भैया का फोन था,पर मैंने साफ साफ कह दिया कि आने का कोई सवाल ही नहीं है. बार बार पूछने पर अनिरुद्ध जी नें अपनी पत्नी कांति जी को बताया।आज इतने दिनों बाद किसलिए बुला रहे है? कांति जी नें जानना चाहा।छोड़ो हमें क्या करना है?
जब जाना ही नहीं है तो आगे इस बात पर क्या बात करना है। जाओ जाकर नाश्ता बनाओ।फोन किये थे वह भी दश वर्ष बाद तो कुछ ना कुछ विशेष ही कारण होगा।आपने पूछा नहीं की आज इतने दिनों बाद इस गरीब भाई की याद कैसे आ गईं?
यह कहते वक़्त कांति जी के मन का दुख साफ सुनाई दे रहा था। इसीलिए मै नहीं चाहता था कि तुम्हे पता चले पर तुम ही हो कि बार बार पूछ रही थी कि किसका कॉल था। लग रहा था जैसे सोच रही थी कि कही मैंने कोई गर्लफ्रेंड तो नहीं बना लिया है।
अनिरुद्ध जी नें माहौल को थोड़ा हल्का करने की कोशिश की।गर्लफ्रेंड वाली बात ही बोल देते तो शायद इतना दुख नहीं होता पर भैया नें कॉल किया था यह सुनकर पिछली सारी बातें दिमाग़ मे घूम गईं और मन को खट्टा कर गईं।
मै तो सारी बातें भूल चुकी थी।माँ की मृत्यु के बाद मन को समझा लिया था कि अब हमारा कोई अपना नहीं है।मैंने तो मान लिया था कि आप अपने माँ -पापा के इकलौते संतान हो।कांति जी नें ऐसे कहा जैसे वे दूर दश वर्ष पूर्व अपनी सास के श्राद्ध के आयोजन मे चली गईं हो।
तो तुम्हे कौन उन्हें याद करने को कह रहा है? मैंने कहा न कि मैंने भैया को मना कर दिया है।अब तुम उदास नहीं हो।जो बीत गया वह बीत गया. हम उससे बहुत आगे बढ़ गए है।जब उनसे रिश्ता ही नहीं रखना है तो उनके बारे मे क्यों सोचना?तुम नाहक ही मन क्यों खराब कर रही हो? जाओ बाबा मुझे बड़े जोर की भूख लग रही है
कुछ बनाओ।ऐसे ही जब से तुम्हारे बेटा बेटी बाहर पढ़ने गए है खाने मे घास फुस खिला रही हो, अब क्या आज वह भी देने का मन नहीं है? अनिरुद्ध जी महौल को हल्का करने की कोशिश कर रहे थे पर कांति जी जानती थी
कि भाभी की बातो का दुख तो उनसे ज्यादा अनिरुद्ध जी को लगा है, पर वे कभी जाहिर नहीं होने देते थे। बात थी भी ऐसी कि कोई भी उस बात को भूल नहीं सकता है। भाभी हमेशा अनिरुद्ध जी और कांति जी को नीचा दिखाने की कोशिश करती ही रहती थी,
पर बात जब तक घर की चारदीवारी तक सीमित थी तब तक तो ये दोनों किसी तरह बर्दास्त कर जाते थे पर पुरे समाज के सामने बेइज्जती करना और वह भी उस वक़्त जब माँ की मृत्यु की पूजा चल रही हो।
कांति जी इस बेइज्जती को बर्दास्त नहीं कर पाई। माँ के श्राद्ध के बाद अनिरुद्ध जी नें किसी तरह से अपना तबादला दूसरे शहर मे करवा लिया और अपने भाई भाभी से रिश्ता तोड़ लिया। अनिरुद्ध जी के कहने पर कांति जी नाश्ता बनाने तो चली गईं पर सोच मे वह रसोईघर मे ना होकर अपने ससुराल मे अपने शादी के वक़्त पहुंच गईं।
कांति जी जब शादी करके आई थी तो घर मे उनकी जेठानी का राज़ था। विधवा सास और क्लर्क देवर को बड़ी बहू नें पूरी तरह से दबा कर रखा था।कांति जी के जेठ इंजीनियर थे और एक प्राइवेट कम्पनी मे अच्छे पद पर काम करते थे।कांति जी के जेठ जी जब इंजिनियरिंग के आखरी वर्ष मे पढ़ रहे थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गईं।
अनिरुद्ध जी अभी उसी वर्ष बारहवीं की परीक्षा देकर IIT की तैयारी कर रहे थे, पर पिता की मृत्यु होने के कारण उनका सपना टूट गया क्योंकि अभी भाई भी पढ़ ही रहे थे तो उन्हें कौन पढ़ाता। किसी तरह से वर्ष बीता और उनके जेठ की डिग्री पूरी हो गईं और उन्हें नौकरी लग गईं
तो घर की स्थिति मे थोड़ा सुधार हुआ पर अनिरुद्ध जी का इंजीनियर बनने का सपना पूरा नहीं हो सका। उन्होंने बैंक क्लर्क का परीक्षा बारहवीं के बेस पर दे दिया जिसमे उनका चयन हो गया।बड़े भाई नें नौकरी करते हुए ही MBA कर लिया और तरक्की करते चले गए, पर अनिरुद्ध जी नें अपने कॅरियर पर ध्यान नहीं दिया और वे क्लर्क के पोस्ट पर ही रह गए।
अनिरुद्ध जी के भाई के इंजीनियर होने के कारण एक अच्छे घर से रिश्ता आया और विवाह हो गया पर बहू अपने देवर और विधवा सास को कुछ समझती नहीं थी। उसे अपने पति के बड़े पोस्ट पर होने का बढ़ा घमंड था।
कांति जी के मायके वाले साधारण थे।अब तो बड़ी बहू का घमंड और भी बढ़ गया। वह प्रायःअनिरुद्ध जी और कांति जी का अपमान करती थी। वे उन्हें बड़ी है सोचकर और जब तक माँ है तब तक किसी तरह निभाने का सोचकर चुप रह जाते थे। पर,सहने की भी एक सीमा होती है जब सीमा पार हो जाए तो रिश्ते टूट ही जाते है।
घटना कुछ यु घटी कि गाँव मे माँ का श्राद्ध हो रहा था जिसका इंतजाम भाइयो नें बहुत ही अच्छा किया था।मृत्यु भोज मे पुरे गाँव को उन्होंने निमंत्रित किया था।इस आयोजन को देखकर उनके मामा जी नें कहा आज मेरे मन को बहुत ही शांति मिली।
जब तुम्हारे पिता की मृत्यु हुई थी तो मुझे लगा मेरी बहन कितनी अभागन है जो उसके पति उसे बीच मझधार मे छोड़ कर चले गए पर आज तुम दोनों भाइयो नें इतने अच्छे तरीके से उसका श्राद्ध किया है कि अब मुझे लग रहा है कि तुम जैसे बेटो की माँ होंकर मेरी बहन कितनी भाग्यशाली बन गईं है। उनके इतना कहते ही बड़ी बहू नें उनकी बात को काटते हुए कहा अरे! मामा जी आप यह क्या कह रहे है। अनिरुद्ध की इतनी हैसियत कहा है जो वह माँ का श्राद्ध करे यह तो सब हमने किया है।
बेचारे के क्लर्क की नौकरी मे वेतन ही क्या मिलती है? वह तो हमारे ही आसरे रहता है। सबके सामने अपने पति की बेइज्जती होते और जेठ के द्वारा अपनी पत्नी को कुछ नही कहने के कारण कांति जी नें कहा अब बहुत हुआ।
अब हम साथ नहीं रह पाएंगे। अपने घर मे हम रूखी सूखी कुछ भी खाएंगे पर अब अपमान नहीं सहेंगे।अभी तो बच्चे छोटे है तो समझ नहीं पाते पर बड़े होने पर उन्हें बुरा लगेगा।इसलिए अब हमारा अलग रहना ही सही होगा। यह कहकर वे दोनों घर छोड़कर चले गए।भाई भाभी नें भी इतने वर्ष उनकी सुध नहीं ली।
पर आज एकाएक उनका फोन आना उन्हें समझ नहीं आ रहा था। नाश्ता के बाद कांति जी नें फिर भैया के फोन करने की बात छेड़ दी।अंततः अनिरुद्ध जी को बताना पड़ा कि उनकी भतीजी की शादी तय हुई है जिसमे भाई नें सम्मलित होने के लिए फोन किया था। यह सुनकर कांति जी नें कहा फिर तो हमें जाना चाहिए।
भाभी की बात भूल गईं?अनिरुद्ध जी नें पूछा।नहीं, नहीं भूली, पर इसमें बिटिया का क्या दोष है? उसे अपने विवाह मे चाचा चाची का आशीर्वाद पाने का पूरा अधिकार है। हमें सब कुछ भूल कर बच्चो की ख़ुशी के लिए वहाँ चलना चाहिए। पर, अभी अनिरुद्ध जी आगे कुछ कहते, बीच मे ही उनकी बात को काटते हुए कांति जी नें कहा पर, वर कुछ नहीं।
रिश्ते अहंकार से नहीं, बल्कि त्याग और माफ़ी से बनते है।इस घटना को घटे बहुत दिन हो गए अब हमें भाभी की बातो को भूल कर आगे बढ़ना होगा।
वाक्य —रिश्ते अहंकार से नहीं, त्याग और माफ़ी से टिकते है
लतिका पल्लवी