फूल चुभे कांटे बन  – भाग 10 – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi

   ” मुझे इसी बात का डर था लड़की को इतनी छूट नहीं देनी चाहिए मैंने मधु को समझाने की कोशिश भी की थी पर मधु तो अपनी बहन के प्यार में इतनी अंधी हो गई थी की यह निशा के खिलाफ कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी” ममता जी ने गुस्से में कहा

  ” मां मैंने भी निशा को बातों बातों में इशारा किया था कि,वह मोहन के साथ प्यार की सीमा कभी न लांघें पर उसने मेरी बात को हंसकर उठा दिया ” सुरेश ने भी गम्भीर लहज़े में कहा

  ” कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा तुम ऐसा करो निशा का बच्चा गिरवा दो ” ममता जी ने गम्भीर लहज़े में कहा

  ” आप लोगों को जो करना होगा वह बाद में कीजिएगा पहले निशा के कमरे का दरवाज़ा खुलवाने की कोशिश कीजिए कहीं वह कुछ कर न बैठें मुझे बहुत डर लग रहा है ” मधु ने रोते हुए कहा

  ” हां बेटा पहले दरवाज़ा खुलवाओ अगर न खोलें तो दरवाज़ा तोड़ दो ” ममता जी ने गम्भीर लहज़े में कहा

  सुरेश ने दरवाजा खटखटाया सभी ने कोशिश की जब निशा की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो सुरेश ने घबराकर दरवाज़ा तोड़ दिया दरवाज़ा टूटते ही सबने देखा निशा बिस्तर पर बेहोशी की हालत में पड़ी हुई है और उसके हाथ में नींद की गोलियों की शीशी है जो आधे से ज्यादा खाली थी।

मधु निशा को देखकर रोने लगी सुरेश ने अपनी डाक्टर दोस्त रेखा को फ़ोन करके घर बुलाया क्योंकि अगर वह लोग निशा को अस्पताल लेकर जाते तो पुलिस केस बन जाता और बच्चे के कारण बदनामी अलग से होती इसलिए सुरेश ने रेखा को घर पर ही बुला लिया।

  रेखा ने निशा को उल्टी करवा कर उसकी जान तो बचा ली पर उसने निशा का बच्चा गिराने से मना कर दिया क्यों गर्भ पांच महीने का था अगर इस समय बच्चे को गिराया जाता तो निशा की जान को भी खतरा हो सकता है इसलिए रेखा ने कहा कोई भी डाक्टर इस अवस्था में निशा के बच्चे को नहीं गिराएगा अब एक ही उपाय है की निशा बच्चे को जन्म दे।

  यह सुनकर सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई यह स्थिति ऐसी थी न उगलते बन रहा था न निगलते।

दूसरे दिन निशा के मातापिता भी आ गए सभी बैठकर इस समस्या से निजात पाने का रास्ता खोजने लगे किसी को कुछ सुझाई नहीं दे रहा था सभी को परेशान देखकर निशा ने रोते हुए कहा ” आप लोगों ने मुझे क्यों बचाया मुझे मर जाने दिया होता अब मैं क्या करूंगी मैं दुनिया को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रही हूं मेरा मर जाना ही ठीक है” 

  ” तुम ने तो अपने साथ साथ हमें भी जीते जी मार डाला है हम लोग भी दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे जब सबको पता चलेगा की निशा बिन ब्याही मां बनने वाली है तो बिरादरी वाले हमे समाज से बाहर कर देंगे कोई हमसे

बात नहीं करेगा सब हमें घृणा की दृष्टि से देखेंगे निशा यह तुमने अच्छा नहीं किया तुम मर जाओ तभी अच्छा है” निशा के मातापिता ने गुस्से में निशा को कोंसते हुए कहा 

  ” मां पिताजी आप लोग यह क्या कह रहे हैं निशा क्यों मरेगी हम कोई दूसरा रास्ता निकाल लेंगे” मधु ने अपनी मां से कहा

  ” कैसा रास्ता बहू मुझे तो कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है” ममता जी ने गम्भीर लहज़े में पूछा

  ” मां जी अगर किसी गरीब घर के लड़के को हम ज्यादा दहेज़ का लालच दे तो वह निशा से शादी कर लेगा बाद में जब बच्चा पैदा हो जाएगा तो हम कोई बहाना बनाकर तलाक़ दिलवा देंगे इस तरह बदनामी नहीं होगी बच्चे को भी पिता का नाम मिल जाएगा ” मधु ने डरते डरते कहा

  ” तुम अपनी बुद्धि को अपने पास रखो कोई भी शरीफ़ लड़का निशा से पैसे के लिए शादी नहीं करेगा अगर कोई करने को तैयार हो भी  गया तो वह जीवन भर हमें ब्लैकमेल करता रहेगा ” सुरेश ने गुस्से में चिल्लाकर कहा

  ” मधु बिटिया अगर तुम और दामाद जी चाहो तो मेरी निशा का जीवन बच सकता है वरना आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं रहेगा ” मधु की मां ने विनती करते हुए कहा

   ” हम क्या कर सकते हैं मां जी “? सुरेश ने आश्चर्य से पूछा

  ” बेटा अगर तुम निशा से शादी कर लो तो इस समस्या का समाधान हो जाएगा अरे नहीं बेटा हमेशा के लिए नहीं जब बच्चा हो जाएगा तो तुम निशा को तलाक़ दे देना हम उसे यहां से लेकर चले जाएंगे और अगर मधु चाहे तो बच्चे को वह गोद ले लेंगी अभी तक ईश्वर ने उसकी गोद भी तो सुनी रखी हुई है ” मधु के पिता ने हाथ जोड़कर कहा

  ” समधी जी आपका दिमाग ख़राब हो गया है क्या जो मेरे बेटे बहू को ऐसी ग़लत सलाह ले रहें हैं मैं इस शादी की इजाजत नहीं दे सकती और आप कैसे बाप हैं जो एक बेटी को बचाने के लिए दूसरी बेटी का घर उजाड़ रहें हैं”?

ममता जी ने गुस्से में भरकर कठोर शब्दों में पूछा

    ” बहन जी आप बेटी की मां नहीं हैं इसलिए आप हमारे दर्द को नहीं समझ सकतीं अगर दामाद जी निशा से शादी नहीं करेंगे तो हम तीनों को आत्महत्या करनी ही पड़ेगी क्योंकि हम बदनामी का जीवन नहीं जी सकते कभी कभी मजबूरी में मातापिता को भी स्वार्थी होना पड़ता है आगे अगर आप और दामाद जी चाहेंगे तभी हमारा जीवन बचेगा और हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बनी रहेगी ” निशा की मां ने हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहा।

  निशा अपने मातापिता की बात सुनकर स्तब्ध रह गई उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं नहीं हो रहा था क्या कोई,  मातापिता इतने स्वार्थी भी हो सकतें हैं? यह प्रश्न बार बार उसके मन को झकझोर रहा था उसकी आंखों से आंसूओं की धारा बह निकली और चेहरे पर दर्द की लकीरें साफ दिखाई दें रहीं थीं।

  निशा बिस्तर पर लेटी सब देख सुन रही थी अचानक वह बिस्तर से उठकर खड़ी हो गई और रोते हुए कहने लगी “नहीं मां गलती मैंने की है तो सज़ा मुझे मिलनी चाहिए दीदी को नहीं मैंने गलती नहीं गुनाह किया है और अब मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रही मेरे कारण आप लोगों की मानप्रतिष्ठा दांव पर लगी है इन से छुटकारा पाने का एक ही रास्ता है मेरी मौत मुझे मर जाना चाहिए मुझे जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं है” 

इतना कहकर निशा दौड़ती हुई कमरे से बाहर निकलकर छत की सीढ़ियां चढ़ने लगी उसका इरादा भांप कर सभी उसके पीछे भागे सबसे आगे सुरेश था निशा छत पर पहुंच गई वह छत से कूदने के लिए छज्जे के पास जा ही रही थी की सुरेश ने उसको पकड़ लिया वह सुरेश की गिरफ्त से छूटने की कोशिश करते हुए कह रही थी ” मुझे छोड़िए मुझे मर जाने दीजिए अब मैं जिंदा नहीं रहना चाहती जब उसका रोना और बड़बड़ा बन्द नहीं हुआ तो सुरेश ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया।

  निशा वहीं छत पर बैठकर रोने लगी आसपास के लोग जो छतों पर थे सब सुरेश की छत की ओर देखने लगे बगल वाली छत पर रीमा भाभी थीं वह भी अपनी छत से सब देख रहीं थीं पर पूरा माजरा उन्हें समझ नहीं आया तब उन्होंने व्यंग से मुस्कुराते हुए मधु से पूछा ” मधु यह क्या हो रहा है सुरेश भाई साहब निशा को थप्पड़ क्यों मार रहें थे”?

  ” कुछ नहीं भाभी यह हमारा निजी मामला है” मधु ने गम्भीर लहज़े में कहा

  ” निजी मामले घर के अन्दर होते हैं खुली छतों पर नहीं यहां जो होता है वह सार्वजनिक हो जाता है मधु रानी हमने भी दुनिया देखी है उड़ती चिड़िया के पर गिनते हैं तुम्हारी बहन और तुम्हारे पति जो गुल खिला रहे हैं वह पूरी कालोनी को पता है हम तो अपना घर देख रहें हैं अब तुम अपने घर को जलने से बचाओं”  रीमा ने व्यंग से मुस्कुराते हुए कहा

  दूसरी छत पर सलमा अपने पति के साथ खड़ी मुस्कुरा रही थी सभी लोग उन्हें ही देख रहे थे मधु ने निशा का हाथ पकड़ा और नीचे उतरने लगी हाल में पहुंचकर उसने निशा की ओर देखा उसकी आंखें रो रोकर सूज गई थीं उसके चेहरे पर मायूसी साफ़ दिखाई दे रही थी

  जबतक सभी हाल में आ गए निशा सिर झुकाकर खड़ी थी उसकी आंखों से आंसूओं की धारा बह रही थी मधु कुछ देर निशा को देखती रही फिर उसके चेहरे पर गम्भीरता छा गई उसने अपने पति की ओर देखा और बहुत ही गम्भीर लहज़े में पूछा” मैं आपसे कुछ मांगू तो आप मुझे देंगे मैंने आज तक आपसे कुछ नहीं मांगा आज मांग रहीं हूं” 

  ” तुम कहना क्या चाहती हो साफ़ साफ़ कहो” सुरेश ने गम्भीर लहज़े में कहा

  पहले आप मुझे वचन दीजिए जो मैं मांगूंगी वह आप मुझे देंगे” मधु ने हाथ जोड़कर कहा

  ” मधु अगर मेरे वश में होगा तो मैं जरूर दूंगा तुम मांगकर तो देखो” सुरेश ने मधु का हाथ पकड़कर कहा

  ” नहीं बहू जो तुम मांगना चाह रही हो मैं समझ गई हूं तुम सुरेश से ऐसा कुछ नहीं मांगना की उसके बाद उसको तुम्हें देने के लिए कुछ न रहे भावावेश में आकर ऐसी कोई ग़लती नही करना जिससे तुम्हें जीवन भर पछताना पड़े”ममता जी ने गम्भीर मगर कठोर शब्दों में कहा

   मधु ने अपनी सास की बात पर ध्यान नहीं दिया उसने अपने पति का हाथ पकड़कर दर्द भरी आवाज़ में कहा,

” आप मेरी निशा से शादी कर लीजिए उसका और मेरे मातापिता का जीवन अब आप ही बचा सकते हैं मेरी झोली में मेरे परिवार की खुशियां डाल दीजिए” इतना कहकर मधु ने अपना आंचल फैला दिया••••

  सभी अवाक खड़े मधु को देख रहे थे जैसे उनके सामने कोई अजूबा खड़ा हो•••••

क्रमशः

डॉ कंचन शुक्ला

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश 

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