दुआ और बददुआ ऐसे शब्द है जिनमें सिर्फ एक ही अक्षर का फरक है।दुआ किसी को लग जाए तो आदमी के बारे न्यारे करती हैं और बददुआ जिसे लग जाए उसका सब कुछ छीन लेती हैं। दया और माया दो बहने थी।
अपने माता पिता रजत और कमला की दो संतान दया और माया।दया बचपन से ही अपनी मां से जुड़ी थी।उसका स्वभाव भी अपनी मां के समान दयालु था जबकि माया को अपने रूप का बचपन से घमंड था और अहंकार उसमें अपने पिताजी रजत से आया था।
रजत का कारोबार बहुत बड़ा था और वो हमेशा कहता की मेरी बेटी तो मेरा भाग्य बनकर आई है मेरा कारोबार इसी के आने से फैला है इसीलिए माया और भी इतराती दादी बुआ पापा सब की लाडली माया।ऐसा नहीं था कि मां माया को प्यार नहीं करती थी
पर वो उसके झूठे अहंकार और अकड़ से डरती थी।वो नहीं चाहती थी कि ये मुंहफट बने या किसी की बददुआ ले क्यों की वो हर किसी को हिकारत से देखती सब को कम आक ती।दूसरी तरफ दया थी जो अपने नाम के अनुरूप थी।
कोमल हृदय वाली सबकी सहायता करने वाली मां को सहयोग करने वाली सबका भला करने वाली इसलिए हर कोई उसे दुआ ही देता ।समय के साथ दोनो ने यौवन की दहलीज पर कदम रखा ।रजत हमेशा कहते मेरी किस्मत मेरी माया से जुड़ी है तो इसके लिए तो मै घर दामाद ही लाऊंगा।कमला रजत से कहती बेटी के सामने ऐसी बातें ना किया करो वो और घमंडी हो जाएगी
और जरा दया का भी सोचो वो बिचारी क्या सोचती होगी।पर रजत और माया किसी की ना सुनते।दादी भी कहती बहु जिसके भाग्य से सुख भोग रही हो उसे ही कोसने दे रही हो कमला बोली मां मै किसी को कोसने नहीं दे रही मै सिर्फ इतना चाहती हूं
कि वक्त से डरे ये व्यवहार इसको किसी मुसीबत में ना डाल दे। माया दिन ब दिन मगरुर होती जा रही थी। एक दिन सुबह सुबह घर में बहुत शोर था।माया जोर जोर से चिल्ला रही थीं उसकी आवाज सुनकर कमला भागी भागी आई बोली क्या हुआ।
सामने घर का नौकर मणि खड़ा था।कमला बोली मणि क्या हुआ।माया बोली इससे क्या पूछती हो ये तो चोर है।कमला बोली माया क्या कह रही हो? मणि सालों से यहां काम कर रहा है तुम उस पर ऐसे इल्ज़ाम क्यों लगा रही हो।
मम्मा कल पापा ने मुझे 25000 रुपए दिए थे। तब ये यही था और आज पैसे नहीं है ये कल पापा से पैसे माग रहा था। पापा ने मना कर दिया इसलिए इसने चुरा लिए।मणि बोला नहीं बहुजी मैंने चोरी नहीं किया है।
बाबूजी ने मना कर दिया तो मैं चला गया बहु मैने चोरी नहीं की। मणि गिड़गिड़ाता रहा पर माया और रजत ने एक ना सुनी और उसे पुलिस बुला ली उसके कमरे की तलाशी ली गई कुछ नहीं मिला इसलिए पुलिस ने छोड़ दिया।पर मणि ने काम छोड़ दिया और जाते जाते बोला कि जिस पैसे का इतना घमंड है
ना आप लोगों को ईश्वर करे वो ही ना रहे।मणि चला गया माया और दया की पढ़ाई पूरी हुई उनके लिए रिश्ते देखे जाने लगे।माया शादी शहर के बड़े बिजनेस मैन कैलाश नाथ के पोते समीर से हुई उनका हीरो का कारखाना थाऔर दया की शादी त्रिलोक चंद के बेटे विनय से हुई त्रिलोक चंद की बर्तनों की फैक्ट्री थी।दोनो बेटियां अपने घर में सुखी थी
इसी में माता पिता आनंदित थे। एक दिन रात को शॉर्ट सर्किट होने के कारण कैलाश नाथ के कारखाने में आग लग गई और सब कुछ खाक हो गया वो अर्श से फर्श पर आ गए।माया की तो दुनिया बदल गई कहा वो अमीरी में जीती थी आज वो पाई पाई को मोहताज थी। जरूरतें पूरी ना हाने पर वो अपने मायके वापस आ गई।
इस बुरे वक्त में पति का साथ देने की जगह वो मायके आकर बैठ गई। उस समय उसे दया और कमला ने इतना समझाया की अपने पति का साथ दो पर माया स्वार्थ में और पैसे की चकाचौंध में ऐसी अंधी थी कि उसने किसी की बात ना सुनी और रजत के घर आ कर ऐश की जिंदगी जीने लगी।
कमला ने समझने की कोशिश की तो रजत बोला अब मेरी बेटी कंगाली में तो नहीं जीएगी।कुछ दिन बीते रजत को भी बिजनेस में घाटा हुआ और उसका कारोबार भी डूब गया इतना कर्जा हो गया कि शेयर्स,ऑफिस,प्रॉपर्टी यहां तक की घर बेचने की नौबत आ गई।
सब कुछ तबाह हो गया।उधर दया के दयालु स्वभाव और धार्मिक प्रवृति के कारण उसके सास ससुर भी खुश थे उनका व्यवसाय तरक्की कर रहा था।दया को विनय जो भी पैसे देता वो बच।ती और बैंक में एफडी या आरडी करवा देती।जिस समय रजत के साथ ये हादसा हुआ तब दया
अपने परिवार के साथ वैष्णो देवी की यात्रा पर गई थी इसलिए उसे कुछ पता नहीं चला।जब वापस आई तो उसे इस बारे में पता चला ।वो अपने पिता के घर आई तो पता चला घर भी बिक गया है और माता पिता किराए के घर में रह रहे हैं।।मां कमला बोली बेटा ये इनके व्यहवार का ही परिणाम हैं ये किसी को कुछ समझते ही नहीं थे
इन्होंने बदुआये कमाई जिसका परिणाम इनके सामने है और तुमने दुआएं कमाई जो तुम्हारे साथ है आज पहली बार रजत और माया सिर झुकाए कमला की बात सुन रहे थे।जिन 25000 के लिए तुमने मणि को चोर ठहराया वो अगले दिन तुम्हारे दूसरे पर्स में पड़े मिले थे जो मैने तुम्हारे पापा को दे दिए थे मैने कहा भी था मणि को बुला कर माफी मांग लो
पर घमंड में तुम दोनों ने मेरी बात नहीं मानी।उस ईमानदार की हाय लगी है तुम्हे दुनिया में दुआ कमाओ बददुआ नहीं।आज माया अपने पिता का सब डूब गया तो उन्हें भी छोड़ कर चली जाओ तुम ना अपने पति की हुई उसके पास पैसा नहीं था तो तुमने उसे छोड़ दिया।दया बोली पापा आप चिंता मत कीजिए कुछ ना कुछ हो जाएगा
वो घर आई उसने अपने ससुर को सब बात बताई वो बोले बेटा हम तुम्हारे साथ है तुम्हे जो सही लगे वो करो अगले दिन रजत के घर दया अपने ससुराल वालों के साथ पहुंची।दया के ससुर बोले रजत जी मेरा मित्र नई बर्तनों की फैक्ट्री डाल रहा हैं तो आप ऐस आ मैनेजर उसे ज्वाइन कर ले सारा काम आपको ही देखना है
क्योंकि वो इनवेस्ट करने के परपज से काम कर रहा है आप अपनी फैक्ट्री समझिए और मुनाफा कमाए ।अपने यहां इसलिए नहीं क्योंकि पैसा संबंध बिगड़ता है इसलिए आप मैनेजर बनकर वहां आए और कार्य संभाले।
रजत बोला किन शब्दों में आपका धन्यवाद करू मै बता नहीं सकता। सब बात करके दया के ससुराल वाले वापस आ गए ये फैक्टरी उन्हीं पैसों से शुरू हुई थी जो दया ने बचाए थे पर पिताजी को एहसान ना लगे इसलिए उन्होंने ये बात गुप्त रखी इस फैक्टरी की असली मालकिन दया ही थी।
रजत फिर ट्रैक पर लौटे काम अच्छा चल निकला घर मान फिर वापस आ गया और साथ ही साथ यह सबक भी दुआ कमाइए बडुआ नहीं अब माया का व्यहवार भी बदल गया था वो अपने पिता की बिज़नेस में हेल्प करवाती और मां और दया की सुनती ।अपने ससुराल वालों से भी उसने माफी मांगी और वापस अपने ससुराल चली गई
धीरे धीरे उसके पति ने भी नौकरी की माया ने भी नौकरी कर कर्जा चुकाया फिर अपना काम शुरू किया अच्छे तजुर्बे के कारण उनका काम फिर चल निकला।आज समाज में उनका वही रुतबा था जो पहले था परंतु घमंड अकड़ नहीं थी। समय की मार ऐसी होती हैं जो पड़ती हैं ना अच्छे अच्छों के बल निकाल देती हैं।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी