महेन्द्र बाबू गांव के जाने माने जमींदार थे। हज़ारों स्क्वायर फ़ीट में फैली ज़मीन के बीचों बीच उनकी आलीशान कोठी बनी थी और बाहर क्यारी के पास की ज़मीन पर एक बड़ा सा आम का पेड़ लगा था जो बहुत सारी गौरैया,तिलोरी और फ़ाख्ता चिड़ियों का घर था।
दिन भर चिड़ियों की चहचहाट से वातावरण खुशनुमा और जीवंत बना रहता था। महेंद्र बाबू की माँ जिनको सब बड़ी मालकिन बोलते थे उनका रोज़ का नियम था सुबह उठते ही सबसे पहले आंटे की गोलियां बनाकर पेड़ के पास डालती थीं
और पानी भर कर किनारे रख देती थीं और ये काम वो खुद अपने हाथ से करना पसंद करती थीं। सारी चिडियाँ उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थीं। जिस दिन उनको आने में कुछ देर हो जाती उस दिन चिड़ियों की चहचहाट ज़्यादा बढ़ जाती थी मानो वो सब अपनी भाषा मे उनको पुकार रही हों।
बड़ी मालकिन के पति सालों पहले गुज़र गए थे तो उनका सारा समय बस पूजा पाठ, चिड़ियों की सेवा और घर के बच्चों के साथ ही बीतता था।
एक दिन बड़ी मालकिन बाहर ही बैठी थीं तभी दो-तीन मिस्री मजदूर आये जिन्हें महेन्द्र बाबू ने बुलवाया था और वो सब आपस मे घर की छत पर चहारदीवारी उठवाने और घर के बाहर पड़ी कच्ची सड़क को पक्का बनाने के लिए बात करने लगे।
बाकी सब तो ठीक था,जैसे ही बड़ी मालकिन को पता चला कि पक्की सड़क बनाने के लिए आधी क्यारी और उससे लगा हुआ आम का पेड़ काटना पड़ेगा,वो तो बुरी तरह बिगड़ गयीं । महेंद्र बाबू ने बहुत समझाया कि टेढ़ी मेढ़ी सड़क देखने में अच्छी नहीं लगेगी,
इसलिए पेड़ का कटना बहुत ज़रूरी है। पर बड़ी मालकिन कुछ नही सुनना चाहती थीं वो बस इतना ही चाहती थीं कि चिड़ियों का घर न उजड़ने पाये। महेंद्र बाबू से बोलीं,”लल्ला,बहुत पाप लगेगा तुझे,कितनी सारी चिडियाँ बेघर हो जाएंगी,
अरे थोड़ी सी ज़मीन कच्ची ही छोड़ दे, अभी तो फ़ाख्ता ने अंडे दिए हैं वो रोज़ अपने अंडो को से पाल रही है,उन अनबोले जीवों की हाय न लग जाये हम सबको।”
मां की बात सुनकर उन्होंने मिस्त्री मजदूरों को किसी और दिन आने को कहकर वापस भेज दिया। कुछ दिन आराम से बीते, फिर अगले हफ़्ते वो मिस्त्री मजदूर आकर खड़े हो गए।वो छुट्टी का दिन था सभी बच्चे भी घर पर ही थे और सारे बच्चे भी अपनी दादी के ही पक्ष में थे
पर इस बार महेंद्र बाबू का रुख पहले से सख्त था मानो वो आज पेड़ कटवा कर ही रहेंगे। जैसे ही बड़ी मालिकन को भनक लगी वो भागती हुई बाहर आयीं और रुआंसी होकर पेड़ के पास खड़ी हो गईं तभी फ़ाख्ता चिड़िया जिसने पेड़ पर अंडे दिए थे
वो बार बार उड़कर घोंसले पर बैठती फिर बड़ी मालकिन के पैरों के पास उड़कर बैठती मानो उनसे याचना कर रही हो कि मेरे बच्चों को बचा लो। बड़ी मालकिन मन ही मन भगवान से उन चिड़ियों के बसेरे की सुरक्षा की प्रार्थना कर ही रही थीं
कि तभी घर के अंदर से उनकी बहू और बच्चों के चीखने चिल्लाने की आवाज़ें आने लगीं और एक नौकर भागता हुआ बाहर आया और बोला,”साहब ,अर्जुन भैया खेलते हुए छत से आंगन में गिर गए हैं सिर में बहुत चोट आई है जल्दी डॉक्टर के यहाँ ले चलिए।”
महेन्द्र बाबू भागते हुए अंदर जाते हैं और ड्राइवर से गाड़ी स्टार्ट करने को बोलते हैं। बड़ी मालकिन रोते हुए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि,”हे प्रभु!मेरे पोते को बचा लो,चाहे मेरे प्राण ले लो।”
जब तक महेन्द्र बाबू डॉक्टर के यहाँ से लौट नहीं आये तब तक बड़ी मालकिन बाहर क्यारी के पास चारपाई पर बैठकर पूजा प्रार्थना करती रहती हैं और ऐसा लगता जैसे उनके साथ उनके अनबोले पंछी भी अपनी अन्नदाता के लिए मूक प्रार्थना कर रहे हों।
तभी थोड़ी देर बाद महेन्द्र बाबू बेटे को लेकर वापस आ जाते हैं और बताते हैं कि डॉक्टर ने सिर में टांके लगा दिए हैं और हाथ में बारीक सा फ्रैक्चर है बस टूटा नहीं है।
अपनी मां के पास बैठकर हाथ जोड़कर मांफी मांगते हुए कहते हैं,”माँ ,मैं दूसरे का घोंसला उजाड़ने चला था,आज मेरा घोंसला ही उजड़ते उजड़ते रह गया। डॉक्टर ने बोला कि जिस तरह ये गिरा था उस हिसाब से बहुत चोट आनी चाहिए थी
उसको देखते हुए कुछ ज़्यादा चोट नहीं आई ।बस आपके पुण्य प्रताप से आज मेरा बेटा बच गया और आज मैं आपको वचन देता हूँ कि जब तक मैं ज़िंदा हूँ ,ये पेड़ ऐसे ही लहलहाता रहेगा और इन चिडियों का घोंसला ऐसे ही सुरक्षित रहेगा।”
बड़ी मालकिन मुस्कुराते हुए पेड़ की तरफ़ देखकर बोलीं,”आज से तुम सब सुरक्षित हो अब ये तुम्हारा अपना घर है,बेफिक्री से रहो।”
चिडियाँ अपनी मधुर स्वरलहरियों यानि चहचहाट से मानो बड़ी मालकिन का आभार प्रकट कर रही थीं।
– सिन्नी पाण्डेय