ऐसे भी सास ससुर होते हैं – गीतू महाजन :  Moral Stories in Hindi

“जवान बेटे की मौत का ज़रा भी दुख नज़र नहीं आ रहा है इनके चेहरे पर और तो और बहू को भी साथ लिए बाज़ार में घूम रही है”, आरती ने अपने मोहल्ले में रहने वाली रजनी जी और उसकी बहू प्रिया को देख कर कहा जो की बाज़ार से सब्ज़ी वगैरह खरीद कर ला रही थी।

“अरे, आजकल का तो ज़माना ही उल्टा हो गया है.. बेटे की मौत का सदमा लगता है तो मांए अपनी सुध- बुध खो बैठती हैं और इधर देखो यहां तो हर तीसरे चौथे दिन खरीदारी चलती है” एक और महिला आरती को जवाब देते बोली। 

“इसकी बहू ने तो अपनी बुटीक पर भी जाना शुरू कर दिया है.. क्या फर्क पड़ता अगर कुछ महीने रुक जाती.. इसका काम करना इतना ज़रूरी है..पति के  जाने का शोक तो मना लेती”, एक तीसरी महिला उनकी वार्तालाप में शामिल हो गई।

दरअसल गाज़ियाबाद के एक मोहल्ले में रहने वाली  रजनी जी के बेटे प्रकाश की मृत्यु लगभग दो महीने पहले एक रोड एक्सीडेंट में हो गई थी।

रजनी जी के पति सरकारी अफसर थे और रिटायर्ड थे और बेटा प्रकाश एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था। दफ़्तर से वापिस आते वक्त ही यह हादसा हुआ और पूरे घर में मातम फैल गया। प्रकाश रजनी और मनोहर जी का इकलौता बेटा था।उसकी पत्नी प्रिया और उनका 6 साल का एक बेटा पार्थ था।रजनी जी की एक बेटी भी थी ईशा जो कि दिल्ली में भी ब्याही हुई थी।

बेटे की आकस्मिक मृत्यु से पूरे घर में मातम फैल गया था।अपने इकलौते और जवान बेटे को ऐसे खो देना उनके लिए बहुत बड़ा सदमा था।

प्रिया तो पति के जाने के बाद बिल्कुल सहम सी गई थी।उसे कुछ नहीं समझ आ रहा था कि वह आगे अपनी ज़िंदगी प्रकाश के बिना कैसे बिताएगी।

छोटे से बेटे का मुंह देखती तो उसकी रुलाई रुकने का नाम नहीं लेती।रजनी जी और मनोहर जी का भी दुख कुछ कम नहीं था।ईशा भी भाई को याद कर रोती पर कब तक मायके में बैठी रहती.. कुछ दिन उनके साथ बिताकर वह अपने ससुराल लौट गई थी।

रजनी जी बहू का उतरा चेहरा देखकर बहुत परेशान रहती।दुःखी तो वो भी थी पर अपने पोते को जब रोती हुई मां के गले में बाहें डालते देखती तो उनका मन धक से रह जाता।अभी प्रिया की उम्र ही क्या थी जो उसे ऐसे  दुःख का सामना करना पड़ा..अक्सर रजनी जी भगवान से यह प्रश्न पूछती ।फिर एक दिन रजनी जी ने कुछ फैसला किया और प्रिया को वापिस अपनी बुटीक खोलने के लिए कहा।

“मांजी, मुझे नहीं लगता अब मैं यह सब कुछ कर पाऊंगी..प्रकाश के बिना कुछ करने को दिल नहीं करता”। 

“बहु मानती हूं और समझती हूं तुम्हारा दुख पर अपने छोटे से बेटे की तरफ तो देखो..कुछ महीनो में ही कैसे मुरझा सा गया है।उसके पिता की कमी तो कोई पूरी नहीं कर सकता पर मां होने के नाते अब तुम्हें दोहरी ज़िम्मेदारी निभानी होगी।

तुम्हें रोता देखेगा तो उसके मासूम दिल पर क्या बीतेगी..कुछ उसके बारे में सोचो। तुम्हें अब कड़ा कदम उठाना होगा और अपनी ज़िंदगी फिर से शुरू करनी होगी।तुम बुटीक पर जाना शुरू करो और हम तुम्हारे साथ है ना हर कदम पर”।

“मांजी,लोग क्या कहेंगे कि अभी पति की मृत्यु हुए दो महीने बीते हैं और मैंने बुटीक पर जाना शुरू कर दिया है”।

“लोगों की सोचती रहोगी तो कुछ नहीं कर पाओगी और कुछ तो लोग कहेंगे।अगर ऐसे ही बैठी रही तब भी लोग कहेंगे कि अपने छोटे से बच्चे का मासूम चेहरा नहीं दिखता इसको।अपने बूढ़े सास ससुर के लिए ही कुछ करती..सारा दिन रोती ही रहती है”

और अगर तुम थोड़ा मुस्कुराओगी तब यही लोग कहेंगे,”देखो, पति के जाने का गम नहीं बिल्कुल कैसे हंस रही है।इसलिए लोगों की परवाह करनी छोड़ो और अपने कदम बढ़ाओ।ज़िंदगी बहुत लंबी है.. इसमें आई मुश्किलों का सामना तुम्हें अपनी हिम्मत से करना होगा”।

प्रिया के सास- ससुर और माता-पिता के समझाने पर प्रिया ने फिर से बुटीक जाना शुरू कर दिया। रजनी जी भी उसको शाम के समय बाज़ार ले जाती.. कभी सब्ज़ी खरीदने के बहाने..

कभी पोते पार्थ को घूमाने के बहाने पर लोगों की आंखों में उन्हें देखकर जो भाव आते थे वह उनसे छुपे नहीं रहते थे प्रिया कई बार हड़बड़ा जाती पर उसी समय रजनी जी मज़बूत हाथों से उसका हाथ थाम लेती। लोगों की परवाह किए बगैर उन्होंने अपनी बहू और पोते को फिर से ज़िंदगी जीने के लिए प्रेरित कर दिया था।

प्रिया काफी हद तक सामान्य हो गई थी। बुटीक के साथ-साथ वह घर और बाहर की ज़िम्मेदारी भी निभाने लगी थी। मनोहर जी भी उसका साथ देते ।

प्रिया के भाई भाभी भी बहुत अच्छे थे।ईशा भी आती रहती.. पूरे परिवार का साथ पाकर प्रिया फिर से ज़िंदगी जीने लगी थी।‌पार्थ भी अब खुश रहता ..मां के साथ खेलता.. दादा दादी से कहानी सुनता। प्रिया की मां अक्सर कहती कि ऐसे भी सास ससुर होते हैं जो अपनी बहू का साथ हर हाल में देते हैं।

लगभग 1 साल बाद पार्थ को जब क्लास में प्रथम आने के लिए पुरस्कार मिला तो प्रिया को खुशी से चहकते देख रजनी जी के मन को बहुत संतोष मिला।

शाम को बेटे प्रकाश की तस्वीर के आगे दिया जलाते हुए उससे बोली,” देख तेरी पत्नी और बेटे को संभाल लिया है। जानती हूं प्रिया नहीं मानेगी पर मैं और तेरे पिता ने उसे पुनः विवाह करने के लिए बात करने की सोच रखी है। कुछ और वक्त बीतेगा तो इस बारे में भी बात करूंगी”। 

तभी उनके कंधों पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ। मनोहर जी थे.. दोनों की आंखों में आंसू थे पर मन में एक संतोष भी कि बहू और पोते को एक बड़े दुख से उभरने में वह कामयाब रहे हैं। इसके लिए चाहे उन्हें अपना दिल कितना ही पत्थर क्यों न करना पड़ा। लोग क्या कहेंगे इस बात को दरकिनार कर उन्होंने अपने बहू को जीवन जीने की राह दिखा दी थी।

दोस्तों, यह सच है कि लोग किसी भी हाल में नहीं छोड़ते पर अगर ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ यह सोच लिया जाए तो जीवन में आई मुश्किलों का सामना करने की हिम्मत आ जाती है और जीवन को काफी हद तक आसान किया जा सकता है।

#स्वरचितएवंमौलिक 

#अप्रकाशित 

गीतू महाजन,

नई दिल्ली।

#कुछ तो लोग कहेंगे

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