कर रह जाती…
जूही के मायके में भतीजे का मुंडन संस्कार था और उसे
भी मायके जाना था…
पिताजी को किसके सहारे छोड़ कर जाए कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था….
उसने प्रदीप से कहा तो बोले – मैं दीदी से कह दूंगा वो आ जाएगी…
पापा की देखभाल कर देगी तुम जाकर घुम आना वैसे भी तुम्हें डेढ़ साल हो गए हैं तुम मायके नहीं गयी हो…
जूही ने हामी भर दिया…
प्रदीप ने बड़ी बहन सरिता को फोन लगाया और पूरी बात बताई तो वो कहने लगी – अरे बाबू मैं कैसे आ सकती हूं..
दोनों बच्चों की पढ़ाई है, ट्यूशन है… और तुम्हारे जीजाजी फिर कैसे अकेले में सब मेंटेंन करेंगे…
और मुझे तो पिताजी के रहन-सहन खान-पान और दवाओं के विषय में भी कुछ भी पता नहीं है…
ऐसी भी क्या जरूरत आन पड़ी है जो जूही को मैके जाना पड़ रहा है…
घर में बीमार बुजुर्ग हो तो मैके जाना जरूरी है क्या???
जाने क्यों प्रदीप को सरिता का कहा हुआ अंतिम वाक्य बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा…
उसने कहा कि, दीदी आपको आना है तो आईए नहीं तो रहने दीजिए… जूही को मैके जाना चाहिए या नहीं इसका निर्णय मैं करूंगा…
इतना कहकर उसने फोन काट दिया और झट-पट अपनी गाड़ी लेकर निकल गया…
जूही पूछती रह गई उसने कुछ नहीं बताया…
लगभग दो घंटे बाद जरुरत की ढेर सारी वस्तुएं और दवाईयां ले कर प्रदीप वापस आया और बोला – जूही कल तुम मैके जा रही हो और मैं तुम्हें छोड़ने जाऊंगा…
जूही ने आश्चर्य से पूछा – और पिताजी??
प्रदीप ने दृढ़ स्वर में कहा – पिताजी हमारे साथ चलेंगे….
क्या??? मारे आश्चर्य के जूही का मुंह खुला का खुला रह गया…
परंतु प्रदीप लोग क्या कहेंगे???
लोगों की फिक्र तुम मत करो…
बाबूजी की सेवा तुम करती हो लोग नहीं…
और बुढ़ापे का सहारा ना बेटा ना बेटी बल्कि बहू होती है और बहू जहां रहेगी वहीं ये भी रहेंगे…
जब एक बेटी के घर पिता रह सकते हैं तो दो-चार दिनों के लिए बहू के मैके क्यों नहीं रह सकते…
सोच बदलने से हीं समाज बदलता है….
जूही प्रदीप की ओर देख कर गर्व से भर उठी और फटाफट मैके जाने की तैयारियों में जुट गई…
डोली पाठक