धरती के जीव – करुणा मलिक

पवन ! ये मोहल्ले के सारे कुत्ते हमारे घर के बाहर  क्यों  बैठे हैं? दो दिन से देख रहा हूं कि कुत्तों की फौज घर के सामने खड़ी रहती है।

वो दरअसल साहब जी ,माँ जी ने यहाँ इनके लिए रोटियाँ डाली हुई हैं…………

घर के बाहर बैठे गार्ड की बात सुनकर शहर के एस० डी० एम० मि०  श्रवण कुमार चुपचाप गाड़ी से उतरकर अंदर चले गए । श्रवण कुमार जानते थे कि माँ कुत्तों को रोटियाँ देनी बंद नहीं करेंगी। 

अभी वे घर में घुसे ही थे कि उनका बड़ा बेटा योग्य खीजते हुए बोला –

पापा, आप दादी को क्यों नहीं समझाते कि यह उनका गाँव नहीं है। घर के बाहर खड़े कुत्तों की भीड़ तो आपने भी देखी ही होगी? आपको क्या पता कि आज मुझे आपकी माँ की वजह से कितना शर्मिंदा होना पड़ा। मेरी ग़लती हो गई थी कि मैं अपनी दोस्त मुस्कान को अपने साथ घर ले आया था ………… उस काले मुँह वाले कुत्ते को देखकर तो मुस्कान को उल्टी सी आ गई थी।

अरे बेटा! इन्हें बताने का कोई फायदा नहीं……… तुम भूल गए क्या, कुछ साल  पहले मुरादाबाद में इनकी माँ की आदतों के कारण मेरी अपनी सहेलियों के बीच कितनी बेइज्जती हुई थी………शुक्र है कि वहाँ से जल्दी ही ट्रांसफर हो गया।

स्वाति! मैं आफिस से लौटा हूं, कम से कम एक प्याला चाय तो पिला दो यार ! और तुम बेटा जी ! चिल्ल करो, बड़े – बुजुर्ग है, अब इस उम्र में आदतें आसानी से नहीं बदलती ।

इतना कहकर श्रवण कुमार मजाकिया अंदाज में मुस्कराते हुए शर्ट के बटन खोलते हुए अंदर चले गए। 

मैंने तुम्हें पहले ही कहा था ना कि इनके ऊपर हमारी बातों का कोई असर नहीं होता, चाय का आर्डर देकर कपड़े बदलने गए हैं, चलो उठो तुम भी……… कल मुस्कान के साथ कहीं बाहर खाने पर चले जाना।

श्रवण कुमार ने कपड़े बदले और मां के कमरे की तरफ जाते हुए बोले–

स्वाति डियर ! मेरी और अपनी चाय लेकर माँ के कमरे में आ जाओ, वहीं इकट्ठे चाय पिएँगे, उन्हें भी अच्छा लगेगा।

ऊँह! उन्हें अच्छा लगे या बुरा ……… मेरा जहाँ मन करेगा वहाँ बैठकर चाय पिऊँगी।

उसने नौकरानी के हाथ श्रवण कुमार की चाय माँ के कमरे में भिजवा दी । श्रवण कुमार जानते थे कि स्वाति कभी भी यहाँ बैठकर चाय नहीं पिएगी इसलिए उन्होंने नौकरानी से उसके बारे में कोई सवाल नहीं पूछा।

श्रवण कुमार ने गौर किया कि जब वे माँ से पूरे दिन की दिनचर्या के बारे में जानकारी ले रहे थे तो माँ की आँखों में अचानक एक अलग सी चमक आ गई थी जब उन्होंने बताना शुरू किया कि —

जानता है मुन्ना………आज तो नहा-धोकर धरती के जीवों को जिमाने गेट तक ही गई थी कि जब बारह जीव मेरे चारों तरफ़ खड़े हो गए………मैं सोचूँ कि पहली बार तुमसे मिली भला , तुम सब मुझे कैसे पहचान गए पर बेटा! आजकल आदमी आदमी को भूल सकता है, धरती के जीव कभी नहीं भूलते।

आप भी ना माँ , क्या कहती रहती हैं? आदमी धरती का जीव नहीं है क्या………

जाने दे मुन्ना, फिर कभी समझाऊँगी। चल मैं भी घड़ी भर टहल देती हूं, जा तू भी बच्चों को देख ले ।

इतना कहकर कौशल्या जी बाहर की तरफ चली गई और श्रवण कुमार भी घर में बनाए आफिस के कमरे की तरफ मुड़ गए।

अगले दिन सुबह कौशल्या जी ने सुबह नाश्ते की टेबल पर योग्य को न देखकर कहा–

बहू, योग्य कहाँ है? कल से नहीं दिखा… तबीयत तो ठीक है ना उसकी ……  इस नए शहर में उसका मन लगा भी कि नहीं? मुरादाबाद में तो खूब चहकता था, हर रोज मेरे से कहानी सुनकर ही सोने जाता था पर यहाँ जिस दिन से आई  हूँ ,  उसे देखने को तरस गई। हां……… यामिनी जरुर दिन में चक्कर लगा जाती ।

माँ जी, योग्य बड़ा हो गया है, कालेज जाता है……… अब कहानी सुनने के दिन जा चुके हैं उसके । आप नाश्ता कीजिए।

पहले मेरी टोकरी ला दे, धरती के जीवों को जिमा आऊँ जरा…… 

दादी! आपने क्या धरती के जीवों का ठेका ले रखा है? नौकर-चाकर भी क्या सोचते होंगे हमारे बारे में……… कम से कम पापा की पोस्ट का तो ख्याल कीजिए।

 अपने कमरे से बाहर निकलते हुए योग्य बोला ।

योग्य! ये तमीज है बड़ों से बात करने की ? मेरी माँ से इस तरह बात करने की हिम्मत कैसे हुई?

सारी पापा ………पर……

मुन्ना……… क्या मैं बस तेरी माँ हूं, इसकी दादी नहीं ? तू अपना नाश्ता कर और आफिस था । मैं योग्य से बात कर लूंगी।

स्वाति! समझा लेना अपने बेटे को……… अगर उसने बड़ों का लिहाज़ नहीं किया तो इलाज करना मुझे भी आता है………

इतना कहकर श्रवण कुमार वहाँ से चले गए। उनके जाने के बाद कौशल्या जी अपनी टोकरी उठाकर बाहर की तरफ चली गई। रास्ते में जाते – जाते श्रवण कुमार सोच रहे थे कि आज शाम को ही शायद माँ गाँव जाने की जिद पकड़ लेंगी। 

इधर घर का माहौल भी सामान्य नहीं था । कौशल्या जी ने अपनी दिनचर्या पूरी की। ना तो स्वाति ने उनसे कोई बात की और ना ही उन्होंने बात करने का प्रयास किया। शाम को श्रवण कुमार आफिस से आए, माँ के पास बैठकर चाय पी । वे मन ही मन डर रहे थे कि बस अब माँ गाँव जाने का जिक्र करेंगी पर जब माँ रोज़ की तरह टहलने चली गई तब उनकी जान में जान आई। 

रात के खाने के बाद सब अपने-अपने कमरों में चले गए पर कौशल्या जी पोते के कमरे में गई।

योग्य……… बेटा, थोड़ी देर बात करेगा दादी से ? 

आज नहीं……… मुझे एक असाइनमेंट कल कालेज में जमा करनी है, उसे पूरा करना।

अरे……… मेरे लड्डू गोपाल! तू तो ठीक से झूठ बोलना भी नहीं सीख पाया । कल तो इतवार है बेटा………

इतना कहकर कौशल्या जी पोते के पास बेड पर बैठ गई और बोली —

आ……आज तुझे एक कहानी सुनाती हूँ।

मैं छोटा बच्चा नहीं हूँ जिसे राजा-रानी या कुत्ते – बिल्लियों की कहानी सुनाकर बहका दोगी। आज आपकी वजह से पापा ने मुझे डाँटा , नौकरों के सामने मेरी बेइज्जती की ……… 

पर मैं तो आज तक तेरे पापा को डाँट देती हूँ …… पगले! माँ- बाप की डाँट में भी अनसुना आशीर्वाद छिपा होता है। और तू बता…… जिस तरह तूने दादी के साथ बात की, क्या वो ठीक था?

योग्य…… तेरे पापा केवल सात महीने के थे जब तेरे दादाजी हमें छोड़कर चले गए थे। उनके बूढ़े माँ-बाप , दो छोटी बहनें और हम दोनों मां- बेटा……… किसी का कोई सहारा नहीं था । जवान बेटे की मौत के बाद मेरे सास-ससुर केवल जिंदा लाश बनकर रह गए थे पर मेरे सामने दो जवान ननदों और मेरे नन्हें से मुन्ना की जिम्मेदारी थी । मेरे खुद के माता-पिता ने कहा था —

देख कौशल्या……… लंबा जीवन तेरे सामने पड़ा है,  दुनिया में जवान विधवा का रहना हँसी – खेल नहीं होता ।हम भी कब तक साथ निभाएँगे । आज तो हमारे हाथ – पैर चल रहे हैं पर कल को हम भी बहू- बेटे के अधीन हो जाएँगे , ब्याह के लिए मान जा , रही तेरी ननदों की तो इनका ब्याह हो ही जाएगा।

पर ……… मेरा मन नहीं माना कि मेरा मुन्ना किसी की दया पर पले, मेरी ननदों का मायका उजड़े और मेरे बूढ़े अधमरे सास-ससुर का बुढ़ापा बिगड़े। मैंने उसी दिन कमर कस ली और घर का मर्द बन गई। हाथों की चूड़ियाँ उतारकर, किस्मत ने इन्हें फावड़ा पकड़ा दिया था , कमाई का साधन केवल थोड़ी सी खेती थी। जब मुँह अंधेरे उठकर खेतों की तरफ चलती थी ना , तो दिल में धुकधुकी लगी रहती थी कि हे ईश्वर! तेरा ही सहारा है……… और सचमुच ईश्वर ने धरती के जीवों को हमेशा मेरा साथ देने के रूप में मेरे आसपास रखा । दुनिया तो इन्हें कुत्ते कहकर दुतकारती है पर मेरे लिए ये मेरे सहयोगी, मेरे सुरक्षा – कवच और मेरे सुख-दुख के हिस्सेदार हैं। 

और तो क्या बताऊँ ………… घर की लाज भी इन्हीं जीवों की वजह से बची थी । मेरी बड़ी ननद की शादी के बाद छोटी ननद घर में अकेली रहती थी। सास- ससुर तो जहाँ बैठ गए, बैठे ही रहते थे, मुन्ना बहुत छोटा था और मैं खेत- बाहर के काम में उलझी रहती थी ऐसे में एक आवारा  लड़के की बातों में छोटी ननद फँस गई और जिस रात उसके साथ घर से जाने की योजना बनाई थी उस रात इन जीवों ने भौंक- भौंककर ……… मुझे सोने ही नहीं दिया। वो तो अगले दिन सुबह खेतों की तरफ जाते समय मुझे घर के पीछे एक कपड़ों की गठरी दिखी तो मैंने डरा-धमकाकर उससे बात उगलवाई और अपने भाई से कहसुन कर दस दिन में उसका ब्याह करवाया ।

इतना कहकर कौशल्या जी चुप होकर विचारमग्न हो गई। उनका ध्यान तब भंग हुआ जब दादी की गोद में लेटे योग्य ने कहा —

उसके बाद दादी ??

योग्य के बालों को सहलाते हुए कौशल्या जी बोली–

उसके दो सालों के बाद पहले मेरी सास चली गई और फिर ससुर । मुन्ना को मेरे भाई – भाभी पढ़ाई की खातिर अपने साथ दिल्ली ले गए क्योंकि गाँव में स्कूल के नाम पर केवल इमारत थी । अब मैं घर में बिल्कुल अकेली , अगर ये धरती के जीव ना होते तो शायद घर में रोटी भी समय पर ना बनती । कई बार रसोई में जाने का न नहीं करता था पर इनके कारण भोजन बनाना पड़ता था।

अब तू ही बता बेटा ! इन्हें जिमाए बिना मैं रोटी कैसे खाऊँ ? मैं  इन्हें भूखा रखके इनकी #बद्दुआ कैसे लूँ , आज मेरे दिन फिर गए तो दुःख के साथियों को भूल जाऊँ ? या गाँव जाने की बात कहकर अपने मुन्ना का दिल दुखाऊँ ? तू तो नए जमाने का पढ़ा- दिखा लड़का है और मैंने तो सुना कि धरती को बचाने की खातिर बड़े -बडे काम हो रहे हैं। धरती के जीवों की इज्जत के बिना धरती माँ को नहीं बचाया जा सकता।

कौशल्या जी ने समझा कि योग्य सो गया है इसलिए उन्होंने धीरे से पोते के सिर के नीचे हाथ लगाकर उसे लिटाना चाहा कि अचानक बगल में तकिया रखते हुए योग्य बोला—

दादी! यहीं सो जाइए ना …… काफी देर हो चुकी है।

ना बेटा……तू आराम से सो जा , मेरी नींद जल्दी खुल जाती है और तेरा तो इतवार है ना ? देर तक सोने का दिन।

चलिए फिर, मैं आपको कमरे तक छोड़ आया हूँ ।

अगले दिन कौशल्या जी नहा-धोकर अपने धरती के जीवों को जिमाने के लिए टोकरी माँगने ही वाली थी कि उनकी नजर रसोई से निकलते योग्य पर पड़ी जो हाथ में टोकरी पकड़े उनकी ओर चला आ रहा था। डाइनिंग टेबल पर बैठे श्रवण कुमार ने धीरे से अपनी बेटी से कहा–

आखिर दादी ने पोते को आदमी बना ही दिया।

अरे पापा ! भैया तो थोड़ी देर पहले मम्मी से कह रहे थे कि हम तो केवल पर्यावरण को बचाने की खोखली बातें करते है पर मेरी दादी सचमुच धरती के जीवों से प्रेम करती हैं

लेखिका : करुणा मलिक

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