नज़र का चश्मा – शुभ्रा बैनर्जी

“अरे वाह!बहन जी,आपने तो कमाल कर दिया।अपने इकलौते बेटे के लिए ऐसी बहू चुनकर लाईं हैं,कि बुढ़ापा तर जाएगा आपका।दिखती तो बड़ी भोली हैं आप,पर बहू के मामले में आपने बाजी मार ली।अरे ,हमने भी ऐसी ही बहू के सपने देखे थे,पर क्या करें?सब किस्मत की बात है।” 

सुमित्रा जी को अपनी बेटी की सास की जली कटी बात चुपचाप सुननी पड़ी।क्या करें?मेहमानों से भरा घर,ऊपर से बड़े दामाद की मां।जवाब देती भी तो कैसे?जहर से बुझे हुए तीर उनके हृदय को छलनी कर रहे थे।

तभी दामाद जी ने भी मां की हां में हां मिलाकर कहा”यू आर एब्सोल्यूटली करेक्ट मम्मी।शी नोज़ इंग्लिश ऑलसो।दे डोन्ट डिजर्व हर।” देसी परिवार में विदेशी सभ्यता का बड़ा बोलबाला था,बेटी के ससुराल में।रसोई नहीं किचन में खाना एप्रिन पहनकर ही बनाया जाता था।

समझ सकती थी, सुमित्रा जी कि बेटी को कितनी दिक्कत हुई होगी वहां सामंजस्य बिठाने में। मध्यमवर्गीय परिवार में पली बढ़ी लड़की इन देसी विदेशियों के साथ कैसे निभा रही होगी?बहू ने पहली रसोई बनाई थी।सभी की थाली में खाना उसी के हांथ से परोसा जा रहा था।

समधन जी ने तो कसम खा रखी थी,अपनी बहू की कमियां निकालने की।बेटा भी मां के सुर में सुर मिला रहा था।खटक तो यह रहा था कि अमृता(बड़ी बेटी) हंसकर सब सुन रही थी।नई बहुरिया को बुरा लग रहा था अपनी सास की बेइज्जती,पर मजाल है कि बेटी एक शब्द भी कहे।

तीन-चार दिन रुककर सभी रिश्तेदार रवाना होने लगे।बेटी के ससुराल वाले एक दिन और रुकने वाले थे।पहला दामाद घर का भगवान से कम नहीं होता।उनके माता-पिता को स्वर्ग का सुख देना ही मायके वालों का दायित्व होता है।जब तक सुमित्रा जी की समधन रुकीं,

अपनी बहू की बुराई ही करती रहीं।ननद के सामने ही भाभी की तारीफ़ के पुल बांध दिए उन्होंने।रात में जब सुबह जाने की तैयारी कर रही थी बड़ी बेटी,नई नवेली दुल्हन ने मनुहार किया”दीदी,कुछ दिन और ठहर जाइये ना आप और जीजाजी।मां को अच्छा लगेगा।घर बिल्कुल सूना हो जाएगा।क्यों मां,रोक लें ना कुछ दिन और दीदी को?” 

अपनी बहू का निर्मल मन देखकर सुमित्रा जी को वास्तव में आज बहुत गर्व हुआ।कल की आई इस बच्ची ने मां की पीड़ा कितनी जल्दी समझ ली।अंत में यही तय हुआ कि दीदी की सास और देवर चले जाएंगे। दीदी-जीजाजी एक हफ्ते तक रुकेंगे।नई नवेली दुल्हन के साथ।

बहू के गहनों,साड़ियों‌ ,और तो और बहू के मायके में आवभगत का बखान शुरू कर दिया था ,दामाद ने।साथ में कहने लगे”भाभी,हम जब देखने आए थे,तभी मम्मी ने कह दिया था,विकलांग हैं लड़की के पिता।इस लड़की से शादी करके पुण्य ही मिलेगा,हमारे परिवार को।

फिर और कुछ देखा ही कहां।ना रूप ना रंग,ना ही गुण।भाभी आप तो सबसे इतनी शालीनता से बात करती हो,और मेरी बीवी तो महीनों तक मेरी मां,भाईयों से बात तक नहीं की।इतने आलीशान घर में रहने की आदत ही नहीं थी। इंग्लिश ना तो बोलना आता है,ना समझना।

हमारे घर में सब इंग्लिश में ही बात करतें हैं।अब आप आ गईं‌ हैं ना,तो इसे भी अपनी तरह बना देना।नहीं मैं शिकायत नहीं कर रहा।अमृता है बड़ी अच्छी ,सबका ख्याल रखती है,पर अपने हिसाब से। मम्मी को तो पहली बार में ही इतना पसंद आ गई कि हां कह दिया बिना कुछ मांग के।

और भी बहुत कुछ भर रखा था उन्होंने कहने के लिए,पर खाना लग चुका था।सब शांत हो गए।अमृता चुपचाप खून के घूंट पी रही थी।

जब मायके में आकर पति और सास बुराई शुरू कर दें तो,नाक ही कटती है किसी भी लड़की की।आधा पेट खाकर उठ गई अमृता।इधर जीजाजी लगे रहे,नई बहू के सामने अपनी प्रदर्शनी लगाने में।मेरा ये,मेरा वो,मेरी मां ये,मेरी मां वो।

कुछ देर के लिए दामाद शायद सिगरेट खरीदने बाहर निकले। सुमित्रा जी ने बहू की ओर कड़ी उम्मीद से देखा तो अमृता समझ गई।

किस हद तक ससुराल वालों ने ब्रेनवाश किया था उसका। सुमित्रा जी ने बेटी के शादी पक्की करते समय अनुष्ठान करके,लिखा पढ़ी करके,दोनों पक्षों के हस्ताक्षर लिए थे।गहनों की मात्रा,दहेज सामग्री की सारी पोथी थी उसमें।

नई बहू के हांथ में सुमित्रा जी ने वह कागज की पत्री पकड़ाई।बहू ने सब समझ लिया ।बीस तोले सोने के जेवर,चांदी ,कांसा,पीतल के बर्तन सब उसमें सूचीबद्ध थे।

नई भाभी ने वह पत्री पढ़कर सुनाने लगी ननद को,तो ननद ने झिड़क कर कहा”तुम्हें नहीं पता भाभी ,ये गहने सब नकली हैं।मेरी सास के पहचान की एक पुरानी सोने की दुकान है। उन्होंने परखकर बताया है कि नकली है।

फर्नीचर भी शीशम नहीं आम की लकड़ी  का है।भाभी,मेरे माता-पिता ने मुझे कुछ भी जवाब देने लायक नहीं छोड़ा। बात-बात पर ताने देतें हैं।जब मैं इस लायक नहीं थी,तो क्यों शादी की उस परिवेश में मेरी।अब मुझे तो उनके अनुसार ही जीना पड़ेगा।कैसे चुप कराओगे मेरे ससुराल वालों को।?

नई बहू ने यह जिम्मेदारी ली।अगले ही दिन सास के साथ ननद को उनके सारे गहनों के साथ सुनार की दुकान पर पहुंची।सुनार ने परख कर सत्यापित कर दिए गहने।अब फर्नीचर के बिल को दुकान ले गए। उन्होंने भी इस बात की पुष्टि कर दी कि,शीशम का पलंग ही गया है। बर्तन वाले ने देखकर ही फूल,पीतल और कुछ चांदी के बर्तन की शिनाख्त कर दी,कि ये उनके ही दुकान से लिए गए हैं।

अब घर आकर ननद को‌समझाना था।ससुराल में सभी मिलकर नई बहू की आंखों में लगातार कितने सालों से धूल झोंक रहे हैं।इसी का परिणाम है कि ननद अब मायके आने से अलग-अलग सी रहती। नई बहू ने समझाया अपनी ननद को।

“देखो दीदी,जीजाजी तो अपनी मां की आज्ञा का पालन करते हैं जो ,जैसा वो बोलती हैं,मान लेते हैं।आपकी आ़खों में अपने ससुराल वालों के द्वारा किए गए  कटाक्ष का कोई फर्क नहीं पड़ता?ये ग़लत बात है।आपको अपने मायके के लोगों की बेइज्जती और अपना असम्मान‌ रोकना होगा ।जीजाजी ने या उनकी मां ने कोई अहसान‌ नहीं किया है।आप ग़लत बातें बर्दाश्त ना करें।

जीजाजी के आते ही घर चले जाना अपने।और वह जो लिस्ट मिली है आपके ससुराल वालों द्वारा हमें फिर से बेइज्जती ना सहनी पड़ेगी।

तुम्हें अपने मायके के लोगों का अपमान बर्दाश्त कैसे होता है?चलो‌ घर पहुंचकर  जीजाजी से ही बात करेंगे।”ननद की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।ऐसी स्थिति में पति के खिलाफ जा नहीं सकती।घर आकर नई बहू ने फिर पत्र पढ़ा 

ननदोई के सामने बात-बात में हंसी मजाक में नई बहू रिया के उकसाने पर

ननदोई से कहा नई बहू ने”आप इतने दिनों तक अपनी बीबी की आंख में धूल झोंक रहे ।इसे अपने मायके के खिलाफ भड़काकर,रिश्तों को तार-तार मत करो।एक लड़की भी शादी में दो-दो परिवार की जिम्मेदारी साथ चलाती है।खालिस सोने के गहने जिस दुकान से लिए थे,

उसी ने देखते ही बता दिया,कि ये शुद्ध सोना है।”नई बहू रिया ने पलटवार कह कर समझाया” देखिए दीदी,दुनिया में एक मां-बाप का घर होता है।वहां कोई अत्याचार हो तो,पुलिस को बुला लेती है।आपके मन में अपने मायके वालों के लिए कभी संदेह नहीं होना चाहिए।” 

जीजाजी को भी बर्तन,गहने , फर्नीचर बिल के साथ दिखा दीजिए।सब खालिस हैं।अब बंद करिए बात-बात पर पत्नी को विकलांग पिता का ताना मारना।नकली गहने की झूठी कहानी कहकर अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करना चाहतें हैं‌ना आप,

ताकि आप को जब पैसों की जरूरत हो,बेचकर ले सकें।समाज में भी यही रुतबा झाड़ते हैं आप लोग कि बिना किसी दहेज के शादी की है।यदि पुलिस को कहीं से भी खबर मिली तो सब उठा लिए जाओगे।बंद करिये अब बड़ी ननद की बेइज्जती।बेवकूफ बनाकर इतने सालों से,

उसकी आंखों में‌ धूल झोंक रहे थे आप।उनके माता-पिता भाई ने समर्थ दान दिया है।आपसे पूछकर ही सब कुछ खरीदती हैं।अपनी मां को भी दीदी की मां बनना सिखाओ।घर के क्लेष में सबसे ज्यादा हांथ  पतियों की मां और बहन का होता है।यदि आप अपनी पत्नी को इज्जत देंगे,वो भी आजीवन आपको देवतुल्य मानेगी।

शुभ्रा बैनर्जी 

आंखों में धूल झोंकना

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