समीर जी के रिटायरमेंट का समय जैसे -जैसे पास आता जा रहा था उनका उत्साह,जोश भी उतना ही बढ़ता जा रहा था।वे अब अपने लिए जीना चाहते थे।जीवन के एक -एक पल का भरपूर आनंद उठाना चाहते थे।जिन खुशियों की चाहत में पूरा जीवन तरसे उन्हें अब उन्हें दोनों हाथों से समेट लेना चाहते थे।
उत्साही स्वर में पत्नी नीरू जी से बोले नीरूअब मैं तुम्हारी सारी शिकायतें दूर कर दूंगा। तुम्हें मेरा साथ मेरा वक्त चाहिए था ना ,अब वक्त ही वक्त होगा हमारे पास एक दूसरे के लिए। तुम्हें शिकायत थी कि मैं तुम्हें कहीं घूमाने नहीं ले गया अब
लम्बे -लम्बे टूर प्रोग्राम होंगे जितना कहोगी, जहां कहोगी तुम्हें घूमाने ले जाऊंगा ।अब हम अपनी जिंदगी अपने लिए जिएंगे।
कैसी बातें करते हो इस उम्र में यह सब करते अच्छा लगेगा क्या।लोग क्या कहेंगे।
लोग क्या कहेंगे उनका तो काम ही है कुछ कहना बड़ी बेपरवाही से बोले। और उम्र क्या होती है वह तो केवल गिनती है जब मन में जोश हो तो उम्र को कौन देखता है।
पूरी उम्र तो परिवार, बच्चों के लिए जिए अब समय आ गया है अपने लिए जीने का।यह तो था समीर जी का सपना जिसे वे खुली आंखों से देख रहे थे।
उधर उनके बच्चे बेटा-बहू, बेटी -दामाद भी उनके रिटायरमेंट के बाद उनके लिए कुछ योजना बना रहे थे।
बेटा-पापा को बहुत सारा पैसा मिलेगा रिटायरमेंट के बाद उससे मैं एक बड़ी गाड़ी लूंगा फिर उसमें बैठ शान से दीप्ति और बच्चे के साथ घूमने जाया करूंगा। और हां
दीप्ति के लिए एक सुंदर सा डायमंड सेट खरीद दूंगा कब से कह रही है।उसकी सहेलियां किटी पार्टी में पहनकर आती हैं तो उसे शर्म महसूस होती अब वह भी शान से पहनकर जाएगी।
मम्मी-पापा को अब इतने पैसों की क्या जरूरत है।अब इस उम्र में ना उन्हें कहीं आना ना जाना। मम्मी घर के काम में दीप्ति की मदद कर दिया करेंगी तो दीप्ति को अपने लिए समय मिल जाएगा।
बहू-अब ये दोनों सारा दिन घर में बैठे -बैठे रोटियां तोड़ेंगे।हर समय फरमाइश होती रहेगी। मुसीबत मेरी जान को आ गई ।अब इनका खर्चा उठाओ और नखरे भी। मैं तो मम्मी जी को अपने साथ काम पर लगा लिया करूंगी, अरे खायेंगे तो कुछ तो काम करेगी बुढ़िया।
बेटी -अब पापा को ऑफिस तो जाना नहीं होगा सो उनका काम तो अब रह नहीं जाएगा वहां रहकर अब मम्मी क्या करेंगी। मम्मी को तो मैं अपने पास बुला लूंगी मेरी काम में मदद हो जाएगी और बच्चे को भी सम्हाल लेंगी। आया को हटा दूंगी सो मेरे पैसे भी बचेंगे। ठीक है ना एक पंथ दो काज। पापा का क्या है खाना ही तो देना है, इतना तो दीप्ति भाभी कर ही देंगी।
दामाद -मौन तटस्थ भाव से सब देख सुन रहा था। किन्तु पारिवारिक मामलों में कोई दखलंदाजी नहीं कर रहा था।
पलक झपकते ही दो माह निकल गये और समीर जी का सेवानिवृत्ती का समय आ गया।ऑफिस में जोरदार पार्टी हुई।वे समस्त स्टाफ एवं अन्य लोगों के साथ मेल मिलाप से रहते थे। उनके अच्छे व्यवहार के कारण ही आज उनकी विदाई के समय सबकी आंखों में आंसू थे। उन्हें धूमधाम से बैण्ड बाजे के साथ फूल मालाओं, उपहारों से लदी गाड़ी से घर तक पहुंचाया गया।
घर पर पत्नी,बेटा -बहू, बेटी -दामाद, समीर जी की बहनें, जीजाजी, भाई-भाभी एवं कुछ और पास के खास रिश्तेदार मौजूद थे। सबने उनका स्वागत किया। फिर दूसरे दिन बच्चों ने उनके सम्मान में एक पार्टी का आयोजन किया जिसमें उनके रिश्तेदारों के अलावा परिचित परिवारों को भी आमंत्रित किया गया था ।
पार्टी का आयोजन शाम को था और सुबह घर पर हवन करवाया। घर में सभी एक दूसरे से मिल रहे थे। हंसी खुशी का माहौल था। समीर जी बड़ी प्रसन्नता से अपनों के सामने जीवन की दूसरी पारी खेलने के प्रोग्राम को उत्साह से बता रहे थे।सब उनकी बातों का आंनद ले रहे थे। कुछ सराह रहे थे तो कुछ अपनी राय दे रहे थे। खाते-पीते,बतीयाते कब शाम हुई पता ही नहीं चला। और सब सज-धज कर पार्टी वाले स्थल की ओर चल दिए।
इधर सब लोग उनके भाग्य को सराहा रहे थे कि वे कितने भाग्यशाली हैं जो उनके बच्चे इतने लायक और संस्कारी हैं कैसी भव्य पार्टी का आयोजन किया है।
अपने बच्चों की तारीफ सुनकर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो रहा था। उधर नियती उनके लिए कुछ ओर ही सोच रही थी।यह सब खुशियां जैसे पल भर का तमाशा बन कर रह जाएंगी,यह तो समीर जी और नीरू जी सपने में भी नहीं सोचा था।
दो दिन में सब मेहमान रवाना हो गए। उन्होंने सबको साड़ी, ड्रेस एवं मिठाई के डिब्बे के साथ विदा किया।
अब रह गए थे केवल वे दोनों और उनके बच्चे।पूरा दिन तो वे इंतजार करते रहे कि शायद मम्मी -पापा पैसों के बारे में कुछ बात करें।वे उच्च पद से रिटायर हुए थे सो पैसा भी उसी हिसाब से करीब पैंतीस चालीस लाख रुपए तो मिले होंगे। जब रहा नहीं गया तो बेटे -बेटी ने ही बात छेड़ी।
पापा अब आपका क्या विचार है इस पैसे का क्या करेंगे।
क्या करेंगे, मतलब तुम कहना क्या चाहते हो।
पापा यदि हमें बांट दें तो मैं इससे एक बड़ी गाड़ी ले लूंगा। और दीप्ति के लिए एक डायमंड सेट ले लूंगा वह कई दिनों से कह रही है।
गाड़ी तो है घर में फिर गाड़ी की क्या आवश्यकता है।
पापा वह पुरानी है अच्छी नहीं लगती वह आपके काम आ जाएगी और मैं अपने लिए नई लेना चहता हूं।
बेटी भी पीछे नहीं रही हां पापा मुझे भी फ्लैट की ई एम आई भरनी पड़ती है इकट्ठा जमा करा दूंगी।
समीर जी और नीरू जी के होश उड़ गए अभी चार दिन हुए हैं और इन्हें इतना लालच। क्या ये हमारे ही बच्चे हैं यही संस्कार दिए थे हमने इन्हें। अपने मुंह का निवाला भी इन्हें पहले खिलाया और आज इनका ये रूप बेटा तो बेटा, बेटी भी।अब इसके आगे सोचने की क्षमता हम में नहीं है उन्होंने सिर पकड़ लिया।
बेटी बोली और हां पापा मैं मम्मी को अपने साथ ले जाऊंगी अब आपका तो कोई काम रह नहीं गया केवल खाने पीने का तो भाभी सम्हाल लेंगी मुझे थोड़ी मदद हो जाएगी बच्चे को सम्हालने में।
पापा -क्यों आया है ना बच्चे को सम्हालने के लिए।
पापा उसे हटा दूंगी । मम्मी सम्हाल लेंगी तो मेरी बचत भी हो जाएगी।
दीप्ति भी कहां पीछे रहने वाली थी बोली वाह दीदी आप मम्मी को ले जाएंगी तो मेरे काम और मेरे बच्चों को कौन देखेगा, ऊपर से पापा जी का काम भी मैं देखूं। नहीं यह मुझसे नहीं होगा मम्मी जी यहीं रहेंगी।
यह सब सुनकर मम्मी-पापा की आंखों में आंसू आ गए तो यह है असली चेहरा मेरे बच्चों का। मां सबको चाहिए एक अवैतनिक नौकरानी के रूप में, पापा किसी को नहीं चाहिए क्योंकि वह काम नहीं करेंगे,उनका तो करना पड़ेगा।इन बच्चों ने यह नहीं सोचा कि इस उम्र में हमें एकाकी जीवन देंगे। पति-पत्नी को अलग कर उन्हें एकाकी करना इनके लिए कितना आसान है यह नहीं सोचा कि हम एक दूसरे के बिना कैसे रहेंगे।
बेटा-पापा आप चुप कैसे हो गये अब इस उम्र मे आपको पैसों की क्या जरूरत है,आपकी जरूरतों को पूरा करने के लिए हम हैं ना आपके बच्चे।
मुझे दूसरों के आगे हाथ पसारने की आदत नहीं है। जिंदगी भर सिर उठा कर जिया हूं और आगे भी ऐसा ही रहूंगा।अब मैं और तुम्हारी मम्मी अपने हिसाब से
जिएंगे।अभी तक तो परिवार और तुम्हारे लिए जिए। तुम दोनों को उच्च शिक्षा दिलाकर अपने पैरों पर खड़ा कर दिया अच्छा कमा रहे हो शादी व्याह कर दिया अब दोनों अपनी व अपने परिवार की जिम्मेदारी स्वयं उठाओ।अब हमसे किसी भी तरह की उम्मीद मत रखना।अब हम अपनी जिंदगी की दूसरी पारी जिएंगे। पैसों की हरेक को आवश्यकता होती है
हमें भी है। मैं अपने हिसाब से अपने पैसों का उपयोग करूंगा। हमारे भी कुछ सपने थे जीवन में जिन्हें हमने जिम्मेदारीयों के चलते हृदय के एक कोने में दफन कर दिया था अब उन्हें वापस निकाल कर पूरा करेंगे।जीवन का आंनद लेंगे जो कि तुम लोगों की खुशियों, जरूरतों के कारण नहीं ले सके।जीने की , शौक पूरे करने की कोई उम्र नहीं होती जब मौका मिले तब जी भर
कर जिओ। और हां तुम्हारी मम्मी भी अब कोई काम नहीं करेंगी और ना ही कहीं जाएंगी। पापा की दो टुक बातें सुन दोनों बच्चे निराश हो गए।
खैर समय कब रूका है किसी के लिए । बेटी दामाद अपने घर चले गए और इनका जीवन बेटे बहू के साथ चलने लगा।
अभी पंद्रह दिन तो आराम से बीते समीर जी ने नोट किया कि नीरू जी कुछ परेशान सी रहतीं हैं।वे दोनों सुबह शाम पार्क में घूमने जाते थे किन्तु अब दो-चार दिनों से सुबह के समय नीरू जी उनके साथ जाने में आनाकानी करने लगीं थीं। कहतीं मेरे घुटनों में दर्द है तुम अकेले ही घूम आओ।वे अकेले ही चले गए किन्तु असलियत जानने के लिए वे जल्दी ही वापस आ गए तो देखा नीरू जी किचन में खडीं नाश्ता बना रहीं थीं।वे सब समझ गये उन दोनों का साथ बैठना , घूमना-फिरना बेटे -बहू को पच नहीं रहा था।
एक दिन बेटा बोला पापा यह क्या है आप दोनों हर समय सज-धज कर साथ ही बैठे रहते हो। क्या यह अच्छा लगता है कोई देखेगा तो क्या सोचेगा। इस उम्र में यह सब शोभा देता है।
क्यों क्या सोचेगा। मैं किसी और के साथ नहीं बैठता।हम पति -पत्नी हैं साथ बैठने में उम्र कहां से आ गई। जीवन भर तो काम के चक्कर में भागते रहे कभी साथ समय नहीं बिता सके और अगर अब अपनी इच्छा पूरी कर रहे हैं तो तुम्हें क्या आपत्ति है।
धीरे -धीरे घर का माहौल बदलने लगा।अब दीप्ति के स्वर मुखर होने लगे। खर्चा बहुत है। कभी बिजली का बिल बहुत आता है। एक दिन खाने में से दही की कटोरी गायब हो गई। समीर जी को खाने में दही के बिना नहीं चलता था सो उन्होंने आवाज लगाई दीप्ति बेटा आज तुम दही देना भूल गईं ।
नहीं पापा जी आज दही नहीं है।
क्यों।
वो दूध कम लिया था सो दही नहीं जमाया।
दूध कम क्यों लिया था।
वो पापा जी बहुत खर्च है सो कहीं तो बचत करनी पड़ेगी।
वे चुप हो गए।
चार दिन बाद थाली से सूखी सब्जी गायब हो गई और रात को सोते समय दूध भी नहीं दिया।
नीरू जी जानतीं थी दही भी रहता है और सूखी सब्जी भी बनी है, और दूध भी है
किन्तु उन दोनों को नहीं दिया जा रहा है। घर में शांति बनाए रखने के हिसाब से वे चुप थीं। समीर जी सब समझ रहे थे उन्होंने बेटे से कहा कि हमारे खाने में कटौती क्यों की जा रही है।
पापा अब आप रिटायर हो गए हैं आमदनी कम हो गई है तो कहीं तो कटौती करनी पड़ेगी खर्च बहुत है।
ये एका एक खर्च बहुत कैसे होने लगा अभी तक तो नहीं था और अभी तो घर का सारा खर्च मैं ही उठा रहा हूं और हमें ही कटौती का सामना करना पड़ रहा है ऐसा नहीं चलेगा।
पापा आप समझईये आप रिटायर हो चुके हैं आपको अब उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती है ज्यादा खाना पीना कैसे हजम करोगे सादा भोजन ही ठीक है।
फिर दूसरे दिन उन्होंने बेटे -बहू को बताया कि हम पंद्रह दिनों के टूर पर जा रहे हैं घूमने हिमाचल प्रदेश।
यह सुन दोनों हक्के-बक्के रह गए।बेटा बोला पापा आप लोगों की उम्र अब पहाड़ों पर घूमने की नहीं है। आपने सोचा है कि कितना खर्च आएगा।
आएगा तो तुम से नहीं मांग रहा मेरे पास है खर्च करने को।
पर पापा यदि पैसे को ऐसे घूमने-फिरने पर खर्च कर दिया जाएगा तो बचेगा क्या।इन सब फालतू कामों की क्या आवश्यकता है चुपचाप घर में रहो।
आज समीर जी का सब्र जवाब दे गया।वे गुस्से में बोले तुम अपनी गृहस्थी लेकर अभी अलग हो जाओ। मैंने तुम्हें पालने का ठेका नहीं ले रखा। हमें जेसे जीना है वैसे जिएंगे तुमसे मैं कुछ मांग नहीं रहा। क्या अच्छा लगता है क्या नहीं यह हमारी समस्या है,
तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं। अच्छा खासा कमाते होअपना खर्च स्वयं उठाओ।यह मकान मेरा है मैंने इसे अपनी खून पसीने की गाढ़ी कमाईं से बनाया है सो इस पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं। एक सप्ताह का समय देता हूं कहीं किराए का फ्लैट ढूंढ लो और जाओ यहां से।ना हमें देखोगे ना दुखी होओगे कि हम कैसे रहते हैं, क्या करते हैं, क्या खाते हैं।
ये हमारी जिंदगी की दूसरी पारी है जिसे हम भरपूर आनंद के साथ जीना चाहते हैं यदि तुम्हें नहीं पंसद तो अलग हो जाओ।ना हमारे रहने -सहने में, ना खाने में कोई कटौती होगी।अब तक जैसे रहे हैं जैसा खाया वैसे ही रहेंगे और खाएंगे तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं।
अपनी चाल को उल्टा पड़ते देख वे घबरा गये और माफी मांगने लगे किन्तु समीर जी का फैसला अडिग था।
शिव कुमारी शुक्ला
जोधपुर राजस्थान
27-9-25
स्वरचित एवं अप्रकाशित
लेखिका बोनस प्रोग्राम
कहानी****अष्टम कहानी