“कब से तुम्हें फोन लगा रही हूँ मोनिका ” ? फोन नहीं उठाती हो बेटा ! मुझे चिंता हो जाती है , अगर ब्यस्त भी हो तो एक बार बोलकर फोन रख दिया करो मुझे तसल्ली होगी ” । एक स्वर में चेतना जी अपनी बेटी को अपनी चिंता का कारण सुनाए जा रही थीं , जो कि बहुत औपचारिकता सी बातें करती थी ।
थोड़ी देर तक मौन पसरा रहा ।ऐसा लगा जैसे कनेक्शन कट हो गया, आवाज़ नहीं सुनाई दे रही । कनेक्शन तो ठीक था लेकिन मोनिका ने चुप्पी साध रखी थी । “हेलो…”हेलो ! दो बार चेतना जी की तीखी आवाज़ सुनकर मोनिका विवश होकर बोलने लगी…”क्या बोलें मम्मी ?
आपलोगों ने कुछ बोलने लायक कहाँ छोड़ा है ? बोलते – बोलते मोनिका की आवाज़ भर्रा गयी और वह फोन रखने ही वाली थी कि उससे पहले चेतना जी ने बोला…”सुनो मोनिका ! बिना बात पूरी किए फोन नहीं काटना । हर छोटी बात का बखेड़ा बना देती हो, सामने वाले की बातों को भी तो समझने की कोशिश करो ।
बचपन की गलती की सजा हमे इस उम्र में दोगी ? फिर तो गार्जियन अपने बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए कुछ बोलने से भी डरेंगे ।”कुछ नहीं मम्मी ! अब क्या समझने को बचा है ।आप बार – बार एक ही बात याद दिला कर पुराने ज़ख्म को कुरेदा मत करिए । मोनिका ने सिसकते हुए कहा ।
चेतना जी अपने पति मदन जी से बोलने लगीं…”समझाइए ना मोनिका को आप ही, मेरी तो सुन ही नहीं रही । मदन जी ने चेतना जी के हाथों से फोन लेकर मोनिका से कहा..”बेटा ! शादी के चार साल होने वाले हैं, अब तक तुम पुरानी बातें नहीं भूल पाई, नए ज़िन्दगी में किस तरह तालमेल बना पाओगी ?
अभी तो स्नेह (,बेटा) भी छोटा है । दामाद जी से बात कर लेता हूँ, जल्दी टिकट कटवा लो फिर मिलेगा नहीं । मोनिका बोलते – बोलते रह गई । फोन रखकर मोनिका ने अपने पति अनुज को फोन लगाकर कहा…”अनुज ! आप ब्यस्त हैं क्या ? मुझे आपसे जरूरी बात करनी है ।
“हाँ बोलो न ! पर सुन लो , वही पुरानी बात नहीं छेड़ना । मोनिका का गुस्सा अनुज की बातें सुनकर बढ़ रहा था लेकिन किसी तरह वह काबू कर पाई ।
आँखें पोछते हुए मोनिका ने कहा…”सबको मेरी बात सुनने में आपत्ति है, ठीक है मैं नहीं बोलूँगी घुटती रहूँगी लेकिन बस मुझे आपसे ये कहना है कि मैं अपने मम्मी – पापा के घर नहीं जाऊँगी, अगर पापा फोन करें तो बोल दीजिएगा कि छुट्टी नहीं है, हमलोग नहीं आ पाएँगे ।
“मोनिका ! ये सब बातें ऑफिस में नहीं, बस मुझे घर पहुंचने में थोड़ी देर है फिर बैठकर आज तुम्हारी बात सुनूँगा । फिर से मायूस होकर मोनिका ने फोन रख दिया । अब वह अपने ढाई वर्ष के बेटे को लेकर पार्क चली गयी । पार्क में भी उसका मन पुरानी यादों में गोते लगाकर विचलित हो रहा था ।
पुरानी बातें उसे कब से बेचैन कर रही थीं । स्नेह को उसने गोद से उतारकर घास पर बिठाया और उसे वो दिन याद आने लगा जब वो ग्यारहवीं में पढ़ती थी और दोस्तों के घर बिन बताए चली जाती थी, बहुत चुहलबाज़ थी वो । पर बढ़ते उम्र के कारण उसके पापा देर से आने पर गुस्सा करते, कभी दो -तीन बार थप्पड़ भी दोस्तों के बीच मे लगा चुके थे ।
मम्मी बोलतीं..” सुधर जाओ नहीं तो ज़िन्दगी ऐसे ही निकल जाएगी । कभी सुखी नहीं रह पाओगी ।पापा भी आपाधापी में कभी बोल देते..”जीना हराम कर रखा है तूने । जब माँ बनेगी ना तब समझ आएगा । एक और दिन मोनिका ने टूर जाने के लिए पूछा तो मदन जी ने कहा…”हर दिन इतने शौक तुम्हारे कैसे पूरे करूँ ?
किसी रईस के घर जन्म लेना था । किसी दिन अपनी सहेली को देखकर मोनिका ने हेड फोन की इच्छा जताई तो मदन जी ने लाकर दे दिया, फिर दोस्तों की खींचातानी से वो टूट गया और उसने दूसरे हेड फोन की इच्छा जताई तो गुस्से में मदन जी ने कहा…”कभी चैन से नही रहोगी तुम ? इतना तंग करती हो ना कभी सुखी नहीं रहोगी ।
सजने – संवरने की शौकीन थी वो पर महँगी चीजें लाकर बर्बाद कर देती थी तो चेतना जी चिढ़ से बोलतीं..पैसे के बगैर तरसोगी देख लेना ।सब कुछ बर्दाश्त कर लेती थी मोनिका पर पापा की ये बातें उसे अंदर तक नश्तर की तरह चुभ जाती । कभी गुस्से रूपी विरोध में वह बोल भी देती…”हर वक़्त मुझे # बद्दुआ क्यों देते रहते हैं पापा ?
अभी गहराई तक अतीत में हिलोरें ही लेना शुरू कर रही थी मोनिका कि तब तक अनुज का फोन आया । “कहाँ हो ? घर आ जाओ , मैं आ गया । मोनिका ने जल्दी से नन्हें स्नेह को लिया और घर आ गयी । घर पहुँचते ही देखा..”अनुज ने चाय बनाकर रखी है । मोनिका सुस्ती से सोफे पर बैठ गयी ।
आँखें बंद करके दो मिनट टेके रही तब तक अनुज ने कहा…”कितना टेंशन लेकर चलोगी ? क्या हुआ? क्यों नहीं जाना चाहती मायके ? हमारी शादी को चार साल होने वाले हैं मम्मी जी तीन बार मिलकर गईं । तुम्हें क्यों इतना परहेज है ? मोनिका ने सारी बातें जो खुद के लिए महसूस की थीं वो बतायीं और सुबक – सुबक कर रोने लगी ।
अनुज ने चाय की तरफ इशारा करते हुए कहा..”जल्दी पी लो फिर जरूरी बात कहूँगा । मोनिका ने सिसकते हुए पूरी चाय खत्म की ।
अब मोनिका के करीब जाकर अनुज समझाने लगा..कैसी लड़की हो तुम ? मायके की बातों को इतना दिल से नहीं लगाते ? माँ – बाप की बुरी बातों को भी आशीर्वाद समझ कर चलते हैं। और उन्होंने जन्म दिया है तो गुस्सा करने का भी अधिकार है और तैश में इंसान कुछ भी बोल जाता है ।
“ठीक है अनुज ! मैंने मान लिया । सब बोल जाता है इंसान । पर क्या करें जब किसी की # बद्दुआ लग जाए तो ? पापा बोलते थे कभी सुखी नहीं रहोगी ? देखा ना आपने ? स्नेह के जन्म के बाद मेरी भी तबियत खराब रहने लगी है और उसके दिल मे जो छेद है उसकी वजह से भी मैं सुखी नहीं । ”
उफ्फ ! कैसी बातें तुम करती हो मोनिका ? इन बातों का उससे क्या लेना देना ? शरीर मशीन की तरह है, मशीन में जैसे जंग लगता है उसी तरह शरीर मे बीमारी होती है तो दवा की जरूरत है । इतना पढ़ – लिखकर तुम क्या क्या सोचने लगती हो ? दिमाग से निकालो इन बातों को । बच्चे छोटे होते हैं तो माँ – बाप गुस्से में बहुत कुछ बोल जाते हैं। इसका मतलब ये नहीं कि उसका अलग रूप देखने की कोशिश किया जाए ।
बचपना अलग है और ये ज़िन्दगी अलग है , ऐसे दिल पर बोझ लेकर मत जियो वो मम्मी – पापा हैं तुम्हारे । और डॉक्टर ने बोला है ना कि ग्यारह साल तक मे सब ठीक हो जाएगा । एक साल तुम्हें दवा खाना है । रही बात जॉब की तो कोशिश तो कर ही रहा हूँ जैसे ही कोई अवसर पसन्द आ जाए मिल जाएगा जॉब । आज बॉस ने मीटिंग के लिए ही बुलाया था ।उल्टी सीधी बातें दिमाग मे न डालो ।
अब अनुज की बातें सुनकर मोनिका का दिमाग हल्का लग रहा था, उसने लंबी साँस लेकर मुँह पर पानी का छींटा लिया और खुद को तरोताज़ा किया । अब मुस्कुराकर अनुज ने पूछा..”मैडम ने सारी शिकवे शिकायतें भुला दी हों तो मैं ससुराल के लिए टिकट लेकर वहाँ जाने की खुशी मना सकता हूँ ।
हां में सिर हिलाते हुए मुस्कुराकर मोनिका ने जवाब दिया । “वादा करो मुझसे वहाँ चलकर तुम खुल के मम्मी पापा के सामने दिल से माफी मांगोगी और सारी बातें भूलकर उन्हें अपराधमुक्त करोगी ..? अनुज ने अपना हाथ मोनिका के आगे बढ़ाते हुए कहा तो मोनिका अपनी नम आँखें पोछते हुए अनुज के गले लग गयी ।
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह
#बद्दुआ