गंवार माँ – अर्चना खण्डेलवाल :  Moral Stories in Hindi

शिरीष मुझे थोड़े रूपये और दे दो, मुझे आज शॉपिंग पर जाना है, शाम को वर्षा और मुक्ता आ रही है, तो बहनों के साथ मैं भी चली जाऊंगी, कुछ मनपसंद का ले आऊंगी, चारू ने खुशी से कहा पर उसकी बातें सुनकर शिरीष का चेहरा उतर गया।

क्या हुआ? तुम इतने उदास क्यों हो गये हो? अरे!! शॉपिंग करने जा रही हूं, मेरे मायके रहने नहीं जा रही हूं, चारू ने छेड़कर कहा।

नहीं, मैं इस बात से उदास नहीं हूं, मुझे तो इस बात की चिंता लग रही है, अभी मुझे फ्लैट की ईएमआई भरनी है, बाकी घर के सारे खर्चे है और तुम्हें शॉपिंग की पड़ी है।

शिरीष की बात सुनकर चारू फिर से गुस्सा हो गई, फिर वो ही पैसों की बात पर झगड़ा कर रहे हो, अरे! वीकेंड है तो कहीं तो बाहर जाऊंगी, बहनें आ रही है तो वो शॉपिंग करेंगी और मैं उनका मुंह देखूंगी, ऐसे थोड़ी होता है, मुझे भी कुछ तो लेना होगा।

चारू वीकेंड का मतलब सिर्फ घूमना-फिरना शॉपिंग नहीं होता है, हमारी अभी तीन महीने पहले शादी हुई है, तुम्हारे पास सब है, घर में सब है,

फिर बेकार शॉपिंग क्यों करना? तुम दोनों बहनों के साथ घूमने जाओ, मुझे कोई दिक्कत नहीं है, पर फिजूलखर्ची करना जरूरी नहीं है, शिरीष थोड़ी तेज आवाज में बोली पड़ा तो अंदर से उसकी मां बाहर आ गई।

बेटे-बहू को झगड़ता देखकर वो थोड़ी सी असहज हुई, फिर उन्होंने चारू को समझाना चाहा, बहू शिरीष सही ही कह रहा है, तुम्हारे पास अभी सब है, फिर बिना काम के पैसों को व्यर्थ मत करो, तुम्हें अपने पति की परेशानी समझनी चाहिए, और अपनी बहनों से होड़ नहीं करनी चाहिए।

ये सुनकर चारू आग-बबूला हो गई, आप तो चुप ही रहिए, आप तो वैसे भी गंवार है, जिसने अपना सारा जीवन पैसे बचाते हुए घर में सिलाई करते हुए निकाल दिया है,

आप क्या जानों स्टेट्स भी कोई चीज होती है, अरे! थोड़ा पैसा खर्च हो भी जायेगा तो क्या? बहनों के बीच में मेरी शान तो बनी रहेगी, फिर अगर शिरीष के पास अभी पैसा नहीं है तो क्रेडिट कार्ड तो है।

चारू की बात सुनकर शिरीष से रहा नहीं गया, तुम मेरी मॉं से माफी मांगो, इस तरह कोई बड़ों से बात करता है, तुम जिसे गंवार कह रही हो, ये गंवार औरत मेरी मॉं है, इन्होंने मुझे अकेले पालकर बड़ा किया है और मैं अपनी मां के विरुद्ध कोई गलत बात नहीं सुन सकता हूं।

चारू शिरीष का व्यवहार देखकर और गुस्सा हो गई, मेरी ही गलती थी, जो तुम्हारे प्यार में पड़कर तुमसे शादी कर ली, मैं अब ये घर छोड़कर जा रही हूं, तुम और तुम्हारी गंवार मॉं दोनों रहो, और वो पैर पटकते हुए कमरे में चली गई और अपना सामान बांधने लगी।

बहू सुनो तो सही इस तरह घर छोड़कर जाना ठीक नहीं है, अब तुम्हें इसी घर में रहना है…..अपनी सास ज्योति जी की आवाज को सुनके भी चारू चली गई। 

मायके पहुंचकर उसने अपनी आपबीती बताई तो उसकी मां ममता जी ने उसे समझाया कि बेटी इस तरह घर छोड़कर आना अच्छा नहीं है, अब तुझे उसी घर में रहना है।

हां, आप भी बोल लो, वो गंवार औरत भी यही कहती हैं, चारू ने कहा तो ममता जी हैरान रह गई।

चारू, ये क्या तरीका है? अपनी सास के लिए इस तरह नहीं बोलते हैं, आखिर वो तेरी मां समान है।

वो गंवार मेरी मां नहीं हो सकती है, चारू ने कहा तो ममता जी चुप हो गई।

उन्होंने शिरीष से फोन पर बात की, उसने समझाया, ज्योति जी घर आकर समझाकर चली गई, लेकिन चारू उस घर में जाने को तैयार नहीं हुई, कुछ दिनों बाद उसे पता चला कि वो गर्भवती हैं तो शिरीष और ज्योति जी दौड़कर उसे मनाने को आयें, लेकिन वो नहीं मानी और उसने शिरीष के साथ अलग रहने की मांग कर डाली।

शिरीष को उसकी मां ने काफी मुश्किलों से पाला था, वो उन्हें अकेला छोड़ना नहीं चाहता था, लेकिन बच्चे की खातिर वो अलग हो गया, और बीच-बीच में जाकर अपनी मां को संभालता रहा।

कुछ महीनों बाद चारू मां बनी तो उसे मां की ममता का अहसास हुआ, एक दिन जब उसने करवट बदली तो देखा उसका बच्चा उसके पास नहीं है, वो कमरे से बाहर गई तो देखा शिरीष की मां उसे गोदी में खिला रही है, अपने बच्चे को सास की गोदी में देखकर वो तिलमिलाने लगी।

ये यहां क्यों आई है? इन्हें मेरे बच्चे से दूर रखो और वो अपना बेटा लेकर अंदर चली गई। कुछ महीनों बाद से शिरीष की तबीयत खराब रहने लगी, डॉक्टर ने जांच कराने को बोला तो पता चला कि उसकी किडनियां खराब हो रही है, उसे जल्दी ही नई किडनी चाहिए, लेकिन वो मैच होनी चाहिए।

ज्योति जी अस्पताल पहुंची, जैसे ही उन्हें पता लगा वो अपनी किडनी देने को तैयार हो गई। चारू उस समय काफी परेशान सी थी, वो चाहती थी कि शिरीष जल्दी से ठीक हो जाएं, अभी उसका बच्चा छोटा है, वो कैसे अकेले देखभाल करेगी?

शिरीष ने उसकी चिंता को समझ लिया, चारू तुम तो पढ़ी-लिखी हो, तुम हमारे बच्चे को कैसे भी करके बड़ा कर दोगी, जब मेरी मां गंवार होकर मुझे पाल सकती है, पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा कर सकती है, तो तुम भी कर लोगी।

मुझे माफ कर दो, मुझे समझ आ गया है, कोई भी मां गंवार नहीं होती है, वो अपने बच्चे की पहली गुरु, मार्गदर्शक और उसकी जीवन रक्षक होती है, आज  मम्मी जी अपने बच्चे के लिए, मेरे सुहाग के लिए, अपने पोते के लिए किडनी देने को तैयार हो गई है, वो तो महान है।

ज्योति जी की किडनी शिरीष से मिल गई और उसे प्रत्यारोपित कर दिया गया, अगले दिन ही ज्योति जी की तबीयत खराब हो गई, और उन्होंने अचानक से दम तोड़ दिया, शिरीष और चारू हैरान थे, आखिर अचानक ये कैसे हो गया?

मैंने उन्हें मना किया था, ये तो गलत हुआ, आपकी मम्मी के पास एक ही किडनी थी, उन्होंने एक किडनी पहले आपके पापा को दे दी थी, पर वो बच नहीं पायें, हमने उन्हें मना किया था, पर उन्होंने हमें कहा था, मेरे बेटे को ये बात मेरे जाने के बाद पता चलनी चाहिए,

मेरे बेटे का जीना ज्यादा जरूरी है, उस पर अपने बेटे और पत्नी की जिम्मेदारी है। वैसे भी मैं गंवार हूं, अकेले रहती हूं और जीकर क्या करूंगी। डॉक्टर ने ये सब बताया तो शिरीष की आंखों से आंसू बह निकले, चारू को आत्मग्लानि हो रही थी।

जीवन देने वाली मां फिर से उसे जीवन दान में देकर चली गई।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खण्डेलवाल ✍️ 

Leave a Comment

error: Content is protected !!