आज बृजेश मिश्र को श्रेष्ठ कलाकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। सम्मान समारोह में उन्हें पांच लाख नकद राशि, एक स्वर्ण पदक सहित समान से सम्मानित किया गया है।उसके बाद खुशी से चहकता फोटो था।
अब काटो तो खून नहीं -बिटटी सारा कुछ हड़पकर रानी बनी बैठी है और हम उनकी औलाद ठोकर खा रहे हैं।-यह रानी थी जो अपने ससुर के फोटो को देखकर जल रही थी ,दूसरी ओर बिटटी उनकी ननद वीणा थी।
सुनो जी हमलोग चलें पापा के पास, उन्हें पांच लाख का इनाम मिला है।-यह अपने पति राघव से बोली।
किस मुंह से-जब जरूरत थी तब तो तुम भाग आयी,पापा पर गंदा इल्जाम तक लगा दिया-राघव तुरंत प्रतिरोध करता बोला।
अरे नहीं,वह तो गुस्सा था,पापा भूल गये होंगें -बिटिया की शादी के काम पैसे आयेंगे।-यह लिपापोती करती बोली।
तुम पापा को नहीं जानती उस घर के दरवाजे हमेशा के लिए तुमने बंद कर दिया।आज कम से कम पांच करोड़ की संपत्ति से हाथ धोना पड़ा।-राघव यह कहता चला गया।
इधर यह गिरते ही खो गयी अतीत की याद में।इसके पति दो भाई बहन -बडी बहन बिट्टी यानि वीणा।दूसरा राघव।
इसने लव-मैरिज किया,यह सोचकर की मुर्ग़ा मोटा है,हलाल कर देंगे।
मगर जब आई तो सास ससुर पति ,ननद और उसकी दोनों बेटियां पूरा लंबा चौड़ा परिवार। पूरे एक किलो आटा का रोटी, सब्जी लगता था।यह खाना बना कर थक जाती थी।
बस शादी के एक माह के भीतर अलग रहने पर जोर देने लगी। बड़ी मुश्किल से दो माह रूकी कारण एक दुर्घटना ने इसकी सास और वीणा का पति दोनों खत्म हो गये थे।
फिर क्या था इसे अवसर मिला और तेरहवीं होने के तुरंत बाद ही यह ससुर पर गंदा इल्जाम लगा अलग हो गई।
बूढ़ा मुझे ग़लत निगाह से देखा करता है,आज मैं बाथरूम में नहा रही थी तो आकर हाथ पकड़ लिया।-इसने इतना हंगामा किया कि मजबूरी में राघव को अलग घर लेना पड़ा।
उधर बेटी बाप के पास आ गई और रहने लगी।उसकी तीन बेटियां थीं जो पढ़ने लगी।आज सभी बेटियां पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और दो की शादी धूमधाम से हुई है।इसे बुलाया तक नहीं।बीस साल में मकान भी बड़ा सा बन गया,नीचे किराएदार रहते हैं।ऊपर पापा , बिट्टी सब रहते हैं।
बिट्टी भी जीजा की जगह अस्पताल में अनुकंपा नियुक्ति पा गयी वहीं पापाजी पंडिताई और दूसरे काम मजे से कर रहे हैं। सेवानिवृत्त के बाद पेंशन भी आ रहा है।
फिर क्या था?
आज बीस साल में वे सब सुखी हो गये और आराम से रह रहे हैं जबकि ये लोग किराए से रहकर बेटियों को पाल रहे हैं।
जो मैके वाले आग लगाते थे आज वे सब लापता हैं।सच कहा गया है -मुसीबत में ससुराल ही काम आता है।इसने इसी ससुराल को काट दिया। बिना जड के पेड़ सा यह भटक रही है।
आज पचास से ऊपर का राघव,यह तीन बेटियां, बीमार शरीर बड़ी मुश्किल से घर चलता है। बेटियों का ब्याह कैसे करेगी ,यहीं सोच घुली जा रही है।
सो आज जब पेपर में यह समाचार पढ़ा तो आस की डोर बंधी।आज पूरा गेम यह हार चुकी थी।जिस दौलत के लिए इसने राघव को पटाया वही हाथ नहीं लगा।आज पति तीन बेटियां हैं एक यह भी है मगर पैसा नहीं है।आज पापा के साथ रहती तो इसकी बेटियां कार्मेल में पढ़ती। सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाना पड़ता।
सो आज यह कटी मछली सा तड़प रही थी और अपने बनाए जाल में खुद उलझी हुई थी।
#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।
शब्द संख्या -कम से कम 700
(रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।)