फूल चुभे कांटे बन – भाग 9 – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi

  मधु रसोई से निकलकर अपने कमरे की ओर चल पड़ी वह मुस्कुराते हुए कमरे में जैसे दाखिल हुई उसने देखा सुरेश निशा का हाथ पकड़कर अपनी तरफ़ खींच रहे थे मधु को देखकर दोनों सकपका गए तभी निशा ने हंसते हुए कहा ” देखिए ना दीदी जीजाजी मेरा हाथ छोड़ ही नहीं रहें हैं मुझसे कह रहें हैं की पहले यह बताओ मोहन से तुम्हारा चक्कर कब से चल रहा है तुमने अपने प्यार की भनक भी हमें नहीं लगने दिया” 

  मधु के मन में जो शंका उठी थी वह शांत हो गई उसने भी हंसते हुए कहा ” तेरे जीजाजी ठीक ही कह रहे हैं तुमने तो सचमुच हमें भनक नहीं लगने दी मुझे लगता है कि, तुम मोहन के साथ ही टूर पर जाती थी मैं ठीक कह रही हूं ना निशा”? मधु ने मुस्कुराते हुए पूछा

  ” मधु ने कनखियों से सुरेश को देखा उसके चेहरे पर रहस्यमई मुस्कान थी उसने धीरे से शरमाते हुए कहा ,

” हां दीदी हम दोनों साथ ही जाते थे”

   ” अरे इसमें इतना शरमाने की क्या बात है अब तो बहुत जल्दी तुम्हारी शादी मोहन से हो जाएगी तुम ऐसा करो अब की रविवार को मोहन को खाने पर घर बुला लो मैं भी मोहन से मिलना चाहतीं हूं” मधु ने मुस्कुराते हुए कहा

  ” ठीक है दीदी अब मैं सोने जा रही हूं मुझे कल आफिस जल्दी जाना है हो सकता है कि,कल शाम को मुझे फिर टूर पर जाना पड़े आफिस से फोन आया है” निशा ने कहा और कमरे से जाने लगी

  ” क्या इस बार भी मोहन साथ में जा रहा है”? सुरेश ने छेड़ते हुए पूछा

  ” हां जीजाजी मोहन भी जा रहें हैं” निशा ने शरमाते हुए बताया

  ” मुझे भी कल आफिस के काम से नोएडा जाना है जब मैं लौटूंगा तो तुम मोहन को घर ले आना जिससे तुम्हारे शादी की बात पक्की कर दी जाए यही एक तरीका है लोगों के मुंह को बंद करने का” सुरेश ने गम्भीर लहज़े में कहा

  ” ठीक है जीजाजी” इतना कहकर निशा कमरे से बाहर निकल गई।।

  मधु थोड़ी देर निशा की शादी की चर्चा करती रही पर जब उसने देखा की सुरेश को नींद आ रही है तो उसने लाइट बंद कर दी और खुद भी बिस्तर पर लेट गई।

  दूसरे दिन निशा और सुरेश दोनों 5 दिनों के लिए शहर से बाहर चले गए। जब वह लोग लौटकर आए तो रविवार को मोहन खाने पर घर आया वह देखने में बहुत ही स्मार्ट था बातचीत के दौरान मधु ने यह जानने की कोशिश की वह कब  शादी करेगा मधु ने निशा का नाम नहीं लिया क्यों उसे इसकी जरूरत नहीं महसूस हुई वह तो समझ रही थी की जब मोहन निशा से प्यार करता है तो शादी के लिए  निशा का नाम लेने की क्या जरूरत है  तब मोहन ने कहा कि,बहन की शादी के बाद तब मधु और ममता जी को विश्वास हो गया की निशा ने जो कहा वह सच है क्योंकि यही बात निशा ने पहले ही बताई थी मोहन से शादी की बात भी हो गई और कोई बात स्पष्ट भी नहीं हुई यह बात तारा चाची को खटक रही थी पर जब ममता ने तारा को समझाया तो तारा चुप हो गई।

  समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा देखते ही देखते तीन महीने का समय बीत गया इस बीच कुछ ऐसा हुआ जिसने मधु और सभी घर वालों की रातों की नींद हराम कर दी एक रात खाना खाते समय निशा को उबकाई आने लगी वह डाइनिंग टेबल से उठकर बेसिन में उल्टी करने लगी यह देखकर ममता जी के चेहरे पर गम्भीरता छा गई जब निशा मुंह धोकर टेबल पर वापस आई तो ममता जी ने गम्भीर लहज़े में पूछा ” निशा क्या तुम मां बनने वाली हो देखो मुझसे झूठ बोलने की जरूरत नहीं है मैं जान गई हूं अगर ऐसा है तो तुम जल्दी से जल्दी मोहन से शादी कर लो वरना हमारी बहुत बदनामी होगी मैं नहीं चाहती की तुम्हारी गलती के कारण हमारे मान सम्मान पर प्रश्नचिन्ह लगे तुम कल ही मोहन से बात करो” 

  ” निशा ने स्वीकार किया की वह मां बनने वाली है यह बात मोहन को पता है वह जल्दी ही अपनी मां से बात करके मुझसे शादी करेगा मां जी आप की इज्ज़त पर कोई आंच नहीं आएगी” निशा ने धीरे से सिर झुकाकर जबाव

  ” यही ठीक होगा” इतना कहकर ममता जी अपने कमरे में चली गई।

  मधु निशा के मां बनने की बात सुनकर बहुत परेशान हो गई उसका दिल घबराने लगा वह इस शंका से परेशान हो उठी की अगर मोहन ने शादी करने से इंकार कर दिया तो क्या होगा निशा को इतना आगे नहीं बढ़ना चाहिए था हे भगवान मेरी बहन के जीवन में परेशानी न आने देना उसका प्यार उसकी झोली में डाल दीजिए वरना उसके पेट में पल रहे बच्चे का क्या होगा उसका क्या दोष है।

  यही सब सोचते सोचते कब मधु की आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला।

  दूसरे दिन जब निशा आफिस जाने लगी तो ममता जी और मधु दोनों ने उससे कहा कि,वह मोहन से शादी की बात करे

  सुरेश जब आफिस के लिए तैयार होकर बाहर आया तो मधु ने धीरे से डरते हुए कहा ” आप मोहन से बात कीजिएगा” 

  मधु की बात सुनकर सुरेश ने घूरकर मधु को देखा और गुस्से में बोला ” जब तुम्हारी बहन यह गुल खिला रही थी तब तो उसने मुझे कुछ नहीं बताया था अब मैं उसके लिए मोहन से बात करूं अगर मोहन ने शादी करने से इंकार कर दिया और यह कहा की यह बच्चा मेरा नहीं है तो क्या होगा कभी यह सोचा है तब हमारी कितनी बदनामी होगी तुम्हारी बहन ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा” 

  मधु अपने पति की बात सुनकर सहमी खड़ी हुई थी तभी वहां ममता जी आ गई उन्होंने कहा ” बेटा अब जो होना था वह हो गया अब तुम्हें ही मोहन को शादी के लिए तैयार करना होगा यह हमारी इज़्ज़त का प्रश्न है” 

  ” ठीक है मां आप कह रही हैं तो मैं एक बार कोशिश जरूर करूंगा” सुरेश ने कहा और घर से बाहर निकल गया।

  देखते ही देखते एक महीने का समय और बीत गया अब निशा का पेट दिखाई देने लगा इसी बीच मोहन की मां का पैर टूट गया था इसलिए वह उनको लेकर परेशान था यही कारण था कि,अभी तक शादी की बात हो नहीं पाई थी अब बाहर वालों की नज़रों में भी निशा का पेट आने लगा था इसलिए मधु बहुत परेशान थी वह घर से बाहर निकलने में डरती थी उसे डर लगा रहता था कि, कहीं कोई उससे निशा के बारे में न पूंछ बैठे इसी बीच एक शाम निशा रोते हुए घर में घुसी उसे रोता देखकर मधु और ममता जी का माथा ठनका निशा रोते हुए अपने कमरे में चली गई और अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।

मधु निशा के पीछे पीछे उसके कमरे तक पहुंची पर तबतक निशा ने कमरा बंद कर लिया था मधु निशा का दरवाज़ा खटखटाते हुए कह रही थी ” निशा क्या हुआ तुम क्यों रो रही हो और कमरे का दरवाज़ा क्यों बंद कर लिया है खोलो मुझे बताओ क्या हुआ है क्या मोहन से कोई बात हुई है निशा जबतक तुम कुछ कहोगी नहीं तो मुझे पता कैसे चलेगा कि, बात क्या है”? 

  ” मैं तुम्हें बताता हूं क्या हुआ है मोहन ने शादी करने से इंकार कर दिया है उसका कहना है कि,यह बच्चा उसका नहीं है जो लड़की शादी से पहले ऐसा कर सकती है वह किसी शरीफ़ खानदान की बहू बनने लायक नही है” सुरेश ने व्यंग से कहा

अपने पति की बात सुनकर मधु का चेहरा सफेद पड़ गया उसके पैर लड़खड़ा गए उसने सहारे के लिए दीवार को पकड़ लिया•••••••

क्रमशः

डॉ कंचन शुक्ला

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश 

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