बद्दुआ – प्रतिमा श्रीवास्तव

अम्मा भूखी हूं दो दिन से कुछ खाने को दे दो। मेरे बच्चों ने भी कुछ नहीं खाया है। दरवाजे पर खड़ी एक भिखारिन जो भूख से तड़प रही थी

और उसकी आवाज भी धीमी सी पड़ने लगी थी।बार – बार पूकार रही थी तभी घर की मालकिन सरोजा जी बाहर आईं और उस पर बरस पड़ी कि,” तुम लोगों को काम धाम करना नहीं रहता है बस मुफ्तखोरी करने को कह दो दिन भर। खाना मुफ्त का नहीं आता है हमें भी रात दिन मेहनत करनी पड़ती है तब मिलता है समझी”।

हां,” मेम साहब पता है लेकिन अभी मैं बहुत मजबूर हूं।मेरा सामान चोरी हो गया है और ना तो मैं अपने घर जा सकती हूं ना ही कुछ खरीद सकतीं हूं। अगर आप हम पर मेहरबानी कर देंगी तो कुछ सोचूंगी”। भिखारिन नहीं थी वो शायद कोई मजबूरी थी उसकी।

” मैंने बहुत कहानियां सुनी है जाओ किसी और को बेवकूफ बनाओ। यहां तुम्हारी दाल नहीं गलेगी समझी।”

बहुत ही रूखा व्यवहार था सरोजा जी का। इतनी बहस की जरूरत नहीं थी कुछ खाने को दे ही देती बेचारी को।

दरवाजे पर बैठ गई थी शायद उसमें ताकत ही नहीं थी।

“ठीक है मेम साहब ….. लेकिन एक बात हमेशा याद रखियेगा की वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता है इंसान का। क्या पता कल आप हमारी जगह खड़ी हों,तब आपको समझ में आएगा की किसी की मजबूरी का मजाक नहीं बनाना चाहिए।”

उसकी बातें सुनकर मंगेश जी बाहर आ गए जो अब तक सोच रहे थे कि सरोजा कुछ तो खाने का दे देगी। सरोजा, “अगर किसी की मदद नहीं कर सकती तो मत करो लेकिन किसी की लाचारी का मजाक तो नहीं उड़ाओ। उसकी बद्दुआ नहीं लो वरना वक्त कब किसे राजा से रंक बना दे कह नहीं सकते हैं।”

बहन!” तुम रूको… मैं लाता हूं कुछ खाने का” कहकर मंगेश जी अंदर गए और रसोई घर से कुछ खाने का और बच्चे के लिए दूध लेकर आए।

मां – बेटी खाने पीने की सामग्री पर ऐसे टूटे थे जैसे जन्मों से भूखे हों और खाए जा रहे थे। कभी पानी पीतीं कभी खाना खाती। बच्चा भी बहुत भूखा था।

देखा सरोजा,” हर कोई एक जैसा नहीं होता है।”

” सही कहा जी.. .. लेकिन आजकल ऐसे बहुत लोग होते हैं,जो झूठ बोल कर बेवकूफ बनाया करते हैं।”

ये बात गलत नहीं है क्योंकि देखा गया है कि हट्टे कट्टे लोग

भी काम ना करना पड़े तो भीख मांगते हैं। इसी लिए मदद करने वाले लोग भी समझ नहीं पाते की सच में कौन जरूरतमंद है कौन झूठा है।

धन्यवाद आपका साहब जी,” मैं गांव जा रही थी कि एक चोर ने रास्ते में मेरा सब सामान चोरी कर लिया और मैं दो दिन से दर बदर भटक रहीं हूं। कहां जाऊं क्या करूं समझ में नहीं आ रहा था।भूख के मारे हमारा बुरा हाल हो गया था इसलिए मजबूरन हमें आपके दरवाजे पर आना पड़ा। साहब कोई यकीन करें ना करें लेकिन मेरा भगवान जानता है कि मेरे पास हांथ फ़ैलाने के सिवा कोई चारा नहीं था।”

“कौन से गांव से हो? मैं तुम्हारा टिकट करा देती हूं। तुम बच्चे के साथ यहां वहां नहीं भटको ‌” सरोजा जी बोलीं।

“मालकिन बहुत दुआएं दूंगी आपको अगर आप हमारी मददगार बनेंगी भिखारिन हांथ जोड़ कर बोली।

मंगेश जी ने उसके घर जाने का टिकट कराया और कुछ रुपए भी दिए। बद्दुआ अब दुआओं में परिवर्तित हो गई थी।

साहब जी हम आपका अहसान जिंदगी भर नहीं भूलेंगे।

सच बात है की किसी की बद्दुआ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि वक्त किसको कहां खड़ा कर दे कह नहीं सकते हैं। कभी कभी अंजाने में किए गए गलत काम की भी सजा भुगतनी पड़ती है इंसान को।

                                    प्रतिमा श्रीवास्तव                                     नोएडा यूपी

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