“मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं, किसी की बेटी भी हूँ – अर्चना खण्डेलवाल 

“मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं, किसी की बेटी भी हूँ। मेरा फ़र्ज़ सिर्फ आपके परिवार वालों की तरफ ही नहीं है। मेरा भी परिवार है, जहाँ मैंने अपने जीवन के 25 साल गुज़ारे हैं। आज मेरे मम्मी-पापा को मेरी ज़रूरत है और आप कह रहे हो कि मायके मत जाओ। साल भर में कुछ दिन तो अपने मायके जाती हूँ, वह भी आपको अखरता है। मैं अब रुकने वाली नहीं हूँ।”

सुजाता के मुँह से यह शब्द सुनकर उसका पति विभोर चुप हो गया और सुजाता ने अपना बैग पैक कर लिया।

“अच्छा, तुम चली जाओगी तो यहाँ घर और बच्चों को कौन संभालेगा? मैं तो ऑफिस जाता हूँ। मेरे पास फ़ालतू छुट्टियाँ नहीं हैं जो ले लूँगा। मेरी काफ़ी ज़रूरी मीटिंग है।” विभोर ने सुजाता को फिर से रोकना चाहा।

तभी घर की घंटी बजी। विभोर दरवाज़ा खोलते ही चौक गया। सामने उसकी मम्मी खड़ी थीं। अचानक अपनी मम्मी को सामने देखकर वह सकपका गया।

“अरे, दरवाज़े से हट तो सही, मुझे अंदर तो आने दे।” और रोहिणी जी अंदर चली आईं।

“मम्मी, अब आप ही समझाइए अपनी बहू को। यह मायके जाने की ज़िद लेकर बैठी है। अब तो मम्मी आ गई हैं, इनकी सेवा करो। अपने मायके को भूल जाओ।” विभोर तेज़ आवाज़ में सुजाता से फिर बोला।

“बहू, तुम अपने मायके चली जाओ। मैं यहाँ पर सब संभाल लूँगी।” अपनी मम्मी के मुँह से यह शब्द सुनकर विभोर को आश्चर्य हुआ।

“मम्मी, आप यह क्या कह रही हैं? इसे तो अपना घर संभालना चाहिए। पर यह है कि अपने मायके जा रही है। इसे हमारी तो कुछ फ़िक्र ही नहीं है।” विभोर ने फिर से ज़ोर देकर कहा।

“बेटा विभोर, सुजाता मौज-मस्ती के लिए नहीं जा रही है। उसकी मम्मी बीमार हैं, तो उसका फ़र्ज़ बनता है कि वह उनकी देखभाल करे। उन्हें डेंगू हो गया है, बहुत कमजोरी भी आ गई है। अब ऐसे में वे अकेली कैसे रहेंगी? अब सुजाता के पापा की भी उम्र हो चली है। अपने माता-पिता के प्रति सुजाता की भी कुछ ज़िम्मेदारियाँ हैं। वह सिर्फ तेरी पत्नी ही नहीं है, उस घर की बेटी भी है। सुजाता के दोनों भाई विदेश में रहते हैं, वे यहाँ नहीं आ सकते, तो सुजाता का फ़र्ज़ है कि वो अपनी मम्मी को संभाले। मत भूलो, सुजाता ने इस घर को अपना 100% दिया है।

जब 3 साल पहले मैं बीमार थी, तो तूने इसे मेरी देखभाल के लिए गाँव भेज दिया था। तब तू कैसे रह लिया था? बच्चों को भी तूने संभाल लिया था। बहू ससुराल वालों की सेवा करने जाए तो सब मैनेज हो जाता है, पर अगर वह अपने मायके जाए तो कुछ मैनेज नहीं होता? तब तो तेरे बच्चे भी छोटे थे। तब तूने कैसे घर, बच्चे, स्कूल और ऑफिस एक साथ सब संभाल लिया था? फिर अब क्यों नहीं संभाल सकता?

मेरी बहू कितनी अच्छी है, उसे तेरी और बच्चों की कितनी फ़िक्र है। उसने मुझे फोन करके सारी बात बताई और मुझे कुछ दिनों के लिए यहाँ रहने को बुलाया ताकि मैं तुम सबको संभाल लूँ।”

“मम्मी, पर आप इतना सब नहीं कर पाओगी।” विभोर बोला।

रोहिणी जी हँसने लगीं —

“मैं सब संभाल लूँगी। फिर तेरे घर में काम ही कितना है? बर्तन और झाड़ू-पोंछे के लिए बाई आती है, कपड़ों के लिए मशीन है। बस खाना ही तो बनाना है। बहू, तुम अपने मायके चली जाओ। तुम अपना बेटी होने का फ़र्ज़ निभाओ। यहाँ की बिल्कुल फ़िक्र मत करना। मैं और विभोर मिलकर घर देख लेंगे।”

विभोर ने फिर सवाल किया —

“आप पापा को भी अकेले छोड़कर आ गई हो? वहाँ उनको कौन संभालेगा? रोज़ ऑफिस के लिए उनका टिफ़िन कौन बनाएगा?”

“तू चिंता मत कर। तेरी बड़ी बहन है न, उसी ने मुझे भेजा है। फिर उसका ससुराल पास में ही है। वह खाना भी भेज देगी और तेरे पापा को संभाल भी लेगी। आज सुजाता को मेरी ज़रूरत है। अब तू भी मना मत कर, इसे ख़ुशी से इसका फ़र्ज़ निभाने दे।”

दोनों सास-बहू एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा रही थीं। दोनों की आँखों में एक-दूसरे के लिए इज़्ज़त और प्यार था। तभी सुजाता ने रोहिणी जी से कहा —

“मम्मी जी, आपने मुझे समझा, मेरी भावनाओं को समझा, उसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ। आपने इन्हें समझाया। ये तो पति होकर भी पत्नी का दर्द समझ नहीं पाए। आपका आशीर्वाद सदैव मुझ पर बना रहे।”

विभोर भी समझ गया। उसने कार निकाली और सुजाता को ट्रेन में बिठा दिया और जाते वक़्त बोला —

“तुम आराम से रहना। जब मम्मी जी पूरी तरह से अच्छी हो जाएँ, तभी आना। मुझे माफ़ कर देना। मैंने हमेशा अपना और अपने घर वालों का ही सोचा। तुम्हारा अपने मायके की तरफ भी तो कुछ फ़र्ज़ बनता है। बेटी हो तो क्या हुआ, तुम्हें भी तो अपने मम्मी-पापा की सेवा करनी चाहिए।”

अपने पति विभोर के मुँह से यह बातें सुन सुजाता का मन हल्का हो गया था।

दोस्तों, सिर्फ किसी की पत्नी बनने मात्र से बेटी का रिश्ता मायके वालों से खत्म नहीं हो जाता। आज भी मायके में दुख हो या सुख, पहले बेटी ही जाती है। उसकी भी अपने मम्मी-पापा के प्रति कुछ ज़िम्मेदारियाँ होती हैं, जो हर बेटी को निभानी चाहिए।

अर्चना खण्डेलवाल 

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