अरे!! भाभी आपका तो चेहरा लटक गया है, क्या हुआ जो मायके नहीं जाओगे? देखो मेरी फाइनल की परीक्षाएं है और मम्मी के घुटनों में दर्द रहता है और जब भाभी घर पर हो तो ननद को आराम मिलना ही चाहिए,
आप कहीं नहीं जायेगी, आप चली जायेंगी तो घर का काम कौन करेगा? अपना मायका भुल जाओ अब ससुराल आपके लिए सब कुछ है।
वाणी की ननद अदिति लगातार बोले जा रही थी, और वाणी की सास एकदम चुप थी, आखिर वो घर की बड़ी है तो उन्हें बोलना तो चाहिए, फिर अदिति तो अभी घर में सबसे छोटी है,
उसे तो अपनी भाभी से ढंग से बात करनी चाहिए, वाणी मन ही मन सोच रही थी कि तभी अदिति फिर बोलती है, देखो भाभी परीक्षा में अंक कम आयेंगे तो इसकी जिम्मेदार आप ही होंगे क्योंकि आप पूरा घर संभाल लेते हो, अगर आप ही घर से चली जाओगी तो मम्मी काम करेगी और मुझे उनकी मदद करवानी होगी, तो मै पढूंगी कब?
हां, बहू अदिति सही कह रही है, अभी मायके मत जाओं, अब तुम्हारी बहन मायके आ रही है तो वो अकेली रहकर चली जायेगी, अब जरूरी है क्या? उसके साथ में रहो, इसकी परीक्षाओ के बाद चली जाना, स्नेहलता जी ने रोकते हुए कहा।
वाणी समझ गई थी कि अब वो दीदी से मिल नहीं पायेगी, दीदी दूर से आ रही है और अभी उनके बच्चों की छुट्टियां है, उसका बड़ा मन था कि वो उनके साथ रहें, दीदी दो साल में एक बार ही तो आती है,
अब जब स्नेहलता जी और अदिति ने मिलकर फैसला सुना दिया है तो ये फैसला तो उसके पति संदीप को हर हाल में मानना होगा क्योंकि वो अपनी मां और बहन के हर फैसले में अपनी मूक सहमति दे देते हैं, उसके खिलाफ वो कभी नहीं बोलेंगे।
अदिति की परीक्षाएं तो बस बहाना है, अभी उसमें एक महीना है, लेकिन जब से वो इस घर में आई है उसकी कार्य कुशलता ही उसकी दुश्मन बन गई है, मां के दिये गये संस्कारों के कारण उसने आते ही पूरे घर को संभाल लिया, सबको काम हाथों में करके दिया और अब सब उसके आदी हो गये थे, घर के हर छोटे से लेकर बड़े काम के लिए वाणी को ही पुकारा जाता था, यहां तक कि सबके चाय पीने के बाद जूठे कप उठाने के लिए भी वाणी को ही आवाज दी जाती थी।
अब ऐसे में ससुराल छोड़कर मायके जाना सबको अखर रहा था, पर उसे भी तो दो साल बाद अपनी दीदी से मिलने का बड़ा मन था। आज सुबह ही पापा का फोन आया था कि समधन जी वाणी की बड़ी बहन आई हुई है तो उसे भेज दीजिएगा, कुछ दिन बहनें साथ में रह लेंगी।
ये सुनते ही स्नेहलता जी से पहले अदिति ने अपना फैसला सुना दिया और परीक्षाओं की चर्चा छेड़ दी।
अभी दो साल पहले ही वाणी की शादी संदीप से हुई थी, दोनों की शादी पारिवारिक सहमति से हुई थी।
वाणी हर तरह से घर के कामों में दक्ष थी, उसने सामान्य पढ़ाई लिखाई की थी पर घरेलू कामों को वो घोंटकर पी जाती थी, उसकी शादी में उसकी बड़ी बहन आई थी और उसके बाद वो उनसे मिली नहीं, दो साल बाद उसका भी उनके साथ रहने का बड़ा मन था, यूं तो वीडियो कॉल हो जाता था पर जो बात साथ रहने में थी वो वीडियो कॉल में नहीं थी।
अदिति की बड़ी बहन नियति भी बाहर रहती थी, उसकी शादी चार साल पहले हुई थी, वो अपने पति के साथ विदेश में रहती थी, उसने अदिति को और अपनी मम्मी को समझाया कि भाभी को मायके भेज दो, परीक्षाओं तक कोई मेड रख लो, फिर उसकी दीदी बार-बार तो नहीं आयेगी पर नियति की बात अनसुनी कर दी गई।
रात को वाणी ने अपने पति संदीप से बात करनी चाही तो वो तो जैसे अंध भक्त की तरह अपनी मम्मी और छोटी बहन का फैसला मान ही चुका था, सही तो है क्या करोगी जाकर? ससुराल आकर मायके को भुलाना पड़ता है, पहले ससुराल के रिश्ते होते हैं, अब मायके के रिशते पीछे छूट गये है, मेरी मम्मी ऐसी तकलीफ में कैसे काम करेंगी ? अदिति के भी परीक्षाएं है, अगर उसके कम नंबर आयेंगे तो तुम ही इसकी जिम्मेदार होंगी।
ये सुनकर वाणी को बहुत दुख होता है जिस पति के भरोसे ससुराल आई थी कि वो उसका दर्द समझेगा पर वो तो जैसे उसकी बात सुनना और समझना ही नहीं चाहता हैं।
अगले दिन वाणी के पापा का फिर से फोन आता है वो स्नेहलता जी से वाणी को मायके भेजने को बोलते हैं, लेकिन वो साफ मना कर देती है, और फोन रख देती है, वाणी का मन टूट जाता है, वो घर के कामों में लगी रहती है, आते-जाते वक्त देखती है कि ननद तो हर वक्त टीवी और मोबाइल में ही घुसी रहती है, एक दिन भी उसने उसको पढ़ते हुए नहीं देखा था, और सासू मां जिनके घुटनों में दर्द रहता था, वो रोज नीचे बगीचे की सैर को निकल जाती थी और घंटों वहीं अपनी सहेलियों से बातें किया करती थी।
वाणी समझ गई थी कि इन सबको आराम कि लत लग गई थी, इसलिए उसे जाने नहीं दिया गया।
अदिति की फाइनल की परीक्षाएं हो गई थी और अब उसके लिए लडका देखा जा रहा था, आखिर उम्र तो शादी लायक हो ही गई थी, संयोग से बड़ी जल्दी उसका रिश्ता रौनक के साथ तय हो गया और शादी की तारीख भी तय हो गई, अब वाणी पर दोहरी जिम्मेदारी आ गई थी, शादी की तैयारियां भी करनी थी और उसे घर भी संभालना था, कब सुबह से रात होती उसे पता ही नहीं चलता था।
अदिति की शादी के लिए लगभग सभी तैयारियां हो चुकी थी और शादी के दिन नजदीक आ रहे थे, नियति भी अपने बच्चों और पति के साथ विदेश से आ गई थी, दोनों बहनों में बड़ा प्यार था बस एक अंतर था। नियति जहां अपनी भाभी की हर तकलीफ समझती थी, वहीं अदिति को अपनी भाभी को परेशान करने में मजे आते थे, जब भी वाणी को मायके जाना होता था तो नियति उसे भेजने को कहती और अदिति अपनी मम्मी की आड़ में उसे मना कर देती।
एक रात दोनों बहनें बात कर रही थी तो नियति ने समझाया कि, वो भाभी के साथ ऐसा व्यवहार क्यों करती है? मायके जाना हर लड़की का अधिकार होता है, फिर शादी के बाद मायके से रिश्ते तो खत्म नहीं हो जाते हैं, ससुराल माना पहले है पर मायका भी है।
शादी के बाद मायके की बहुत याद आती है मैं वाणी का दर्द समझती हूं क्योंकि मैं खुद भी तो शादीशुदा हूं, पर ये चीज तुझे भी अब शादी के बाद समझ आयेगी।
क्या दीदी!! आप भी बेकार की बातें लेकर बैठ गई हो, रौनक मेरी हर खुशी का ध्यान रखते हैं, मैं जब
भी कहूंगी मुझे यहां लेकर खुद आ जायेंगे, मेरी तो सास और ननद भी बहुत अच्छी है, मेरे साथ ये सब नाटक नहीं होंगे।
हां, मेरी बहन काश! तेरे साथ यही सब हो, तुझे मेरे और वाणी की तरह ससुराल वालों के दबाव में रहना नहीं पड़े। अदिति की शादी हो जाती है, शुरू -शुरू में उसे सब अच्छा लगता है और वो जल्दी -जल्दी मायके आ जाती है, पर जैसे-जैसे वो अपना घर संभालती है, सारी जिम्मेदारी उस पर डाल दी जाती है।
एक दिन उसका मायके आने का बड़ा मन था, उसने अपने पति रौनक से कहा कि, मुझे मम्मी की याद आ रही है, मुझे ले चलिए तो उसकी सास ने टोक दिया, एक ही शहर में रहने का ये मतलब नहीं है कि तुम रोज-रोज मायके चली जाओं, शुरूआत में तो ठीक था पर तुम इसी तरह जाती रहोगी तो घर कौन संभालेगा?
ये सुनकर अदिति का चेहरा उतर जाता है उसे अब अपनी भाभी वाणी का दर्द समझ आता है, क्योंकि जिस उम्र में उसकी शादी हुई थी उसी उम्र में वाणी की शादी हुई थी, छोटी उम्र और अपने मायके से दूर रहना बड़ा ही मुश्किल होता है।
एक दिन उसकी सुबह नींद देर से खुलती हैं तो उसकी सास उलाहना देती है, बहू मायके वालों से देर रात तक फोन पर बात मत किया कर, सुबह ऐसे ही देर से उठेगी तो घर के सारे काम पड़े रह जायेंगे।
ये सुनकर उसे रह- रहकर अपना गलत व्यवहार याद आ रहा था, एक दिन वाणी को उठने में देरी हो गई थी तो सबसे ज्यादा उसकी छोटी ननद चिल्ला रही थी, देर रात तक अपने मायके वालों से बातें करती रहती है, अपनी दीदी से वीडियो कॉल करती रहती है, तभी तो इनकी नींद नहीं खुलती हैं, मुझे इनके कारण कॉलेज जाने में देरी हो जाती है, नाश्ता समय पर नहीं मिलता है और कपड़े भी प्रेस नहीं होते हैं, पता नहीं क्यों हर समय अपने घरवालों से फोन पर लगी रहती है?
मम्मी आप भाभी से इनका फोन छीन लीजिए।
अदिति की आंखें भर आई, सच में शादी के बाद रह-रहकर मायके की कितनी याद आती है ये उसे अब समझ में आ रहा था।
इसी तरह एक साल निकल गया, नियति के ससुराल में शादी थी वो उसी में शामिल होने के लिए विदेश से आ रही थी, उसके आने की सबसे ज्यादा खुशी अदिति को हो रही थी, क्योंकि अदिति शादी के बाद अपनी दीदी के साथ एक दिन भी नहीं रही थी।
शादी में जाने के बाद नियति जल्द ही अपने मायके अपनी मम्मी और भाभी के साथ रहने को आ गई, और अब उसे अपनी छोटी बहन के आने का इंतजार था।
अदिति भी मायके जाने के नाम से खुश हो रही थी, पर तभी अचानक उसकी सास बाथरूम में फिसल जाती है, फ्रेक्चर तो नहीं होता है पर दर्द पांवों में बहुत हो रहा था।
उसी वक्त अदिति के पापा का फोन आता है, वो अदिति को मायके भेजने को कहते हैं पर उसकी सास मना कर देती है, समधी जी पैरों में दर्द है, बहू को भेज दूंगी तो
यहां घर का काम कौन करेगा? अब जितने दिन मायके रहना था, ये रह ली अब तो हमारे घर की बहू है, अब हम सब इधर तकलीफ पायें और बहू मायके में आराम करें इसीलिए तो हमने शादी नहीं की थी, रही बात इसकी दीदी की तो फिर कभी बहनें मिल लेगी, इस साल नहीं तो अगले साल ही मिल लेंगी, और आगे बात सुने बिना ही उन्होंने फोन रख दिया, ये सारे शब्द अदिति के कानों में गर्म शीशे की भांति पिघल रहे थे।
आखिर उसका किया उसने भुगत ही लिया, उसने हमेशा अपनी भाभी वाणी को मायके जाने से रोका, और हमेशा उनका दिल दुखाया, शायद उसे भाभी के दिल से निकली बद्दुआ लग गई, उसके साथ भी वो ही सब कुछ हो रहा है, आज उसे अपने किये गये हर कर्म का फल मिल रहा है, आज वो अपनी भाभी की जगह पर खड़ी है, और खुद को असहाय महसूस कर रही थी, आंखो में आंसू और दिल में बड़ा ही दर्द था।
तभी उसकी मम्मी का फोन आया, अदिति तू तो कहती थी कि तेरे ससुराल वाले बड़े अच्छे हैं और अब उन्होंने ही तुझे भेजने से मना कर दिया, क्या हुआ जो बहू को दो चार दिन के लिए भेज देते, दोनों बहने साथ रह लेती, आपस में दिल की बात कर लेती, खुश हो लेती।
तभी वो बोलती है, मम्मी मेरे ससुराल वाले तो अच्छे नहीं हैं, पर वाणी भाभी के ससुराल वाले भी कौनसे अच्छे हैं? हमने भी तो भाभी को कई बार मायके नहीं भेजा, उनका दिल दुखाया, कभी परीक्षाओं का तो कभी बीमारी का बहाना बनाया, आज यही सब मेरे ससुराल वाले कर रहे हैं तो क्या अनोखा और नया कर रहे हैं? भाभी ने कभी कुछ कहा नहीं, लेकिन उनके मन से निकली बद्दुआ ने मुझे आज वहीं पर खड़ा कर दिया, जहां कल भाभी खड़ी थी।
सब ऐसा ही करते हैं, बहू एक बार घर में आ जायें, तो फिर वो उनके हाथों की कठपुतली बन जाती है, उसके मायके जाने पर लगाम कस दी जाती है, ससुराल वालों की मर्जी से वो आती है जाती है, कभी -कभी मायके भेजने के बाद भी बीच में ही बुला ली जाती है, बहू की अपनी मर्जी अपनी भावना तो बिल्कुल भी नहीं है, वो तो सांस भी ससुराल वालों के हिसाब से लेती है।
अब मुझे भाभी का दर्द समझ आ रहा है, नियति दीदी मुझे समझाती थी पर मैं कभी भी नहीं मानी, पर आप तो मुझे समझा सकती थी, कि भाभी के साथ ऐसा गलत व्यवहार मत कर, आप तो मुझे सही शिक्षा दे सकती थी,
आप तो खुद एक बहू रह चुकी है, आपको तो भाभी के दर्द का अहसास होता होगा, ये दर्द का अहसास मुझे अब समझ में आया है । आप भाभी के साथ अच्छा व्यवहार करती मुझे भी समझाती तो आज आपकी बेटी को अपने मायके आने के लिए तरसना नहीं पड़ता।
ये सब सुनकर स्नेहलता जी की बोलती बंद हो गई, उन्होंने फोन रख दिया। फोन स्पीकर पर था नियति और वाणी सब बातें सुन रही थी, दोनों ही निशब्द थी।
नियति कुछ दिनों के लिए रहकर वापस चली गई, कुछ महीने बीते थे, अदिति चार दिनों के लिए मायके आई थी पर उसी वक्त वाणी की मम्मी की बीमारी का फोन आता है, तो उसने आगे होकर कहा, मां भाभी को मायके भेज दीजिए, इनकी मम्मी को इनकी बहुत जरूरत है।
भाभी आप आराम से जाइये, यहां की और मेरी जरा भी चिंता मत करिये, यहां मम्मी और मैं एक-दूसरे को संभाल लेंगे, अपनी ननद के मुंह से ये बात सुनकर वाणी को बहुत अच्छा लगा, और वो अदिति के गले लग गई।
हां, बहू अभी तुम्हारी मम्मी को ज्यादा जरूरत है, स्नेहलता जी ने भी जाने को कह दिया।
पाठकों, कुछ बातें कुछ अहसास तभी समझ में आते हैं, जब वो खुद पर बीतते हैं, सास-बहू, या ननद -भाभी का रिश्ता ऐसा ही है, ससुराल और मायके के रिश्तों का अहसास भी हर लड़की को शादी के बाद ही समझ में आता है। आप बहू का मन दुखाते हो तो आपकी बेटी कैसे सुखी रह सकती है?
धन्यवाद
लेखिकाअर्चना खण्डेलवाल
