अम्मा की ख्वाहिश – हेमलता गुप्ता

अम्मा जी… आपका जन्मदिन किस तारीख को आता है? क्या मेरा जन्मदिन… बिटिया… 80 साल को होने को आई मुझे तो आज तक याद ही नहीं है कि मैंने अपना आखिरी जन्मदिन कब मनाया होगा? पहले कहां लड़कियों के जन्म की तारीख हुआ करती थी

,हां जब मैं बहुत छोटी थी यानी मेरी शादी भी नहीं हुई थी उस समय एक बार मेरी मां बाबूजी ने मुझे मेरे जन्मदिन पर नई फ्रॉक लाकर दी थी जिसे मैं पहनकर पूरे गांव भर में इतराती फिरी थी, अब तो मेरी शादी को भी 60 वर्ष से ऊपर हो गए जन्मदिन मनाने की आस मन की मन में ही रह गई!

फिर भी कभी तो आपका जन्मदिन आता ही होगा, बताइए ना…! पोते की बहु रिचा कि बात सुनकर दादी सोचने लगी और बोली…. बेटा तारीख तो याद नहीं है, पर मां बताती थी की कार्तिक की छोटी दीपावली के दिन मेरी सालगिरह आती है,हमारे जमाने में कौन जन्मदिन मनाता था

बेटा यह तो तुम बच्चे आजकल मनाने लगे हो! अच्छा अम्मा जी ठीक है मैं चलती हूं,! दादी जी की कमरे में से बाहर आकर रिचा अपनी सासू मां से मचलते हुए बोली… मम्मी जी क्यों ना हम इस बार दादी जी का जन्मदिन मनाएं, क्या पता उनके पास अब कितना समय शेष है!

चार महीने पहले आई हुई बहू के मुंह से ऐसी बात सुनकर मालती जी अवाक रह गई! क्या कह रही हो बहू… कुछ सोच समझ कर तो बोला करो, अभीतुम्हारे दादा जी को गए हुए 2 महीने भी पूरे नहीं हुए और तुम घर में जश्न मनाने की बात कर रही हो,

पूरे मोहल्ले में हमारी थू थू हो जाएगी, लोग तरह तरह की बातें बनाएंगे! मां कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का तो काम ही कहना है, आपको तो पता है अम्मा जी की तबीयत भी कितनी खराब रहती है, न जाने कब वह भी इस संसार से चली जाए बस मैं तो यह चाहती हूं

उनकी एक आखिरी इच्छा जो उनके बचपन में ही पूरी हुई थी हम पूरी करें और मां केवल जन्मदिन मनाने की ही तो कह रही हूं, आपको पता है अम्मा जी कितना खुश होती थी अपने जन्मदिन पर,16 साल की थी जब वह विवाह कर इस घर में आई थी

तब से तो उन्होंने कभी अपना जन्मदिन मनाते ही नहीं देखा किंतु आप मुझे दिवाली का तोहफा समझ कर यह दे दीजिए! बहू की जिद के आगे मालती जी की एक न चली और उन्होंने पति और बेटे से पूछ कर रिचा को हां कर दी! अगले दिन रिचा जन्मदिन की तैयारी की लिस्ट बनाने लगी,

किस-किस को बुलाना है क्या-क्या करना है क्या-क्या खाने में बनेगा! बच्चों जैसा बहू का उतावलापन देखकर परिवार के लोगों को भी मजा आने लगा और सभी उसमें शामिल होने लगे! बेटे ने कैटरिंग की व्यवस्था संभाल ली पिताजी ने टेंट वाले से बात कर ली और मां जाकर बाजार से अम्मा के लिए सुंदर सी साड़ी ले आई

और जाकर मोहल्ले भर को न्योता दे दिया खास तौर पर उन महिलाओं को लाने पर जोर दिया जो अम्मा की हम उम्र थी और कह सकते हैं की अम्मा की सहेलियां भी हुआ करती थी! नियत समय पर सभी लोग रिचा के घर इकट्ठा हुए रिचा ने अपनी दादी सास को आज बहुत सुंदर तरीके से सजाया, बालों की सुंदर सी चोटी बनाई पिन लगाकर साड़ी पहनाई

और एक हाथ में छड़ी एक हाथ से खुद उन्हें सहारा देती हुई बाहर तक लाई! अम्मा जी को तो यह सब पता ही नहीं था कि यह सब तैयारी उनके जन्मदिन के लिए की जा रही है वह तो दीपावली की तैयारी समझ रही थी

! कई लोग तो कह भी रहे थे आज के बच्चों को पता नहीं इस उम्र में क्या सूची है नए-नए प्रयोग करते रहते हैं अंतिम तैयारी की जगह जन्मदिन का जश्न मनाया जा रहा है, अब यह भी भला कोई उम्र है दादियों की सालगिरह बनाने की, जिनका खुद पता नहीं है

भगवान के घर से कब बुलावा आ जाए, किंतु कई लोग कह रहे थे अरे.. अच्छा है आजकल के बच्चे ही तो हैं जो बड़े बुजुर्गों को इतना सम्मान देने लगे हैं इन्हीं युवा पीढ़ी की सोच की वजह से तो बुजुर्ग उपेक्षित नहीं रहते!

खैर जितने लोग उतनी बातें अम्मा जी तो यह सब देखकर भौंचक्की रह गई खुशी से उनकी आंखें फटी जा रही थी उन्हें तो यह समझ नहीं आ रहा था यह सब तैयारी उनके लिए है, उन्होंने केक पर से मॉमबत्तियां बुझाई और अपने झुरियादार,लड़खड़ाते, कंपकंपाते हाथों से केक को काटकर सबसे पहले रिचा को खिलाया, फिर रिचा ने अपनी दादी सास को खिलाया!

फिर रिचा ने गाने लगवा दिए वह भी उनकी पसंद के बहुत पुराने गाने! दादी जी और उनकी सभी सहेलियां नाचने की भरसक कोशिश कर रही थी और अम्मा ही नहीं उनकी उम्र की सभी महिलाओं के चेहरे पर अत्यंत प्रसन्नता देखकर उन्हीं के घर परिवार वाले शर्म से गड़े जा रहे थे,उन्होंने अपने बुजुर्गों को कितना उपेक्षित कर रखा था, आज यहां आकर उन्हें एहसास हुआ

की उम्र तो मात्र एक नंबर है उन्हें एक छोटी सी खुशी ही तो चाहिए थी, हम वैसे तो इतना हजारों रुपए खर्च करते रहते हैं लेकिन जब बात बड़े बुजुर्गों की खुशी की आती है तो हम बजट देखने लग जाते हैं और यह सब दिखावा लगने लगता है! खैर.. उसके बाद शुरू हुई

खाना खाने की तैयारी, खाने में अम्मा की पसंद के सारे व्यंजन थे आज तो अम्मा को इतने वर्षों की मुरादे एक साथ ही पूरी होती हुई दिखाई दे रही थी, शाम को जश्न का समापन हो गया सभी लोग खुशी-खुशी अपने घर चले गए,

अगले दिन दीपावली थी इस दीपावली पर सभी के दिलों में सच्चे दीप जल रहे थे और दादी जी तो अभी भी वही पुराने गाने गुनगुना रही थी और अपने जन्मदिन को याद कर करके मुस्कुरा रही थी उनकी खुशी देखकरपूरा परिवार खुश था सच में यह दिवाली उनके लिए खुशियों वाली दिवाली आई थी!

     हेमलता गुप्ता स्वरचित

    कहानी प्रतियोगिता (कुछ तो लोग कहेंगे)

     #अम्मा की ख्वाहिश

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