लोग क्या कहेंगे… रश्मि झा मिश्रा

.…सीधे पल्ले की साड़ी पहने… सर पर पल्लू संभालती… जानकी काकी बड़े से शॉपिंग मॉल के दरवाजे पर आकर ठिठक गई… उन्हें कुछ अच्छी साड़ियां लेनी थी… इसलिए टैक्सी वाले ने उन्हें यहीं उतार दिया… अब इतने बड़े मॉल में अकेले घुसते उनके कदम हिचकिचा रहे थे… 

वह हिम्मत कर आगे बढ़ी… लोग आ जा रहे थे… दरबान ने दरवाजा खोल दिया… दूसरे लोगों के साथ काकी भी घुस गई…

 काउंटर पर बैठे शख्स ने उन्हें टोकते हुए कहा… “क्या है अम्मा… क्या चाहिए…?”

 जानकी काकी सहम गई… फिर हिम्मत करके बोली…” वो साड़ियां लेनी है…!” जानकी काकी ने दोबारा अपना पल्लू संभाला…

 उस शख्स ने काकी को ऊपर से नीचे तक एक बार देखा… फिर साड़ी वाले काउंटर की तरफ इशारा करता हुआ बोला…” उधर जाओ अम्मा… उधर मिलेगी साड़ी…!” उसकी आवाज में एक व्यंग था…

 काकी चुपचाप बताए रास्ते पर चल पड़ी… काकी ने कोई 15 मिनट में ही तीन चार अच्छी साड़ियां पसंद कर ली… साड़ियां उसी काउंटर पर पहुंच गई… जानकी काकी अपना झोले नुमा पर्स संभालती… काउंटर पर खड़ी थी…

 उस लड़के ने साड़ियों को अच्छे से देखा, फिर बोला…” अम्मा दाम देख कर ली हो ना… ₹ 21842 रुपए हुए हैं…है तुम्हारे पास…!”

 जानकी काकी ने अपने झोले में से पर्स निकाला… पर्स के अलग-अलग खानों में मोड़ मोड़ कर रुपए रखे हुए थे… काकी उन्हें निकाल कर ऊपर नीचे देखते हुए गिनने को हुई, पर उसे भरकर वापस रख दिया… फिर पर्स से एक बड़ा सा मोबाइल निकाल कर कुछ करने लगी…

 काउंटर पर खड़ा लड़का मन ही मन झल्ला रहा था…” कितनी देर करोगी अम्मा… नहीं है पैसे तो बाद में आना… जाओ अभी…

 अब फोन तो काउंटर से हटकर लगा लो… !”

जानकी काकी इससे पहले भी यहां आ चुकी थी… लेकिन हर बार कोई ना कोई उनके साथ होता था, कभी बेटा या फिर बहू…

 ऐसा आज पहली बार ही हुआ था कि वह अकेली बाजार निकली थी.… दरअसल जानकी काकी अपने बेटे बहू के साथ ही रहती थी… घर की सारी जिम्मेदारी बच्चों ने अच्छे से उठा रखी थी… मगर फिर भी जानकी जी को कमी लग रही थी…आत्मनिर्भरता की…

 इधर कई दिनों से उनका मन कर रहा था कि नवरात्र आने वाले हैं, तो उससे पहले अपने पसंद से कुछ साड़ियां ले आऊं… मगर बेटे बहु किसी को भी फुर्सत नहीं थी… वह रोज कहती… मगर दोनों अपने काम में इतने व्यस्त थे कि कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल जाते…

 कुछ दिन हुए काम वाली सरला बाई भी रोज पैसे मांग रही थी… पर बच्चों के सामने वह आती नहीं थी… और बाद में काकी देती कैसे… काकी के पास पैसे तो थे… पर सरला को पैसे फोन पर चाहिए थे… हाथ में नहीं…

 उसने पहले ही कह रखा था, कि…” मुझे हाथ में पैसे नहीं देना… तुरंत खर्च हो जाते हैं…!”

 आज कल करते इतवार भी बीत गया… बच्चों को उस दिन भी काम निकल आया… सरला बाई ने तो काकी का सर खा लिया…” अम्मा मेरा भी तो त्यौहार है… वह क्या सिर्फ तुम लोगों का होता है… तुम दे दो ना पैसे… तुम्हें फोन से पैसे देना नहीं आता क्या…!” जानकी काकी को बात लग गई…” हां मेरे फोन पर भी तो पैसे हैं… गोकुल हर महीने मेरे खाते पर पैसे डालता है… और उसके बाबूजी भी तो इसी से काम करते थे…!” जानकी जी चुप हो गईं…

 सरला बाई ने हाथ में फोन लेकर दुबारा नचाते हुए कहा… “इसमें से तुम ही पैसा दे दो ना अम्मा…!” जानकी जी ने सरला की टोह लेते हुए पूछा…”कितना पढ़ी हो सरला…!”

” मैं आठवीं फेल हूं अम्मा… पर सब चलाना जानती हूं फोन पर……!”

 यह… वह… आगे… पीछे… सरला शुरू हो गई…

 काकी सोचने लगी…” मैं तो दसवीं पास हूं… जब आठवीं फेल इस फोन पर इतना कुछ कर सकती है… तो मैं क्यों नहीं…!”

 काकी ने बिना झिझके सरला बाई से कहा…” सरला मुझे पैसे भेजने सिखाएगी तू …!”

सरला उछल कर बोली…” हां अम्मा क्यों नहीं… तुम मेरे से सीखेगी…!”

 काकी के फोन पर सारी सेटिंग तो थी ही… काका वही फोन अपने गुजरने से पहले इस्तेमाल करते थे… काकी ने काका की डायरी निकाल कर पासवर्ड पता किया, और पहली बार सरला को ही ₹1 भेज कर शुरुआत की…

 इतने दिनों तक लोग क्या कहेंगे… इस उम्र में फोन लिए लिए घूमती है… की विडंबना की शिकार बनी जानकी काकी ने अपने पर्स में मोबाइल डाला… और नए जोश के साथ… कुछ तो लोग कहेंगे ही बोलती हुई सर पर पल्लू लिए निकल गई…टैक्सी लेकर शॉपिंग करने…

 थोड़ी झिझक तो थी… लेकिन अभी जब सामने स्कैनर नजर आया, तो स्कैन करते ही सारी झिझक खत्म हो गई…स्कैन करके काकी ने काउंटर पर खड़े लड़के से, जो अभी भी उन्हें ही घूर रहा था, पूछा… “कितना बताया बेटा…!” लड़का हड़बड़ा गया…

” तो क्या अम्मा खुद पैसे देगी…!”

 काकी के पेमेंट करते ही लड़के ने हाथ जोड़कर उनसे अपनी शर्मिंदगी जाहिर की… फिर अदब से उन्हें साड़ियों का पैकेट हाथ में थमा दिया… काकी शान से…सर पर पल्लू संभालती… आत्मनिर्भरता की मुस्कान होठों पर लिए निकल गई… 

रश्मि झा मिश्रा 

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