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हम तो खुद ही तुमसे माफी मांगने आए हैं बहुरिया, बद्दुआ ना देना। अब तो परमात्मा ने तुम्हारी सुन ली, पुरानी बातों को मन से निकाल दो हम तो तुमसे कुछ भी सिर्फ इसलिए ही कही कि तुम कुछ समझ लो। तुम कहां से इलाज कराया बता दो बहुरिया तुम्हारी ननद सुशीला को बालक ना होने की वजह से बहुत सुनना पड़ रहा है।
आज तो ताई सास जी का एक नया ही रूप निकल कर आ रहा था। यह वही ताई जी थी जो कि संयुक्त परिवार में रीना को जब तब अपमानित ही करती रहती थी। रीना वैभव के साथ ही कॉलेज में पड़ी थी और उनकी प्रेम विवाह को सबने सम्मति दे दी थी। विवाह के बाद 2 साल तक वह संयुक्त परिवार में ही रही , वहां पर पीछे ताई सास का घर था
जिनकी तीन बहुएं और उनके बच्चे थे ऐसे ही आगे वाले घर में वैभव की दो भाभियां और उनके चार बच्चे थे। इन दो सालों में ही सब ने रीना को बच्चे ना होने की वजह से बेहद अपमानित किया था मानो विवाह का एकमात्र परिणाम बच्चों का जन्म ही हो और बच्चे में भी पुत्र का जन्म। यह तो परमात्मा की कृपा हुई कि 2 साल बाद वैभव का बैंक में तबादला हो गया और उन्होंने दिल्ली में ही घर से दूर एक और फ्लैट ले लिया परंतु यहां भी फोन करके हमेशा उसे उसके बच्चे नहीं होने का एहसास करवाया जाता था।
जब भी कभी ससुराल में कोई भी सार्वजनिक समारोह होता तो सारे घर का काम तो रीना को ही करने को दे दिया जाता था और उस पर भी उसको उलाहना यही दिया जाता था कि तुम्हारे तो बच्चे नहीं है हमें तो बच्चे संभालने हैं इसलिए काम तो तुम ही संभाल लो। पिछली बार छोटी जेठानी के बेटे टिंकू के जन्मदिन के अवसर पर सारा खाना बनाने के बाद जब रीना ने ताई जी को खाना परोसा तो ताई जी ने तो खाने से भी इंकार कर दिया और कहा जिनके बच्चे ना हो, ऐसी औरत के हाथ से हम तो खाना भी ना खाएं ।
सार्वजनिक रूप से ऐसा सुनने के बाद रीना को बहुत अपमानित महसूस हुआ और उसकी आंखों से आंसू भी निकल आए। उनकी इस बात पर किसी ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी इसके विपरीत उसकी जेठानिया भाग भाग ताई जी को खाना परसने के लिए आ गई। खाना तो सारा रीना ने ही बनाया था बस खाना परोसने के लिए जेठानिया आ गई थी।
अपने घर वापस आने के बाद रीना का कुछ दिन तक मन बहुत उदास रहा।
कुछ समय बाद उन्होंने डॉक्टर को चेकअप करवाया और विवाह के 7 वर्ष के उपरांत रीना को जुड़वां पुत्र
उत्पन्न हुए। बच्चों के नामकरण संस्कार में ताई जी उपस्थित नहीं थी शायद उन्हें अपने कुछ कहने पर शर्म आ रही हो।
समय तो यूं ही बीतता रहता है। ताई जी की बेटी का भी विवाह हुआ और विवाह विवाह के 2 साल होने तक भी उनकी पुत्री के कोई बच्चा नहीं हुआ था। उनकी पुत्री के ससुराल वाले भी ताई जी की बेटी को कुछ भी कहने में कसर नहीं छोड़ते थे। जब ताई जी की बेटी सुशीला जब भी ताई के सामने रोती थी तब उन्हें अपनी पुत्री की पीड़ा का एहसास होता था। आज ताई जी रीना के घर आई थी। वह बेहद शांत और सौम्य लग रही थी।
रीना के दोनों बच्चों को प्यार करने के उपरांत उन्होंने रीना को अपने पास बिठाया और उससे यही कह रही थी कि बहुरिया मेरे कहने का बुरा मत मानना, हम तो माफी भी मांग लेते हैं, मुझे तो बस यही बता दे कि तुमने इलाज कौन से डॉक्टर से करवाया था ताकि मैं अपनी बेटी सुशीला का भी इलाज वहां से ही करवा सकूं। मुझे तो लगता है
मेरी ही आदत कुछ कठोर शब्द कहने की है और मैंने अनजाने ही तुमसे कुछ कहा हो तो ,या कहीं कोई किसी की बद्दुआ मेरी बेटी को ना लग गई हो। ससुराल में सुशीला को उसके ससुराल वाले बहुत कुछ कहते हैं, अपनी बेटी सुशीला की पीड़ा ताई जी के आंखों में स्पष्ट थी।
बच्चों को संभालते हुए ताई जी को देखते हुए रीना ने जवाब दिया ताई जी मैंने तो कभी किसी भी बात का बुरा ही नहीं माना हालांकि मुझे दुख होता था तो मैं रो लेती थी परंतु फिर भी किसी को बद्दुआ देकर के मैं किसी का बुरा सोचूं ऐसी ना मैं तब थी ना ही मैं आज हूं।
ऐसा कहने के बाद रीना ने ताई जी को एक डॉक्टर का नंबर दिया और कहा ताई जी आप बुरा मत मनाएं, मुझे तो लगता है कि पता नहीं तब सब में से किसकी कहीं बात भगवान को इतनी बुरी लगी कि उन्होंने मुझे यह बच्चे देकर बिना वजह के रोज के अपमान और अपराधबोध से मुक्ति दिलवा दी
। ताई जी चुप और शर्मिंदा थी वह बहुत उम्मीद के साथ उसे डॉक्टर का नंबर लेकर चली गई। पाठकगण बहुत सी पीड़ाएं और सुख अपने निजी होते हैं परंतु इस तरह से लोग किसी को कुछ भी बोलकर क्यों पीड़ा पहुंचाते हैं? आपका क्या ख्याल है? कमेंट में बताइए
मधु वशिष्ठ फरीदाबाद हरियाणा।
बद्दुआ विषय के अंतर्गत लिखी गई कहानी