फूल चुभे कांटे बन – भाग 17 अंतिम भाग – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi

  मधु जब बाहर आई तो उसकी आंखें लाल थीं जैसे वह बहुत रोई हो मधु का मुरझाया चेहरा देखकर दुलारी अम्मा ने कहा “आज फिर तुम अपनी पुरानी बात याद करन लगी हो अब पिछली बात का याद करके का फ़ायदा होगा बिटिया सब भुल जाओ हमै देख लो कलेजे में कितनी पीर लिए बैठे हन औरत का जन्म ही ऐसा होत है उसके जीवन मा सुख नाही लिखा है चाहे सीता जी रहीं चाहे द्रौपदी रही हो सभी को दुख भोगना पड़ा ई अलग बात है की सबकै दुःख अलग अलग है चलो पहले कुछ खाय लो उसके बाद आज तोहे कहीं जाय की जरूरत नहीं है थोड़ा आराम कर लो” दुलारी अम्मा ने कहा

   ” दुलारी अम्मा आज शाम को मुझे एक प्रोग्राम में जाना है वहां बहुत बड़े बड़े लेखक और कवि आ रहें हैं इसलिए इस समय आराम कर लूंगी जिससे शाम तक फ्रेश हो जाऊंगी आप मेरा नाश्ता लगा दीजिए” मधु ने कहा

  तभी पुष्पा वहां आ गई जैसे वह मधु से कुछ कहना चाह रही हो मधु ने पुष्पा से पूछा “क्या बात है पुष्पा”?

” दीदी आप मेरी कहानी लिखेंगी “? पुष्पा ने पूछा

  ”  हां मैं कहानी लिख तो दूंगी पर उस कहानी का अंत क्या लूंगी यह तो मुझे पता ही नहीं है ” ? मधु ने मुस्कुराते हुए पूछा

  ” दीदी आप कहना क्या चाहती हैं मुझे साफ़ साफ़ बताइए “? पुष्पा ने पूछा

  ” मेरे कहने का मतलब यह है कि,अब तुम अकेली रहोगी या कुछ दिनों बाद अपने पति के पास चली जाओगी या दूसरी शादी करोगी “? मधु ने गम्भीर लहज़े में पूछा

  ” दीदी अब मैं अकेली रहूंगी जिस आदमी ने मेरे साथ विश्वासघात किया उसके पास जाने का प्रश्न ही नहीं है और किसी और के साथ शादी करके अपमानित होने से अच्छा है कि,अब मैं अपने लिए जिऊं ” पुष्पा ने गम्भीर लहज़े में जबाव दिया

  ” तुम दूसरे से शादी करके अपमानित क्यों होगी “? मधु ने आश्चर्यचकित होकर पूछा

  ” दीदी आप मर्द की जाति को नहीं जानती यह कितना भी अच्छा होवे पर समय आने पर ताना मार ही देत है अगर हम दूसरे मर्द के साथ शादी कर लें तो वह जब कभी गुस्सा होगा तो ताने में ही कह देगा तुम ऐसी थीं तभी तो तेरे पहले मर्द ने छोड़ दिया दीदी औरत कितनी भी अच्छी हो पर जब वह पहले मर्द को छोड़कर दूसरे के साथ रहतीं हैं तो कभी न कभी अपमानित होती ही है मैं तो ऐसा ही समझती हूं इसलिए मैं दूसरे मर्द से ब्याह नहीं करूंगी अब मैं अकेली रहूंगी आपके साथ आप भी तो अकेली हैं ” पुष्पा ने अपना फ़ैसला सुना दिया

  ” मधु पुष्पा की बात सुनकर चौंक गई एक कम पढ़ी लिखी औरत ने कितनी बड़ी बात सहज तरीके से समझा दी फिर मधु ने मुस्कुराते हुए कहा ” ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी” उसके बाद मधु आराम करने चली गई

  समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा देखते ही देखते दस साल का समय बीत गया मधु के बालों में सफेदी दौड़ गई थी आंखों पर चश्मा लग गया पुष्पा मधु का दाहिना हाथ बन गई थी दुलारी अम्मा अब बूढ़ी हो चलीं थीं लेकिन अभी भी स्वस्थ थीं मधु अब एक जानी मानी लेखिका बन गई थी कविता बीच बीच में मधु से मिलने आती रहती थी उसी से पता चला की ममता जी का पैर ठीक हो गया है और तारा चाची भी ठीक हैं ममता मधु को बहुत याद करती हैं सुरेश और निशा का बेटा बड़ा हो गया है वह विदेश में पढ रहा है निशा और सुरेश  अब आपस में लड़ते रहते हैं निशा की मां को लकवा मार गया है।

  अब सुरेश और निशा को अपने पाप याद आ रहें हैं उन दोनों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता सुरेश को अस्थमा की बीमारी हो गई है और निशा को ब्लेड कैंसर  है उन दोनों का इलाज चल रहा है एक तरफ़ निशा और सुरेश गुनामी के अंधेरे में खोते जा रहे थे वहीं दूसरी तरफ मधु सूरज की किरणों की तरह चारों ओर अपनी ख्याति की रोशनी बिखेर रही थी।

  यह सब सुनकर मधु का मन दुखी हो गया कुछ भी था उनसे मधु का एक रिश्ता था चाहे दर्द का ही सही।

  अब मधु देश की एक जानी मानी हस्तियों में शुमार थी उसकी कहानियां कविताएं अखबारों और पत्रिकाओं में छपती रहती थीं मधु के उपन्यासों ने तो धूम मचा दी थी उसका एक उपन्यास जो उसने नारी जीवन की हकीकत पर लिखा था वह लोगों के द्वारा सराहा गया और उस उपन्यास को बुकर पुरस्कार के लिए भी चुना गया था।

  आज मधु को अपना अवार्ड लेने पंच सितारा होटल पहुंचना था वह तैयार होकर जब बाहर आई तो पुष्पा ने कहा ” दीदी आज आप बहुत ही अच्छी लग रहीं हैं आज आपका व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावशाली दिखाई दे रहा है पुष्पा की बात सुनकर मधु के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई और न चाहते हुए भी वह शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गई उसने देखा की वास्तव में आज उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली दिखाई दे रहा था उसने क्रीम रंग की कांजीवरम की साड़ी पहनी हुई थी आंखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा था उसके बाल ढ़ीले जुड़े के रूप में बंधे हुए थे माथे पर बिंदी थी होंठों पर हल्की मैरून रंग की लिपिस्टिक लगी हुई थी और चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक थी जिसने उसके व्यक्तित्व को चार चांद लगा दिया था।

  मधु जब प्रोग्राम स्थल पर पहुंची तो वहां बाहर ही लोगों की भीड़ जमा थी कार से निकलते ही पत्रकारों और उसके फैन्स ने उसे घेर लिया तभी मधु ने कहा उसे जो कुछ भी कहना होगा वह मंच से ही कहेगी आप लोग अंदर हाल में आइए इतना कहकर मधु अन्दर चली गई थोड़ी देर बाद प्रोग्राम शुरू हुआ आयोजन कर्ता और संचालक महोदय ने पहले भाषण दिया जिसमें मधु के लेखन की भूरि भूरि प्रशंसा की फिर मुख्य अतिथि के रूप में देश के एक मशहूर कवि के हाथों मधु को अवार्ड दिया गया उन्होंने भी कहा मधु जी के पास नारी जीवन के उद्गारों को व्यक्त करने की जो कला है वह सभी के पास नहीं होती वह अपनी लेखनी से नायिका का ऐसा चित्र उकेरती हैं की पाठक पढ़ने के साथ साथ उसे चलचित्र की तरह देखता हुआ महसूस करता है मधु जी की प्रशंसक सिर्फ़ औरतें ही नहीं हैं इनके प्रशंसकों में पुरुष वर्ग भी बहुतायत मात्रा में शामिल है अगर इन्हें आज के युग की महादेवी वर्मा कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगा क्योंकि यह भी नारी मन की पीड़ा को बहुत ही सरलता और सहजता से व्यक्त करने में माहिर हैं पाठक इनके पात्रों को खुद अपने जीवन में या अपने आस पास देखता और महसूस करता है इनकी लेखन शैली अद्वितीय और बहुत ही प्रभावशाली है इनको बिहारी की तरह गागर में सागर भरने में माहारथ हासिल है मैं इनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं यह एक दिन आकाश की बुलंदियों पर पहुंचे और साहित्य जगत में अपनी कामयाबी का परचम लहराएं।

वहां उपस्थित लोगों ने जब मधु से कुछ अपने बारे में कहने के लिए कहा तो मधु ने डायस के सामने खड़े हो कर सिर्फ इतना ही कहा ” मैं एक साधारण सी औरत हूं मैं अपनी रचनाओं में नारी मन के उद्गारों को शब्दों में पिरोने की कोशिश करतीं हूं पर मैं कोई लेखिका नहीं थी मुझे लेखिका बनाने में मेरे अतीत के कुछ दर्द भरे लम्हें शामिल हैं पर वास्तव में लेखक तो मुझे मेरे पाठकों ने बनाया है जिन्होंने मेरी रचनाओं को अपना बहुमूल्य समय और स्नेह दिया उसकी समीक्षाएं मेरे लिए ऊर्जा का स्रोत हैं जो मुझे लिखने के लिए प्रेरित करती रहीं हैं। मेरी लेखनी औरत के मन के दर्द को बयां करने की नाकाम कोशिश करती है मैं कितनी सफ़ल होती हूं इस का निर्णय मैं नहीं मेरे पाठकों द्वारा ही किया जाता है आज मुझे जो सम्मान मिला उसे पाकर मैं धन्य हो गई और आज मैं इतना ही कह सकतीं हूं कि,मेरी लेखनी एक औरत के दर्द को बयां करने में सफल रही क्योंकि मेरे मन के दर्द भरे अहसास को मेरे पाठकों ने महसूस कर लिया।

  अंत में मैं अपनी बहनों से इतना ही कहूंगी कि, मैं या मेरी लेखनी यह नहीं कहती की हर औरत को एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहिए अगर उसे किसी अच्छे साथी का साथ मिले तो वह उसकी सहचरी बन उसके साथ चले अर्धांगिनी बनकर उसके सुख दुःख को अपने अंदर समेटे ले एक दोस्त की तरह हर क़दम पर उसका मार्गदर्शन करे पत्नी बनकर उसे सम्पूर्ण सुख दे पर बदलें में उसे भी पूरा मान सम्मान और विश्वास प्राप्त हो यदि पुरुष अपनी पत्नी को सीता के रूप में देखना चाहता है तो उसे भी राम बनकर एक पत्नी व्रत का पालन करना होगा अगर वह चाहता है कि,उसकी पत्नी सावित्री बनकर उसके प्राणों के लिए यमराज से भी भिड़ जाए तो पहले उसे सत्यवान बनना होगा अगर पुरुष अर्थात पति अपनी पत्नी को उसके हिस्से का पूरा विश्वास मान सम्मान दे रहा है तो किसी भी औरत को एकांकी जीवन व्यतीत करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन यदि पुरुष द्वारा स्त्री का अपमान हो उसके आत्मविश्वास को चोट पहुंचाई जाए उसके स्वाभिमान को खंड खंड कर दिया जाए उसके साथ विश्वासघात हो तो औरत को अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए एकांकी जीवन चुनना ही पड़ता है और उसे ऐसा क़दम उठाना भी चाहिए औरत शक्ति का रूप है वह कमजोर नहीं है वह अपने वज़ूद की रक्षा स्वयं करने में समर्थ है इसलिए ज़रूरत पड़ने पर हर औरत को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अपने आत्मबल को जगाना ही होगा और यदि ऐसा समय आए की उसे यह लगे की उसके अस्तित्व को बचाने के लिए शस्त्र उठाने की आवश्यकता है तो उसे शस्त्र भी उठाने में तनिक भी बिलंब नहीं करना चाहिए बस मुझे और कुछ नहीं कहना है इतना कहते कहते मधु की आवाज भर्रा गई उसके आंसूओं ने उसकी आंखों का साथ छोड़ दिया वह आंखों से निकल कर गालों तक आ गए अब मधु कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी इसलिए वह बैठ गई उसके बैठते ही हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा तालियों की गड़गड़ाहट का स्वर मधु को मधुर संगीत का आभास करा रहा था उसने चश्मा निकालकर धीरे से अपने आंसू पोंछे और जब उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो उस पर आत्मविश्वास की आभा चमक रही थी आज उसे सुरेश जैसे पति के सहारे की आवश्यकता नहीं थी उसका आत्मविश्वास ही उसका सबसे बड़ा सहारा था।

  कार्यक्रम समाप्त होने के बाद मधु सबसे पहले देवी के मंदिर गई उनसे आशीर्वाद लिया और उसकी गाड़ी घर की ओर चल पड़ी जब वह घर पहुंची तो उसने देखा कि उसके घर के सामने एक अधिकारी की गाड़ी खड़ी हुई है मधु कार से उतर कर अंदर हाल में आई तो वहां का नज़ारा देखकर स्तब्ध रह गई क्योंकि आज वर्षों बाद वह अपनी सास ममता जी को देख रही थी तारा चाची भी उनके साथ थीं कविता उन्हें लेकर यहां आई थी तभी मधु की नज़र एक नवयुवक पर पड़ी वह भी वहां बैठा हुआ था उसने जैसे ही मधु को देखा उठकर खड़ा हो गया और उसके पास आकर उसने मधु का चरणस्पर्श करते हुए कहा ” मां आप मुझे आशीर्वाद दीजिए की मैं भी आपकी तरह सच्चाई और अच्छाई के रास्ते पर चल सकूं और आपके बताए सिद्धांतों को आत्मसात करूं” 

  मधु आश्चर्यचकित होकर उस नवयुवक को देखती रही उससे कुछ कहते नहीं बना और उसे कुछ समझ भी नहीं आ रहा था उसने आश्चर्य से कविता की ओर देखा कविता ने आगे बढ़कर मुस्कुराते हुए कहा ” मधु ज्यादा हैरान होने की जरूरत नहीं है यह तुम्हारा बेटा कृष्णा है जब तुम इसे छोड़कर आईं थीं तो यह मात्र तीन महीने का ही था आज यह बड़ा हो गया है अब यह अपने शहर का कलेक्टर है यह आज अपनी मां का आशीर्वाद लेने आया है इसे अपना आशीर्वाद दो यह तुम्हारे आशीर्वाद के लिए तरस रहा है इसे अपने गले लगाकर इसके तड़पते मन को अपनी ममता के आंचल में समेट लो यह 22 वर्षों से अपनी मां के प्यार के लिए तरसता रहा है आज अपनी सारी ममता इस पर न्यौछावर कर दो मधु” 

  मधु कविता की बात सुनकर और भी अचंभित हो गई तब ममता जी ने गम्भीर लहज़े में कहा ” मधु यह सुरेश और निशा का बेटा कृष्णा है जब तुमने वह घर छोड़ा तो मैंने उसी दिन यह निर्णय ले लिया की सुरेश और निशा के विश्वासघात को मैं उसके बेटे के सामने उजागर करूंगी इसलिए मैंने निशा और सुरेश से यह कहा की कृष्णा के कारण मैंने तुम लोगों क्षमा कर दिया है उसके बाद मैं कृष्णा को अपने पास रखने लगी और जब कृष्णा बड़ा होने लगा मैंने उसे तुम्हारे त्याग की कहानी सुनानी शुरू की  सुरेश और निशा के विश्वासघात के बारे में भी उसको बताया धीरे धीरे मैंने कृष्णा के मन में तुम्हारे त्याग और बलिदान की ऐसी तस्वीर बना दी की वह तुम्हें देवी की तरह पूजने लगा और अपने मातापिता के लिए उसके मन में नफ़रत पैदा हो गई मैंने ही कृष्णा को बताया था की तुम्हारी मां मधु तुम्हें कलेक्टर बनाना चाहती थी तब से कृष्णा के मन में यह बैठ गई उसे अपनी मां की इच्छा पूरी करनी है वह कुछ दिनों के लिए उच्च शिक्षा ग्रहण करने विदेश भी गया था। वहां से आने के बाद उसने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी की और पहली ही बार में उसने यह परीक्षा अव्वल नंबर से पास किया कल ही उसने अपना पद भार ग्रहण किया है और आज सबसे पहले तुमसे मिलने आया है इसे जबसे पता चला की इसके अपने मातापिता ने अपने स्वार्थ के लिए तुम्हारे साथ विश्वासघात किया है इसने अपने मातापिता से बात नहीं की यह मेरे कारण उस घर मे रहता रहा आज यह तुम्हें अपने साथ ले जाने आया है इसका कहना है की इसकी मां, दादी और तारा चाची इसके साथ इसके सरकारी बंगले में रहेंगी” ममता की बात खत्म होते ही कृष्णा ने मधु का हाथ पकड़कर सोफे पर बैठा दिया और खुद उसके पैरों के पास जमीन पर बैठ गया और अपना सर उसकी गोद में रखकर कहने लगा ” मां आज वर्षों बाद मुझे मां की ममता मिली है अब मैं इससे दूर नहीं रहना चाहता आपको अपने बेटे के साथ रहना पड़ेगा अगर आपने मेरे साथ रहने से मनाकर दिया तो मैं यहीं अन्न जल त्याग कर आमरण अनशन पर बैठ जाऊंगा मुझे अब कोई भी बहाना नहीं सुनना है बस मैं इतना जानता हूं कि,आप मेरी मां हैं और एक मां कभी भी अपने बेटे को कष्ट में नहीं देख सकती और आप जैसी मां तो बिल्कुल यह नहीं चाहेगी की उसके बेटे को उसके कारण कोई तकलीफ़ हो जब आप अपनी बहन के लिए इतना बड़ा त्याग कर सकतीं हैं तो अपने बेटे के लिए त्याग करना तो आपके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी मुझे मेरी मां की ममता चाहिए और कुछ नहीं कुछ भी नहीं आप मुझसे वादा कीजिए की अब आप अपने बेटे के साथ रहेंगी इस बंगले में हम लोग गर्मियों की छुट्टी में आया करेंगे बोलिए न मां आप कुछ बोलती क्यों नहीं क्या एक बेटे को उसकी मां की ममता की छांव नहीं मिलेगी मेरा क्या दोष है मेरे मातापिता के कर्मों की सज़ा मुझे क्यों आप देना चाहतीं हैं” इतना कहकर कृष्णा फूट फूटकर रोने लगा कृष्णा को रोते देखकर मधु की अगुलियां अनजाने में ही उसके बालों में चलने लगी उसकी आंखों से भी आंसूओं की धारा बह निकली अयोध्या के राम का अपनी माताओं से मिलन चौदह वर्षों बाद हुआ था पर मधु का बेटा कृष्णा आज 22 वर्षों बाद अपनी मां से मिलने आया था•••••

   सभी ठीक कहते हैं की त्याग और बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाते सत्य की राह बहुत कठिन है इस राह पर चलने का फल थोड़ा देर से मिलता है पर इसका मिलने वाला फल बहुत ही मीठा होता है यह बात आज मधु की समझ में आ गई थी उसे आज अपने उपन्यास के लिए नया कथानक भी मिल गया था•••••❤️❤️❤️❤️

कहानी का अंतिम भाग     समाप्त 

डॉ कंचन शुक्ला 

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश 

8/9/2025

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