आरुषि तीन भाई बहनों मैं सबसे छोटी थी। बड़ी दीदी रेखा जो ips की तैयारी कर रही थी।उससे छोटा विवेक जो बैंक की नौकरी की तैयारी कर रहा था।पिताजी रामनाथ बिजली विभाग में बाबू थे और घर की एक मात्र करता धरता सुहासिनी जिसका दिन 4 बजे शुरू होता
और रात ग्यारह बजे वो सोती।हर काम सुहासिनी तुम कर लेना।मां आप कर देना सारा दिन काम ही क्या होता हैं।रामनाथ जी तो कहते तुम करती क्या हो? सुबह 10 बजे तक सारा घर खाली हो जाता है।कामवाली आ कर काम कर जाती हैं।
पैर पसारे टीवी देखो सो एसी चलाओ ।फोन पर लगी रहो बस ऐश है भाई तुम्हारी।सुहासिनी कहती यही बात जिंदगी भर आपकी माता जी कहती आई थी वही बात आप भी दोहराते हो।यही सब सुनते करते 50 वसंत बीत गए सुहासिनी के बेटा बैंक में लग गया बहु भी नौकरी वाली थी ।
सुबह जाते शाम को आते घर अभी भी सारी जिम्मेदारी सुहासिनी की ही थी।रेखा ips बन चुकी थी उसके पति महेश भी ips थे दोनों की पोस्टिंग वाराणसी में थी।आरुषि ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था और अपना बुटीक चला रही थीं और उसको इस दिशा में प्रेरित करने वाली उसकी मां
सुहासिनी थी।जब आरुषि छोटी थी तब वो देखती मां कपड़ों पर कैसी डिजाइनिंग करती हैं।सिंपल से कपड़े को भी वो इतना अच्छा बना देती की सब तारीफ करते रह जाते। पर पापा को ये काम पसंद नहीं था।इसलिए मां को ये छोड़ना पड़ा।
मां भी अपना बुटीक खोलना चाहती थीं पर दादी बोली घर संभाल ये चोंचले पूरे करने का टाइम नहीं है इस तरह मां की इच्छा अधूरी रह गई जिसे आरुषि ने पूरा किया इसलिए पिता और भाई बहन की नजर में मां के साथ उसका भी कोई स्थान नहीं था।
राम नाथ की रिटायरमेंट होने वाली थी ।उसके लिए वो एक साल पहले से ही शुरू हो गए थे रॉयल पार्टी दूंगा।रिटायरमेंट के बाद की लाइफ एंजॉय करूंगा।दोस्तो के साथ ट्रिप अपने शौके जो पहले नहीं किए।
पर उन सब में मां का कोई जिक्र या ये शब्द नहीं होता कि मैं तेरी मां को भी घुमाने ले जाऊंगा। इस रिटायरमेंट से पहले वो आरुषि की भी जिम्मेदारी पूरी करना चाहते थे।उन्होंने कहा अब आरुषि तुम ips या कलेक्टर हो नहीं।भाई भाभी की तरह अफसर होती तो भी समझ आता
तुम्हारे लिए तो कोई साधारण सा लड़का ही देखेंगे।इसी बीच उनके पड़ोसी रामप्रसाद जी उनके घर आए बातों बातों में उन्होंने बताया कि हम अपने बेटे विनय के लिए लड़की ढूंढ रहे हैं।विनय दिल्ली में हैं सीबीआई डिपार्टमेंट में ऑफिसर है टैक्सेशन में यदि तुम चाहो तो आरुषि का रिश्ता हमे दे दो।
सबकी पसंद से रिश्ता पक्का हुआ और दो महीने बाद शादी सगाई में दीदी जीजाजी भी आए। भाई भाभी, बहन जीजा सब अपनी शेखी बघार रहे थे इसने भी कुछ अच्छा पढ़ा होता तो आज ये भी किसी बड़ी पोस्ट पर होती ।
आरुषि और सुहासिनी दोनो चुप थे।विनय बोला अपना काम तो अपना होता है नौकरी तो नौकरी है दूसरे की गुलामी और सब इंजीनियर डॉक्टर बन जाएंगे तो दूसरे पेशे कौन अपनाएगा।दो महीने बाद हसी खुशी आरुषि की शादी हो गई। सुहासिनी और आरुषि बहुत रोई क्योंकि सुहासिनी को कोई
समझता था तो वो आरुषि विनय ने आरुषि को दिल्ली में बुटीक खुलवा दिया।कई बार आरुषि विनय को बताती ये मां का सपना था जो मै जी रही हूं।विनय का व्यहवार देख पहली बार आरुषि को लगा एक पति की नजर में पत्नी का क्या सम्मान होता हैं।
कैसे एक पति चाहे तो पत्नी के सपनों को पूरा कर सकता है।पापा की रिटायरमेंट पार्टी थी सब लोग पहुंचे।पापा दीदी जीजाजी का परिचय सब से करवा रहे थे।विनय को भी मिलवाया। आरुषि ने पूछा मां कहा है पापा बोले होगी यही कही।
सुहासिनी महाराज के साथ पार्टी के अरेंजमेंट देख रही थी जिसके लिए वो थोड़ी देर पहले रामनाथ से डॉट खा चुकी थीं।केक कटने वाला था सब मौजूद थे।आरुषि सुहासिनी को भी आगे ले गई।पापा ने मां को बुलाया भी नहीं सबने बधाई दी। सबने पार्टी में एंजॉय किया।पार्टी के अंत में पापा ने दो शब्द बोले सभी का धन्यवाद देने के लिए और अपनी भावी योजना बताने के लिए।
तभी वहां माइक पर आरुषि आई बोली आज यहां एक रिटायरमेंट पार्टी नहीं दो रिटायरमेंट पार्टी हैं सब बोले दो ।रामनाथ बोले पागल हो गई हैं क्या बोल रही हैं।आरुषि बोली आज मां की भी रिटायरमेंट है अब तक उन्होंने सारे कर्तव्य अच्छे से निभाए अब वो इस पोस्ट से रजिस्नेशन देकर रिटायरमेंट लेंगी
और अपने शौक पूरे करेंगी हम भाई बहन सेटल है। पापा के भी आफ्टर रिटायरमेंट प्लान है तो बंधन मां के लिए क्यों? मां आप भी अपनी जिंदगी जियो मां भी आज से रिटायर हो रही हैं। ऐसा कह कर आरुषि मां का हाथ पकड़ नीचे आ गई।पापा इतने
लोगों के सामने बोले बच्चे भी मजाक करते हैं।सबके जाने के बाद पापा आरुषि पर चिलाने लगे की क्या तमाशा लगा रही थी तुम ये रिटायर होगी जिसने जिंदगी भर कुछ नहीं किया हो सारी जिंदगी हमारे टुकड़ों पर रही आराम परस्त जिंदगी जी दो पैसे कमाए होते तो पता चलता।आरुषि बोली बस
पापा बहुत हुआ और कितना अपमान करेंगे आप मां का।रेखा और विवेक बोले ये उनका निजी मामला है तुम चुप रहो।आरुषि बोली निजी कैसे मां तो हमारी है।सब सोने चले गए। सुहासिनी एक तरफ बैठी थीं उसकी आँखें भरी हुई थी पर शब्द नहीं निकल रहे थे।आरुषि बोली चलो मां अब अपनी पहचान का वक्त आ गया है। सुहासिनी एक बुत की भांति उठी और आरुषि के पीछे पीछे चल पड़ी।
आरुषि ने अपना सामान उठाया और विनय को कॉल किया क्योंकि विनय अपने माता पिता के साथ घर चला गया था।विनय के पिता ने कहा बहु तुम मां को लेकर यहां आजाओ सुबह चलें जाना। आरुषि सुहासिनी को लेकर अपनी ससुराल आ गई।उसे दवाई दे कर सुलाया। आरुषि के सास ससुर और विनीत सब बैठे थे
आरुषि ने पूछा मैंने कुछ गलत तो नहीं किया? आरुषि के ससुर बोले नहीं बेटी तुमने सही कया हम हम कितने सालों से यह सब देखते आ रहे हैं की किस तरह सुहासिनी भाभी का रामनाथ अपमान करता है। भाभी इतना अच्छा खाना बनाती है इतनी सुंदर सिलाई करती हैं पर भाई साहब ने उन्हें वह भी नहीं करने दिया। तो ठीक है
पिताजी अब हम मां को अपने साथ ले जाएंगे और मैं उन्हें उनकी पहचान दिलाऊंगा। अगले दिन सुबह मुंह अंधेरे ही वो लोग शहर के लिए निकल गए। विनीत अभी यहीं रुक गया था ताकि किसी को शक ना हो। सुबह-सुबह समय पर चाय न मिलने अपने कारण रामनाथ चिल्लाने लगा। कहां चली गई सुबह-सुबह सुहासिनी सुहासिनी चाय कहां है मेरी?
सब तरफ सुहासिनी का शोर था पर वो कहा थी। रामनाथ को लगा वह आरुषि के साथ होगी वह तभी आरुषि के ससुराल पहुंचे पर वहां पर ना आरुषि थी और ना ही सुहासिनी थी। विनीत बोला आरुषि की तो मुंबई में कॉन्फ्रेंस थी वह वहीं चली गई और मां कहां है यह हमें पता नहीं? सब तरफ सुहासिनी की ढूंढ थी पर सुहासिनी का कुछ आ ता पता नहीं लगा।
रामनाथ बोला यही कहीं होगी आ जाएगी ऐसी ऐश और कहा मिलेगी।उस दिन का सारा काम रेखा और शालिनी को करना पड़ा क्योंकि रामनाथ को महाराज के हाथ का खाना पसंद नहीं था। शालिनी बोली मुझे तो इतना काम करने की आदत नहीं है महाराज से करवाओ दो कामवालियां और लगा लो पर मैं काम नहीं करूंगी। रेखा भी तीन-चार दिन बाद अपने घर चली गई।
अब बेटा बहू सुबह निकल जाते और रामनाथ घर में रहते नौकरों के हाथ का खाना पीना खाते और घूमते फिरते पर फिर भी घर में एक उदासी थी कभी चीजों पर गौर नहीं किया था।सुहासिनी के समय कैसे घर चमकता था पकवानों की खुशबू आती थी अब तो सुबह दाल रोटी शाम को भी कुछ ऐसा ही बचा खुचा।बेटा बहु कभी खाने पर होते या बाहर से खाकर आते।उधर सुहासिनी दिल्ली आ गई
कुछ दिन तो उसे नॉर्मल होने में लगे।फिर आरुषि ने उसे अपने बुटीक में लगा लिया।वो जो डिजाइन बनाती वो लोगों को पसंद आते उसके बनाए ड्रेस बिक जाते मुंह मांगे दामों में।आरुषि का बुटीक दिल्ली का फेमस बुटीक हो गया था।
एक बार उसकी एक क्लाइंट आई वो बोली आप लोग फैशन वीक में हिस्सा लो आपका और नाम होगा ।आरुषि ने सुहासिनी के नाम से फॉर्म भर दिया और सुहासिनी की डिजाइनर ड्रेस मॉडल्स ने पहनी ।सुहासिनी को मंच पर सम्मानित करने के लिए बुलाया गया।सुहासिनी घबरा रही थी पर विनीत और आरुषि के समझाने पर वो मंच पर गई और पुरस्कार ले
कर लौटी इस कार्यक्रम का टेलीकास्ट हो रहा था इसलिए आरुषि के ससुर रामनाथ के घर पहुंचे वहां रेखा अपने पति और बच्चों के साथ आई थी और विवेक और शालिनी भी घर पर थे।बातों बातों में आरुषि के ससुर
रामप्रसाद ने कहा अरे जरा टीवी लगाओ आज हमारे एक परिचित को अवॉर्ड मिलना था।टीवी पर खबर चल रही थी। रामनाथ बोले तुझे कबसे फैशन में दिलचस्पी हो गई।वो बोले तू देख तो सही सुहासिनी का नाम पुकारे जाने पर सब की आँखें टीवी पर लग गई। सुहासिनी को अवॉर्ड के साथ
मनीष मल्होत्रा के साथ काम करने का मौका भी मिल रहा था।रेखा बोली मां।रामप्रसाद बोले हा बेटा तुम्हारी मां जो इतनी हुनर वाली औरत थी सिर्फ तुम्हारे और तुम्हारे पापा की सोच के कारण घर में ही घुट कर रही।उसने आज रिटायरमेंट ले कर ही तो अपनी जिंदगी जी है। रामनाथ पति पत्नी एक गाड़ी
के दो पहिए होते हैं दोनों में से अगर एक भी ठीक से ना चले तो गाड़ी नहीं चलती तुम्हें लगता था कि मेरे कारण घर चल रहा है पर घर तो भाभी चल रही थी सब की जरूरत है पूरी करना सबका ध्यान रखना हर काम समय पर क्या आप तुम्हें नहीं लगता कि यह सब नहीं होता पहले घर आईने की तरह
चमकता था और आज धूल की परत है नौकर नौकर होता ह और गृहलक्ष्मी गृहलक्ष्मी ही होती है। मेरे दोस्त तुमने भाभी का सम्मान नहीं किया। आज देखो अपने हुनर के दम पर कहां से कहां पहुंच गई। मित्र अपनी गलती सुधारो और उन्हें आगे बढ़ाने में सहायता करो अपनी रिटायरमेंट उनकी तरक्की के
साथ एंजॉय करो। कल बच्चे और भाभी आ रहे हैं अपना रिश्ता सभालो। अगले दिन सुबह आरुषि और विनय सुहासिनी को लेकर आए। आज सुहासिनी एक एक द ब्बू महिला की जगह एक आत्मविश्वास से भरी महिला थी शाम को उसके सम्मान में आरुषि और विनय ने पार्टी रखी थी जिसमें
सब दोस्त और जानकार आएं थे। सबने सुहासिनी की तारीफ की उसी पार्टी में रामनाथ ने सबके सामने सुहासिनी से माफी मांगी और आरुषि से कहा बेटा मुझे माफ करदो अब मैं सुहासिनी का सपना पूरा करूंगा।मुझे माफ करदो।रेखा और विवेक ने भी माफी मांगी।अगले दिन रामनाथ ने
सुहासिनी के लिए बुटीक खुलवा दिया।उसी के साथ साथ एक छोटा सा कैफे भी खोला जिसका नाम रखा फुर्सत के पल।मनीष मल्होत्रा का ऑर्डर आरुषि के साथ पूरा कर सुहासिनी अपने शहर लौट आई। सुहासिनी अपने नाम का बुटीक देख बहुत खुश हुई क्योंकि आज उसकी पहचान थी और कुछ
दिनों में वो शहर में प्रसिद्ध भी हो गया।अब 5 दिन वो बुटीक और कैफे चलाते और फिर वीकेंड पर घूमने जाते रामप्रसाद और उनकी पत्नी सावित्री भी उनके साथ जाते। बुटीक के काम में भी रामनाथ
सुहासिनी की मदद करवाते। सुहासिनी आज अपने सुख के दिन जी रही थी जिस सम्मान के लिए वो तरसी थी आज वो उसे मिल रहा था। और रामनाथ ने गाना लगाया दिल ढूंढता है फुर्सत के रात दिन
सुहासिनी अब लड़कियों को ट्रेंड करती और धीरे धीरे बुटीक का काम उसने अपनी काम वाली लक्ष्मी की बेटी पूजा को सीखा दिया और उसे बुटीक सौंप दिया।सुहासिनी बोली तेरे पास हुनर है तू इसे संभाल और स्वाबलंबी हो अब मैं अपनी रिटायरमेंट एंजॉय करूंगी।रामनाथ ने दुबई के टिकट करवा लिए थे और वो दोनों घूमने चले गए बच्चे बोले एंजॉय योर रिटायरमेंट।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी