” बस दीदी..आप बहुत बोल चुकीं..मैं जब से इस घर में आई हूँ, आप मुझमें कोई न कोई कमी निकालती ही रहीं हैं।फिर मेरी बेटी को..।ये भी नहीं सोचती कि वो आपके ही देवर की बेटी है।और आज तो आपने श्रद्धा को..।” कहते हुए आनंदी का गला भर आया।
” तो फिर यहाँ से चली क्यों नहीं जाती..पति जब रहा नहीं तो तुम्हारा यहाँ क्या काम..।” जेठानी कनकलता चिल्लाई।” फिर तो आनंदी भी उसी लहज़े-में बोली,” चली जाऊँ..अपना घर छोड़कर मैं कहाँ जाऊँगी..और क्यों जाऊँ..आपकी तरह मैं भी इस घर की बहू हूँ..।” कहकर पैर पटकती हुई आनंदी अपने कमरे में चली गई।
अपने माता-पिता की जान थी आनंदी।पिता रामलाल जब भी शाम को दुकान से आते तो घर में घुसते ही कहते,” मेरी लाडली कहाँ है?” और जब वो सामने आ जाती तो उसकी आँखें बंद करके उसके हाथ में उसकी पसंद का चाॅकलेट थमा देते हैं।अपनी पत्नी से कहते,” देख निर्मला..मेरी बेटी को चौके में मत जाने देना..मैं उसे खूब पढ़ाऊँगा..एक अफ़सर बनाऊँगा..।” एक दिन वो स्कूल से घर आई तो पिता ने उसे बताया कि तुम्हारा छोटा भाई आने वाला है।वो बहुत खुश थी..अपनी सहेलियों को बताती कि मैं अपने भाई के साथ खेलूँगी..उसे लेकर स्कूल आऊँगी..।फिर एक दिन उसके घर में रोना-धोना मच गया।बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ और उसकी माँ भी नहीं..।पिता से लिपट कर वो माँ को याद करके खूब रोती थी।तब रिश्तेदारों के ज़ोर देने पर उसके पिता उसके लिए नई माँ ले आए जो देखने में बहुत सुंदर थी लेकिन स्वभाव में..।
नई माँ के लिए आनंदी एक मुफ़्त की नौकरानी के सिवा कुछ नहीं थी।उस दस साल की बच्ची से बर्तन-कपड़े धुलवाते उन्हें तनिक-भी दया नहीं आती थी।रामलाल तो नई पत्नी के रूप में ही डूबे रहते.।बेटा हो जाने के बाद तो उन्हें ये भी याद नहीं रहा कि उनकी एक बेटी भी है..उसे भी अपने पिता के प्यार की ज़रूरत है।
आनंदी स्कूल न जाये, इसके लिये नई माँ कभी उसे काम में उलझा देती तो कभी गोद में अपना बेटा थमा देती।यदि कभी वो कह देती कि बाद में कर देती हूँ, फिर तो उस वक्त मुँह में जितनी गालियाँ आतीं,सब उस पर उड़ेल देती,” नासपिटी..कुलक्ष्णी..सर्वनाश हो तेरा..तू नर्क में जाए..।” ये सब सुनकर उसका मन दुखी हो जाता, तब उसकी सहेलियाँ उसे समझाती कि किसी के कोसने से कभी बुरा नहीं होता है।तू तो बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।फिर तो उसने रात-रात भर जाग कर पढ़ाई की और अच्छे अंकों से बारहवीं की परीक्षा पास की।अब आगे की पढ़ाई के लिए वो पिता से बात करने ही वाली थी कि नई माँ ने उसका विवाह तय कर दिया।लड़का महेश एक मोटर गैराज़ में मैकेनिक था।परिवार में माँ और बड़े भाई-भाभी थे।पिता ने उनकी हाँ में हाँ मिला दिया और उसके सपने टूट कर बिखर गये।
विवाह से एक रोज पहले आनंदी अपनी किताबों को सहेज कर रख रही थी कि तभी नई माँ आ गई।किताबों को फेंकते हुए बोलीं,” अब इनका क्या अचार डालेगी..।” पहली बार आनंदी ने उनका हाथ पकड़ लिया था,” नहीं माँ..यही तो मेरी पूँजी है।” उसका कहना नई माँ को अपमान लगा, सो उन्होंने उसे # बद्दुआ दे डाली,” जा ना ससुराल..तेरा पति तेरी सारी अकड़ निकाल देगा..जब सास-जेठानी सुबह-शाम गालियाँ देंगी..तब तेरी अक्ल ठिकाने आ जाएगी..।” सुन कर वो भीतर तक सहम गई थी।
मन में अनेक शंकाएँ लिए आनंदी ने ससुराल में कदम रखा तो उसकी सास ने खुले दिल से उसका स्वागत किया।पति का भरपूर प्यार मिला और जेठ से भी उसे मान-सम्मान मिला।जेठानी ईर्ष्यालु स्वभाव की थी।गाहे-बेगाहे उसकी कमी निकालने लगती लेकिन उसने कभी ध्यान नहीं दिया।कुछ समय बाद उसने एक प्यारी-सी बच्ची को जनम दिया।सास ने दोनों को बहुत आशीर्वाद दिया, तब उसने अपनी सहेली को फ़ोन करके कहा,” मीनू..तू ठीक कहती थी कि बद्दुआ दुआ बन जाती है।मुझे यहाँ बहुत प्यार मिलता है..मैं बहुत खुश हूँ।”
अपने दोनों बेटे-बहू की खुशियाँ देखकर आनंदी की सास ने एक दिन हमेशा के लिए अपनी आँखें मूँद लीं।उसकी बेटी श्रद्धा पढ़ने में होशियार थी।अपनी कक्षा में वो हमेशा प्रथम आती थी जो देखकर कनकलता की छाती पर साँप लोटने लगता क्योंकि उसका बेटा एक्सट्रा ट्यूशन लेकर भी फ़ेल हो जाता था।बस तभी से वो श्रद्धा के बारे उल्टा-सीधा बोलने लगी।हालांकि उसका पति उसे समझाता था कि अपने घर की बेटी के लिए ऐसी अशुभ बातें मत बोलो लेकिन..।अपनी भाभी के दुर्वचनों से आहत महेश ने आनंदी से कहा कि अगले महीने से सेठजी मेरी तनख्वाह बढ़ा रहें हैं, तब हम लोग अलग शिफ़्ट हो जायेंगे।
तनख्वाह बढ़ने की खुशखबरी देने महेश घर आ ही रहा था कि सामने से तेज आती ट्रक ने उसे अपनी चपेट में ले लिया और उसने वहीं तड़पकर दम तोड़ दिया।आनंदी की माँग सूनी हो गई और बेटी पितृविहीन हो गई।उस वक्त उसे विश्वास हो गया कि किसी के बुरा सोचने से बुरा हो ही जाता है।अब उसने एक ही घर में रहते हुए अपनी जेठानी से दूरी बना ली और अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोचने लगी।सेठजी से मिला पैसा खत्म होने लगा तो उसने घर से बाहर अपने कदम निकाले और दो घरों में साफ़-सफ़ाई का काम करने लगी।उसके काम और व्यवहार से खुश होकर उसकी मालकिनों ने उसे दो घर और दिला दिये।उसके जेठ तो खुश थे कि आनंदी आगे बढ़ रही है लेकिन कनकलता नहीं..।वो तो बस आनंदी के दिल को चोट पहुँचाने के नये-नये बहाने खोजने में लगी रहती थी।
श्रद्धा दसवीं कक्षा में आ गई थी।आनंदी ने उसके लिए ट्युशन लगा दिये थे।आज उसे आने में ज़रा-सी देर क्या हुई, कनकलता ने तुरंत हाथ नचाते हुए उसे #बद्दुआ दे दी,” कह देती हूँ आनंदी, एक दिन तेरी लाडली किसी के साथ भागकर हम सबका नाक कटा देगी।”
बात अपने चरित्र की होती तो आनंदी सह जाती लेकिन बेटी के चरित्र पर..।वो कैसे सहन करती।उसने पलटकर जवाब तो दे दिया था लेकिन भयभीत भी थी कि जेठानी का हर वक्त कोसना कहीं..।उसने अलग घर लेकर रहने का फ़ैसला कर लिया जो आसान तो नहीं था लेकिन अपनी बेटी की भलाई के लिए वो सब कुछ करने को तैयार थी।
अगले दिन उसने अपनी मालकिन शर्मा आंटी के सामने अपनी समस्या रखी तो उन्होंने अपने पास वाली बस्ती में उसे एक खोली दिला दिया और कुछ पुराने बरतन- कपड़े देकर उसकी गृहस्थी जमाने में मदद भी कर दी।शर्मा आंटी की मदद से उसे दो घर और मिल गये थे।अब वो दिन-भर घर-घर जाकर काम करती और श्रद्धा मन लगाकर अपनी पढ़ाई करती।
अच्छे अंकों से बारहवीं की परीक्षा पास करके श्रद्धा ने CLAT की परीक्षा पास की और लाॅ काॅलेज़ में दाखिला ले लिया।काॅलेज़ से फ्री होकर वो लाइब्रेरी में जाकर पढ़ाई करती ताकि किताबों पर खर्च कम हो।
आनंदी बेटी की मेहनत देखती तो दिन-रात भगवान से उसकी सफ़लता के लिए प्रार्थना करती लेकिन जब कभी बेटी की तबीयत खराब हो जाती या उसका कोई पर्चा खराब हो जाता तो उसका मन घबरा उठता था।वो रुआँसी होकर मिसेज़ शर्मा से कहती,” आँटी जी.. कहीं नई माँ और जेठानी की बात..।”
” पगली..उनके कहने से क्या होता है..इन नेताओं को तो हम लोग दिन रात गालियाँ देते रहते हैं लेकिन कभी उनका बाल भी बाँका हुआ है..नहीं ना..।पत्थर को ठोकर मारने पर खुद को चोट लगती है और पत्थर का भला हो जाता है, बिना चले ही वो दूर चला जाता है।कुछ समझी..।” आनंदी के गाल पर हल्की-सी चपत लगाकर मिसेज़ शर्मा कहतीं तो उसे तसल्ली हो जाती कि सब अच्छा होगा।
समय अपनी गति से चलता रहा।अंततः आनंदी की मेहनत और धैर्य रंग लाया।लाॅ की परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ।श्रद्धा ने अपने काॅलेज़ में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।मिठाई का डिब्बा लेकर आनंदी शर्मा आंटी के घर दौड़ी।हाँफ़ते-हाँफ़ते बोली,” आँटी..मेरी श्रद्धा फर्स्ट आई है..वो वकील बन गई है।मैं तो इतना डर रही थी कि..।” उसका चेहरा खुशी-से खिल उठा था।मिसेज़ शर्मा बोलीं,” अब तो विश्वास हुआ ना कि बद्दुआ दुआ बन जाती है।”
” हाँ आँटी..फिर भी..।”
” चल, बातें न बना।डिब्बा लाई है तो मिठाई खिला ना..।”
” ओह! मैं तो भूल ही गई..।” कहते हुए आनंदी ने उन्हें मिठाई खिलाई, डिब्बा उनके हाथ में देकर अपने बाकी घरों में भी खुशखबरी सुनाने और मिठाई खिलाने चली गई।
श्रद्धा ने कुछ दिनों तक अपने सीनियर के साथ काम किया और फिर निजी प्रैक्टिस करने लगी।जायदाद के एक केस में उसने गरीब-दुखिया को उसका हक दिलाया जिसके लिए उसकी काफ़ी प्रशंसा की गई..उसका नाम होने लगा और केस भी मिलने लगे।
खोली छोड़कर आनंदी अब किराये के पक्के मकान में रहने लगी।बेटी के कहने पर उसने काम करना बंद कर दिया लेकिन कभी-कभार अपनी मालकिनों से मिलने ज़रूर जाती थी।
श्रद्धा ने अपने साथी वकील सोमेश के साथ विवाह कर लिया।उसके लाख कहने पर भी आनंदी बेटी-दामाद के साथ रहने को तैयार नहीं हुई।अपने नाती-नातिन के साथ समय बिताकर वो वापस अपने घर आ जाती और अपने पति की तस्वीर से बातें करके खुश रहती।श्रद्धा और सोमेश उसका पूरा ख्याल रखते और समय-समय पर उसका हाल-समाचार पूछते रहते।
कुछ लोगों से आनंदी को पता चला कि जिस बेटे पर नई माँ को घमंड था, वही अब उनके साथ दुर्व्यवहार कर रहा है।जेठ जी के जाने के बाद जेठानी के शरीर का दाहिना भाग लकवाग्रस्त हो गया जिसकी वजह से वो भी अभी नारकीय जीवन जी रहीं हैं।सुनकर उसे दुख तो हुआ लेकिन क्या कर सकती थी..।किसी ने ठीक ही कहा है कि दूसरों के लिए गड्ढा खोदने वाला खुद ही गड्ढे में गिरता है।
विभा गुप्ता
# बद्दुआ स्वरचित, बैंगलुरु
हमेशा बद्दुआ देने वाले का बुरा होता है क्योंकि ज़ुबान उसकी गंदी होती है।जिसे दी जाती है, उसके लिए तो वो दुआ बन जाती है क्योंकि मेहनत करके वो सफलता के नये कीर्तिमान रच देता है जैसे कि आनंदी और श्रद्धा ने किया।