वर्चस्व – बीना शुक्ला अवस्थी :  Moral Stories in Hindi

केतकी जी आज सिर नहीं उठा पा रही थीं। सामने घर के सारे लोग बैठे थे, उसे तो उम्मीद ही नहीं थी कि आज उसे सबके सामने इतनी बेइज्जती उठानी पड़ेगी।

जब छोटी बहू चंदना विवाह करके घर आई तो केतकी जी खुश नहीं थी। चंदना में कोई कमी न होते हुये भी आम हिन्दुस्तानी स्त्रियों की तरह अपनी पसंद की बहू लाने का कीड़ा उनके दिमाग में भी काट रहा था, इसलिये वह चंदना से नाराज ही रहती थी।

चंदना एक पढ़ी-लिखी नौकरी पेशा अच्छे स्वभाव की लड़की थी। केतकी जी बराबर उसे परेशान करने का बहाना ढूंढती रहती थी। चंदना ने आते ही अपनी जिठानी रत्ना  से कह दिया – ” मुझे घरेलू काम थोड़े थोड़े आते तो हैं, लेकिन पढ़ाई के तुरंत बाद नौकरी लग जाने के कारण अभी अभ्यास नहीं है। मैं धीरे-धीरे सब सीख तो लूंगी, लेकिन सुबह ही आपकी सहायता कर पाऊॅगी। शाम को तो मेरे आने का समय ही निश्चित नहीं है।”

” घर के काम की चिन्ता मत करो, अभी तक जैसे करती आ रही हूॅ, तुम्हारी दो रोटी बनाने में क्या फर्क पड़ेगा लेकिन मुझे अपनी बड़ी बहन ही समझना, कभी गुस्से में या चिड़चिड़ाहट में कुछ कह दूॅ या डॉट दूॅ तो बुरा मत मानना।”

चंदना खिलखिला कर हंस पड़ी – ” एकाध थप्पड़ भी चल जायेगा, इससे ज्यादा नहीं।”

रत्ना ने चंदना से एक बात और कही – ” जब हम बहनें हैं तो किसी के भी कान भरने या चुगली को ध्यान नहीं देंगे। अगर कोई तीसरा हम दोनों के विषय में एक दूसरे के विरुद्ध कुछ कहकर हमारे सम्बन्ध को खराब करने का प्रयास करेगा तो हम उसका विश्वास न करके एक दूसरे से स्पष्ट रूप से बात करेंगे। एक दूसरे के प्रति अपने विश्वास को सदैव कायम रखना है।”

चंदना ने रत्ना को गले से लगा लिया – ” आप बहुत समझदार हो। मैं सदैव आपके मार्गदर्शन के अनुसार कार्य करूॅगी।”

” यह सब मैंने इसलिये कहा कि सासू मॉ, ननद जी यहॉ तक कुछ रिश्तेदार भी जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम अधिक करते हैं। उन्हें आग लगाने में मजा आता है।”

” आप सही कह रही हैं भाभी। हम उन लोगों का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते लेकिन खुद सतर्क तो रह ही सकते हैं।”

चंदना रत्ना के साथ उठती। जब तक रत्ना नहाकर पूजा वगैरह करके निपटती तब तक चंदना सबके नाश्ते और टिफिन की तैयार कर लेती और सबको चाय दे देती। हालांकि केतकी ने उसे बिना नहाये रसोई में जाने को मना किया था लेकिन उसने कह दिया कि वह रात की नाइटी बदलकर ही रसोई में जायेगी। इस पर उसके पति और दोनों बेटों अरुण और तरुण ने भी कहा – ” अब तुम्हें क्या परेशानी है अम्मा, वह कपड़े बदल कर रसोई में चली जायेगी।” 

सबके सामने केतकी कुछ बोल नहीं पाई।‌ पूजा करके आते ही वह सबसे पहले जबरदस्ती रत्ना को एक कप चाय पिला देती। चंदना ने एक काम और किया, वह दो कप चाय की छोटी छोटी हॉट बोतलें खरीद लाई और चाय बना कर कप सहित सबके कमरे में रख आती। पहले रत्ना को सबके लिये बार बार चाय बनानी पड़ती थी।

जब तक चंदना ऑफिस के लिये तैयार होती, तब तक रत्ना नाश्ता और सबके लिये टिफिन तैयार कर लेती। नाश्ते की मेज पर वह जबरदस्ती रत्ना को ले आती – ” मेरे सामने नाश्ता करिये, वरना मैं ऑफिस नहीं जाऊॅगी, भले ही वहॉ पर कितनी ही डॉट खाऊॅ या मेरी नौकरी छूट जाये।” रत्ना की ऑखें भर आतीं।

पहले वह सबको ऑफिस भेजकर और पूजा करके ही चाय पी पाती थी क्योंकि केतकी का आदेश था कि पूजा के पहले पानी तक नहीं पीना है। नाश्ता तो उसने छोड़ ही दिया था क्योंकि उसे सारा काम करते करते इतनी देर हो जाती थी कि नाश्ता करने के बाद वह दोपहर को खाना नहीं खा पाती थी। जबकि इतने वर्षों में कभी किसी ने यहॉ तक अरुण ने भी नहीं सोचा कि उसने चाय पी है या नहीं। 

केतकी देख रही थीं कि चंदना पर उनकी कटूक्तियों का शुरू से ही असर नहीं पड़ता था लेकिन अब धीरे धीरे रत्ना भी उनकी बातों की ओर से तटस्थ होती जा रही थी। उनकी आवश्यकता की पूर्ति पहले जैसी ही होती थी। पैर दर्द का बहाना करके वह घंटों रत्ना को अपने पास बैठने के लिये विवश किये रहती थीं लेकिन अब चंदना ने उनके लिये एक मालिश करने वाली लगवा दी।

चंदना से शादी तय होने पर रत्ना के मन में कई तरह की शंकायें थीं। पहली बात – चंदना का मायका उससे अधिक सम्पन्न था। दूसरी बात – वह सोचती थी कि अधिक पढी लिखी और सम्पन्न मायके के कारण चंदना घमंडी और नकचढ़ी होगी तो उसे नीचा दिखायेगी। तीसरी बात – उसे डर था कि उसका काम और बढ जायेगा। जबकि चंदना ने उसकी सारी शंकाओं को निर्मूल सिद्ध कर दिया।

हर सास यह चाहती है कि उसके बेटे हमेशा साथ साथ प्रेम से रहें लेकिन वह कभी नहीं चाहती कि उसकी बहुयें प्रेम से खुश और एक साथ रहें। बहुओं की एकता सास की ईर्ष्या का कारण बन जाती है, उसे अपना वर्चस्व खतरे में दिखाई देने लगता है। 

यही केतकी के साथ हो रहा था। रसोई से आती दोनों बहुओं की हॅसी से उसके सीने पर सांप लोट जाते। वह ऐसा नहीं होने देंगी। इस तरह तो ये दोनों मिलकर उन्हें पूरी तरह से नकार देंगी। उन्होंने सोच लिया कि वह इन दोनों की एकता को इस तरह समाप्त कर देंगी

कि दोनों एक दूसरे की सूरत भी नहीं देखना चाहेंगी। गलतफहमी की इतनी ऊॅची दीवार खड़ी कर देंगी कि दोनों की हॅसी गायब हो जायेगी। उन्हें यह भी पता था कि हो सकता है कि इस कारण दोनों भाइयों के बीच में भी मन मुटाव आ जाये लेकिन वह अपने बेटों को समझाना अच्छी तरह जानती है।

जल्दी ही वह दिन आ गया। चंदना की तीन दिन की छुट्टी थी तो रत्ना अपने मायके चली गई। केतकी चंदना के पास रसोई में आ गई – ” आप बैठिये अम्मा जी, मैं कर लूॅगी।”

” इतना सारा काम अकेले कैसे करोगी, यह सोचकर चली आई लेकिन अगर तुम्हें मेरा आना खराब लग रहा हो तो मैं चली जाती हूॅ।” केतकी ने जाने का उपक्रम तो किया लेकिन गई नहीं। 

” ऐसा नहीं है, आप बेकार ही परेशानी होगी।” चंदना समझ गई कि आज एकान्त देखकर सासू मॉ अपने कार्य की शुरूआत करने आई हैं, उसने उनकी ऑख बचाकर धीरे से अपने मोबाइल की रिकार्डिंग चालू कर दी।

” मेरा तो बहुत मन करता है कि तुम्हें कुछ अच्छी बातें सिखाऊॅ लेकिन तुम तो इस बुढ़िया के पास आती ही नहीं हो। अब किसी को तुम्हारी कदर हो या न हो लेकिन मुझे तो बड़ी दया आती है तुम पर कि अपने घर में इतनी लाड़ प्यार में पली लड़की यहॉ के काम में पिस रही है। सारा दिन ऑफिस में काम करती हो, और सुबह उठकर घर का करती हो लेकिन क्या करूॅ, कुछ बोलूॅगी तो रत्ना को बुरा लगेगा, घर में कलह होगा।”

चंदना जानबूझकर अधिक नहीं बोल रही थी कि केतकी को अपनी बात कहने का मौका मिले – ” तुम्हें क्या जरूरत है, इतने सुबह जल्दी उठकर काम करने की? आखिर तुम भी तो थक जाती हो लेकिन रत्ना को इस सबसे क्या? वह तो सारा दिन घर में आराम करती है और फिर भी उसकी नज़रों में तुम्हारी कोई कद्र नहीं है, कहती हैं कि तैयार होकर ऑफिस जाकर कुर्सी पर बैठ जाने में कौन सी मेहनत?”

” मेरे लिये भाभी ऐसा कहती हैं, मैं तो यह सब जानती ही नहीं थी। अच्छा हुआ, आपने बता दिया।” चंदना के लिये कुछ बोलना जरूरी हो गया।

केतकी समझ गई कि उसने चिन्गारी सुलगा दी है, अब धीरे धीरे हवा देकर आग बना देंगी – ” अब मैंने तुम्हें सतर्क कर दिया है, मानना न मानना तुम्हारा काम है। मेरा क्या है लेकिन तुम्हारे प्रति रत्ना की चालाकी और अन्याय देखकर मन नहीं माना तो बता दिया।”

केतकी को काम तो करना ही नहीं था, वह जिस काम से आई थी, वह  करके चली गई। 

इसी तरह एक दिन चंदना के ऑफिस में पार्टी थी तो आज उसे देर से आना था। रत्ना रात के खाने की तैयारी कर रही थी कि केतकी आ गई। रत्ना समझ गई कि अब आग लगाने की शुरुआत होने वाली है। उसने रिकार्डिंग चालू कर दी –

” लाओ, तुम्हारी कुछ मदद कर देती हूॅ। अपना अपना नसीब है। तुम्हारे भाग्य में सुख है ही नहीं तो क्या करोगी? इतने साल घर की जिम्मेदारी निभाई। अब देवरानी के आने से तुम्हें आराम मिलना चाहिये लेकिन वह महारानी तो नौकरी का बहाना करके निकल जाती हैं और तुम सुबह से शाम तक खपती रहती हो। उस पर मायके का घमंड लेकिन मैं कुछ कहूॅगी तो बुरी बनूॅगी।

सच तो यह है कि तुम इतनी सीधी हो कि उसकी चालाकी समझ नहीं पाती हो। दूसरी कोई होती तो इसी बात पर चूल्हा अलग कर लेती कि मैं क्या नौकर हूॅ जो गुलामी करूॅ? तुम विश्वास नहीं मानोगी, मुझसे ही कहती है कि जब भाभी में पैसा कमाने की अकल नहीं है तो घर का काम करती हैं तो कौन सा अहसान करती हैं?”

” आप सच कह रही हैं अम्मा जी, मुझे तो पता ही नहीं था कि वह मेरे बारे में ऐसा सोचती है।”

” मेरा काम तुम्हें सचेत करना था, इसलिये कर दिया लेकिन यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच में ही रहना चाहिये। चंदना कितनी तेज है, तुम्हें पता ही है। मेरी आफत कर देगी, घर में कलह का वातावरण हो जायेगा।”

” आप निश्चिन्त रहिये, मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी।”

रत्ना और चंदना ने एक दूसरे को दोनों रिकार्डिंग सुना दी – ” भाभी, आप पहले से मुझे सचेत न करतीं तो मैं तो इस घर की राजनीति जान ही न पाती। अब बताइये, क्या किया जाये? क्या हमें यह बात सबको बतानी चाहिये?”

” अभी नहीं, अभी कुछ रिकार्डिंग हमें और इकठ्ठी करनी है। साथ ही कल से हम पहले से कम बात करेंगे।”

केतकी देख रही थी कि उनकी बातों का अधिक नहीं तो थोड़ा थोड़ा असर होना शुरू हो गया है। अब चंदना और रत्ना पहले की तरह खिलखिलाते हुये रसोई का काम नहीं करती थीं।

मौका लगते ही केतकी दोनों बहुओं के मन में लगी आग में घी डालती रहतीं और हर बार उनकी बातें रिकॉर्ड कर ली जातीं।

” भाभी ऑफिस में मुझे एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य सौंपा जा रहा है। उसके लिये मुझे बहुत मेहनत करनी होगी। तीन महीने तक समय भी अधिक देना पड़ेगा। इसके लिये मुझे आपका सहयोग चाहिये”

” तो इसमें परेशानी क्या है? तुम आराम से काम करना, मैं सब सम्हाल लूॅगी।”

” मुझे लगता है कि आप मेरी बात नहीं मानेंगी। इसलिये मैं इस काम के लिये मना कर दूॅगी जबकि मेरा अगला प्रमोशन इसी पर निर्भर है।”

” क्यों नहीं मानूॅगी। तुम बताओ तो।” रत्ना चंदना की बात समझ नहीं पा रही थी।

” इस काम के बदले मुझे प्रमोशन के साथ ही बोनस के रूप में पॉच लाख रुपये भी मिलेंगे तो मैं चाहती हूॅ कि प्रमोशन मेरा और बोनस आपका। यदि आपको मेरी यह शर्त मंजूर हो तभी मैं अपनी स्वीकृति दूॅगी।”

” यह कैसे हो सकता है?” रत्ना बौखला सी गई – ” कैसी पागलों जैसी बातें कर रही हो? तीन महीने तक लगातार मेहनत तुम करोगी और मैं कैसे…..।”

” ठीक है, आप नहीं चाहती कि मुझे प्रमोशन और सर्वश्रेष्ठ की ट्राफी मिले तो मैं कल मना कर दूॅगी।”

आखिर रत्ना को चंदना की बात माननी पड़ी। उसने मुस्कुराते हुये एक चपत चंदना के सिर पर लगाई – ” बहुत जिद्दी हो तुम।”

थोड़ी देर बाद रत्ना को एक आइडिया सूझा और उसने चंदना को कुछ समझाया – ” तीन महीने तक हमें यह नाटक जारी रखना है।”

दूसरे दिन से चंदना ने सुबह रसोई में आना छोड़ दिया। यहॉ तक रत्ना भी न उसे नाश्ते के लिये बुलाती और न टिफिन देती। बनाकर रख देती तो चंदना आकर बिना बोले ले जाती। नाश्ते की मेज पर दोनों में से एक ही होती। दोनों में बोलचाल लगभग बन्द हो गई। चंदना तैयार होकर निकलती और बिना एक शब्द बोले अपना टिफिन लेकर चली जाती।

अरुण, तरुण और उनके पापा इस परिवर्तन से हैरान थे कि अचानक इन दोनों को क्या हो गया? केतकी बहुत खुश थी।‌उसकी लगाई आग धू धू करके जल रही थी। कोई पूॅछता भी तो दोनों एक ही बात कहतीं – ” उसी से जाकर पूॅछो, जब कोई नहीं बोलना चाहता तो मुझे क्या जरूरत है?”

केतकी के पति ने उनसे कहा भी – ” इन दोनों को अगर कोई गलतफहमी हो गई है तो बड़ी होने के नाते तुम्हें दोनों को समझाना चाहिये।”

” मुझे दूसरों के मामले में टांग अड़ाने का शौक नहीं है। तुम भी चुप रहो और घर में शान्ति रहने दो। एक दूसरे से नहीं बोलती तो न बोलने दो। कम से कम झगड़ा लड़ाई तो नहीं करती। अपने आप सब ठीक हो जायेगा।” 

सबको यही उचित लगा कि इस शान्ति को ऐसे ही बनी रहने दिया जाये। समय आने पर अपने आप सब सही हो जायेगा। केतकी के दोनों हाथों में लड्डू हो गये। वह नहीं चाहती थी कि इन दोनों में फिर से एकता हो। 

समय कभी नहीं रुकता। चंदना और रत्ना को कोई भी बात करनी होती तो वे फोन से बात कर लेती। धीरे-धीरे तीन महीने बीत गये। चंदना का काम पूरा हो गया और उसके कार्य की बहुत सराहना भी हुई। 

आज उसने तरुण और वरुण को जल्दी घर आने को कह दिया, कारण पूंछने पर कह दिया कि उसे खुशखबरी के साथ सबको कुछ बताना भी है। जब पूरा परिवार एक साथ इकठ्ठा हो गया तो उसने सबको अपनी सफलता और आगे होने वाले प्रमोशन के बारे में बताया। केतकी को उम्मीद थी कि चंदना की सफलता को सुनकर रत्ना ईर्ष्या से जल भुन जायेगी लेकिन उसके अधरों पर एक बहुत प्यारी मुस्कराहट खेल रही थी।

केतकी को आश्चर्य में देखकर रत्ना बोली – ” चौंकिये मत अम्मा जी, यह सब एक नाटक था ताकि आपकी सच्चाई खुल सके।”

” सच्चाई? कैसी सच्चाई?” एक साथ तीन लोग बोल पड़े। केतकी भी अचरज भरी नजरों से दोनों बहुओं को देखने लगी। 

तभी चंदना के फोन से केतकी की आवाज सुनकर सभी चौंक गये। दोनों ने अपने अपने मोबाइल की सारी रिकार्डिंग सबको सुनाई। अरुण और तरुण सहित उनके पापा भी केतकी को घूर रहे थे और केतकी सिर नीचा किये मूर्ति वत बैठी थी –

” यह क्या है केतकी? शर्म नहीं आई तुम्हें यह सब करते हुये? सभी चाहते हैं कि उनके परिवार में एकता रहे और तुम अपने ही परिवार को बिखरता हुआ देखना चाहती थीं? तुम्हें तो यह देखकर खुश होना चाहिये कि ये दोनों बच्चियाॅ प्रेम से एक दूसरे के साथ खुशी से रहती हैं।”

” मम्मी, ऐसा करके आपने हम सबका सिर शर्म से झुका दिया है। आखिर यह सब करके आपको क्या मिला? हम लोग तो फिर भी आपके बेटे हैं लेकिन आपकी ये बहुयें जीवन में न कभी आपका सम्मान कर पायेंगी और न ही विश्वास कर पायेंगी। एक दरार हमेशा के लिये सबके दिलों में आपने डाल दी है।”

” नहीं, हमारे दिलों में कोई दरार नहीं रहेगी लेकिन अम्मा जी हम दोनों अपनी मम्मी को छोड़ कर इस आशा से आपके पास आये हैं कि आप हमें मॉ का प्यार देंगी और अब भी हम आपसे यही चाहते हैं।”

केतकी की ऑखों से ऑसू बहने लगे। उसने आगे बढ़कर दोनों बहुओं को गले से लगा लिया – ” जो गलती कर चुकी उसे तो मिटा नहीं सकती लेकिन अब तुम दोनों मुझे माफ कर दो। आगे से मैं तुम्हें मॉ से अधिक प्यार दूॅगी।”

स्वरचित एवं अप्रकाशित 

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर 

लेखिका/ लेखक बोनस प्रोग्राम – कहानी – 05

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