मालिनी’ और ‘शहनाज’ दोनों अच्छी दोस्त थी, दोनों साथ-साथ पढ़ती थीं, एक ही क्लास में थीं , उनकी दोस्ती कॉलिज में एक मिसाल थी। सभी उनकी दोस्ती की प्रशंसा करते थे, कॉलेज में ”दो सखियों” के नाम से, प्रसिद्ध थीं।
दोनों में जीवन भर, दोस्ती निभाने का वादा किया था। दोनों की शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात भी, उन्होंने एक दूसरे से मिलना नहीं छोड़ा। मालिनी का विवाह, उसके घरवालों ने शीघ्र ही करा दिया किंतु शहनाज नौकरी करने लगी।
अभी उसके लिए कोई रिश्ता नहीं आया था, इसलिए उसने अपने घर वालों से कहा -घर में खाली बैठे ही क्या करना है ? इतनी पढ़ाई की है,जब तक कोई रिश्ता नहीं आता है तो कम से कम कुछ समय के लिए ही सही नौकरी कर लूं, मुझे भी कुछ नया सीखने को मिलेगा।
शहनाज़ बेहद खूबसूरत थी ,वैसे तो मालिनी भी कम नहीं थी ,दोनों ही एक -दूसरे के टक्कर में थीं किन्तु मालिनी अब ससुराल में रह रही थी ,घरेलू होती जा रही थी
किन्तु शहनाज़ दिन- प्रतिदिन निखरती जा रही थी। कभी -कभी मालिनी से मिलने आ जाती थी और उसे समझाती रहती थी, तू अभी इतनी बड़ी भी नहीं हो गई है, तुझे गृहस्थी को बसाए हुए, दिन ही कितने हुए हैं ? खूब घूमाकर और जिंदगी के मजे ले !
मालिनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कहती है – तुम्हारी तरह तो नहीं रह सकती।सारा दिन घर का भी काम करना पड़ता है। सज -धजकर किसके लिए बैठूंगी , यदि सज -धज भी गई, तब भी वही गर्मी- पसीने में काम करना होगा।
अपनी जगह तुम्हारी बात भी सही है,शहनाज़ उसकी परेशानी को समझते हुए कहती है ।
एक दिन जब शहनाज उसके घर आई हुई थी, तब ऋतिक भी घर पर ही था, उसने शहनाज को देखा तो देखता ही रह गया और मालिनी से पूछा- यह तुम्हारी कौन सी सहेली है ?
तब मालिनी हंसते हुए बोली -तुम्हें याद नहीं है, हमारी शादी में आई थी , साली के सारे फर्ज तो इसी ने निभाये थे,क्या आपको याद नहीं ?
अच्छा, हमारे पास इतनी खूबसूरत साली है और हमें मालूम ही नहीं है, हंसते हुए ऋतिक ने कहा। उस दिन शहनाज और ऋतिक की जान- पहचान हुई थी, जीजा- साली के रूप में, किन्तु ऋतिक को उसमें न जाने क्या लगा ? वो अक्सर शहनाज़ के दफ़्तर की तरफ जाते हुए ,
उसकी प्रतीक्षा में खड़ा मिल जाता। शहनाज़ और ऋतिक जीजा -साली से कब एक -दूसरे के प्यार में पड़ गए ?पता ही नहीं चला ,ऋतिक अक्सर शहनाज़ से मालिनी की बुराई करता और शहनाज़ की प्रशंसा।
धीरे-धीरे मालिनी के प्रति, ऋतिक का व्यवहार बदलने लगा, जिस ऋतिक के पीछे वह इस घर में आई थी, वही ऋतिक उसे अपना नहीं लग रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे वह शरीर से यहां रहता है, किंतु उसका मन और मस्तिष्क कहीं और है।
मालिनी की छठी इंद्री उसे सचेत कर रही थी, उसे लग रहा था, अवश्य ही, कुछ तो बात है। अचानक ही ऋतिक का यह व्यवहार क्यों बदला है ?
यह बात जानने के लिए वह चोरी से उसके फोन की जांच करती है किंतु अब की बार उसने देखा, ऋतिक ने फोन में लॉक लगा दिया था , इससे पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था कि उसे फोन में लॉक लगाना पड़े। उसमें ऋतिक से पूछा -क्या तुमने फोन लॉक लगा दिया है ?
हां क्यों ?
इससे पहले तो तुमने कभी लॉक नहीं लगाया, अब लॉक लगाने की, ऐसी क्या आवश्यकता आन पड़ी ?
आवश्यकता नहीं है, समझदारी है , ऋतिक ने जवाब दिया , मैं बाहर जाता रहता हूं , फोन में मेरी 50 चीजें हैं, इस तरह तो कोई भी खोल कर देख लेगा, इसीलिए मैंने लॉक लगाया है। उसका जवाब मालिनी को सही लगा किंतु अभी भी उसके मन में एहसास हो रहा था,
अवश्य ही कोई बात तो है। कई बार उसने ऋतिक को, फोन पर किसी से छुप-छुपकर बातें करते देखा। जैसे ही वह सामने जाती, वह फोन या तो काट देता या इस तरह से बातें करने लगता जैसे किसी को एहसास करा रहा है, कि उसके सामने कोई है।
एक दिन मालिनी ने शहनाज से कहा -मुझे लगता है, इनकी जिंदगी में अवश्य ही कोई है, जो मेरी गृहस्थी को उजाड़ना चाहती है , न जाने, वह कलमुही कौन है ? जो हमारी जिंदगी में आई है, तुम तो मेरी सहेली हो , तुम एक बार अपने जीजा जी से बात करो ! वह तुम्हारी बात मान लेंगे, तुम्हारी बात का मान रखेंगे।
मालिनी की बात सुनकर शहनाज असमंजस में पड़ गई , एक तरफ सहेली का घर था, उसका विश्वास था तो दूसरी तरफ मालिनी का पति और उसका प्यार था। वह बहुत परेशान हुई। उसने अपने आप को, अपने मन को बहुत समझाया, किंतु क्या करें ?
क्या मुझे इस रिश्ते से निकल जाना चाहिए ? मैं अपनी ही सहेली के घर को तोड़ रही हूं, जब उसे पता चलेगा तो क्या सोचेगी ?
मुझसे बड़ा पापी कौन होगा ? अनेक विचारों ने शहनाज को घेर लिया। शहनाज को लग रहा था- उसका पति और मैं अपनी सहेली की” आंखों में धूल झोंक रहे हैं” , एक न एक दिन तो उसे पता चल ही जाएगा, तब क्या होगा ?
जितने विश्वास से, मालिनी ने आज मुझसे कहा है, जब उसे पता चलेगा कि उसका घर तोड़ने वाली मैं ही हूं तो वह कभी मुझ पर, विश्वास नहीं कर पाएगी। अपनी परेशानी में शहनाज ने ऋतिक से बात की और बोली -मालिनी तुम्हारी पत्नी है,
और मैं उसकी सखी हूं, हम कब तक उसकी” आंखों में धूल झोंकते रहेंगे।” एक न एक दिन तो उसे पता चल ही जाएगा ,तब हमारे रिश्ते का क्या अंजाम होगा ? कभी सोचा है, हम एक गलत दिशा में जा रहे थे, अब हमें अपने कदमों को यहीं रोक लेना चाहिए।
नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता, मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, ऋतिक ने कहा -मैं मालिनी को तलाक दे दूंगा।
यह सुन बात सुनकर, शहनाज सकते में आ गई और सोचने लगी -मेरे कारण मेरी सहेली का घर टूट रहा है यदि किसी और के कारण मेरा घर टूटे तो मुझ पर क्या बीतेगी ? तभी उसका ध्यान ऋतिक की तरफ गया और सोचने लगी -मैं इसकी बातों में,
आ गई थी किंतु मैंने यह क्यों नहीं सोचा ? जो इंसान मेरे लिए अपनी पत्नी को धोखा दे सकता है, उससे रिश्ता तोड़ सकता है तो किसी और के लिए, मुझे भी धोखा दे सकता है मुझे भी छोड़ सकता है, यह विचार आते ही , शहनाज ! ऋतिक को कभी नहीं मिली।
ऋतिक ने शहनाज को बहुत ढूंढा किंतु वह न ही,वह अपने दफ्तर में थी, और न ही उसे, वह घर पर मिली,न ही उसका फोन लग रहा था। कोई नहीं जानता था ,वह कहां चली गई ? कुछ दिनों तक ऋतिक परेशान रहा और धीरे-धीरे अपनी गृहस्थी में लौट आया, अब मालिनी भी खुश थी।
एक दिन राह में अचानक ही, मालिनी को शहनाज दिख गई , प्रसन्नता दिखलाते हुए मालिनी ने पूछा -तुम कहां चली गई थी ? बहुत दिन हो गए मिली नहीं, न ही तुम मिलने आईं।
शहनाज ने बताया -अब मेरी शादी हो गई है, अब मैं भी तुम्हारी तरह घर -गृहस्थी संभालती हूं सबसे बड़ी बात तो अपने पति को संभालना होता है।
तभी मालिनी बोली -जिस तरह तुमने मेरी गृहस्थी को संभलवा दिया।
क्या मतलब ?मैं कुछ समझी नहीं।
एक दिन मैंने तुम दोनों को, बाजार में गोलगप्पे खाते हुए देख लिया था , तब मैंने ऋतिक के फोन से भी जानकारी ली, तब मुझे पता चला मेरी गृहस्थी तोड़ने वाली तुम ही हो, इसीलिए मैंने एक सहेली होने के नाते तुमसे सहायता मांगी और तुमने अपना कर्तव्य बहुत अच्छी तरीके से निभाया।
मैं मानती हूं -एक उम्र में हम कई बार गलत कदम उठा लेते हैं, लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि उन बहके हुए कदमों को, समय रहते ही संभाल लिया जाए।
मैं तुम दोनों के रिश्ते को बहुत पहले ही जान चुकी थी, किंतु तुम दोनों को मौका दे रही थी कि तुम में से कोई तो, अपने कदमों को पीछे खींचेगा और देखो ! मेरी दोस्ती जीत गई कहते हुए मालिनी ने शहनाज को गले लगा लिया।
✍🏻लक्ष्मी त्यागी